Sunday, December 29, 2013

रामलीला मैदान में मिथ ध्वस्त

दिल्ली के रामलीला मैदान में घूम रहा था। अरविंद केजरीवाल का शपथ ग्रहण चल रहा था। मुझे दो साल पहले का वो दिन याद आ रहा था। अन्ना हजारे अनशन पर बैठे थे। हजारों की भीड़ थी और संसद चल रही थी। कहीं किसी कोने एक स्पंदन दिख रहा था। लेकिन राजनेता और राजनीतिक दल अन्ना हजारे के आंदोलन का मजाक उड़ाने में लगे थे। उनके निशाने पर सबसे ज्यादा थे अरविंद केजरीवाल। और सबसे बड़ा तर्क यही दिया जा रहा था कि आंदोलन करना आसान है और चुनाव लड़ना मुश्किल। नेतागण ऐसा आभास दे रहे थे मानो चुनाव महामानव ही लड़ सकते हैं। अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम ने चुनाव लड़ा और दिल्ली में 28 सीटें जीतकर ये जता दिया कि सत्ता तंत्र ने जिस चुनाव को महामानवों का खेल बना रखा था दरअसल वो आम आदमी का चुनाव ही है। आम आदमी पार्टी की जीत ने ये साबित कर दिया कि राजनीति आम आदमी भी कर सकता है, सरकार भी बना सकता है। बस मुद्दे को जनता के सपनों से जोड़ने की जरूरत है।
ये वो वक्त था जब कि भ्रष्टाचार से हर आदमी त्रस्त था। छुटकारा पाना चाहता था। किसी को रास्ता सूझ नहीं रहा था। राजनीतिक दलों की दिलचस्पी भ्रष्टाचार से लड़ने में नहीं थी। ये भ्रष्टाचार ही उनको ताकत देता था और उनको आम आदमी से महामानव बनाता था। अरविंद और उनकी टीम ने भ्रष्टाचार से लड़ने का मन बनाया। आंदोलन की शुरुआत हुयी। 30 जनवरी 2011 को रामलीला मैदान में एक रैली हुई। जिस पर लोगों का ध्यान कम गया। बाकी रैलियों की तरह इसको कोई खास तवज्जो नहीं मिली। लेकिन उस दिन मुझे पहली बार लगा था कि एक लड़ाई लड़ी जा सकती है। रामलीला मैंदान में गैरराजनीतिक जमात के कहने पर लोग तो आये थे ही, दिल्ली से बाहर भी कई बड़े शहरों में लोग जुटे। ऐसे में जंतर-मंतर और बाद में रामलीला मैदान पर अन्ना के अनशन के समय लोगों के जुटने से मुझे बहुत ज्यादा हैरानी नहीं हुयी। हालांकि जब जिद्दी सत्ता तंत्र ने लोकपाल कानून बनाने से मना कर दिया तो लगा कि एक बार फिर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जेपी आंदोलन और वी पी सिंह आंदोलन की तरह अकाल मृत्यु को प्राप्त करेगा। अरविंद की टीम ने भी एक तरह से मान लिया कि आंदोलन से काम नहीं चलेगा। राजनीतिक दल बनाना पड़ेगा। दल बना लोगों ने फिर नाक मुंह सिकोड़ा। लेकिन चमत्कार हो गया। आंदोलन मरा नहीं था। वो नये सिरे से नया रास्ता तलाश रहा था। शनिवार को रामलीला मैदान पर घूमते हुए मैंने आंदोलन को सरकार के रूप में देखा। और वहां जमा लोगों की आंखों में सपना साकार होते देखा। उम्मीद जगी।
ये उम्मीद इस बात का प्रमाण है कि जेपी और वीपी सिंह की तुलना में ये आंदोलन ज्यादा स्थाई है। इसका असर कहीं अधिक कारगर साबित होगा। इसका असर आम आदमी पार्टी की जीत से नहीं पता चलेगा और न ही इसका आंकलन जीत से किया जाना चाहिए। मैंने अन्ना आंदोलन के समय भी कहा था कि आंदोलन की जीत भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल कानून बनने से नहीं होगी। अन्ना आंदोलन की सबसे बड़ी जीत भ्रष्टाचार को एक राष्ट्रीय विमर्श बनाने में थी। अन्ना आंदोलन ने सामाजिक विमर्श को बदलने में बड़ी भूमिका निभाई लेकिन आम आदमी पार्टी ने सामाजिक विमर्श के तौर के पर बनी जमीन को राजनीतिक विमर्श में तब्दील करने का काम किया। ये एक कदम आगे की भूमिका है। आम आदमी ने सबसे पहले राजनीति के इस मिथ को ध्वस्त किया कि चुनाव सिर्फ पैसे से, बाहुबल से और तिकड़म से लड़ा जाता है। एक साल पहले बने संगठन ने सीमित साधनों में चुनाव में आशातीत सफलता हासिल की। लंबे समय के बाद चुनावों में चना चबैना खाकर प्रचार करने वाले दिखायी दिए। पैसे के दम पर कार्यकर्ताओं की फौज की जगह नई उमर के बच्चों का रेड लाइट पर रुकती कारों में प्रचार करते दिखना और पोस्टर पम्पलेट बाटंना, एक नयी राजनीतिक संस्कृति की शुरुआत है। ये भारतीय लोकतंत्र में मामूली घटना नहीं है। चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए किसी तरह विधायकों की तोड़फोड़ न करना और सिर्फ अपने मुद्दों पर ही अटल रहना और उसकी जगह जनता के बीच सीधे जाकर सरकार निर्माण में लोगों की भागीदारी की खोज करना एक दूसरे मिथ को ध्वस्त करना था। तकरीबन एक सप्ताह तक दिल्ली के साथ देशभर के लोगों के बीच बहस को जन्म देना चुनाव में एक नया प्रयोग है। वर्ना सरकार निर्माण की कवायद या तो बंद कमरों में होती थी या फिर पंच सितारा होटलों में सूटकेस खोले जाते थे। इस बार विधायकों की खरीदफरोख्त नहीं हुई ये क्या कम बड़ी उपलब्धि है?
फिर आम आदमी ने एक और बड़ी रेखा खींची। उन्होंने साफ कहा कि उनके नेता और मंत्री किसी भी तरह की सुरक्षा नहीं लेंगे। लाल बत्ती का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा। अरविंद खुद मुख्यमंत्री होने के बावजूद मुख्यमंत्री के तौर पर निर्धारित बंगला नहीं लेंगे। फ्लैट में ही रहेंगे। मंत्री भी बंगलों की जगह अपने घरों में निवास करेंगे। शपथ ग्रहण समारोह इस देश में दर्जनों बार खुले में हुये। अरविंद के पहले साहिब सिंह वर्मा ने छत्रसाल स्टेडियम में शपथ ली थी। ऐसे में रामलीला मैदान का समारोह चौकाता नहीं। चौंकाता है मुख्यमंत्री और पूरी कैबिनेट का सरकारी गाड़ियों की जगह मेट्रो में चलना। वर्ना देश में मंत्री, विधायक और सांसद बनने का मतलब है लाल बत्ती, सुरक्षा के तामझाम, ब्लैक कैट कमांडोज, आगे पीछे हूटर बजाती गाड़ियां, ट्रैफिक का रुकना और बड़े बंगले हथियाने के लिये नानाप्रकार की जुगत। कुछ लोग अभी इसको ड्रामा करार दें। लेकिन लोग ये भूल जाते हैं कि चुनाव के लिये प्रत्याशी बनते ही इन तमाम चीजों के मद्देनजर शपथपत्र आम आदमी पार्टी ने दाखिल करा लिया था। मुझे नहीं पता इसके पहले इस तरह की कवायद कभी हुयी थी। आजादी के बाद जरूर आदर्शवाद और सादगी भारतीय राजनीति का एक चेहरा था पर बीते दिनों ये चेहरा धूमिल पड़ता गया और बाद में ये चेहरा ही गायब हो गया। भारतीय राजनीति में सादगी की वापसी पूरी राजनीति और चुनावी बिरादरी को बदलने के लिये मजबूर कर देगी। रामलीला मैदान का संदेश नयी राजनीति का नया आगाज है।

http://khabar.ibnlive.in.com/blogs/16/953.html

क़िस्सा ए शपथ ग्रहण


साहब मैं इंकम टैक्स में एल डी सी हूँ । शपथ ग्रहण समारोह में लोगों से हाथ छुड़ा कर तेज़ी से निकल रहा था तभी किसी ने मज़बूती से हाथ खींच लिया । मेरे पास अरविंद केजरीवाल के बहुत किस्से हैं । एक सुना दीजिये । टाइम नहीं है । ग्यारह बजने में कुछ ही मिनट रह गए थे । मुझे लाइव कवरेज के लिए जाना था । अलग अलग लोगों से कई किस्से सुनाई दिये , क्रमश: लिख रहा हूँ । 

एल डी सी ने अरविंद की कहानी यूँ सुनाई । एक रोज़ घोर बारिश में मैं सुबह सुबह दफ़्तर पहुँचा । पानी भर गया था । मैं पी डब्ल्यू डी को फ़ोन कर बाहर आया तो देखा कि एक आदमी पतलून मोड़कर झाड़ू चला रहा है । नालियों को साफ़ कर रहा है । मुझे लगा कि दफ़्तर का चपरासी होगा । मैंने कहा कि कंप्लेन कर दिया है । तो उसने जवाब दिया कि पी डब्ल्यू डी वाले तो तीन घंटे में आयेंगे । ज़रा गटर का ढक्कन उठाने में मदद कीजिये । मैंने मदद कर दी । थोड़ी देर में पानी साफ़ हो गया । सबके आने का टाइम हो गया था । कमरे में फ़ाइल लेकर गया तो देखा कि यह तो वही है जो गटर साफ़ कर रहा है । ये तो मेरा कमिश्नर है । 

कहते कहते अरविंद से उम्र में काफी बड़े लग रहे जनाब ने कहा कि अरविंद ने हम सबको प्रेरित किया । हड़काया नहीं । समझाया कि रिश्वत मत लो । वे हम लोगों को काफी समझाते थे । तब से मैंने रिश्वत लेनी बंद कर दी । मैं हमेशा नान असेसमेंट की पोस्टिंग लेता हूँ । असेसमेंट की पोस्टिंग के लिए न तो रिश्वत देता हूँ और न लेता हूँ । 

दिल्ली पुलिस के एक सिपाही ने बैरिकेड के दूसरी तरफ़ से मुझे पकड़ लिया । कहा कि आप हमारा मसला क्यों नहीं उठाते । हमें आठ घंटे की शिफ़्ट दे दो । बच्चों के लिए क्रैश होना चाहिए । एक दिन की छुट्टी तो हो हफ्ते । हम रिश्वत नहीं लेंगे । अभी हम चौबीस घंटे काम करते हैं । कोई छुट्टी नहीं । कौन चाहता कि रिश्वत लें । जिसे बताता हूँ कि कांस्टेबल हूँ वो मुझे चोर समझता है । भाई साहब ईमानदारी की रोटी खाने का दिल करता है । आज यहाँ ड्यूटी लगी है तबीयत मस्त है । 

भागते हुए एक लड़के की आवाज़ सुनाई दी । छोटा सा लड़का होगा । मेरी बहन को जलाकर मार दिया है । कोई केस नहीं हो रहा है । 

मंच के क़रीब पहुँचने ही वाला था कि मैं डेमोक्रेसी पढ़ाती हूँ । यह सही में जनता के लिए जनता के द्वारा वाला लोकतंत्र है । मैं आज अकेले आई हूँ । देखिये इस भीड़ में अकेली बैठी हूँ । 

भाई साहब आज सतयुग आ गया है । तभी किसी ने आवाज़ दी कि आज लगता है कि कृष्ण का जन्म हो रहा है । एक ने कहा जय श्री राम । राम राज अरविंद लायेंगे । 

आप भी चुनाव लड़ जाओ । पत्रकारिता में कुछ नहीं रखा है । लोगों की सेवा करो । नहीं जी । राजनीति मैं नहीं करूँगा । अरे आप मत करना । हम आपको जीता देंगे । :) 

ये लीजिये अमरूद खाइये । आम आदमी का अमरूद । 

मैंने एक आपाई से सवाल कर दिया िक लोग आपके आचरण को देख रहे हैं । जवाब मिला कि हमें अहसास है । क्या है न जी । अभी तक हमें भ्रष्ट नेता मिले हैं तो हम भी वैसे हो गए हैं । अब ईमानदार नेता मिला है तो हम भी हो जायेंगे । 

स्टेशन की वीआईपी पार्किंग में वहाँ के कर्मचारियों के साथ बैठा था । शपथ ग्रहण से लौट कर थक गया था । गणेश ने कहा कि एक बात है गुरु जी । अरविंद की रैली में वो लोग आते हैं जिनकी तनख्वाह पंद्रह से बीस हज़ार है । मोदी की रैली में वो लोग आते हैं जिनकी तनख़्वाह पचास हज़ार से अधिक है । 

ये कहानियाँ खुद को याद दिलाने के लिए लिखीं हैं ।.....Raveesh Kumar

इतना न रो कि कब्र में मुर्दे भी हंस पड़ें


नरेंद्र मोदी कैसे इंसान हैं? इंसान के रूप में भगवान हैं या आदमी के रूप में शैतान हैं? क्या वह अत्यंत क्रूर और शातिर हैं जैसा कि उनके विरोधी बताते हैं या नरमदिल और मृदुभाषी हैं जैसा कि उनके प्रशंसकों का कहना है?

