Monday, September 30, 2013

लल्लन और "ग्राम-माता" की कथा-पार्ट -2:-

लल्लन और "ग्राम-माता" की कथा-पार्ट -2:-

लल्लन का स्कूल में बड़ा रुआब था..भले ही पांचवी कक्षा में पढता था लल्लन पर ठसन ऐसी कि मानो अमरीका की सत्ता ओबामा इन्ही के हाथ सौंपकर वान-प्रस्थ आश्रम में प्रवेश लेने जा रहे हों..और भाई हो भी क्यों ना...आख़िरकार स्कूल की मौजूदा इमारत उन्ही के किसी पुरखे ने किसी बीते जमाने में गाँव को दान की थी या दिलवाने का श्रेय लिया था...तब से लेकर आजतक लल्लन के परिवार के लोग ही इस स्कूल के ट्रस्टी यानि माई-बाप बनते आये हैं...

लल्लन भले ही पांचवी कक्षा का छात्र था पर सभी लोग उसका बड़ा सम्मान करते थे...हालाँकि कक्षा के लिहाज से लल्लन की उम्र उसकी चुगली कर देती थी पर क्या करें अब जरा पढाई के मामले में लल्लन का हाथ थोडा तंग था तो क्या लल्लन की जान ही ले लें- खैर, लल्लन के रुआब का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अगर वो दौड़ में सबसे पीछे भी रहता तो भी पुरूस्कार ग्रहण समारोह में ट्राफी उसे ही मिलती थी..

लल्लन को कुछ बातों का बड़ा फक्र था – जैसे स्कूल का खडंजा उनके दादा जी ने लगवाया, स्कूल का पानी का नलका उनके नानाजी की देन थी, ऑफिस में टेलीफोन उनके पिता जी की कृपादृष्टि का परिणाम था, शौचालय इस रिश्तेदार के बनवाया तो पुस्तकालय फलां-फलां रिश्तेदार ने----- गाहे-बगाहे उसकी बातों में इनका जिक्र आ ही जाता..

स्कूल में कई सालों से काम कर रहे लगभग सभी मास्साब भी लल्लन के मुरीद थे और कक्षा में लल्लन के आते ही अपनी कुर्सी छोड़ कर लल्लन को उस कुर्सी पर बैठने की जिद करते.... अब जब मास्साब ही ऐसे करेंगे तो स्कूल के बाकि लड़कों की क्या बिसात...लल्लन के सीनियर छात्र हमेशा ही महत्वपूर्ण विषयों और प्रश्नों पर लल्लन की राय लेते और उससे ही “पाठ” समझने की होड़ इन लड़के-लड़किओं में लगी रहती...कोई लल्लन को पानी का गिलास देता, तो कोई उसकी कुर्सी साफ़ करता तो कोई उसका बस्ता उठाता...

उधर स्कूल के प्रधानाचार्य श्रीमान “रुलदू” भी लल्लन की तारीफ़ करते नहीं थकते थे और कई बार सार्वजानिक तौर पर वो कह भी चुके थे कि उन्हें “लल्लन” के नेतृत्व में स्कूल में रहने में कोई दिक्कत नहीं है बल्कि वो लल्लन के नीचे काम करके खुद को गौरान्वित ही महसूस करेंगे..उनकी इच्छा है कि लल्लन को अब स्कूल के “प्रधानाचार्य” के पद पर शोभायमान हो ही जाना चाहिए..उनकी इन बातों का सभी अध्यापकों और विद्यार्थिओं ताली बजा-बजा कर समर्थन करते....

लल्लन दिन भर स्कूल में गुब्बारे फूलाता, साइकल चलाता, लंगड़ी-टांग और कंचे खेलता, बच्चों को सताता और घूमता रहता..

पर इसी दौरान एक मुद्दा गाँव में गरमाने लगा कि पिछले कई सालों से स्कूल के बच्चे लगातार अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे थे और स्कूल का वार्षिक नतीजा लगातार नीचे गिरता जा रहा था...लड़के पढाई कम और लडाई-झगडा, चोरी-चकारी, छेड़खानी और तोड़-फोड़ में संलिप्त रहने लगे थे..पूरे इलाके में स्कूल की साख दिन-ब -दिन गिरती जा रही थी.. लोगों में इन बिगडैल लड़कों पर नकेल कसने की मांग धीरे-धीरे बलवती होती जा रही थी....इन बिगडैल बच्चों को अयोग्य करार कर स्कूल से निकाल देने की मांग उठी...

पर ऐसा करने से तो पूरे के पूरे स्कूल के ही खाली हो जाने का अंदेसा था- किस-किस को निकालते.....तो इससे निबटने के लिए एक दिन स्कूल के ट्रस्टी परिवार और स्कूल प्रशासन ने मिल कर जन-भावनाओं के विपरीत जाकर ये फैसला किया कि एक नया अध्यादेश “ राज्य शिक्षा बोर्ड” को भेजा जाए जिसमे कि अपील की जाए कि अनुशासनहीन विद्यार्थिओं को स्कूल से बेदखल नहीं किया जाएगा और ना ही फ़ैल होने वाले छात्र और छात्राओं को अगली कक्षा में प्रवेश देने से रोका जायेगा...इस प्रस्ताव से सारे मास्टर और छात्र-छात्राएं बहुत खुश थी....

