Tuesday, December 4, 2012

विशवास के पीछे से ...घात लगाए ..वो थोडा मुश्किल है ...

दोस्तों, एक कहानी याद आ रही है, एक गाँव मैं एक व्यापारी था और एक ज्ञानी,....जब व्यापारी का व्यापार इतना बढ़ गया की वो उसे अकेले नहीं सम्हाल पा रहा था तो उस व्यापारी ने एक व्यक्ति की पहचान की, अपना साझीदार बनाने के लिए ।
और उसे साझीदार बना लिया ....अब नए साझीदार ने बड़ी ही मेहनत के साथ व्यापारी का काम किया ...और कुछ ही दिनों मैं उसका व्यापार काफी बढ़ गया ।।
व्यापारी खुश हो कर एक दिन ज्ञानी को मिठाई देने गया ...और बताया की मेरे व्यापार ने ....नए साझीदार की वजह से काफी तरक्की की है ।।
ज्ञानी ने मिठाई खाई और व्यापारी ने साझीदार की तारीफ की  ... और व्यापारी चला गया ....
बस कुछ ही दिनों के बाद व्यापारी फिर आया ज्ञानी के पास (इस बार रोते हुए) ....और बोला वो व्यक्ति तो मुझे अन्दर से धोखा दे रहा था ....और मेरा काफी सारा पैसा धीरे धीरे अपने नाम कर लिया ...मेरा तो नुक्सान हो गया ।।
मेरा तो व्यापार ही डूब गया।।
और मैं आया था तुम्हारे पास, और बताया था तुमको सबकुछ उसके बारे में .....और तुमने भी उसकी सच्चाई नहीं बताई मुझे .....
ज्ञानी बोला जब तुम आये थे ....तब तो वह व्यक्ति ..ईमानदार ही था ...अब वो महीने के 29 दिन तो तुम्हारे साथ ईमानदार था ...पर 30वे दिन बेईमानी कर गया ....
जब तुम आये थे तब भी मुझे अंदाजा था की वो बेईमानी कर सकता है ...पर अगर मैं तुमको बोलता तो तुम मानते ही नही ....और मैं चुप रहा .
अब सच्चाई के सामने न आने से ....देर से ही सही .....पर दिक्कत तो होती ही नहीं ....यार जिसके बारे में यह पता हो की वो चोर है ...वो कम खतरनाक है ....हम उससे सावधान रहतें है ...
पर जो विशवास के पीछे से ...घात लगाए ..वो थोडा मुश्किल है ....और शायद ज्यादा गलत भी ...
दोस्तों, अब कल घटनाक्रम को दोबारा सोंचने की जरुरत है क्या ?....नागेन्द्र शुक्ल

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