मोदी जैसों को समझना बहुत ही मुश्किल है। खास कर हम जैसों के लिए जो उनके करीब नहीं हैं। वह पब्लिक में बहुत कम बोलते हैं। अगर बोलते हैं तो एक एजंडा के तहत जहां उनका मकसद होता है अपनी और अपने काम का ढिंढोरा पीटना और  विरोधियों, खासकर कांग्रेस के खिलाफ ज़हर उगलना। यह गलत भी नहीं है क्योंकि कांग्रेस भी अपनी तारीफ करने और मोदी के खिलाफ ज़हर उगलने में कम नहीं है। कहने का मतलब यह कि मोदी के भाषण उनके अपने बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताते सिवाय इसके कि उनका इतिहास-भूगोल आदि का ज्ञान बहुत ही कम है लेकिन उससे किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस देश का संविधान अनपढ़ों को भी सीएम या पीएम होने की इजाजत देता है। जब राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बन सकती हैं तो नरेंद्र मोदी के पीएम बनने पर कोई कैसे आपत्ति कर सकता है!

लेकिन कभी-कभी वह कुछ बोल देते हैं। जैसे कुछ महीने पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने गुजरात दंगों में मारे गए मुसलमानों के बारे में सवाल पूछे जाने पर सीधा जवाब न देते हुए कहा था कि आप किसी गाड़ी में बैठे हों और उस गाड़ी के नीचे कोई कुत्ते का बच्चा आ जाए तो भी आपको तकलीफ होती है। शुक्रवार को फिर उन्होंने एक ब्लॉग लिखकर ( ब्लॉग पढ़ें) बताया है कि दंगों के दौरान और दंगों के बाद उन पर क्या गुज़री (खबर पढ़ें)। यदि मोदी जो लिख रहे हैं, वह सच है तो वाकई उनके साथ बहुत ही अन्याय हुआ है। लेकिन क्या वह सच बोल रहे हैं?

मेरे पिताजी कहा करते थे, 'कोई क्या कहता है, इससे किसी इंसान की पहचान नहीं होती। इंसान की पहचान  इससे होती है कि वह करता क्या है।' शायद वह किसी महापुरुष के कथन को अपनी भाषा में समझा रहे थे या अंग्रेज़ी की कहावत - Action speaks louder than words का हिंदी तर्जुमा कर रहे थे। जो हो, वह बात मैंने गांठ बांध ली और आज मोदी को उनकी बातों से नहीं, उनके कामों के आधार पर जांचने की कोशिश करूंगा।

मोदी के राज में दंगे हुए। दंगों में हिंदू और मुसलमान दोनों मारे गए। लेकिन मोदी किसी मुस्लिम राहत शिविर में नहीं गए सिवाय एक बार जब तक अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उन्हें आलम शाह कैंप जाना पड़ा। और राहत शिविरों के बारे में उनका क्या सोचना था, यह 9 सितंबर को बहुचरजी में उनके द्वारा दिए गए भाषण से ज़ाहिर होता है। उन्होंने कहा था, 'क्या हम बच्चे पैदा करने के लिए राहत शिविर चलाएं।' इसके अलावा मार्च 2002 में इंडिया टुडे को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'यह केवल सांप्रदायिक दंगे नहीं थे बल्कि एक जन आंदोलन जैसा था।' 2002 में दंगों को जन आंदोलन बतानेवाले मोदी आज उसे विवेकहीन हिंसा बताएं तो कौन भरोसा करेगा?

यही नहीं, दंगों में मोदी सरकार की भूमिका के खिलाफ जिस किसी अधिकारी ने ज़बान खोली, मोदी सरकार उसके पीछे पड़ गई। ऐसे बीसियों उदाहरण हैं। अभी हाल के टेप में तो उनके सिपहसालार अमित शाह साफ बोलते पाए गए हैं कि फलां अधिकारी को इतने सालों के लिए अंदर करवा दो। क्या यही तरीका अपनाते हैं हमारे नरमदिल मोदी अपने विरोधियों को सबक सिखाने का? हमें तो यह माफिया का तरीका लगता है।

मोदी के मन में इस्लाम और मुसलमानों को लेकर कितना द्वेष है, इसका सार्वजनिक नज़ारा तब देखने को मिला जब एक जनसभा में उन्हें मुस्लिम टोपी पहनाने की कोशिश की गई और उन्होंने इनकार कर दिया। क्यों भई? यदि आप साफा बांध सकते हो, टीका लगा सकते हो तो मुस्लिम टोपी पहनने से क्या आपका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा?

मोदी कम बोलते हैं और बहुत सतर्क होकर बोलते हैं लेिकन जितना बोलते हैं, उससे उनके अल्पसंख्यक विरोधी मन-मस्तिष्क का संकेत मिल जाता है। मुझे याद है जब दंगों के बाद हुए चुनावों में लिंग्दोह के कारण उनको परेशानी हो रही थी तो वह रैलियों में उनका पूरा नाम बोलते थे - जेम्स माइकल लिंग्दोह। सोनिया गांधी के बारे में भी जब बोलते थे तो उनका पूरा नाम बोलते थे। क्यों? ताकि श्रोताओं को पता चल जाए कि ये ईसाई हैं और इसीलिए िहंदूवादी मोदी को परेशान कर रहे हैं। अभी पिछले साल चुनाव रैली में मोदी ने कहा, 'यदि कांग्रेस को वोट दिया तो अहमद मियां पटेल आपका मुख्यमंत्री बन जाएगा।' मोदी अपने भाषणों में हिंदू, मुसलमान नहीं बोलते, लेकिन अहमद पटेल का पूरा नाम लेकर वोटरों को सावधान कर दिया कि कांग्रेस आई तो मुसलमान बन जाएगा सीएम। वोटरों ने उनका संदेश ग्रहण कर लिया और मोदी का काम बन गया।

मोदी की रणनीति स्पष्ट है। हिंदुत्व और विकास - ये उनके दो शस्त्र हैं। जहां जो काम आ जाए, वहां वे उसका इस्तेमाल करते हैं। गुजरात में पहले विकास वाला चेहरा दिखाते हैं। जब मामला मुश्किल लगता है तो सांप्रदायिकता वाला चेहरा आगे कर देते हैं। जहां तक बाकी देश का सवाल है तो उनको पता है कि वहां अभी सांप्रदायिकता की फसल के लिए मिट्टी सही नहीं है। उनको यह भी पता है कि बीजेपी अभी उतनी ताकतवर नहीं है कि अपने बल पर 270 सीटें ले आए और उसे बाकी पार्टियों के सहयोग की ज़रूरत होगी और ये वे पार्टियां हैं जो या सो स्वभावत: धर्मनिरपेक्ष हैं या मुस्लिम वोटों की खातिर धर्मनिरपेक्ष बनी हुई हैं। इसीलिए आजकल विकास वाला चेहरा सामने किए घूम रहे हैं। लेकिन विश्वास मानिए, जिस दिन इस देश में कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा हुआ, मोदी अपना 'हल' लेकर सामने आ जाएंगे।

लेकिन तब तक तो बीजेपी को एक नरमदिल विकासवादी मोदी को बेचना है। इसीलिए आज का ब्लॉग आया है। लेकिन जैसा कि मैंने ऊपर लिखा, आदमी अपनी करनी से पहचाना जाता है न कि अपनी कथनी से। यदि कथनी के आधार पर ही इंसान के सही-गलत का फैसला करना होता तो आज आसाराम बापू अपने आश्रम में प्रवचन कर रहे होते और तरुण तेजपाल अपनी मैगज़ीन निकाल रहे होते, वे रेप के आरोप में जेल में बंद न होते।

Source => http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/ekla-chalo/entry/narendra-modi-s-crocodile-tears-on-gujarat-riots

Thursday, December 26, 2013

केजरीवाल के आने से कितने खौफ में हैं भ्रष्ट सरकारी अधिकारी...

देश की राजधानी दिल्‍ली में सत्ता बदल गई है, सत्ता के साथ सचिवालय में नजारे भी बदलने लगे हैं. इसी के साथ हुक्मरानों की नीयत और नीति भी बदलने लगी है. शीला दीक्षित 15 साल तक दिल्‍ली पर राज करने के बाद अब सत्ता के मुख्यालय से रुखसत हो चुकी हैं. दिल्‍ली में राजनीति ने एक नई करवट ली है और नए मुख्‍यमंत्री बनने जा रहे अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार विरोधी लहर पर सवार होकर मुख्‍यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं और आगे भी वे भ्रष्‍टाचार से लड़ने का दावा कर रहे हैं.

मुख्‍यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होने में अभी केजरीवाल को कुछ वक्त और लगेने वाला है. लेकिन दिल्‍ली सचिवालय में तो वक्त से पहले ही तमाम कुर्सियां हिलने लगी हैं. आज तक को पता लगा कि जाते हुए मंत्रियों के स्टाफ और कई गोपनीय विभागों में फाइलें और दस्तावेज खत्म किए जा रहे हैं. चुन-चुनकर फाइलों से कागज निकालकर फाड़े जा रहे हैं और अफसरों की मेजें और आलमारियां साफ की जा रही हैं.

आज तक की खुफिया टीम कैमरा लेकर जैसे ही शीला सरकार के एक दबंग मंत्री अरविंदर सिंह लवली के दफ्तर में घुसी, तो वहां का नजारा चौंकाने वाला था. दिल्ली सचिवालय में अरविंदर सिंह के ऑफिसर ऑन स्‍पेशल ड्यूटी (ओएसडी) लवानी के ऑफिस में भ्रष्‍टाचार मिटाने वाले झाड़ू से सबूतों को मिटाया जा रहा है. लवली तो दिल्‍ली सचिवालय से आउट हो चुके हैं, लेकिन ओएसडी साहब का स्टाफ फाइलों की सफाई में जुटा हुआ है.

फाइलों की सफाई में व्‍यस्‍त लवली के ओएसडी आज तक की टीम को देखकर पहले तो सकपका गए. फिर कुछ देर संभलकर उन्‍होंने खुद को नॉर्मल किया. जब उनसे पूछा गया कि दफ्तर में फाइलें क्यों फाड़ी जा रही हैं तो ओएसडी साहब बिल्कुल अनजान बन गए. उनके सहयोगी सफेद झूठ पर उतर आए. उन्होंने कहा कि दफ्तर में कोई फाइल नहीं फाड़ी जा रही है. शायद उन्हें ये मालूम ही नहीं था कि सरकारी दस्तावेज फाड़ने के सबूत कैमरे में पहले ही कैद हो चुके हैं.

सचिवालय में एक तरफ सरकारी फाइलें फाड़ी जा रही हैं तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री ऑफिस में तैनात कई अफसर केजरीवाल के डर से अपना ट्रांसफर कराने के लिए परेशान हैं. ये बात कोई और नहीं बल्कि सचिवालय का स्‍टाफ अपने मुंह से कह रहा है.
AAJ TAK TEAM

देखिए केजरीवाल के आने से कितने खौफ में हैं भ्रष्ट सरकारी अधिकारी... http://aajtak.intoday.in/video/operation-kejriwal-1-750557.html

Wednesday, December 25, 2013

Modi Ji desh ki majboori hain, par apna Arvind toh jaroori hai

Two impressing leaders of Indian Politics. Arvind Kejriwal and Narendra Modi.

Read this wonderful article on "Why Arvind Kejriwal makes more sense than Narendra Modi?", read to know why youths are more inclined towards AK than Namo, why AK wave seems more powerful than Namo wave. While Arvind is fighting to change the corrupt system, at the other hand Mr. Modi is itself the system. Arvind puts the people first, Mr. Modi puts the BRAND first. Arvind is natural phenomenon, while Modi is instigated phenomenon.
Arvind is the product of a movement while Modi Ji is the product of indoctrination. Arvind unites, Modi divides. Arvind believes in #Swaraj , Modi Ji believes in #MeraRaaj. Common man, students, teachers are working for Arvind , while Modi hires tech-professionals. Arvind has volunteers, Modi Ji has got workers.

In nutshell "Modi Ji desh ki majboori hain, par apna Arvind toh jaroori hai"

Must read here : www.sify.com/mobile/news/why-arvind-kejriwal-makes-more-sense-than-narendra-modi-news-columns-nmymInifedd.html?

Tuesday, December 24, 2013

गठबंधन की सरकार और अल्पमत की सरकार में अंतर

गठबंधन की सरकार और अल्पमत की सरकार में अंतर

गठबंधन की सरकार
1. दोनों दल मिलकर सरकार बनाते है.
2. दोनों पार्टियों के विधायक मंत्री पद ग्रहण करते है.
3. दोनों पार्टियों के अजेंडे के कुछ मुद्दे 'न्यूनतम साझा कार्यक्रम' में शामिल किये जाते है.
4. दोनों दल सभी प्रशासनिक निर्णय मिलकर करते है.

अल्पमत की सरकार
1. केवल एक ही पार्टी की सरकार होती है.
2. केवल उसी दल के लोग ही मुख्यमंत्री/मंत्री बनते है.
3. केवल उसी का अजेंडा/घोषणापत्र लागू होता है.
4. सरकार के किसी भी निर्णय में किसी भी दूसरी पार्टी का दखल नहीं होता है.