स्कूल प्रशासन के इस कदम का चारों और विरोध होना शुरू हो गया..स्कूल के एक मास्साब मीडिया में इस कदम को न्यायोचित बताते हुए अपना पसीना पोंछ ही रहे थे कि एकदम से लल्लन वहां पहुँच गया और माइक अपने हाथ में लेकर कहा कि ये अध्यादेश एक बकवास से ज्यादा कुछ नहीं हैं और उसने वो कागज का पुर्जा टुकड़े-टुकड़े करके हवा के हवाले कर दिया....

अवाक !! सन्नाटा !! ख़ामोशी !! किमकर्त्व्यविमूढ़ता !! चारों तरफ सिर्फ सुगबुगाहट और सरसराहट....

तभी मास्साब ने उठ कर पैंतरा बदलते हुए कहा कि बिलकुल- हम भी इस अध्यादेश के बिलकुल खिलाफ हैं और इसका पुरजोर विरोध करते हैं ..तभी बाकि मास्टर भी वहां आ गए....

-दलाली में बदनाम और कान में फुसफुसाने में माहिर एक चाटुकार मास्साब ने कहा कि लल्लन जो कहे वही स्कूल का भी विचार है...लल्लन हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं और उनकी वाणी ही स्कूल की वाणी है..

-गाँव भर में अपाहिज लोगों की बैसाखियों को इधर-उधर रख कर उन्हें तंग करने वाले एक सीनियर लड़के ने कहा कि लल्लन ने नैतिकता को नया आयाम देते हुए स्कूल ट्रस्ट को अनैतिक कार्य करने से बचा लिया..स्कूल को एक भावी अपराध करने से बचा लिया...

- कोयले से दांत घिसने वाले एक और पुराने छात्र ने कहा कि लल्लन ने हजारों गाँव वालों की भावनाओं को परिलक्षित किया है..

- कुत्ते पालने के शौक़ीन और फ़ालतू के विवादित बयानों में घिरे रहने वाले “दद्दू” मास्साब ने कहा कि इस विषय पर स्कूल प्रशासन ही जवाब देगा..

-गणित के “जीरो लास” की थ्योरी देने वाले और इस अध्यादेश के मास्टर-माइंड तथा कुछ ज्यादा ही अक्लमंद मास्साब कन्नी काटते हुए चुपचाप वहां से नौ-दो ग्यारह हो गए..

हर तरह अफवाहों और चर्चाओं का बाजार गरम था....लोग इसे लल्लन का “मास्टर-स्ट्रोक” बता रहे थे तो कुछ इसे पानी की गहराई मापने का शाही परिवार का एक और पैंतरा...

इस पूरे प्रकरण में मौजूदा प्रधानाचार्य “रुलदू” हक्का-बक्का हैं और जल्द ही स्कूल ट्रस्ट से इस बारे में बात करने की बात करने का ऐलान उन्होंने कर दिया है..उनका कहना है कि उन्हें खुद के "अपमान" से इतनी दिक्कत नहीं है जितनी कि "सार्वजानिक रूप से हुए अपमान" से है...

उधर लल्लन की अम्मा ने आज मिड-डे- मिल में सभी बच्चों के लिए खीर और सिवइयां बनाने का हुक्म जारी कर दिया है..

सुना है कि आज लल्लन ने श्रीमान “रुलदू” को एक पत्र लिखा है...

डॉ राजेश गर्ग.
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=633299663359835&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater

...Donate your Weekend....Please.

कल Door To Door Campaign करते हुए, एक सक्षम महिला IAS अधिकारी ने कहा की मेरा वोटर कार्ड बनवा कर दो ..तो वोट देंगे ..मैंने कहा मैंम वो तो आप online बनवा सकती है ...नहीं तो मेरे पास फॉर्म 6 है ले लीजिये और भर कर भिजवा दीजिये ..बन जाएगा ...
उन्होंने बड़ी ठसक के साथ कहा ...वोट तुम्हे चाहिए ...बनवा कर दो ....अब उनकी टोन कुछ बदल चुकी थी ....शायदइसलिए की बड़े अधिकारी को जनता से ना सुनने की उम्मीद या आदत नहीं थी ....

मेरे मुँह से भी निकल गया ...की मैंम आप खुद करवा लें ....मुझे 100 रिक्शे वालों का बनवाना ज्यादा अच्छा लगेगा ..आप तो सक्षम है ...और आपने संविधान पढ़ा होगा ..ये भी पता होगा की ..ये आपका कर्तव्य है ....

