Monday, December 10, 2012

कुछ ऐसा होना चाहिए लोकतंत्र .....

यह इस व्यवस्था की ही कमी है जो जिस भी क्षेत्र में जो लोग भी वास्तविक कार्यकर्ता है वो बस उस क्षेत्र के लिए बस काम कर सकतें है .....न की उसके प्रबंधन (Administration/Management ) में...सहयौंग ।।
तो हो यह रहा है की काम करने वाले अलग, जिनको की जमीन की हकीकत पता है .....उस  क्षेत्र की वास्तविक परेशानियाँ या ताकत का पता है ....
वो सब दूर है ..पूरी तरह से दूर है ...उस क्षेत्र से सम्बंधित फैसले लेने से ...या सच तो यह है की ...वो अपनी राय भी नहीं दे सकतें है ....की होना क्या चाहिए ।।
और ऐसे लोग जिनको उस क्षेत्र की कोई समझ नहीं है ...कुछ व्यापारियों और सहयौगियों के साथ मिलकर ...वो कोई भी फैसला सुना देते है ....जो उस क्षेत्र के और क्षेत्र  के वास्तविक कर्मी के हित में हो या फिर न हो .....
फिर जब वो विरोध करतें है ...तो इन ताकतवर लोगों को याद आती है लोकतंत्र की ...और इसी लोकतंत्र पर गुमान करते हुए ....बस घोषित कर देतें है ...उस विरोध को असंवैधानिक और गैर लोकतान्त्रिक ।।
बड़े दंभ (घमंड) के साथ बोलते हैं की .....हम जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि है .....और जनता ने हमें अधिकार दिया है ...समझ नहीं आता की जनता ने मिली भगत करने, घूस ले कर संसद में वोट देने न देने या फिर चलते संसद को छोड़ ....घूमने जाने के अधिकार दिए थे क्या? ....
अगर जनता ने ही ऐसे गलत लोंगों को चुना है तो जनता की गलती है .......ऐसा मैं समझता था ....पहले .....

पर अब समझ आया है ....गड़बड़ जनता में नहीं ....गड़बड़ इस व्यवस्था में है .....जिसको बदले बिना कुछ नहीं हो सकता .....कोई कितने भी अनशन करे ....कितना भी विरोध करे ....
और एक कर्मठ कार्यकर्ता (चाहे खिलाडी हो या किसान या कोई भी कामगार आम आदमी) जो सींचता है ...अपने क्षेत्र को,...... अपने खून - पसीने से ....अचानक बन जाता है ...खल नायक .....

इसी के कुछ उधाहरण है जो आज IOA की मान्यता रद्द हो गई, और FDI लागु हो गया बिना किसान से पूंछे ..बिना किसान को ये बताये की FDI in retail कैसे बदलेगा उनके जीवन को ?
याद आता है अरविन्द जी की किताब "स्वराज" क एक हिस्सा जिसमे ये बताया गया है की सरकार ने RTI तो पास कर दी ....पर सम्बंधित अधिकारी तक को पता नहीं था की RTI है क्या ? ये कैसे काम करेगी ?
अभी हाल में 66A बना ...फिर वही कहानी .......बिना पूरी जांच पड़ताल के ..बिना उसके प्रभाव और प्रयोग के तरीके ....वर्णित करे ...बना दिया नियम ....जिन अफसरों को इस नियम को लागू करना है ....उन्हें ही नहीं पता की कब और कैसे ?
मेरी समझ से इसे लोकतंत्र नहीं कह सकते ....इसे जनता के द्वारा ...जनता के लिए व्यवस्था की संज्ञा नहीं दी जा सकती ....हाँ में गलत हो सकता हूँ क्योंकि यह सिर्फ मेरी सोंच है ....
इसमें सुधार तभी आ सकता है ...जब आप अपना मत प्रकट करें ...और मैं दोबारा विचार करूँ ....आपकी की राय जानने के बाद ....
शायद कुछ ऐसा होना चाहिए लोकतंत्र .....अब ऐसे  लोकतंत्र की कल्पना भी नहीं कर सकते जो अपने आप को आज सत्ता या विपक्ष में होने का दावा करते है ....इसके लिए आप को ही आगे आना होगा
जब तक आप नहीं आओगे ...कुछ नहीं होगा .....ये ऐसे ही चलता रहेगा .....नागेन्द्र शुक्ल

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