"आप" दिल्ली में अल्पमत की सरकार बना रही है, ना कि किसी गठबंधन की. "आप" ने आजतक कभी भी कांग्रेस/भाजपा से कभी समर्थन नहीं माँगा है. कांग्रेस ने स्वयं केवल संख्या गणित के हिसाब से बाहर से इस अल्पमत की सरकार को समर्थन देने का बोला है. हालाँकि भाजपाई तो इस बात को जानकर भी अनजान बने रहेंगे, और किसी भी तरीके से आप को बदनाम करने की कोशिश करेंगे. मगर हमे पूरी उम्मीद है, कि एक साधारण व्यक्ति को इसे समझने में कोई देर नहीं लगेगी.

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Wednesday, December 18, 2013

8 major differences between the Bill Passed by Congress (Jokepal) and Jan Lokpal Bill

here are 8 major differences between the Bill Passed by Congress (Jokepal) and Jan Lokpal Bill (Claimed by AAP ).Read this post with little patience and you will understand that How Indian Janta is fooled by this newly passed Lokpal(Jokepal) bill.

1.
Appointment:
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Jokepal :
Lokpal will be selected 5 members: by PM, Leader of Opposition, Speaker, CJI, and one jurist nominated by these 4.(thus majority of those who will select Lokpal will be from the political class, who themselves will need to be investigated by the Lokpal)
Actual Lokpal:
Lokpal will be appointed by a 7 member committee, consisting of 2 SC judges, 2 HC judges, 1 nominee of CAG+CVC+CEC, PM and Leader of Opposition

2.Removal:
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Jokpal:
For removal, only the Govt, or 100 MPs can make a complaint to the SC.
(thus rendering the removal largely under control of the government and the political class, and compromising its independence)
Actual Lokpal:
Any citizen can complain to the SC seeking removal of any member of Lokpal.

3.Investigating machinery:
##################
Jokpal:
The Lokpal would have to get the complaints investigated by any investigating agency, including the CBI, all of which would continue to remain under the administrative control of the government. The transfer, postings and post-retirement jobs of CBI officers would be under the control of the govt, thus compromising the independence of the investigative machinery.
Lokpal:
The CBI will be brought under the administrative control of the Lokpal, so that the investigating machinery can be made independent of the government.

4.Whistleblower protection:
##################
Jokpal:
Not mentioned in the government’s bill.

Actual Lokpal:
The Jan Lokpal Bill includes provisions for protection of whistleblowers.

5.Citizens Charter:
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Jokepal:
Not mentioned in the government bill.
(this was one of the unanimous assurances made by parliament to Anna Hazare when he broke his fast in August 2011)

Actual Lokpal:
The Jan Lokpal instituted a mechanism for prosecution of government officials if they failed to fulfill their duties under the citizens charter, which was to be created in this Bill.

6.Lokayuktas in the State:
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Jokepal:
Have been left to the discretion of the state governments.
(this was one of the unanimous assurances made by parliament to Anna Hazare when he broke his fast in August 2011)
Actual Lokpal:
The Jan Lokpal bill sought to create a Lokayukta along the same lines as the one at the center.

7.Frivolous Complaints:
##############
Jokepal:
Any person making a false or frivolous complaint could be jailed for up to 1 year, which will deter even honest complainants from going to the Lokpal.
Lokpal:
There was a penalty up to Rs. 1 lakh, but no provision for imprisonment.

8.Ambit of the Lokpal:
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Jokepal:
Judiciary excluded completely and MPs excluded in respect of their votes and speeches in Parliament.
Lokpal:
Included all public servants, including judges and MPs, with regard to all their public duties.

Sunday, November 24, 2013

विकल्प की अकाल मौत की कोशिश

आम आदमी पार्टी यानी 'आप' के लिए यह संकट का समय है। कई लोग काफी खुश हैं, खासतौर से वे लोग, जो शुरू से ही 'आप' को संदेह की नजर से देखते थे। कुछ वे भी हैं, जो इससे ईष्र्यादग्ध थे और अरविंद केजरीवाल की कामयाबी से जल रहे थे। कई ऐसे भी हैं, जो केजरीवाल की कामयाबी से जुड़कर अपनी कामयाबी का रास्ता तलाश रहे थे और जब एंट्री नहीं मिली, तो उसको बरबाद करने में जुट गए। पर ये हमले पहली बार नहीं हुए हैं। पहले भी गंभीर आरोप लगे और आगे भी लगेंगे। लेकिन चुनाव के ठीक पहले इस संकट ने एक सवाल जरूर खड़ा कर दिया है। सवाल साख का है, और राजनीतिक मजबूती का भी है? और सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या इस संकट का सामना करने का माद्दा 'आप' के नेतृत्व में है? मुझे ध्यान है कि जब अन्ना ने आंदोलन शुरू किया था, तब भी समाज के एक तबके को शिकायत थी। खासतौर से अंग्रेजीदां तबके को गांव-देहात का एक बुजुर्ग और उसके साथ सामान्य कद-काठी का एक मध्यम वर्गीय लड़का पसंद नहीं आ रहा था। तब तीन तरह के तर्क दिए गए थे। एक, अन्ना जिस जन-लोकपाल की मांग कर रहे हैं, वह भारतीय संविधान के बुनियादी नियमों के खिलाफ है। हमारा संविधान सत्ता के संतुलन पर आधारित है, जबकि जन-लोकपाल इस संतुलन को खत्म कर देगा।
दो, अन्ना हजारे का आंदोलन पूरी राजनीतिक व्यवस्था को ही डिस्क्रेडिट कर रहा है, जिससे अंत में अराजकता पैदा होगी और पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो सकती है। तीन, इस आंदोलन के कारण सरकार, नौकरशाही ने काम करना बंद कर दिया है, क्योंकि हर वह आदमी, जो फैसले ले सकता है, वह अंदर से डर गया है कि कहीं उसे जेल न जाना पड़े। इस वजह से सरकार लकवे का शिकार हो गई और विकास की गति ठहर गई। मैंने तब भी लिखा था कि ये तीनों ही तर्क बेबुनियाद हैं। जन-लोकपाल का मतलब यह कतई नहीं था कि मौजूदा राज-व्यवस्था के खिलाफ एक समानांतर व्यवस्था खड़ी हो। जन-लोकपाल की मांग समाज में क्रांति का आह्वान नहीं, बल्कि मौजूदा व्यवस्था को अंदर से ठीक करने की एक कोशिश थी। इसलिए रामलीला मैदान का अन्ना का अनशन तीन मांगों के माने जाने पर खत्म हो गया था। इसके केंद्र में था सरकार और नौकरशाही में जवाबदेही व पारदर्शिता लाने का वायदा। अगर लोकपाल देश में समानांतर व्यवस्था खड़ा करने का उद्यम होता, तो सरकार कानून बनाने का प्रयास कतई नहीं करती। फिर यह आरोप अन्ना पर कैसे लगाया जा सकता था कि वह राजनीति को डिस्क्रेडिट कर रहे हैं, जबकि राजनीति पहले से ही अपनी साख खो चुकी है।
आज नेताओं पर लोगों को यकीन नहीं है। हर आदमी यह मानता है कि राजनीति पैसा कमाने का धंधा है। तमाम सर्वे मेरी बात की तस्दीक करते हैं। यह बात भी मेरे गले कभी नहीं उतरी कि आंदोलन की वजह से सरकार को लकवा मार गया। मेरे लिए यह एक दार्शनिक सवाल है। क्या भारत को भ्रष्टाचार के सहारे सुपर पावर बनना चाहिए? अगर ऐसा होता है, तो क्या यह स्थिति आम आदमी और देश के लिए सुखद व स्थायी होगी? मेरा मानना है कि भ्रष्टाचार के बल पर खड़ी की गई इमारत ज्यादा नहीं चलती। वह किसी न किसी दिन भरभरा कर गिरती ही है और तब भारत के अस्तित्व को ज्यादा बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। दरअसल, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की साख को खत्म करने के लिए इस तरह के तर्क गढ़े गए और इस प्रक्रम में वे तमाम तत्व एकजुट हो गए, जिनके स्वार्थ को इस आंदोलन से नुकसान होता। यही वजह है कि राजनेता, कारोबारी घरानों व प्रबुद्ध वर्ग की तिकड़ी ने एक ऐसा उपक्रम रचा कि अन्ना का आंदोलन अपने मुकाम तक न पहुंच पाए।
अन्ना और उनकी टीम में दरार डाली गई। एक-दूसरे के खिलाफ लोगों को भड़काया गया और अंत में अन्ना ने अपने आप को पूरी तरह से अलग कर लिया। केजरीवाल ने राजनीति में जाने का फैसला किया और आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ। दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ने का फैसला हुआ। अन्ना ने कई यात्राएं कीं, पर वह नाकामयाब होकर रालेगांव सिद्धि बैठ गए। केजरीवाल के लिए राजनीति नई थी। मुझे भी ज्यादा उम्मीद नहीं थी। लेकिन तमाम सर्वेक्षणों ने 'आप' पार्टी के प्रति लोग की सहानुभूति को साफ दर्शाया। लगने लगा कि यह पार्टी सरकार बनाए या न बनाए, लेकिन यह जरूर तय करेगी दिल्ली में सरकार कौन बनाएगा। महज एक साल में 'आप' का दिल्ली की राजनीति में एक दमदार मुकाम हासिल करना यह दर्शाता है कि लोग स्थापित और परंपरागत राजनीति और राजनीतिक दलों से उब चुके हैं। उन्हें एक सशक्त विकल्प की तलाश है। उन्हें लगता है कि जिस भारत की कल्पना गांधी जी और संविधान निर्माताओं ने की थी, ये वह भारत नहीं है।
इस भारत में करोड़ों रुपये खर्च करके पहले राजनीतिक दलों से टिकट खरीदे जाते हैं और फिर अरबों खर्च करके चुनाव जीते जाते है। सत्ता में आने के बाद खर्च हुए पैसे की उगाही जनता की जेब से की जाती है और भ्रष्टाचार को खुलेआम सही ठहराया जाता है। जब कोई इनके खिलाफ आवाज बुलंद करता है, तो उसको डिस्क्रेडिट करने का कुचक्र होता है। ऐसे मौकों पर प्राय: राजनीतिक मतभेद भुला दिए जाते हैं। 'आप' कोई मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि क्या इस देश में पेशेवर राजनीतिक दल कभी किसी स्वस्थ राजनीतिक विकल्प को अपनी जड़ें जमाने देंगे या नहीं? और मसला यह भी है कि विकल्प की वकालत करने वालों में क्या इतना धैर्य और जीवट है कि वे तमाम झंझावातों से निकलकर अपने मकसद में कामयाब हो सकें? मैं यह दावे से कह सकता हूं कि लोगों के अंदर एक आग धधक रही है, इस आग को अगर सही नेतृत्व मिला, तो हिन्दुस्तान का चेहरा बदल जाएगा और फिर भारत सही मायने में सपनों का देश होगा, असली सुपर पावर!
Source,...Ashutosh IBN7
http://khabar.ibnlive.in.com/blogs/16/941.html

Thursday, November 21, 2013

This is Politics, BJP + Congress, but it will change.

देश कि भ्रष्ट राजनीति ने,…एक स्वक्ष और सुचिता कि राजनीति करने वाली पार्टी आम आदमी पार्टी को दिल्ली चुनाव में होने वाली अप्रत्याशित जीत से रोकने के लिए सिर्फ 5 दिनों में ताबड़तोड़ निम्नलिखित ग्रणित कार्य किये ,.... यहीं से साफ़ हो जाता है कि भ्रष्ट राजनीतिकिस कदर से डरी है आप से। …
Here's the politics if you can see and understand what happened in last 1 week:
1) Some one complains in High court against the "Foreign funding" to AAP. For them NRIs are foreigners.
2) Subramanian Swamy started attacks on AAP without providing any proofs.
3) Home Minister and Congress leader Shushil kumar Shinde starts investigation against AAP funding, of which all details are already open on AAP website.
4) Several motivated groups went to meet Anna ji and gave him many false information. Anna writes a letter to Arvind.
5) Arvind explains it in a Press meet and replies to Anna ji. Again BJP and Congress unitedly attack AAP on TV debates.
6) A BJP worker throws ink on Arvind in the press meet.
BJP leader takes bail of the person who attacked Arvind in press conference.
7) A CD surfaces next day about the same issue in the media.
8 ) Sting operation's edited CD comes in media. And when AAP asked to release full unedited 15 hour video tape so that AAP can verify and take actions if found guilty. Mr. Anuranjan Jha (who did this sting) refuse to share full video to public and AAP.
9) Mr. Anuranjan Jha releases only 48 minute of video to public out of 15 hour long recording. Why he want people to see half and very small part of the truth? What he edited?
10) A FIR being registered against Kumar Vishvas for an old speech he made.

Thursday, November 14, 2013

BJP से कुछ महत्वपूर्ण सवाल जिनके जवाब जनता चाहती है:-

BJP से कुछ महत्वपूर्ण सवाल जिनके जवाब जनता चाहती है:-

१) क्या कारण है की जिन राज्यों में बीजेपी के सरकार है वहां आज तक किसी भी भ्रष्ट कांग्रेस के नेता को जेल नहीं भेजा गया? क्या बीजेपी के अनुसार कांग्रेस के सारे नेता साफ़ सुथरे, इमानदार है? या ये बीजेपी और कांग्रेस के मिली भगत है की लूटेंगे दोनों और एक दुसरे के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे?