अब क्या था .....तीर तो कमान से निकल चुका था .....उधर से जवाब आया ....की बस "आम आदमी पार्टी " का ये attitude गलत है ....मैंने पूँछा कौन सा ...उन्होंने कहा बात करने की तमीज नहीं तुम्हे ...मैंने कहा हो सकता है मैंम ...पर Attitude कौन सा ...वो बोली यही ....
अब मेरा जवाब था ....की मैंम बड़ी मुश्किल से आम आदमी ने पाया है ये attitude की हमारे देश में वो कर्मचारी और नेताओं से सवाल कर सके ....और जवाब दे सके ...
मैंम,...
एक तो गलत करे नहीं ...और गलत दिखे तो बोले ...ये attitude,.. जरुरी है ....आम आदमी में .....यही तो समझा है ...
वन्दे मातरम् ....नागेन्द्र शुक्ल ...

वैसे मैं गलत था Door To Door Campaign में किसी से कोई बहस नहीं करनी .....अगर वो चाहे तब भी नहीं ....समय बर्बाद होता है ...और हाँ पिछला Weekend Donate किया था ...जमीन पर काम करने के लिए ...वैसे आप भी कर सकते हो ...सिर्फ २ महीने की तो बात है ...पर आपकी जरा सी मेहनत ....इतिहास रच सकती है ......देश का भविष्य बदल सकती है .....
ये देश है तुम्हारा .....जिम्मेवारी है तुम्हारी .......Donate your Weekend....Please.

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Thursday, September 26, 2013

हम आज भी मानसिक रूप से गुलाम ही है,.

दोस्त, अंग्रेजो से आज़ाद हुए तो वर्षो बीत गए, पर नहीं हम आज भी मानसिक रूप से गुलाम ही है,..मानसिक गुलामी हमारे व्यवहार व कियाकलापों में झलकती है।
कल ही मिला था एक जनाब से बात के दौरान उन्होंने बोला की जो कुछ भी आप कह रहे हो सही है पर ...
पर हम तो पुराने कांग्रेसी है और कांग्रेसी ही रहेंगे ...अरे क्यों? क्यों भाई हम कांग्रेसी या भाजपाई ही रहेंगे ...जब कांग्रेस नहीं थी जब भाजपा नहीं थी तब भी तो हमारी कुछ विचारधारा थी पर जब समय के साथ कांग्रेस / भाजपा बनी तो उनमे से एक को चुना और हमने तोड़ी थी पुरानी गुलामी की जंजीरे ..पर जिस क्षण हमने आपने ,....सोंच लिया की हम कांग्रेसी या भाजपाई है उसी समय हम एक बार फिर गुलाम हो गए ..और दे दी आज़ादी इन काले अंग्रेजो को मनमानी करने की ...

अब ये मनमानी नहीं तो और क्या है की सुप्रीम कोर्ट ने कहा दागी मंत्री हटाओ, RTI के अन्दर आओ पर नहीं ..इन्होने मिलकर कर दिया क़त्ल इन दोनों का .... और अध्यादेश के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं ये संदेश दिया जा रहा है कि निचली अदालतें और सर्वोच्च्य न्यायलय सही निर्णय नहीं सुनाती या सुना सकतीं हैं,....सिर्फ संसद ही है जो सही निर्णय कर सकता है.
यधि ऐसा है तो क्यों है न्याय पालिका ?....
जब हर बात का फैसला इन संसद में ही होना है ..उनका भी ...जिनमे वादी संसद में बैठे लोग ही हो,...तो ऐसी स्थिति में कहाँ बचा लोकतंत्र ...
लोकतंत्र के चार स्तम्भ ..क्या मतलब रहा इसका ..जन मीडिया को कण्ट्रोल कर लिया खरीद लिया ...अफसर को निलंबन की सजा धमकी ...और न्यायपालिका की सुननी नहीं ....संसद में पैसा उडता है ..सांसद बिकता है ...तो कहाँ बचा लोकतंत्र ...कहाँ बची आज़ादी .....

इसके बाद भी,..आपका,...इनका विरोध ना करना ..और ये कहना की हम तो कांग्रेसी या भाजपाई है ..ये मानसिक गुलामी नहीं तो और क्या है ?....
ये मानसिक गुलामी ही मूल कारण है सारे दुखो का और नेताओ की तानाशाही का ...
क्यों नहीं,.. हम सोंच सकते क्या सही है क्या गलत ...
क्यों नहीं,..हम पूँछ सकते अपने नेता से सवाल
क्यों नहीं मजबूर कर सकते की ...बरगलाना छोड़ो और मुद्दे की बात करो ....
पर नहीं ...हम ऐसा नहीं करते ..यधि हम ऐसा नहीं करते तो गुलाम ही तो हुए ना ?...मानसिक गुलाम ..है की नहीं ..


भारत में  कमी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया भारतीय प्रतिभा का लोहा मान चुकी है पर अपने घर में इन प्रतिभाओं को यथोचित सम्मान नहीं मिलता और वे पलायन कर जाती हैं. यही कारण है  कि ये प्रतिभाएं दूसरे देशों को लाभान्वित कर रही हैं. जब इन्हें वहां सम्मान मिलता है और दुनिया इन्हें पहचानने लगती है तब हमारी नींद खुलती है, तब हम इस फारेन रिटर्न प्रतिभा को हाथों हाथ लेते हैं.

