Wednesday, December 19, 2012

शहर में कोई भाई ...कोई बाप नहीं रहता

अभी पता चला, मेरा एक दोस्त अमरीका में बेटी का बाप बना
सोचा दूं मुबारक वाद, पर ना जाने क्योँ खुद को लिया थाम
समझ नहीं आता किस मुंह से ..करूँ इस परी का स्वागत
कैसे कराऊँ वस्तु स्थिति से अवगत
बेटी तुम जो आई हो, बेशक ....जीवन में खुशियाँ लाई हो
आज ये चिंता खाए जाती ....कैसे दूँगा, वाजिब आज़ादी
दोस्त मेरे, अमरीका में ही रहना .....
यहाँ ना जिन्दा बची, है खाखी ........गन्दी हो चुकी है खादी (नेता)
...कैसे दूँगा, वाजिब आज़ादी .....
घर के अन्दर तो ठीक चलो ......
बेटी जब पंख फैलाती है..... तो माँ-बाप के फ़िक्र का पार नहीं रहता ।
ऐसा लगता है शहर में कोई भाई ...कोई बाप नहीं रहता ।।......नागेन्द्र शुक्ल

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