२) सुब्रमण्यम स्वामी और उमा भरती ने कहा की "राम सेतु" तोड़ने का आदेश बीजेपी की केंद्र में रही सरकार के समय दिया गया था ताकि DMK का समर्थन बीजेपी को मिल सके. तो क्या सिर्फ अपनी सरकार बनाये रखने के लिए बीजेपी राम जी को भूल गयी???
स्वामी जी का विडियो :- http://www.youtube.com/watch?v=q5PpGE5rV_8
उमा भरती का वक्तव्य:- http://www.dnaindia.com/india/report-vajpayee-advani-should-apologise-on-ram-sethu-issue-uma-1131135

३) कारगिल युद्ध के समय जब देश के जाबाज़ सिपाही देश के लिए अपनी जान दे रहे थे तब बीजेपी की सरकार के दौरान "ताबूत घोटाला" जैसा नीच काम हुवा. क्या यही है देश भक्ति? की पैसे दिखे तो युद्ध के समय भी घोटाला करने से बाज़ ना आयें?

४) बीजेपी को कश्मीर का मुद्दा हर 5 साल में चुनाव के ठीक पहले याद आ जाता है. पर क्या कारण है की बीजेपी की सरकार जब 6 साल केंद्र में रही तब किसी भी अलगाव वादी कश्मीरी नेता को जेल में बंद नहीं किया गया, उस पर देशद्रोह का मुकदमा नहीं चलवाया? क्या कारण है की सत्ता में होते हुवे भी कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को बीजेपी ने नहीं हटाया जिसकी मांग वो हमेश चुनाव के ठीक पहले जरुर करते है. क्या इस का कारण "उमर अब्दुल्ला" की नेशनल कांस्फ्रेंस से सरकार बनाने के लिए 1999 में मिला समर्थन था? सत्ता के लिए बीजेपी देश भक्ति और कश्मीर को भूल गयी?

५) दिल्ली में बीजेपी के मुख्य मंत्री पद के प्रत्याशी ने कहा की अगर दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनी तो वो शिला दिक्षित और अन्य कांग्रेस के भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कोई जाँच नहीं करवाएंगे. CWG घोटाले की भी जाँच नहीं करवाएंगे. क्या इस तरह से भ्रस्टाचार मिटाएगी बीजेपी? क्यों बचाना चाहती है बीजेपी कांग्रेस के नेताओं को? http://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/no-witch-hunting-if-bjp-comes-to-power-in-delhi-polls-says-harsh-vardhan/articleshow/25262248.cms

६) MCD में पिछले 7 साल से बीजेपी का शाशन है, दिल्ली की जनता MCD (नगर पालिका) के भ्रस्टाचार से त्रस्त है. जब बीजेपी 7 सालों में MCD में भ्रस्टाचार कर रही है तो बीजेपी दिल्ली में कैसे ये दावा करती है की वो सरकार बना कर भ्रस्टाचार मुक्त शाशन देंगे? http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2010-07-19/delhi/28273991_1_corruption-cases-acb-deep-mathur

७) 40% दिल्ली में पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता, 15 साल से विपक्ष में बैठी बीजेपी को जनता का ये दर्द नहीं दिखा? क्यों आवाज नहीं उठाई बीजेपी ने इस बात के लिए? क्यों विधान सभा में सरकार को मजबूर नहीं किया की सारी जनता को पीने का साफ पानी दिया जाये? अब जब आम आदमी पार्टी ने ये मुद्दा उठाया तब जा के बीजेपी को याद आया.

८) MDC (नगर पालिका) के अंतर्गत जो सरकारी स्कूल और अस्पताल आते है उन को बीजेपी अभी तक बहतर क्यों नहीं बना पाई? MDC पर तो बीजेपी का शाशन है न 7 साल से. किसने रोका था जनता की भलाई के लिए काम करने में?

९) पूरी दिल्ली में जब डेंगू फैला हुवा था तब बीजेपी अपनी चुनावी रैली के इंतजाम में लगी हुई थी. सैकड़ो लोग मर गए. क्यों MCD (नगर पालिका) ने समय पर और सभी जगह मछर मारने की दवा का छिडकाव नहीं करवाया?

१०) क्या कारण है की बीजेपी के नेताओं को पाकिस्तान का "मोहम्मद अली जिन्ना" बहुत पसंद है की उन के नेता जब पाकिस्तान जाते है तो जिन्ना की मज़ार पर माथा टेकते है, जिन्ना को सच्चा धर्मनिरपेक्ष बताते है, बीजेपी के नेता जिन्ना की तारीफ में किताबें लिखते है?? बीजेपी के नेता भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस आदि पर किताब नहीं लिख सकते थे?

११) तौकीर रज़ा खान को जब 2010 में पुलिस ने बंद किया था तब बीजेपी के एक नेता ने उस की बेल करवाई थी. क्यों???

१२) क्या कारण है की बीजेपी की सरकार मध्य प्रदेश में 10 साल से है उस के बाद भी कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ कोई भ्रस्टाचार का मामला बीजेपी ने चालू नहीं किया. क्या बीजेपी मानती है की दिग्विजय सबसे इमानदार नेता है? या बीजेपी और कांग्रेस की मिली भगत है?

१३) BSP की नेता मायावती ने कहा था की राम मंदिर की जगह उस जमीन पर शौचालय बनना चाहिए. उस के बाद भी बीजेपी ने मायावती के साथ मिल कर सरकार बनाई. क्यों? मायावती की इस बात और उन के भ्रस्टाचार को बीजेपी भूल गयी थी?

१४) "शिबू सोरेन" जिन पर हत्या का आरोप था और उन को जेल भी हुई थी की पार्टी (JMM) के साथ हाथ मिला आर बीजेपी ने झारखण्ड में सरकार बनाई. क्या बीजेपी को अपराधी और भ्रष्ट नेताओ और पार्टियों से समर्थन लेने में कोई परहेज नहीं है? किसी भी तरह सत्ता में आना ही बस बीजेपी का अंतिम लक्ष्य है?

१५) पूरे देश में सबसे ज्यादा बलात्कार बीजेपी के मध्य प्रदेश में होते है. क्या इस ही तरह की सुरक्षा देगी बीजेपी महिलाओं को? बीजेपी के कई नेताओं के ऊपर बलात्कार के आरोप लगे है बीजेपी ने उन को पार्टी से क्यों नहीं निकला अभी तक?

१६) बीजेपी के वरिष्ट नेता अरुण शौरी ने कहा की बीजेपी और कांग्रेस में कोई अंतर नहीं है, दोनों पार्टी मिल कर समझोते से निर्णय करती है की किस मामले में क्या करना है. तो क्या बीजेपी बस टीवी पर दिखावे की लड़ाई करती है? http://www.rediff.com/news/report/interview-arun-shourie-on-the-real-meaning-of-the-radia-tapes1/20101201.htm — with Arvind Kejriwal and 9 others.

१७) एक तरफ तो बीजेपी कांग्रेस के खिलाफ होने का दावा करती है और दूसरी तरफ बीजेपी के सबसे बड़े वकील नेता "राम जेठ मालानी" 2G मामले में दोषी "कनिमोज़ी" के बचाव में सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते है. ये कैसा विरोध हुवा भाई? ये तो जनता के साथ धोका है. इस के आलावा बीजेपी के ये मशहूर वकील नेता जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा, अंडर वर्ल्ड के डॉन "हाजी मस्तान", "लालू यादव", शेयर बाजार के घोटाले बाज़ "हर्षद मेहता", IPL घोटाले के दोषी "ललित मोदी" के भी वकील रहे है. क्या खूब भ्रस्टाचारीयों और अपराधियों से प्रेम है बीजेपी के नेताओं को.

१८) क्या कारण है की बीजेपी जब विपक्ष में होती है तब तो उन्हें "बोफोर्स घोटाला" याद आता है, पर जब बीजेपी की सरकार 6 साल केंद्र में थी CBI उन की जेब में थी तब बीजेपी ने बोफोर्स मामले की जाँच पूरी क्यों नहीं करवाई??? इस मामले को 6 साल में "लोजिकल एंड" पर क्यों नहीं ले गई?

१९) कश्मीरी पंडितों की याद चुनाव के समय जिस बीजेपी को हमेश आती है उस बीजेपी ने 6 साल की सत्ता के समय क्या नयी नीतियाँ बनाई कश्मीरी पंडितों की भलाई के लिए?

२०) 1984 में कांग्रेस ने सिख विरोधी दंगे करवाए थे, उस मामले की जाँच पूरी करवा कर दोषियों को फंसी की सजा क्यों नहीं दिलवाई बीजेपी की केंद्र सरकार ने 6 सालों में?

बस बड़ी बड़ी बाते करना और जनता को मुर्ख बनाना आता है बीजेपी को, पर काम वैसे ही करती है जो कांग्रेस ने किये है. टीवी पर कांग्रेस का विरोध और पीठ पीछे हाथ मिलाना, इस तरह की राजनीती अब इस देश के लोगों को नहीं चाहिए.
 

Tuesday, October 29, 2013

चलो दिल्ली .....पर क्यों चलो दिल्ली ...

चलो दिल्ली .....पर क्यों चलो दिल्ली?...
दोस्त, आपको दिल्ली आना है ...पर क्यों आना है दिल्ली?

दोस्त, आपको दिल्ली इसलिए आना है क्योंकि ....आज तक जितने बार भी ...जब जब भी आप अपने शहर और गाँव में ..मोमबत्ती ले इन्साफ के लिए अपने घर से निकले थे ..उन सारी लड़ाइयों का ....एक निर्णायक युद्ध लड़ा जा रहा है दिल्ली में ...एक इतिहास लिखा जा रहा है दिल्ली में,....और आपको दिल्ली उसी युद्ध में उतरने के लिए आना है .....

ये युद्द है ..भ्रष्ट व्यवस्था और सच्चे लोकतंत्र के बीच ...
ये युद्द है ..पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसे वाली राजनीति ...और देश के सच्ची समाज सेवा वाली राजनीति के बीच ...
ये युद्द है ..उस झूठ और पाखण्ड के खिलाफ ...जिसमे देश कि सर्वोच्च संस्था संसद में बैठ ..हमारे नेताओ ने अच्छे - अच्छे भाषण तो दिए थे ...पर जब करने का नंबर आया तो मुकर गए ...
ये युद्द है ..आम जनता के सम्मान का ...और हमारे नेताओ के अहंकार का ....अरे क्या माँग रही थी देश कि जनता ...क्या मांग रहे थे अन्ना ...सिर्फ जनलोकपाल ..एक ऐसी व्यवस्था जिसमे पारदर्शिता हो ...जो सच्चा लोकतंत्र हो ..स्वराज हो ...पर नहीं दिया ...धोखा दिया ....

धोखा दिया ...और क्या-क्या नहीं कहा ...सड़क पर नहीं बनते कानून .....गटर कीड़ो से बातचीत नहीं होती ..यही कहा था ना ?....याद है कि भूल गए? ....
ये युद्ध है उसी अपमान का ...ये अपमान किसी एक व्यक्ति या संस्था का नहीं था ..
ये अपमान था ..देश कि आत्मा का ...ये अपमान था ...देश कि जनता का ....
अरे जब हमारा संविधान कहता है ....कि जनता के लिए ..जनता के द्वारा ...
तो क्या मतलब बनता है ये कहने का ...कि ...
सड़क पर नहीं बनते कानून .....जनता के कहने से नहीं बनते कानून ....कोई बात नहीं हो सकती गटर के कीड़ो से ...
ये भी कहा गया था ...कि ..
गर चाहिए कानून ...तो लड़ो चुनाव ...और ले लो ...जनलोकपाल ..ले लो स्वराज ...ले लो सम्मान ...
पर ऐसे नहीं देंगे ...चुनाव लड़ो ...और जीत लो ..ले लो ....

किसे चाहिए था "जनलोकपाल"
किसे चाहिए थे "स्वराज" ....
किसका हुआ था अपमान ....जनाब सिर्फ आपका ..इस देश कि जनता का .....
हमारे नेताओ ने ...खुले आम जनता का ...जनता की भावनाओ का ...और उस तरीके का ....
जिस तरीके से ...आज़ाद हुआ था हमारे देश ..खुले आम मजाक बनाया था ...और दी थी चुनौती ..चुनाव की...

क्यों दी थी चुनौती ..चुनाव की ...
इसीलिए ना कि ..उनको भरोषा है ..अपने उस महा भ्रष्ट राजनीतिक तौर - तरीके पर ....
उन्हें विस्वास था ..कि वो अपने छल - प्रपंच और दारु पैसे के आधार पर जीतने नहीं देंगे ...इसीलिए ना ...

पर शायद वो ये भूल गए थे ...कि अपने दंभ में ..आकर उन्होंने किसे चुनौती दे दी ...
अरे जनाब आपको ..चुनौती दे दी ...हमें चुनौती दे दी ....
क्या जीत सकते है ये ....हमारे ही दम पर ...हमको ही बेवकूफ बना ...और हमें - आप से लड़ा ....
नहीं गुजर गया वो दौर ..जब नेता थे वो हमारे ...
खो चुके है वो विस्वास ..और हमारे भाग्य विधाता होने का हक़ ....
अब नहीं ..अब हम समझ चुके है ...अब आप खुद युद्ध में कूद चुके है ....
अब आप कूदे है ..तो हम इन्हे जीतने नहीं देंगे ....