क्या ये हमारी हजारों सालों कि मानसिक गुलामी का ज्वलंत प्रमाण नहीं? जब तक हमारी प्रतिभा को पश्चिम का ठप्पा नहीं लग जाता हमें उनकी प्रतिभा दिखाई ही नहीं देती. हम आखिर कब तक स्वयं को दूसरे के चश्में से देखते रहेंगे?

इस मानसिक गुलामी के चलते ही,..... हम अपने महत्त्व को कम करके आंकते हैं.
ये मानसिक गुलामी ही तो है जिसके चलते ..दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भी चल रही गुंडे भ्रष्ट नेताओ की तानाशाही ....

अब वक्त आ गया है जब हमें अपनी इस सड़ी-गली मानसिकता को अलविदा कहना होगा अन्यथा प्रतिभा संपन्न होते हुए भी हम पिछड़ जायेंगे और हमारी कुशलता,....उसका लाभ दूसरे उठाते रहेंगे।
यधि इस मानसिक गुलामी से ना छूते तो हम सिर्फ एक प्रयोग किये जाने वाले सामान की तरह ही बन कर रह जायेंगे ....और ऐसे ही प्रयोग किये जाते रहेंगे ....कोई नहीं पूंछेग ....की तुम्हे क्या चाहिए ...जो मर्जी होगी बताता रहेगा देता रहेगा और हम यूँ ही खुद को ...सरकार को ...व्यवस्था को कोसते रहेंगे ....
हमे भारतीय होने का गर्व होना चाहिए,...और आज़ाद होने अहसास ...
आज़ादी का सिर्फ एक अर्थ है ....की व्यक्ति के अन्दर गलत को गलत और सही को सही  कहने की क्षमता ....
क्या वो है ..आज हममे ...यधि नहीं ...तो हम गुलाम है ...मानसिक गुलाम ....
इस गुलामी से आज़ादी का वक्त आ चुका है ..और यही सही समय है ....पहचानो अपने आपको ...और लड़ो उसके लिए जो सही है ..यही तो वो व्यवस्था परिवर्तन है जिसके लिए हम और आप प्रयास कर रहे है ....

तोड़े मानसिक गुलामी को ...जुड़े राजनीतिक आन्दोलन से ....इसलिए नहीं की कोई सत्ता पानी है ..इसलिए की इस मानसिक गुलामी को मिटाना है और एक आज़ाद व्यवस्था कड़ी करनी है ....

AAP के खिलाफ कई तरह के झूटे दुष्प्रचार

मित्रों पिछले कुछ दिनों से आप ने देखा होगा की बीजेपी और कांग्रेस ले लोग आम आदमी पार्टी को मिल रहे अपार जन समर्थन से कितना बौखला गए है. और इस लिए अब वो AAP के खिलाफ कई तरह के झूटे दुष्प्रचार करने में लगे हुवे है. AAP के नेताओं पर हमले, झूटे और बे बुनियाद आरोप, झूटे और बदले गए फोटो और यहाँ तक की अब वो हमारे नेताओं के पारिवारिक अंदरुनी मामलों को भी उछाल रहे है.
साफ़ है की BJP और Congress के पास अपनी उपलब्धियों को गिनाने के लिए कुछ नहीं है. दिल्ली में कांग्रेस की उपलब्धि भ्रस्टाचार, बढ़ती महंगाई और अपराध है. तो दिल्ली में बीजेपी की उपलब्धियां दिल्ली महानगर पालिका(MCD जिसको बीजेपी चलाती है) में हो रहा भ्रस्टाचार और 15 साल से जनता से दूर रहना, सोते रहना और जनता की कोई मदद नहीं करना है.
आम आदमी पार्टी के लगातार बढ़ते जनाधार से घबरा कर अब ये भ्रष्ट और अपराधी लोग पारिवारिक मामलों तक में दखल देने लगे है. शाजिया जी के इलाके में पत्र बांटे जा रहे है की शाजिया जी की उन के एक भाई से नहीं बनती. अरे भाई बहन की आपस में नहीं बनती तो क्या ये राजनितिक मुद्दा है? क्या ये मुद्दा दिल्ली की जनता के लिए जरुरी है या भ्रस्टाचार, महंगाई, रेप, अपराध आदि दिल्ली की जनता के मुद्दे है?

पहले इन भ्रष्ट और अपराधियों ने संतोष बहन पर हमला करवाया था, ये सोच कर की डर कर कोई आम आदमी पार्टी से नहीं जुड़ेगा. पर ऐसा नहीं हुवा. अब बीजेपी और कांग्रेस के लोग बस छोटे मोटे बे बुनियादी मुद्दे उठा कर जनता का ध्यान जरुरी मुद्दों से दूर हटाना चाहते है. आप कभी बीजेपी और कांग्रेस के लोगों को जरुरी मुद्दों पर बात करते हुवे नहीं सुनोगे, क्यों की ये मुद्दे जनता के लिए जरुरी है इन भ्रष्ट नेताओं और उन के चेलों के लिए नहीं.
अब कोई आप के पास बेबुनियादी मुद्दे ले कर आये तो आप उन से इन जरुरी मुद्दों पर जवाब मांगना और सिर्फ जवाब नहीं बल्की पूरी योजना मांगना की कैसे करोगे ये सब हल :- भ्रस्टाचार, महंगाई, रेप, अपराध, RTI, जन लोकपाल, बहतर स्कूल, बहतर अस्पताल आदि. बीजेपी के लोग झूट बोलें की हम भ्रस्टाचार से मुक्ति दिलवाएंगे तो उन से पूछना की 5 साल से तो दिल्ली महा नगर पालिका में भीषण भ्रस्टाचार BJP ने कर रखा है उस का क्या?
Shazia's statement:- https://www.facebook.com/shazia.ilmi.1/posts/513474982071362

