Thursday, May 22, 2014

पड़ा रहने दो अरविन्द को जेल में ,…हमेशा के लिए ,.... सड़ जाने दो जेल में ,…


पड़ा रहने दो अरविन्द को जेल में ,…हमेशा के लिए ,.... सड़ जाने दो जेल में ,…
कोई मत देना जमानत ,…
ताकि भविष्य को पता चल सके की ,.... पैसे देने पर किसी को भी,… जमानत मिल सकती है ,…
और ना देने पर ,....
हाँ ,.... यही सत्य है ,.... जमानत और क्लीन चिट मिलती है पैसे से ,…।

क्या गलत कहा ,....
जो क़ानून तोड़े ,.... उसे जेल में ही रहना चाहिए ,....
गाँधी रहे मंडेला रहे ,.... और जो क़ानून के मुताबिक जमानत ले ले ,....
उसे बाहर आराम से रहना चाहिए ,....
गोपाल कांडा ,.... लालू यादव ,.... राजा ,… चौटाला ,… सबने क़ानून का पालन किया ,…
और बाहर है ,....

जेल सिर्फ उसके लिए ,.... जो ,.... कानून तोड़े ,....
और इसमें कोई समझौता नहीं ,....

इस देश के संविधान और क़ानून के साथ ,.... कोई खिलवाड़ करेगा ,....
ये कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता ,....
ये क्या कि कोई ,… किसी भी व्यक्ति पर आरोप लगा देगा ,....
और तो और जमानत नहीं लेगा ,.... कानून तोड़ेगा ,…।

नहीं किसी हाल में,… क़ानून नहीं टूटना चाहिये ,....
अगर अरविन्द इस व्यवस्था के सामने ये ,.... सिद्ध ना कर पाये की ,.... गडकरी भ्रष्ट है ,…
तो कठोर सजा हो। …

ताकि आगे से ,… बिना सबूत किसी पर आरोप ना लगाये ,....
अरविन्द तुम समझ लेना ,.... तुम्हारा यही ,… अंतिम योगदान रहा देश के लिए ,....

कम से कम कोई भविष्य में ,....
कोई बिना सबूत के ,.... किसी को,....
पाकिस्तानी एजेंट ,.... देशद्रोही ,.... नक्सली ,.... CIA एजेंट ,…। मौत का सौदागर ,.... खूनी पंजा ,.... इत्यादि तो नहीं कहेगा ,....

वो बेवकूफ है ,.... जो तिहार के सामने जा कर प्रदर्शन कर रहा है ,…।
वो वास्तव में ,....
अरविन्द का साथ नहीं दे रहा ,.... उसकी तपस्या में रोड़ा बन रहा है ,....

मेरी समझ से कोई मत जाओ ,… इस देश के कानून को ,.... संविधान को तय ,… करने दो की ,....
क्या सजा होगी ,.... उसकी,....
जो विरोध करे ,… उसका ,… जिसे व्यवस्था क्लीन चिट ,… दे देती है ,.... . नागेन्द्र शुक्ल #CorruptGadkari
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योगेंद्र यादव के निजी मुचलके पर रिहा होने के बाद