और वैसे भी ....ये जीत नहीं सकते ....पर है आपको ....आपका आमंत्रण ...कि शामिल हो दिल्ली के इस युद्ध में ....ताकि बता सके भविष्य को ....
कि हाँ ...हम हिस्सा थे उस बदलाव का ...जिसने तुम्हे दिया है ....एक समृद्ध राष्ट्र ....और अछय सम्मान ....

दोस्त दिल्ली का चुनाव ..कोई चुनाव मात्र नहीं है ...
ये शुरुवात है ....सच्चे लोकतंत्र की..
ये शुरुवात है ...स्वराज की ....
ये शुरुवात है,... उस समाज की ...जिसे कोई बाँट ना पाये ...आपस में लड़ा भिड़ा नहीं पाये ....
ये शुरुवात है,...उस व्यवस्था की ..जिसमे आपको वो मिले ...जो सही है ...देश के लिए ..आपके लिए ..और आपके बच्चो के भविष्य के लिए .....

जाग चुकी है दिल्ली ....और आप,...जीत चुके हो ये युद्ध ....
4 दिसंबर को तो ये भ्रष्ट राजनीति ....अपनी हार मानेगी ..और
8 दिसंबर को होगा ...जनता की जीत का ऐलान ....उस जीत का ऐलान ...जिसके लिए आप निकले थे अपने घर से ..कभी एक मोमबत्ती और कुछ सपने लेकर .....और मानेगा जश्न आपकी इस जीत और बदलाव कि शुरुवात का 29 दिसंबर को ..उसी रामलीला मैदान में ....जिसमे दिया गया सबसे बड़ा धोखा ....

पर आना है आपको,...
आपको आना है,....इस यज्ञ में ..अपने हिस्से कि आहुति देने ...और दिल्ली वालो को ये बताने कि ....
दोस्त, आप दिल्ली बदलो ....हम देश बदलेंगे .....
अब ना भटकेंगे ...अब ना रुकेंगे ...आप दिल्ली बदलो ....हम देश बदलेंगे ...

आप को आना है ...दिल्ली कि इस रणभूमि से ...एक चिंगारी लेने ....
ताकि जला सके एक ....मशाल ..वहाँ जहां आपका घर है ...और दिखा सके रोशनी उनको जो आपके अपने है ....
बदल सके उनका जीवन ...जिनके लिए आप जीते है .....आना है आपको ..और इसलिए आना है आपको ....

पर युद्ध में आने से पहले ..पैने कर लो ..अपने हथियार ....कर लो तैयारी ..और पढ़ लो स्वराज .....समझ लो स्वराज ..समझ लो RTI ....
मिलेंगे दिल्ली दिल्ली में ...आपको आपके वो साथी ....जिन्होंने थाम रख्खी है ...ये धधनकती मशाल ...जो मिटा रही भ्रष्टाचार के अँधेरे को ....और फैलाएगी ...सदाचार कि रौशनी ....

तो करो तैयारी ...क्योंकि ये है अंतिम आवाज़ ....अंतिम आवाज़ .की ....
बढ़ो ..लड़ो ..और बदल दो तकदीर देश कि ...बदल दो तस्वीर समाज की ....

रखो नीव उस संकल्पना कि जो थी ...शहीद भगत सिंह कि ...आज़ाद की ...शास्त्री और कलाम की .....
हम तैयार है .....आपके स्वागत के लिए दिल्ली में ...हमसे बात करो ....
08588833525
08588833537
08588833534
09873703054
07830398955......
छोड़ो कल की बांते,....कल की बात पुरानी.....
उठो धरा के अमर सपूतो ..पुनः नया निर्माण करो .....नागेन्द्र शुक्ल
Please Provide Your Data @ http://goo.gl/oG1w6e

Download & Read Swaraaj => http://iacmumbai.org/downloads.php?id=Tmc9PQ==
Part 1- https://www.youtube.com/watch?v=kJwvsMy83Lw (Just 7 min, glimpse of Swaraaj)
Part 2- https://www.youtube.com/watch?v=sv5v5qem2l4
Part 3- https://www.youtube.com/

Friday, October 18, 2013

ऐसे बन रही है आम आदमी की पार्टी

राजनीतिक संघर्ष की नयी परिभाषा गढ़ते केजरीवाल


दफ्तर-एआईसी यानी भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत। पता-ए-119 कौशांबी। पहचान-बंद गली का आखिरी मकान। उद्देश्य-राजनीतिक व्यवस्था बदलने का आखिरी मुकाम अरविन्द केजरीवाल। कुछ यही तासीर...कुछ इसी मिजाज के साथ इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनर तले अन्ना हजारे से अलग होकर सड़क पर गुरिल्ला युद्द करते अरविन्द केजरीवाल। किसी पुराने समाजवादी या वामपंथी दफ्तरों की तरह बहस-मुहासिब का दौर। आधुनिक कम्प्यूटर और लैपटाप से लेकर एडिटिंग मशीन पर लगातार काम करते युवा। और इन सब के बीच लगातार फटेहाल-मुफलिस लोगों से लेकर आईआईटी और बिजनेस मैनेजमेंट के छात्रों के साथ डाक्टरों और एडवोकेट की जमात की लगातार आवाजाही। अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते समाजसेवी से लेकर ट्रेड यूनियन और बाबुओं से लेकर कारपोरेट के युवाओं की आवाजाही। कोई वालेन्टियर बनने को तैयार है तो किसी के पास लूटने वालों के दस्तावेज हैं। कोई अपने इलाके की लूट बताने को बेताब हैं। तो कोई केजरीवाल के नाम पर मर मिटने को तैयार है। और इन सबके बीच लगातार दिल्ली से लेकर अलग अलग प्रदेशों से आता कार्यकर्ताओं का जमावड़ा, जो संगठन बनाने में लगे हैं। जिले स्तर से लेकर ब्लाक स्तर तक। एकदम युवा चेहरे।

मौजूदा राजनीतिक चेहरों से बेमेल खाते इन चेहरों के पास सिर्फ मुद्दों की पोटली है। मुद्दों को उठाने और संघर्ष करने का जज्बा है। कोई अपने इलाके मे अपनी दुकान बंद कर पार्टी का दफ्तर खोल कर राजनीति करने को तैयार है। तो कोई अपने घर में केजरीवाल के नाम की पट्टी लगा कर संघर्ष का बिगुल फूंकने को तैयार है। और यही सब भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत[एआईसी] के दफ्तर में आक्सीजन भी भर रहा है और अरविन्द केजरीवाल का लगातार मुद्दों को टटोलना। संघर्ष करने के लिये खुद को तैयार रखना और सीधे राजनीति व्यवस्था के धुरंधरों पर हमला करने को तैयार रहने के तेवर हर आने वालों को भी हिम्मत दे रहा है।

संघर्ष का आक्सीजन और गुरिल्ला हमले की हिम्मत यह अलख भी जगा रहा है कि 26 नवंबर को पार्टी के नाम के ऐलान के साथ 28 राज्यों में संघर्ष की मशाल एक नयी रोशनी जगायेगी। और एआईसी की जगह आम
आदमी की पहचान लिये आम आदमी की पार्टी ही खास राजनीति करेगी। जिसके पास गंवाने को सिर्फ आम लोगो का भरोसा होगा और करने के लिये समूची राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव। दिल्ली से निकल कर 28 राज्यों में जाने वाली मशाल की रोशनी धीमी ना हो इसके लिये तेल नहीं बल्कि संघर्ष का जज्बा चाहिये और अरविन्द केजरीवाल की पूरी रणनीति उसे ही जगाने में लगी है। तो रोशनी जगाने से पहले मौजूदा राजनीति की सत्ताधारी परतों को कैसे उघाड़ा जाये, जिससे रोशनी बासी ना लगे। पारंपरिक ना लगे और सिर्फ विकल्प ही नहीं बल्कि परिवर्तन की लहर मचलने लगे। अरविन्द केजरीवाल लकीर उसी की खींचना चाहते हैं। इसीलिये राजनीतिक तौर तरीके प्रतीकों को ढहा रहे हैं।

जरा सिलसिले को समझें। 2 अक्टूबर को राजनीतिक पार्टी बनाने का एलान होता है। 5 अक्तूबर को देश के सबसे ताकतवर दामाद राबर्ट वाड्रा को भ्रष्टाचार के कठघरे में खड़ा करते हैं। 17 अक्तूबर को भाजपा अध्यक्ष
नितिन गडकरी के जमीन हड़पने के खेल को बताते हैं। 31 अक्तूबर को देश के सबसे रईस शख्स मुकेश अंबानी के धंधे पर अंगुली रखते हैं और नौ नवंबर को हवाला-मनी लैंडरिंग के जरीये स्विस बैक में जमा 10 खाताधारकों का नाम बताते हुये मनमोहन सरकार पर इन्हें बचाने का आरोप लगाते हैं। ध्यान दें तो राजनीति की पारंपरिक मर्यादा से आगे निकल कर भ्रष्टाचार के राजनीतिकरण पर ना सिर्फ निशाना साधते हैं बल्कि एक नयी राजनीति का आगाज यह कहकर करते है कि , "हमें तो राजनीति करनी नहीं आती"। यानी उस आदमी को जुबान देते हैं जो राजनेताओं के सामने अभी तक तुतलाने लगता था। राजनीति का ककहरा राजनेताओं जैसे ही सीखना चाहता था। पहली बार वह राजनीति का नया पाठ पढ़ रहा है। जहां स्लेट और खड़िया उसकी अपनी है। लेकिन स्लेट पर उभरते शब्द सत्ता को आइना दिखाने से नहीं चूक रहे। तो क्या यह बदलाव का पहला पाठ है। तो क्या अरविन्द केजरीवाल संसदीय सत्ता की राजनीति के तौर तरीके बदल कर
जन-राजनीति से राजनीतिक दलों पर गुरिल्ला हमला कर रहे हैं। क्योंकि आरोपों की फेरहिस्त दस्तावेजों को थामने के बावजूद अदालत का दरवाजा खटखटाने को तैयार नहीं है। केजरीवाल चाहें तो हर दस्तावेज को अदालत में ले जाकर न्याय की गुहार लगा सकते हैं। लेकिन न्यायपालिका की जगह जन-अदालत में जा कर आरोपी की पोटली खोलने का मतलब है राजनीति जमीन पर उस आम आदमी को खड़ा करना जो अभी तक यह सोचकर घबराता रहा कि जिसकी सत्ता है अदालत भी उसी की है। और इससे हटकर कोई रास्ता भी नहीं है। लेकिन केजरीवाल ने राजनीतिक न्याय को सड़क पर करने का नया रास्ता निकाला। वह सिर्फ सत्ताधारी कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्षी भाजपा और बाजार अर्थव्यवस्था के नायक अंबानी पर भी हमला करते हैं। यानी निशाने पर सत्ता के वह धुरंधर हैं, जिनका संघर्ष संसदीय लोकतंत्र का मंत्र जपते हुये सत्ता के लिये होता है। तो क्या संसदीय राजनीति के तौर तरीकों को अपनी बिसात पर खारिज करने का अनूठा तरीका अरविन्द केजरीवाल ने निकाला है। यानी जो सवाल कभी अरुंधति राय उठाती रहीं और राजनेताओं की नीतियों को जन-विरोधी करार देती रहीं। जिस कारपोरेट पर वह आदिवासी ग्रामीण इलाकों में सत्ता से लाइसेंस पा कर लूटने का आरोप लगाती रहीं । लेकिन राजनीतिक दलों ने उन्हें बंदूकधारी माओवादियों के साथ खड़ा कर अपने विकास को कानूनी और शांतिपूर्ण राजनीतिक कारपोरेट लूट के धंधे से मजे में जोड़ लिया। ध्यान दें तो अरविन्द केजरीवाल ने उन्हीं मु्द्दों को शहरी मिजाज में परोस कर जनता से जोड़ कर संसदीय राजनीति को ही
कटघरे में खड़ा कर दिया। तरीकों पर गौर करें तो जांच और न्याय की उस धारणा को ही तोड़ा है, जिसके आधार पर संसदीय सत्ता अपने होने को लोकतंत्र के पैमाने से जोड़ती रही। और लगातार आर्थिक सुधार के तौर तरीकों को देश के विकास के लिये जरुरी बताती रही। यानी जिस आर्थिक सुधार ने झटके में कारपोरेट से लेकर सर्विस सेक्टर को सबसे महत्वपूर्ण करार देकर सरकार को ही उस पर टिका दिया उसी नब्ज को बेहद बारिकी से केजरीवाल की टीम पकड़ रही है। एफडीआई के सीधे विरोध का मतलब है विकास के खिलाफ होना। लेकिन एफडीआई का मतलब है देश के कालेधन को ही धंधे में लगाकर सफेद बनाना तो फिर सवाल विकास का नहीं होगा बल्कि कालेधन या हवाला-मनीलैडरिंग के जरीये बहुराष्ट्रीय कंपनी बन कर दुनिया पर राज करने के सपने पालने वालों को कटघरे में खड़ा करना। स्विस बैंक खातों और एचएसबीसी बैकिंग के कामकाज पर अंगुली उठी है तो सवाल सिर्फ भ्रष्टाचार पर सरकार के फेल होने भर का नहीं है। बल्कि जिस तरह सरकार की आर्थिक नीति विदेशी बैंको को बढ़ावा दे रही हैं और आने वाले वक्त में दर्जनों विदेशी बैंक को सुविधाओं के साथ लाने की तैयारी वित्त मंत्री चिदबरंम कर रहे हैं, बहस में वह भी आयेगी ही। और बहस का मतलब सिर्फ राजनीतिक निर्णय या नीतियां भर नहीं हैं या विकास की परिभाषा में लपेट कर सरकार के परोसने भर से काम नहीं चलेगा। क्योंकि पहली बार राजनीतिक गुरिल्ला युद्द के तौर तरीके सड़क से सरकार को चेता भी रहे हैं और राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के लिये तैयार भी हो रहे हैं।