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बाँट दिया इस जमीन को, चाँद सितारों का क्या होगा?
नदियों के कुछ नाम रख दिये , बहती धारों का क्या होगा?
मेरे स्कूल में एक टीचर हुआ करते थे ...अब सरकारी स्कूल था तो बच्चे class में ही बैठ बड़ा शोर करते थे ...शायद ऐसा ही एक culture था ....शोर से परेशान हो वो कहते थे ....
मैं यहाँ पूरी भीड़ को पढ़ाने नहीं आया ...
मैं पढ़ाने आया हूँ ..उन 10 / 5 बच्चो को जो पढना चाहते है ....उनको नहीं जो ,...
सिर्फ समय बर्बाद करने या काम से बचने के लिए स्कूल आते है ..
वो कहते थे ...सिर्फ 2 मिनट शांत रहे ....मुझे शुरू करने दें ....
फिर जिसे लगे की मैं उसे पढ़ा रहा हूँ ...कक्षा में रुके ....और जिसे लगे उसे नहीं पढ़ा रहे ...वो बाहर जा सकता है ....
पर कमाल के होते थे वो 2 मिनट ....फिर ना गले आवाज निकलती थी ...और ना ही बाहर जाने का मन ....

पिछले साल 2 October की छुट्टी वाले दिन सोंचा ...चलो एक बार अरविन्द को सुनते है ....चला गया उनकी मीटिंग में ....तब उस मीटिंग में बहुत कम भीड़ थी 2/3 सौ ....
उस दिन ध्यान से सूना ....
फिर कई दिन सोंचा ....
की क्या अरविन्द ...हमें पढ़ा रहे थे ...
जवाब मिला हाँ ...याद आयी उस टीचर की ....
की अगर उसको दो मिनट ना ....दिए होते तो ....शायद आज ...दो ...दुनी चार ....ना पता होता ....
और अब शुक्रिया उस 2 October को जिसमे अरविन्द को सुना ....सोंचता हूँ ...अगर ना जाता तो कभी ...
कभी पता ही नहीं चलता की ...
देश क्या है ...देशवासी क्या ?....और देशभक्ति ...तो शायद अरविन्द के सिवाय किसी को पता ही नहीं ...............नागेन्द्र शुक्ल
 
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=630878806935254&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater
 

आपको किसने बताया था की दिल्ली में पानी के मीटर, सिर्फ पानी से नहीं,... हवा से भी चलते है?

वैसे ये आपको किसने बताया था की दिल्ली में पानी के मीटर, सिर्फ पानी से नहीं,... हवा से भी चलते है?
बताया तो ये अरविन्द जी ने ही था ...है की नहीं ?...
वैसे ये काम किसका था ?....जिसका था वो क्या कर रहे थे ...और आज भी क्या करने में लगे है ?...
आप खुद पता करो ....
ये इसका एजेंट ..वो उसका एजेंट ...सब बकवास ...सच तो सिर्फ इतना है ...
और इस बात से ये सच ...सिद्ध होता है की ...
अरविन्द - आम आदमी पार्टी ...एजेंट है ...पर सिर्फ जनता की ....
खैर ....अच्छी खबर ये की ...
"दिल्ली जल बोर्ड ने माना है की बिल में गड़बड़ है और 30% की छूट देने की घोषणा की"....

अजीब है वो ....जो विधान सभा और संसद में बैठ ...ऊँघते रहते है ...और जनता के सामने रोते रहते है ...
कुछ करते नहीं ...सिर्फ रोना रोते है ...हर बात का एक जवाब ...
की हमारे पर सत्ता नहीं ...हम क्या कर सकते है ....
अरे क्या घास छीलने के लिए ...विधान सभा में हो ...

अरे जनता के मुद्दे उठाने के लिए ....जनता को सच बताने के लिए ..कौन सी सत्ता चाहिए ?...
जो विपक्ष में बैठने के बाद भी जनता के हित के लिए ....
जनता की बात को सच्चाई से नहीं उठा सकते ...
चुनाव आने पर ..कहते है ...
सत्ता दे दो ...क्यों दे दे ?.....
क्यों दे दे सत्ता ...जनता ऐसे नाकारो को ?....