योगेंद्र यादव के निजी मुचलके पर रिहा होने के बाद काफी लोग कह रहे हैं कि उन्होंने अरविंद केजरीवाल के सिद्धांत के खिलाफ काम किया, जबकि ऐसा नहीं है।
दोनों एक ही बात कह रहे हैं। जानेमाने वकील और हमारे ब्लॉगर दिनेश राय द्विवेदी ने इस संबंध में स्थिति साफ की है।
जमानत मुचलके के संबंध में जो भ्रम मीडिया में आ रहे हैं उनके बारे में सही सूचना इस प्रकार हैः
किसी भी व्यक्ति को अदालत की पेशियों पर उपस्थित होते रहने के लिए सिक्यॉरिटी बॉन्ड व पर्सनल बॉन्ड दोनों पर छोड़ा जा सकता है। आम तौर पर दोनों बॉन्ड देने का आदेश अदालत करती है। अदालत किसी व्यक्ति को केवल पर्सनल बॉन्ड पर छोड़ सकती है। सिक्यॉरिटी बॉन्ड को सामान्य हिन्दुस्तानी भाषा में जमानत और पर्सनल बॉन्ड को मुचलका कहते हैं। मीडिया जमानत को मुचलका कह रहा है और मुचलके को अंडरटेकिंग कह रहा है। मीडिया की तर्ज पर ही राजनैतिक कार्यकर्ता भी उसे अंडरटेकिंग कह रहे हैं, जिनमें आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी शामिल हैं, जबकि अडंरटेकिंग नाम की कोई चीज नहीं होती।
अरविंद केजरीवाल ने पर्सनल बॉन्ड यानी मुचलका देने के लिए इनकार नहीं किया। वह जमानत यानी सिक्यॉरिटी बॉन्ड के लिए इनकार कर रहे हैं। योगेन्द्र यादव को मुचलका देने पर रिहा कर दिया गया, उन से जमानत नहीं मांगी गई।
अब कुछ लोग इसे इस तरह प्रचारित कर रहे हैं कि योगेंद्र यादव पांच हजार रुपये देकर छूटे जबकि अदालत कभी भी जमानत या मुचलके का रुपया जमा नहीं करती। यह सिर्फ बॉन्ड होता है और जब इस बॉन्ड की शर्त का उल्लंघन होता है तो उस दशा में बॉन्ड के रुपये की वसूली की जाती है। इस तरह मीडिया द्वारा गलत सूचनाएं देने से आम लोगों में न्यायिक प्रक्रिया और उपबंधों के बारे में भ्रम पैदा हो रहे हैं।

Friday, May 16, 2014

आम आदमी पार्टी की अविश्वसनीय हार के क्या कारण थे

आम आदमी पार्टी की अविश्वसनीय हार के क्या कारण थे आओ इस पर विचार करे। मेरे अनुसार गलतियाँ अनेक हुई हैं। लेकिन समस्या यह है कि गललतियाँ मानने को तो कोई तैयार तो हो।
1. मेवात में योगेन्द्र यादव का बयान। हरियाणा में हार की वजह योगेन्द्र यादव का मेवात में दिया गया बयान था। जिसकी बहुत आलोचना भी हुई थी। उस बयान से अन्य प्रदेशों की सीटों पर भी असर पड़ा। आम आदमी पार्टी का प्रमुख मुद्दा भ्रष्टाचार था। हम उससे भटक गये और हमने काँग्रेस, सपा, राजद, कम्युनिस्टों के सम्प्रदायिकता के मुद्दे को अपना मुद्दा बना लिया। इससे आम आदमी पार्टी ने जनता में अपनी विश्वसनीयता भी खो दी। अब इसके लिये दोबारा दुगनी मेहतन से संघर्ष करना होगा। भाई जो कपड़े जिसके नाप के होंगे उसे ही सूट करेगे, दूसरा पहनेगा तो जोकर ही लगेगा।
2. मुस्लिम वोट के लिये शाजिया इल्मी का बयान।
3. अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना।
4. बनारस से चुनाव लड़कर सारी शक्ति वही लगा देना।
5. विधान सभा में जहाँ जहाँ जहाँ से हारे थे, वहाँ हारने के कारणों पर मंथन न करना।
6. जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा।
7. विधानसभा क्षेत्र के प्रभारियों द्वारा केवल अपने अपने (परिवार या रिश्तेदार या जाति-बिरादरी) लोगों को आगे लाना।
8. जिन्हें जिम्मेदारी दी गई, वह सही काम कर पा रहे हैं या नहीं इसपर नजर न रखना आदि आदि।
9, कुमार विश्वास का बार बार यह कहना कि मैं ब्रह्मण पुत्र हूँ। कुमार विश्वास और पार्टी के लिये भी हानिकारक रहा। क्योंकि आम आदमी पार्टी के वोटर वह लोग थे जो धर्म और जाति की राजनीति से छुटकारा पाना चाहते थे। जिस आम आदमी पार्टी ने जनता को जगाया है यदि वही उसे साथ इस तरह धर्म और जाति की राजनीति करने लगे तो जनता स्वीकार नहीं कर सकती। कुमर विश्वास का बयान जातिवाद और साजिया इल्मी का बयान सम्प्रदायवाद का सबल बनाता है।
10. मीडिया की आलोचना करके उसे अपना नं. 1 का दुश्मन बना लेना।