यह अपने आप में गुरिल्ला युद्द का नायाब तरीका है कि दिल्ली में बिजली बिलों के जरीये निजी कंपनियो की लूट पर नकेल कसने के लिये सड़क पर ही सीधी कार्रवाई भुक्तभोगी जनता के साथ मिलकर की जाये। और कानूनी तरीकों से लेकर पुलिसिया सुरक्षा को भी घता बताते हुये खुद ही बिजली बिल आग के हवाले भी किया जाये और बिजली बिल ना जमा कराने पर काटी गई बिजली को भी जन-चेतना के आसरे खुद ही खम्बो पर चढ़ कर जोड़ दिया जाये। और सरकार को इतना नैतिक साहस भी ना हो कि वह इसे गैर कानूनी करार दे। जिस सड़क पर पुलिस राज होता है वहां जन-संघर्ष का सैलाब जमा हो जाये तो नैतिक साहस पुलिस में भी रहता। और यह नजारा केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट की लूट के बाद सड़क पर उतरे केजरीवाल और उनके समर्थकों के विरोध से भी नजर आ गया। तो क्या भ्रष्टाचार के जो सवाल अपने तरीके से जनता के साथ मिलकर केजरीवाल ने उठाये उसने पहली बार पुलिस से लेकर सरकारी बाबुओं के बीच भी यही धारणा आम
कर दी है कि राजनेताओं के साथ या उनकी व्यवस्था को बनाये-चलाये रखना अब जरुरी नहीं है। या फिर सरकार के संस्थानों की नैतिकता डगमगाने लगी है। या वाकई व्यवस्था फेल होने के खतरे की दिशा में अरविन्द केजरीवाल की राजनीति समूचे देश को ले जा रही है। यह सवाल इसलिये बड़ा है क्योकि दिल्ली में सवाल चाहे बिजली बिल की बढ़ी कीमतो का हो या सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट का विकलांगों के पैसे को हड़पने का। दोनों के ही दस्तावेज मौजूद थे कि किस तरह लूट हुई है। पारंपरिक तौर-तरीके के रास्ते पर राजनीति चले तो अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। जहां से सरकार को नोटिस मिलता। लेकिन अरविन्द केजरीवाल ने इस मुद्दे पर जनता के बीच जाना ही उचित समझा। यानी जिस जनता ने सरकार को चुना है या जिस जनता के आधार पर संसदीय लोकतंत्र का राग सत्ता गाती है,उसी ने जब सरकार के कामकाज को कटघरे में खड़ा कर दिया तो इसका निराकरण भी अदालत या पुलिस नहीं कर सकती है। समाधान राजनीतिक ही होगा। जिसके लिये चुनाव है तो चुनावी आधार तैयार करते केजलीवाल ने बिजली और विकलांग दोनों ही मुद्दे पर जब यह एलान किया कि वह जेल जाने को तैयार हैं लेकिन जमानत नहीं लेंगे तो पुलिस के सामने भी कोई
चारा नहीं बचा कि वह गिरफ्तारी भी ना दिखायी और जेल से बिना शर्त सभी को छोड़ दे।

जाहिर है अरविन्द केजरीवाल ने जनता की इसी ताकत की राजनीति को भी समझा और इस ताकत के सामने कमजोर होती सत्ता के मर्म को भी पकड़ा। इसीलिये मुकेश अंबानी के स्विस बैंक से जुडते तार को प्रेस कॉन्फ्रेन्स के जरीये उठाने के बाद मुकेश अंबानी के स्विस बैक खातों के नंबर को बताने के लिये जन-संघर्ष [राजनीतिक-रैली] का सहारा लिया। और रैली के जरीये ही सरकार को जांच की चुनौती दे कर अगले 15 दिनो तक जनता के सामने यह सवाल छोड़ दिया कि वह सरकारी जांच पर टकटकी लगाये रहे।

साफ है राजनीतिक दल अगर इसे "हिट एंड रन "या "शूट एंड स्कूट" के तौर पर देख रही हैं या फिर भाजपा का कमल संदेश इसे भारतीय लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश मान रहा है तो फिर नया संकट यह भी है कि अगर जनता ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को चुनाव में खारिज कर दिया तो क्या आने वाले वक्त में चुनावी
प्रक्रिया पर सवाल लग जायेंगे। और संसदीय राजनीति लोकतंत्र की नयी परिभाषा टटोलेगी जहा उसे सत्ता सुख मिलता रहे। या फिर यह आने वाले वक्त में सपन्न और गरीब के बीच संघर्ष की बिसात बिछने के प्रतीक है। क्योंकि अरविन्द केजरीवाल को लेकर काग्रेस हो या भाजपा या राष्ट्रीय राजनीति को गठबंधन के जरीये सौदेबाजी करने वाले क्षत्रपो की फौज, जो सत्ता की मलाई भी लगातार खा रही है सभी एकसाथ आ खड़े हो रहे हैं। साथ ही कारपोरेट से लेकर निजी संस्थानों को भी लगने लगा है राजनीतिक सुधार का केजरीवाल उन्हें बाजार अर्थवयवस्था से बाहर कर समाजवाद के दायरे में समेट देगा। तो विरोध वह भी कर रहा है।

तो बड़ा सवाल यह भी है कि चौमुखी एकजुटता के बीच भी अरविन्द केजरीवाल लगातार आगे कैसे बढ़ रहे हैं। न्यूज चैनल बाइट या इंटरव्यू से आगे बढ़कर घंटों लाइव क्यों दिखा रहा है। अखबारों के पन्नो में केजरीवाल का संघर्ष सुर्खिया क्यों समेटे है। जबकि कारपोरेट का पैसा ही न्यूज चैनलो में है। मीडिया घरानों के राजनीतिक समीकरण भी हैं। कई संपादक और मालिक उन्हीं राजनीतिक दलों के समर्थन से राज्यसभा में हैं, जिनके खिलाफ केजरीवाल लगातार दस्तावेज के साथ हमले कर रहे हैं। फिर भी ऐसे समाचार पत्रों के पन्नों पर वह खबर के तौर पर मौजूद हैं। न्यूज चैनलो की बहस में हैं। विशेष कार्यक्रम हो रहे हैं। जाहिर है इसके कई तर्क हो सकते हैं। मसलन मीडिया की पहचान उसकी विश्वसनीयता से होती है। तो कोई अपनी साख गंवाना नहीं चाहता। दूसरा तर्क है आम आदमी जिस तरह सडक पर केजरीवाल के साथ खड़ा है उसमें साख बनाये रखने की पहली जरुरत ही हो गई है कि मीडिया केजरीवाल को भी जगह देते रहें। तीसरा तर्क है इस दौर में मीडिया की साख ही नहीं बच पा रही है तो वह साख बचाने या बनाने के लिये केजरीवाल का सहारा ले रहा है । और चौथा तर्क है कि केजरीवाल भ्रष्टाचार तले ढहते सस्थानों या लोगों का राजनीतिक व्यवस्था पर उठते भरोसे को बचाने के प्रतीक बनकर उभरे हैं तो राजनीतिक सत्ता भी उनके खिलाफ हैं, वह भी अपनी महत्ता को बनाये रखने में सक्षम हो पा रहा है। और केजरीवाल के गुरिल्ला खुलासे युद्द को लोकतंत्र के कैनवास का ही एक हिस्सा मानकर राजनीतिक स्वीकृति दी जा रही है। क्योंकि जो काम मीडिया को करना था, वह केजरीवाल कर रहे हैं। जिस व्यवस्था पर विपक्ष को अंगुली रखनी चाहिये थी, उसपर केजरीवाल को अंगुली उठानी पड़ रही है। लोकतंत्र की जिस साख को सरकार को नागरिकों के जरीये बचाना है, वह उपभोक्ताओं में मशगूल हो चली है और केजरीवाल ही नागरिकों के हक का सवाल खड़ा कर रहे हैं। ध्यान दें तो हमारी राजनीतिक व्यवस्था में यह सब तो खुद ब खुद होना था जिससे चैक एंड बैलेंस बना रहे। लेकिन लूट या भ्रष्टाचार को लेकर जो सहमति अपने अपने घेरे के सत्ताधारियों में बनी उसके बाद ही सवाल केजरीवाल का उठा है। क्योंकि आम आदमी का भरोसा राजनीतिक व्यवस्था से उठा है, राजनेताओं से टूटा है। जाहिर है यहां यह सवाल भी खड़ा हो सकता है कि केजरीवाल के खुलासों ने अभी तक ना तो कोई राजनीतिक क्षति पहुंचायी है ना ही उस बाजार व्यवस्था पर अंकुश लगाया है जो सरकारों को चला रही हैं। और आम आदमी ठगा सा अपने चुने हुये नुमाइन्दों की तरफ अब भी आस लगाये बैठा है। फिर केजरीवाल ने झटके में व्यवसायिक-राजनीति हितों के साथ खड़े होने वाले संपादकों की सौदेबाजी के दायरे को बढ़ाया है। क्योंकि केजरीवाल के खुलासों का बडा हथियार मीडिया भी है और मीडिया हर खुलासे में फंसने वालों के लिये तर्क गढ भी सकता है और केजरीवाल के हमले की धार भोथरी बनाने की सौदेबाजी भी कर सकता है। यानी अंतर्विरोध के दौर में लाभ उठाने के रास्ते हर किसी के पास है और अंतरविरोध से लाभ राजनेता से लेकर कारपोरेट और विपक्ष से लेकर सामाजिक संगठनों को भी मिल सकता है। यह सभी को लगने लगा है। लेकिन सियासत और व्यवस्था की इसी अंतर्विरोध से पहली बार संघर्ष करने वालों को कैसे लाभ मिल रहा है, यह दिल्ली से सटे एनसीआर के कौशाबी में बंद गली के आखिरी मकान में चल रहे आईएसी के दफ्तर से समझा जा सकता है। जहां ऊपर नीचे मिलाकर पांच कमरों और दो हाल में व्यवस्था परिवर्तन के सपने पनप रहे हैं। सुबह से देर रात तक जागते इन कमरों में कम्प्यूटर और लैपटॉप पर थिरकती अंगुलियां। कैमरे में उतरी गई हर रैली और हर संघर्ष के वीडियो को एडिटिंग मशीन पर परखती आंखें। हर प्रांत से आये भ्रष्टाचार की लूट में शामिल नेताओं के दस्तावेजो को परखते चेहरे। और इन सब के बीच दो-दो चार के झुंड में बहस मुहासिबो का दौर। बीच बीच में एकमात्र रसोई में बनती चाय और बाहर ढाबे ये आती दाल रोटी। यह राजनीतिक संघर्ष की नयी परिभाषा गढ़ने का केजरीवाल मंत्र है। इसमें जो भी शामिल हो सकता है हो जाये..दरवाजा हमेशा खुला है।
Copied from :- http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2012/11/blog-post_24.html?m=1

Thursday, October 17, 2013

क्या आप जानते है की,...

क्या आप जानते है की,...
जब अरविन्द जी IRS अफसर थे तब उन्होंने अपने छोटे से ही कार्यकाल में 82 बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर छापे डाले थे और 5 सौ करोड़ से ज्यादा वसूले थे .....ऐसा door to door करते हुए,...एक दूसरे IRS ने बताया,... जो की ...अरविन्द जी को 15 साल से जानता था ....उनके साथ ही ट्रेनिंग की थी ......

जब ऐसा मौका हाँथ लगा ....तो लगे हाँथ ये भी सवाल पूँछ ही लिया ...की क्या अरविन्द जी वैसे ही है ....जैसे हम जानते है ?...उनका जवाब था .....तुम कैसा जानते हो,..नहीं पता ....पर वो जैसे आज है वैसे ही 15 साल पहले थे .....
ऐसी ही देश भक्ति ....ऐसा ही जूनून ....यही जज्बा .....
उन्होंने बोला .....नहीं आप कोई गलती नहीं कर रहे ....अरविन्द को अपना आदर्श मान ....
दोस्त .....बात करो ....सबको बताओ ....की क्या ..कौन और क्यों ....है अरविन्द ....ये भी बताओ ..की AAP का जीतना क्यों जरुरी है ....बात करने से ही बात बनेगी ....हर जगह बात करो ...मेट्रो में बस में ...ऑफिस में, स्कूल में, कॉलेज में , कोचिंग में ...चाय की दूकान, पान की दूकान ...हर जगह ...हर तरफ ....नागेन्द्र

Tuesday, October 8, 2013

क्यों दी गयी थी चुनौती हमें - आपको ....देश के कामकाजी आम आदमी को ,..