अरे बीजेपी और गोयल साहब ...जनता के काम करने के लिए ...कोई सत्ता नहीं ...नियत चाहिए ..
पर आपको क्या पता ....क्योंकी ...आप लोग तो ना कभी सत्ता में होते है और ना ही विपक्ष में ...
दोनों स्थिति में ....जनता को चूना लगाते हो ..मिल्झुल कर ...
पर अब नहीं ....
अब जनता जाग चुकी है .....साफ़ नज़र आती है ...तुम्हारी और इनकी राजनीति ....
रहने दो ..आप लोग से कुछ नहीं हो पायेगा ....अब जनता खुद कर लेगी ....
अब उसे स्वराज पता है ....अब उसके पास ..उसका अपना संगठन है .....आम आदमी पार्टी .....

ये बता दे ..इन राजनीती के दलालों को .....की अब देश में ...असली राजनीति होगी ...जनता की राजनीति होगी ...मुद्दे की राजनीति होगी ....
मैं ..मेरी ..तू ..तेरी ..बहुत हो चूका ....
अब होगा public ka direct action ,.....
जब बनेगी दिल्ली में ...."आप" की सरकार ......नागेन्द्र शुक्ल
#DelhiDeservesBest #Work4AAP #Vote4AAP
http://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/Delhi-Jal-Board-admits-error-gives-30-rebate-on-bills/articleshow/22902589.cms
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=630989486924186&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater

तुम मेरी पीठ सहलाओ, मैं तुम्हारी सहलाता हूँ...

तुम मेरी पीठ सहलाओ, मैं तुम्हारी सहलाता हूँ...

तुम मेरी पोल न खोलना, मैं तुम्हारी नहीं खोलूँगा..!!!


स्कूली शिक्षा का दौर हो या विश्वविद्यालयी शिक्षा, जाने-अनजाने में वहां के अध्यापकों को ये एहसास हो ही जाता की लड़कों/लड़कियों से एक दूसरे की कमियाँ जानना, उनके बीच क्या गपशप चल रही है, उनकी पोल लेना बहुत मुश्किल है। इसी अनुभव के आधार पर हमारे संस्थान के आनंद सर अक्सर ये जुमला इस्तेमाल करते है, कि कही ऐसा तो नहीं कि आप (छात्र) लोग मिलकर एक-दुसरे की पीठ खुजलाते की परम्परा पर चल रहे हो।

    ये तो हुयी छत्रो की बात अब अगर आप वर्तमान भारतीय राजनीति के घटनाक्रम पर नज़र डाले तो ऐसा ही कुछ यहाँ भी देखने को मिलेगा। बात शुरू होती है महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार के इस्तीफे के साथ।  महाराष्ट्र में सिचाईं के लिए बनने वाले बांधों पर जनहित याचिका दायर करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से मिलकर इस मुद्दे को उठाने की बात की लेकिन उनके अनुसार गडकरी के जबाब से वो चकित रह गयीं। नितिन गडकरी ने कहा- " आप ये कैसे मान सकती है कि ये मुद्दे हम उठायेंगे, चार काम वो (शरद पवार) हमारे करते हैं-चार काम हम उनके करते हैं....."
दूसरा वाकया तब हुआ जब अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने सोनिया गाँधी के दामाद राबर्ट वाड्रा पर डी एल ऍफ़ के साथ सांठ-गांठ का आरोप लगाया। इसके तुरंत बाद हिमांचल के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने भी प्रियंका पर जमीन के लेन-देन से जुड़े मुद्दे पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया। लेकिन देखने वाली बात ये है कि जमीन की खरीद-फरोख्त्त राज्य के अधिकार में ही आता है ऐसे में धूमल को आरोप लगाने से पहले जांच के आदेश क्यों नहीं दिए.?
तीसरा, राबर्ट वाड्रा पर भाजपा का कहना है की उसने ये मामला 2011 में ही संसद में उठाया था। लेकिन सवाल उठता है की तब से क्या हो रहा था..? जब भाजपा ने अरविंद की आवाज़ में हाँ में हाँ मिलाने की कोशिश की तो दिग्विजय सिंह कहते है राजनैतिक पार्टिओं में ये आपसी सहमती (Mutual Understanding) होती है और होनी भी चाहिए कि वो एक-दूसरे के परिवार के सदस्यों के ऊपर कोई दोषारोपण नहीं करेंगी।
बकौल दिग्विजय, अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में उनके दामाद रंजन भट्टाचार्य और आडवाणी के बेटे-बेटी के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे लेकिन कांग्रेस ने उनके खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोला। अब सवाल उठता है क्या इसी परम्परा का पालन भाजपा और अरविन्द को करना चाहिए..?
चौथा, सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट में हुयीं गड़बड़ियो का आरोप उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से आये हुए है और जिस जांच की मांग की जा रही है उसकी पूरी जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी की सरकार पर आती है। प्रश्न फिर वही की क्या अखिलेश जांच के आदेश देंगे? अगर देंगे तो कितनी निष्पक्ष होगी इस पर भी संदेह है क्यों कि उनके पिता और सपा मुखिया मुलायम के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति के मामले में सी बी आई ने जो याचिका दायर कर राखी है उसमे सरकारी वकील कि नियुक्ति पर पूरा नियंत्रण क़ानून मंत्री सलमान खुर्शीद का है ऐसे में एक दुसरे को लाभान्वित करने की बात फिर सामने आती है।
तो हुयी न राजनीति में भी एक दूसरे की पीठ सहलाने की बात, किसी की पोल न खोलने की बात.....
From:- http://amitantarnaad.blogspot.in/2012/10/blog-post_2900.html

"राम" हमारे मन में हैं ...