Thursday, May 15, 2014

फासिस्ट राज्यों के चरित्र में 14 बिंदु समान थे:

2003 में डॉ. लारेंस ब्रिट नाम के सज्जन ने भिन्न फासिस्ट राज्यों (मुसोलिनी, हिटलर, फ्रैंको, सुहार्तो व अन्य लातिनी मुल्कों के तानाशाहों) के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि इन सब फासिस्ट राज्यों के चरित्र में 14 बिंदु समान थे:
एक, राष्ट्रवाद का सशक्त प्रचार। 

दो, मानवाधिकारों के प्रति धिक्कार (शत्रु व राष्ट्रीय सुरक्षा का भय दिखा लोगों को इस बात के लिए तैयार करना कि खास परिस्थितियों में मानवाधिकारों को अनदेखा किया जा सकता है, और ऐसी स्थिति में शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना से लेकर हत्या तक सब जायज है)। 
तीन, शत्रु को और बलि के बकरों को चिह्नित करना (ताकि उनके नाम पर अपने समूहों को एकत्रित-उन्मादित किया जा सके कि वे ‘राष्ट्रहित’ में अल्पसंख्यकों, भिन्न नस्लों, उदारवादियों, वामपंथियों, समाजवादियों और उग्रपंथियों को मानवाधिकारों से वंचित रखने में समर्थन दें)। 
चौथा, सेना को आवश्यकता से अधिक तरजीह और उसका तुष्टीकरण। 
पाँचवाँ, पुरुषवादी वर्चस्व। 
छठा, मास मीडिया को येन-केन-प्रकारेण प्रभावित कर उसे अपना पक्षधर बनाना और नियंत्रण में रखना। 
सातवाँ, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों और संस्कृतिकर्मियों पर नकेल कसना। 
आठवां, धार्मिकता व सरकार में घालमेल करते रहना (बहुसंख्यकों के धर्म और धार्मिक भावाडंबर का इस्तेमाल कर जनमत को अपने पक्ष में प्रभावित करते रहना)। 
नौवाँ, कारपोरेट जगत को पूर्ण प्रश्रय देना (चूँकि कारपोरेट जगत से जुड़े उद्योगपतियों/ व्यापारियों द्वारा ही फासिस्ट ताकतें सत्ता में पहुँचाई जाती हैं, तो जाहिर है एक-दूजे के लिए...)।
दसवाँ, श्रमिकों की शक्ति को कुचलना। 
ग्यारहवाँ, अपराध और दंड के प्रति अतिरिक्त उत्तेजना का माहौल बनाना। 
बारहवाँ, पुलिस के पास असीमित दंडात्मक अधिकार देना। 
तेरहवाँ, भयानक भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार। 
चौदहवाँ, चुनाव जीतने के लिए हर प्रकार के हथकंडे अपनाना।

माना कि डॉक्टर ब्रिट कोई बड़े इतिहासकार या शिक्षाविद नहीं, पर कुछेक त्रुटियों के बावजूद उनके बिंदुओं को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता। उपरोक्त बिंदुओं में से अनेक को हम तथाकथित उदारवादी मुल्कों से लेकर भारतवर्ष तक की पूर्ववर्ती सत्ताओं द्वारा समय समय पर आजमाते देखते रहे हैं, पर बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में भारत में बड़ी तादाद में इनका इस्तेमाल किया जाए। इस बात की भी बड़ी संभावना है कि निकट भविष्य में कतार में खड़े अपने सीनों पर हथेली टिकाए हम जोर-जोर से चीखते नजर आएँ, कि -- गर्व से कहो हम फासिस्ट हैं!

http://www.shabdankan.com/2014/05/say-it-proudly-we-are-fascist-sanjay-Sahay.html#.U3SA-ygUBPI