दोस्तों, आज समझ आता है की क्यों दी गयी थी चुनौती हमें - आपको ....देश के कामकाजी आम आदमी को ,...

"की संसद में बनते है कानून ...अगर कानून बनाना है तो संसद में आओ ...."
क्योंकि इनको लगता है की राजनीति,..... भ्रष्टाचार का खेल है ...
और उसमे तो ...ये बाबू लोग माहिर है .....

सोंचते थे की जीत लेंगे ..... पर जनता से लडाई में....जीत लोकतंत्र की होगी .... वयस्था जरुर बदलेगी ...और इसकी शुरुवात 8 दिसंबर 2013 को ..दिल्ली से ....होगी .... जरुर होगी .....

बस आपको अपने हिस्से का काम करना है .....अपने घर/ ऑफिस /चाय की दूकान /मेट्रो /बस ,.......कही भी और हर जगह ....बस काम करो ...बस बात करो .... किसी अरविन्द के लिए नहीं .....किसी आम आदमी पार्टी के लिए नहीं ..... "ये लडाई हमें जीतनी है .....अपने लिए ...अपने बच्चो के लिए ...और देश के लिए ..." आज आप चूके ......तो इतिहास को सब पता चलता है .......

निकलो बाहर मकानों से ....जंग करो बेईमानों से ......नागेन्द्र शुक्ल

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आज door to door करते हुए ...सांगली मेस इलाके में घुसते ही पता चला....


आज door to door करते हुए ...सांगली मेस इलाके में घुसते ही पता चला की यहाँ के मठाधीश जनाब राजू वर्मा जी है .......किसी से मिलने से पहले उनसे मिलना पड़ेगा .....तो मिले ...
और मिले,...तो उनका कहना था की अन्दर मत जाओ ...इस बस्ती के सारे वोट उनकी मर्जी से पड़ते है ...और वहीँ पड़ते है जहाँ वो कहते है ...अन्दर सब कांग्रेसी है .....वो आगे बोले आप लोग क्या दोगे ...
हमने जवाब दिया हम देंगे जरुर पर ........सिर्फ आपको नहीं,...सबको देंगे ....
पानी फ्री और बिजली आधे दाम पर ....अच्छे और Private जैसे ..भ्रष्टाचार मुक्त सरकारी स्कूल और अस्पताल ..चुस्त और सही सरकारी महकामे ........
हम जनलोकपाल देंगे ......हम जनता को स्वराज देंगे ....
सत्ता में भागीदारी .....और जनता को सम्मान देंगे ....

पर इतना सब ...सबको देंगे ..सिर्फ आपको नहीं ....
यही बताने जा रहे है अन्दर सबको .....
जा कर बता देना ..उनको जिन्होंने ठेका दिया तुमको इन्हें कांग्रेसी बनाने का .....

इतना सुनते ही ....राजू जी झल्लाये ..और जोर से चिल्लाये ...
अबे तू जानता नहीं है ....मैं तीन बार जेल जा चूका हूँ ....
मैंने कहा .....
हाँ आम आदमी की सरकार बनने के बाद .......आप किसी को ये बताने में डरोगे जरुर ...की तुम 3 बार जेल जा चुके हो ...
और इतना कह जब उस कॉलोनी के अन्दर गये,...
तो पता चला ........अन्दर गुलाम रहते है ...कांग्रेस और राजू के ........
वाकई अभी तक नहीं मिली आज़ादी .......पूरे देश को .....कैसे मिलेगा लोकतंत्र .....
खैर ...अरविन्द जी के ...स्वराज की आग तो लग गयी .....इन गुलामो में ...
बस ध्यान रखना है जलती रहे और .......चुनाव के पहले शराब और नोट से बुझे नहीं .......
Donate Your Weekend .....Come With Us ....Lets Do door to door ...नागेन्द्र शुक्ल
Provide your data @ http://goo.gl/IzdUMj
 

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अरविंद केजरीवाल की खबर पर स्पष्टीकरण

दोस्तों, आप सभी को ये बताना जरुरी है की ....
नवभारत टाइम्स में आज एक खबर छापी जो की सरा - सर झूठ थी सोशल मीडिया में इस झूठी खबर का पता चलने के बाद नवभारत टाइम्स ने उस खबर को डिलीट किया और फिर उसके बाद इस गलती की जिम्मेवारी लेते हुए गलत खबर का स्पष्टीकरण जारी किया, इस स्पष्टीकरण का लिंक नीचे है ...
स्पष्टीकरण तो ठीक पर सवाल ये उठता है की ...
उन अंधभक्तो का क्या होगा ..जिन्हें आदत है रस्सी का साँप बनाने की ....
जब ये अंध भक्त अपने मन से ही झूठी खबरे बना देते है और जम कर प्रसारित करते है ....वो अंध भक्त नवभारत टाइम्स में छपी इस खबर को तो आड़े हांथो लेंगे .....पर इसके बारे में दिए स्पष्टीकरण की बात नहीं करेंगे ....

इसलिए आप सभी से अनुरोध है की इस स्पष्टीकरण के लिंक को अपने पास रख्खे और जहाँ जरुरत हो ..प्रस्तुत करे ....

और सभी मीडिया वालो से अनुरोध की ....ऐसी गलतियाँ होती तो छोटी है ....पर जमीन पर फैले इसके गलत असर को कम करने के लिए ...सिर्फ एक स्पष्टीकरण से काम नहीं चलता ....
उम्मीद करते है की .....आगे से किसी भी ऐसी अपुष्ट खबर को प्रसारित नहीं किया जाएगा ....धन्यवाद
=====अरविंद केजरीवाल की खबर पर स्पष्टीकरण====जो नवभारत टाइम्स ऑनलाइन ने दिया ======

आज के इकनॉमिक टाइम्स हिंदी अखबार में पेज नंबर 7 पर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के बारे एक आर्टिकल छपा है। यह खबर नहीं बल्कि एक मजाक है, जो फेंकू न्यूज में लिया गया है। फेंकू न्यूज अखबार का एक नियमित कॉलम है, जिसमें हल्के-फुल्के तरीके से मजाक किया जाता है। इसमें 8 अक्टूबर की खबर है- केजरीवाल होंगे कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट। यह खबर गलती से नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के बिजनस सेक्शन के भीतर दिल्ली-बिजनस सेक्सशन में पब्लिश हो गई। ऐसा खबरों के ऑटो अपलोड होने के कारण हुआ है। इस वजह से इसका मजाक का तत्व पब्लिश नहीं हो पाया और खबर को गंभीर मान लिया गया। इससे अरविंद केजरीवाल की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंची। हमने इस खबर को हटा दिया है।

फेंकू न्यूज में छपी खबरों का मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं होता है। यह मजाक का एक सेक्शन है, जिसका मकसद हल्की-फुल्की बातें करना है। इसमें किसी तरह की दुर्भावना नहीं होती है। फिर भी, अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों की भावनाएं आहत होने का नवभारत टाइम्स ऑनलाइन को खेद है। इसके लिए हम माफी मांगते हैं।
स्पष्टीकरण का लिंक http://navbharattimes.indiatimes.com/delhi/other-news/clarification-on-arvind-kejriwals-news/articleshow/23706087.cms

http://www.facebook.com/photo.php?fbid=637124719643996&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater
 

विकास तो हुआ है, पर कुछ अजीब सा हुआ है ...


विकास तो हुआ है, पर कुछ अजीब सा हुआ है ...
आज से करीब 15 साल पहले दूरदर्शन पर TV के इतिहास का सबसे सुपर हिट प्रोग्राम आता था "रामायण"
उस समय हमारे गाँव में पहली TV खरीद कर आयी थी और पूरा गाँव उसी एक TV में रामायण देखता था ...बड़ा अच्छा माहौल होता था ...
विकास हुआ ..और इतना विकास हुआ की ....
मेरे गाँव में तकरीबन 50% घरो में TV पहुँच गया ...तरह तरह के सेटेलाईट TV पहुँच गए ...70% परिवारों में,...लोगो की जेब में मोबाईल फोन पहुँच गए ...अच्छा है बहुत अच्छा है ....
मेरे जिस गाँव में पहले,.... "परवल और पनीर" तक नहीं मिलता था ...
वहाँ आज पेप्सी कुरकुरे बिन्गो टिंगो सब मिलने लगा ...यहाँ तक की विभिन्न कंपनी की बीयर और शराब मिलने लगी ...दुकानों में बीडी की जगह ....महँगी सिगरेट मिलने लगी ...

हाँ हुआ है विकास ....मानता हूँ ....पर ऐसा क्यों ....की
आज से 15 साल पहले भी ...

मेरे गाँव में एक भी स्कूल नहीं था ...और आज भी नहीं है (हाँ नेता जी के प्राइवेट स्कूल जरुर खुल गए )
मेरे गाँव में एक भी अस्पताल नहीं था ....और आज भी नहीं है ....
मेरे गाँव में एक भी पुलिस चौकी नहीं थी ....और आज भी नहीं है .....

ये कैसा विकास हुआ ?.....क्या ऐसे ही विकास को हम,..... विकास कहेंगे ?.....
दोस्त, हकीकत ये है की .....
हर उस रास्ते से जिससे ....आम जनता की जेब से पैसा निकाला जा सकता था ....उस रास्ते पर विकास हुआ ....
पर हर वो चीज़ ...जो मानव विकास के लिए जरुरी है ....वो ना थी ..और ना है ....क्यों ?....
किसकी चाल है ये ?....
ये कौन है जो चाहता है की ....मेरे गाँव में स्कूल अस्पताल हो ना हो .....पर बाँकी सब मिले और मिलता रहे ?....
क्या आप ऐसे विकास से सहमत है ?.....

हाँ समाधान ....है समाधान ....
और समाधान है ..."स्वराज"....Power to the People ...
हाँ यधि ग्राम सभा मोहल्ला सभा के पास ये अधिकार हो ..की प्राप्त सरकारी पैसे को ..जनता कैसे और किस मद में खर्च करे ...
तो मुझे पक्का विस्वास है ....की ...
मेरे गाँव के लोग ....
सबसे पहले स्कूल खुलवाते ....फिर अस्पताल ...फिर कुछ ग्रामो और लघु उद्योग ..पशु पालन ..वगैरह ....
जब इतना सब होता तब ...तब वो luxury के बारे में सोंचते ....

पर नहीं ..हमारी सरकारों ने तो ...नरेगा - मनरेगा चला कर ...जो थोडा बहुत ...टुटा फूटा ...उद्योग था ..उसे भी मार दिया ....
और बना दिया ....हमारे कुशल कामगार को ....एक मजदूर ...

आ रही है दीवाली ..मिलेंगे "लक्ष्मी - गणेश" भी ..चीन में बने .....

क्या यही विकास है ....क्या ऐसा ही विकास चाहती है हमारे देश की सरकारे और राजनीति ?....
नहीं ...नहीं हमें बदलना पड़ेगा ये ...
और उसके लिए लड़ना पड़ेगा .....और माँगना पड़ेगा अपने नेताओं से ...वो ..
वो जो जरुरी है ....सच्चे विकास के लिए .....है की नहीं ....

तो निकलो बाहर मकानों से ...जंग करो बेइमानो से ......नागेन्द्र शुक्ल
download & Read Swaraaj ==> http://iacmumbai.org/downloads.php?id=Tmc9PQ%3D%3D
 

कहानी कभी हकीकत से जन्म लेती है ....तो कभी हकीकत कहानी से ....


अरविंद की आम-आदमी-कृत-राजनीति देखकर “नायक” मूवी की याद आती है .. नेताओं वाली कोई चालाकी, लच्छेदार बातें हैं ही नहीं, केवल आम आदमी वाली सच्चाई और सरलता है, इसीलिए अरविंद की, दिल से बोली बात, सीधे लोगों के दिल तक पहुँचती भी है। दिल्ली अपना दिल दे रही है... और 4 दिसंबर को वोट भी देने वाली है।

वो कहते है ना की फिल्मे समाज का आईना होती है या फिर कोरी कल्पना यानी की सपना ...और सपने तो पाये जा सकते है यदि सच्चे प्रयास किये जाए ...
देश की जनता ने एक फिल्म नायक में भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था का सपना देखा था ....जिसे सच करने के लिए अब आम आदमी प्रेरित और कार्यरत है ....
और दूसरी तरफ समाज का आईना दिखाने वाली श्रेणी में "सत्याग्रह" जो की बता रही है ..की कैसे जन्म हुआ इस सामाजिक और राजनीतिक क्रांति का यह ये भी बताती है की आम आदमी पार्टी में लोग कैसे जुड़े और कैसे और क्यों पड़ी नीव आम आदमी पार्टी की ..पर हाँ ये दोनों सिर्फ एक कहानी है ...

कहानी कभी हकीकत से जन्म लेती है ....तो कभी हकीकत कहानी से ....

आजतक हमने सत्य घटना से प्रेरित फिल्में देखी हैं, अब की बार फिल्म से प्रेरित और कहीं ज्यादा सुखद सत्य घटना को अपने जीवन के पर्दे पर देखेंगे... जब नेताओं द्वारा “साफ-राजनीति करके दिखने की चुनौती” को आम आदमी न केवल स्वीकार करेगा बल्कि करके भी दिखाएगा ।
रामलीला मैदान में अपनी सीट रिजर्व करने के लिए पहले ही “रुमाल डाल आयें” , क्योंकि 29 दिसम्बर को यहाँ सत्याग्रह-2 के सुखद और अहम् पड़ाव,....वाली घटना होगी जब दिल्ली वालों के सहयोग से बनी आम आदमी की सरकार ,...अन्नाजी वाले लोकपाल/लोकायुक्त बिल को पास करेगी जो कि ये भी सुनिश्चित करेगा कि खुद AAP के नव-निर्वाचित विधायक भ्रष्ट न हो जाएँ ।

#DelhiDeservesBest #Vote4AAP #AAP
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सही में अरविंद ईमानदार हैं ?