"राम" हमारे मन में हैं ...

दशहरा फिर आ गया। वो तो आना ही था समय बीतता जायेगा और दशहरा आता ही रहेगा, साल-दर-साल।
हर बार हम रावण को मारने का संकल्प लेते है, और प्रतीकात्मक रूप में उसके पुतले का दहन करते भी है, खुद 'असली राम' बन जाते है। लेकिन फिर भी समाज में हर रोज़ नए-नए एक नहीं अनेक रावण आ जाते है।'एक से दो, दो से चार, चार से...!!! इतनी तेज़ी से बढ़ते हुए रावणों के लिए इतने राम कहा से लाये जाए? इस पर एक प्रसिद्द गीत भी है-
कलयुग बैठा मार कुण्डली जाऊं तो मैं कहा जाऊं,
अब हर घर में रावण बैठा, इतने राम कहाँ से लाऊं..?
यहाँ पर व्यक्ति की हताशा झलक रही है, वह निराश है, बुरी व्यवस्था को सुधरने के लिए दूसरो के भरोसे है। जबकि समाज में अच्छाई की स्थापना के लिए किसी और के भरोसे रहना कहाँ तक सही है इसका फैसला मैं आप पर ही छोड़ता हूँ।
लेकिन क्या वास्तव में समाज में खुलेआम घूम रहे रावणों के लिए हमें वाहर से राम लाने की जरूरत है? अगर ऐसा है तो फिर तो राम की कमी होना निश्चित है। अब क्या किया जाए.?
एक और गीत-
राम हृदय में हैं मेरे, राम ही धड़कन में हैं
राम मेरी आत्मा में, राम ही जीवन में हैं
राम हर पल में हैं मेरे, राम हैं हर श्वास में
राम हर आशा में मेरी, राम ही हर आस में


  राम ही तो करुणा में हैं, शान्ति में राम हैं
  राम ही हैं एकता में, प्रगति में राम हैं
  राम बस भक्तों नहीं, शत्रु की भी चिंतन में हैं
देख तज के पापी  रावण, राम तेरे मन में हैं
राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं


राम तो घर घर में हैं, राम हर आँगन में हैं
मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में हैं
 ...
इस गीत में राम के हर उस व्यक्ति में होने की बात की गयी है जो स्वयं अपने में से बुराइयों को निकलता है। सामाजिक मूल्यों में गिरावट आ रही है, न सिर्फ सामाजिक पारिवारिक बल्कि रिश्ते भी गौण हो रहे है। परिवार और समाज फेसबुक और ट्विटर पर सिमिट गया है। समाज जाए भाड़ में, मेरे लिए अच्छा क्या होगा, वही सही है। रावण के लिए भी उसकी लंका ही सब कुछ थी। इस प्रकार के रावणों को मारने के लिए वाहर से, आयात किये हुए राम की जरूरत नहीं है। हम सिर्फ क्षणिक लाभ की न सोचें, अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सीखें, अपने मित्रों, पड़ोसियों से कोई प्रतियोगिता का भाव न रखे, उनसे बैर न रखे। समाज में व्याप्त बुराइयों से लड़ने की स्वयं ठाने। गाँधी जी भी का प्रसिद्द कथन है-"परिवर्तन की शुरुआत हम से ही होती है...", जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर ने भी कहा था, अप्पदीपो भव अर्थात् आत्मदीप बनें। स्वयं को प्रकाशित करें, अपना रास्ता स्वयं बनावें। जो भी बुराइयां हम में हैं उनको कम से कम करने का प्रयास करे तो शायद हम अपने अन्दर के रावण पर कुछ नियंत्रण रख सकते है।
From:- http://amitantarnaad.blogspot.in/2012/10/blog-post_22.html