सही में अरविंद ईमानदार हैं ?
अरविंद केजरीवाल सचमुच में ईमानदार है भाई साहब ? जित्ता बोलता है उत्ता है ? जब भी लोग टीवी के कारण मुझे पहचानकर मिलते हैं ये सवाल करते हैं । अब सोचने लगा हूँ कि वे इस तरह से आशंकित होकर क्यों पूछते हैं । इस भाव से क्यों पूछ रहे हैं कि कहीं झूठ सच बोलकर तो अरविंद खुद को ईमानदार नहीं बता रहे । इतना सवाल क्या ये लोग बेईमान नेताओं से करते हैं , उन दो दलों से करते हैं जिन पर न जाने भ्रष्टाचार के कितने आरोप लग चुके हैं और रोज़ लगते हैं । कई बार ऐसा लगता है कि इस देश में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार खुद को ईमानदार बताना है । ईमानदार को यू हीं पागल नहीं कहा जाता हमारे देश में । दरअसल राजनीति में लोगों को ऐसा नेता चाहिए जो देश का तो नहीं हो मगर अपने लोगों को लिए सबका हो । रही बात ईमानदार की तो वो किसी का नहीं होता भाई । क्या ये मानसिकता है इस सवाल के पीछे ?

एक आईएएस अफ़सर का फ़ोन आया । अरविंद के साथ मेरा हमलोग चल रहा था । उन्हें ग़ुस्सा इस बात को लेकर था कि इस आदमी को चोर बेईमान बताने में मैंने विशेष परिश्रम क्यों नहीं किया । पहला सवाल क्या ये गारंटी लो सकते हैं कि इनके सारे उम्मीदवार ईमानदार रहेंगे । मैंने कहा क्या ये सवाल आप कांग्रेस बीजेपी से कर रहे हैं ? कोई जवाब हीं । फिर कहने लगे पता है कौशांबी में कितने फ़्लैट हैं । मैंने कहा एक हैं । जैसा देखा था आज तक वैसे ही है । आप के पास सबूत है तो दीजिये कल खुद अरविंद को घेर कर पूछूँगा । जनाब चुप हो गए । फिर मैंने कहा दोनों नौकरी करते हैं । दो घर ख़रीद लिया होगा तो कौन सी बड़ी बात है । मैं भी ख़रीदने की सोच रहा हूँ । यह कहाँ लिखा है कि दूसरा घर चोरी का होता है । तो तड़ से अफ़सर साहब बोले लेकिन आपने क्यों नहीं पूछा कि पत्नी क्यों इंकम टैक्स में नौकरी करती है । मुझसे रहा नहीं गया । पूछ दिया कि उनकी पत्नी क्या करे इसका फ़ैसला आप करेंगे, अरविंद करेंगे या उनकी पत्नी । मैं अरविंद को चोर मानने के लिए तैयार हूँ बस आप अपना बता दीजिये । आप सौ प्रतिशत ईमानदार हैं न । फ़ोन कट गया । सही में कट गया । दोबारा नहीं आया ।

अब समझ आ रहा है । दरअसल भ्रष्टाचार एक सिस्टम है । इस सिस्टम का पीड़ित भी लाभार्थी है । जो रिश्वत देता है वो उससे कमाता भी है । हाँ इस सिस्टम के बाहर के गेट पर खड़ा आम आदमी ही मर रहा है बस । भीतर लेन देन करने वालों को कोई दिक्क्त नहीं है । यही लोग चाहते हैं कि बस कहीं से कोई एक बार अरविंद केजरीवाल को चोर साबित कर दे । ताकि करप्शन को लेकर उन्हें नैतिक संकट का सामना न करना पड़े । भ्रष्टाचार सीमित परंतु बड़ी संख्या में लोगों के रोज़गार का ज़रिया भी है । इसी सिस्टम से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े लोग सवाल करते हैं कि भाई साहब सचमुच अरविंद ईमानदार है । ये लोग चाहते हैं कि हे भगवान अरविंद को फ़ेल करा देना । उनकी बस यही चिंता है कि खुद की ईमानदारी और दूसरे भ्रष्ट को पकड़वाने का दावा करने वाला न जीते । ये और बात है कि हार जीत का निर्णय जनता तमाम बातों को देखकर करेगी मगर इसमें ईमानदारी पर सवाल करने वाला एक तबक़ा अलग से हैं । ............रवीश कुमार - NDTV
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Monday, September 30, 2013

लल्लन और "ग्राम-माता" की कथा-पार्ट -2:-

लल्लन और "ग्राम-माता" की कथा-पार्ट -2:-

लल्लन का स्कूल में बड़ा रुआब था..भले ही पांचवी कक्षा में पढता था लल्लन पर ठसन ऐसी कि मानो अमरीका की सत्ता ओबामा इन्ही के हाथ सौंपकर वान-प्रस्थ आश्रम में प्रवेश लेने जा रहे हों..और भाई हो भी क्यों ना...आख़िरकार स्कूल की मौजूदा इमारत उन्ही के किसी पुरखे ने किसी बीते जमाने में गाँव को दान की थी या दिलवाने का श्रेय लिया था...तब से लेकर आजतक लल्लन के परिवार के लोग ही इस स्कूल के ट्रस्टी यानि माई-बाप बनते आये हैं...

लल्लन भले ही पांचवी कक्षा का छात्र था पर सभी लोग उसका बड़ा सम्मान करते थे...हालाँकि कक्षा के लिहाज से लल्लन की उम्र उसकी चुगली कर देती थी पर क्या करें अब जरा पढाई के मामले में लल्लन का हाथ थोडा तंग था तो क्या लल्लन की जान ही ले लें- खैर, लल्लन के रुआब का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर वो दौड़ में सबसे पीछे भी रहता तो भी पुरूस्कार ग्रहण समारोह में ट्राफी उसे ही मिलती थी..

लल्लन को कुछ बातों का बड़ा फक्र था – जैसे स्कूल का खडंजा उनके दादा जी ने लगवाया, स्कूल का पानी का नलका उनके नानाजी की देन थी, ऑफिस में टेलीफोन उनके पिता जी की कृपादृष्टि का परिणाम था, शौचालय इस रिश्तेदार के बनवाया तो पुस्तकालय फलां-फलां रिश्तेदार ने----- गाहे-बगाहे उसकी बातों में इनका जिक्र आ ही जाता..

स्कूल में कई सालों से काम कर रहे लगभग सभी मास्साब भी लल्लन के मुरीद थे और कक्षा में लल्लन के आते ही अपनी कुर्सी छोड़ कर लल्लन को उस कुर्सी पर बैठने की जिद करते.... अब जब मास्साब ही ऐसे करेंगे तो स्कूल के बाकि लड़कों की क्या बिसात...लल्लन के सीनियर छात्र हमेशा ही महत्वपूर्ण विषयों और प्रश्नों पर लल्लन की राय लेते और उससे ही “पाठ” समझने की होड़ इन लड़के-लड़किओं में लगी रहती...कोई लल्लन को पानी का गिलास देता, तो कोई उसकी कुर्सी साफ़ करता तो कोई उसका बस्ता उठाता...

उधर स्कूल के प्रधानाचार्य श्रीमान “रुलदू” भी लल्लन की तारीफ़ करते नहीं थकते थे और कई बार सार्वजानिक तौर पर वो कह भी चुके थे कि उन्हें “लल्लन” के नेतृत्व में स्कूल में रहने में कोई दिक्कत नहीं है बल्कि वो लल्लन के नीचे काम करके खुद को गौरान्वित ही महसूस करेंगे..उनकी इच्छा है कि लल्लन को अब स्कूल के “प्रधानाचार्य” के पद पर शोभायमान हो ही जाना चाहिए..उनकी इन बातों का सभी अध्यापकों और विद्यार्थिओं ताली बजा-बजा कर समर्थन करते....

लल्लन दिन भर स्कूल में गुब्बारे फूलाता, साइकल चलाता, लंगड़ी-टांग और कंचे खेलता, बच्चों को सताता और घूमता रहता..

पर इसी दौरान एक मुद्दा गाँव में गरमाने लगा कि पिछले कई सालों से स्कूल के बच्चे लगातार अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे थे और स्कूल का वार्षिक नतीजा लगातार नीचे गिरता जा रहा था...लड़के पढाई कम और लडाई-झगडा, चोरी-चकारी, छेड़खानी और तोड़-फोड़ में संलिप्त रहने लगे थे..पूरे इलाके में स्कूल की साख दिन-ब -दिन गिरती जा रही थी.. लोगों में इन बिगडैल लड़कों पर नकेल कसने की मांग धीरे-धीरे बलवती होती जा रही थी....इन बिगडैल बच्चों को अयोग्य करार कर स्कूल से निकाल देने की मांग उठी...

पर ऐसा करने से तो पूरे के पूरे स्कूल के ही खाली हो जाने का अंदेसा था- किस-किस को निकालते.....तो इससे निबटने के लिए एक दिन स्कूल के ट्रस्टी परिवार और स्कूल प्रशासन ने मिल कर जन-भावनाओं के विपरीत जाकर ये फैसला किया कि एक नया अध्यादेश “ राज्य शिक्षा बोर्ड” को भेजा जाए जिसमे कि अपील की जाए कि अनुशासनहीन विद्यार्थिओं को स्कूल से बेदखल नहीं किया जाएगा और ना ही फ़ैल होने वाले छात्र और छात्राओं को अगली कक्षा में प्रवेश देने से रोका जायेगा...इस प्रस्ताव से सारे मास्टर और छात्र-छात्राएं बहुत खुश थी....

स्कूल प्रशासन के इस कदम का चारों और विरोध होना शुरू हो गया..स्कूल के एक मास्साब मीडिया में इस कदम को न्यायोचित बताते हुए अपना पसीना पोंछ ही रहे थे कि एकदम से लल्लन वहां पहुँच गया और माइक अपने हाथ में लेकर कहा कि ये अध्यादेश एक बकवास से ज्यादा कुछ नहीं हैं और उसने वो कागज का पुर्जा टुकड़े-टुकड़े करके हवा के हवाले कर दिया....

अवाक !! सन्नाटा !! ख़ामोशी !! किमकर्त्व्यविमूढ़ता !! चारों तरफ सिर्फ सुगबुगाहट और सरसराहट....

तभी मास्साब ने उठ कर पैंतरा बदलते हुए कहा कि बिलकुल- हम भी इस अध्यादेश के बिलकुल खिलाफ हैं और इसका पुरजोर विरोध करते हैं ..तभी बाकि मास्टर भी वहां आ गए....

-दलाली में बदनाम और कान में फुसफुसाने में माहिर एक चाटुकार मास्साब ने कहा कि लल्लन जो कहे वही स्कूल का भी विचार है...लल्लन हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं और उनकी वाणी ही स्कूल की वाणी है..

-गाँव भर में अपाहिज लोगों की बैसाखियों को इधर-उधर रख कर उन्हें तंग करने वाले एक सीनियर लड़के ने कहा कि लल्लन ने नैतिकता को नया आयाम देते हुए स्कूल ट्रस्ट को अनैतिक कार्य करने से बचा लिया..स्कूल को एक भावी अपराध करने से बचा लिया...

- कोयले से दांत घिसने वाले एक और पुराने छात्र ने कहा कि लल्लन ने हजारों गाँव वालों की भावनाओं को परिलक्षित किया है..

- कुत्ते पालने के शौक़ीन और फ़ालतू के विवादित बयानों में घिरे रहने वाले “दद्दू” मास्साब ने कहा कि इस विषय पर स्कूल प्रशासन ही जवाब देगा..

-गणित के “जीरो लास” की थ्योरी देने वाले और इस अध्यादेश के मास्टर-माइंड तथा कुछ ज्यादा ही अक्लमंद मास्साब कन्नी काटते हुए चुपचाप वहां से नौ-दो ग्यारह हो गए..

हर तरह अफवाहों और चर्चाओं का बाजार गरम था....लोग इसे लल्लन का “मास्टर-स्ट्रोक” बता रहे थे तो कुछ इसे पानी की गहराई मापने का शाही परिवार का एक और पैंतरा...

इस पूरे प्रकरण में मौजूदा प्रधानाचार्य “रुलदू” हक्का-बक्का हैं और जल्द ही स्कूल ट्रस्ट से इस बारे में बात करने की बात करने का ऐलान उन्होंने कर दिया है..उनका कहना है कि उन्हें खुद के "अपमान" से इतनी दिक्कत नहीं है जितनी कि "सार्वजानिक रूप से हुए अपमान" से है...

उधर लल्लन की अम्मा ने आज मिड-डे- मिल में सभी बच्चों के लिए खीर और सिवइयां बनाने का हुक्म जारी कर दिया है..

सुना है कि आज लल्लन ने श्रीमान “रुलदू” को एक पत्र लिखा है...

डॉ राजेश गर्ग.
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