आम आदमी की पार्टी- द मेंगो पीपुल पार्टी

आम आदमी की पार्टी- द मेंगो पीपुल पार्टी


राजनैतिक व्यवस्था परिवर्तन के लिए जद्दोजहद, एक प्रयास...
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में आज का दिन यानी 26 नवम्बर कई कारणों से याद किया जाता है। इसी दिन 1949 को हमने अपने संविधान को आंशिक रूप से अपनाया था, उसे अंगीकृत किया था। कडवी यादो के रूप में इसी दिन 2008 में देश ने आर्थिक राजधानी मुंबई पर हमला भी देखा। और आज 26 नवम्बर 2012 को अरविंद केजरीवाल ने अपने साथियों और देश की जनता के साथ एक नयी पार्टी बना डाली। वैसे तो उन्होंने पार्टी बनाकर राजनीति में कूदने की घोषणा 2 अक्टूबर को ही कर दी थी लेकिन पार्टी का नाम और पार्टी के संविधान की औपचारिक घोषणा के लिए आज का दिन चुना गया था। तो इस प्रकार भारतीय राजनीति में एक और राजनितिक दल का जन्म हो गया। अभी तक भारत में 6 राष्ट्रीय राजनितिक और सैकड़ो पंजीकृत क्षेत्रीय 
दल। इसी सूची में एक नाम आने वाले दिनों में और जुड़ जाएगा जब ये पार्टी चुनाव आयोग के पास पंजीकृत हो जायेगी।
 इस पार्टी का जन्म पिछले दो साल तक चले भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के बाद हुआ। तीनो अनशन-धरना-प्रदर्शनों के दौरान संसद विधानसभाओं में बैठे तथाकथित जन प्रतिनिधि आन्दोलनकारियों को संसद में आने की चुनौती देते रहे। अंत में थक-हार कर ऐसा ही करना पड़ा अरविन्द और उनके साथियों को। स्वतंत्रता आन्दोलन में सुभाष चन्द्र बोस के सहयोगी रहेऔर आज़ाद हिन्द फौज के कप्तान अब्बास अली ने मसाल जला कर पार्टी की औपचारिक शुरुआत की। पार्टी के समर्थकों को जीवन में कभी भी घूस न देने की शपथ दिलाई गयी। साथ ही किसी भी प्रलोभन में न आकर हर चुनाव में मतदान की शपथ भी दिलवाई गयी। आन्दोलन की भीड़ को देख कर एक क्षण के लिए ऐसा लगा मानो भारत एक नयी सुबह के लिए अंगड़ाई ले रहा हो, एक नयी सुबह में जागने के लिए उठ रहा हो। भीड़ का जोश देखते ही बनता है, एनएसजी कमांडो सुरिंदर सिंह जब बोलने के लिए खड़े हुए और कुमार विश्वास ने जब 8 कमंडोस का नाम लेकर इनको सलाम करने के लिए कहा तो भीड़ में शायद ही ऐसा कोई हाथ होगा जो इन वीरों को सलाम करने के लिए न उठा हो।

जब से अरविन्द ने राजनैतिक पार्टी बनाने की घोषणा की है तभी से राजनैतिक मामले के (स्वतंत्र) विश्लेषक ये कहते रहे हैं की सिर्फ भ्रष्टाचार के मुडी पर कोई पार्टी नहीं बनाई जा सकती और अगर जैसे-तैसे बन भी गयी तो सिर्फ एक मुद्दे पर चुनाव नहीं जीते जा सकते। मुझे इस तर्क में हमेशा से ही संशय रहा है। जहाँ जाति और धर्म जैसे मुद्दों पर न सिर्फ चुनाव लड़े जाते है बल्कि जीते भी जाते है, फ्री लैपटॉप, फ्री मंगलसूत्र, फ्री साईकिलें सत्ता के समीकरण बदल देती हैं वहां क्या वास्तव में एक सफल, आदर्श राजनैतिक दल के गठन के लिए विदेश नीति और आर्थिक नीति जैसे जटिल विषयो पर भी स्पष्ट रूप रेखा घोषित करनी पड़ती है। इतना कहने के बाद भी मुझे भारतीय आम मतदाता की बुद्धिमत्ता पर किसी प्रकार की शंका नहीं है, लेकिन मुझे लगता है यदि एक आम जन भ्रष्टाचार जैसे सीधे और सरल मुद्दे को नहीं समझ प् रहा है तो उन गंभीर मुद्दों का उस पर क्या प्रभाव पड़ेगा जो उसके जीवन से प्रत्यक्ष सम्बंधित नहीं है। लेकिन फिर भी पार्टी के दृष्टिकोण पत्र में आर्थिक पक्ष पर भी हल्की सी चर्चा की गयी है उसे देखकर लगता है की देश के प्राकृतिक संसाधनों पर पुनः सरकारी उपक्रमों का नियंत्रण होगा और सरकारी तंत्र की चाबी टाईट करने के लिए लोकपाल तो है ही!!
इस पार्टी में जो ध्यान देने योग्य बातें है वे है-
गाँधी जी को याद करते हुए मूल्यों और सिद्धांतो की राजनीति करने की बात आम आदमी पार्टी करती है। जिसके लिए राजनीति को अध्यात्म से जोड़ने की भी एक झलक इस पत्र में मिलती है। 
सत्ता का विकेंद्रीकरण- इसमें ग्रामसभा को मजबूत करने की बात कही गयी है (अभी ग्राम पंचायत को अधिकार दिए गए है वे भी बहुत कम है।)
जबावदेही को पांच सालों तक न सहते हुए इसे दिन प्रतिदिन के लिए सुनिश्चित किया गया है। भ्रष्ट प्रतिनिधियों को हटाने का अधिकार सीधे जनता को देने की बात कही गयी है।
न्याय को त्वरित रूप से आम जनता के गली-मोहल्लों और उनके घर तक मुफ्त पहुचाने की बात भी इस पत्र में की गयी है।
धर्म के मामले में पुरानी वचन बद्धता दोहराते हुए जातिगत रिजर्वेशन को जरूरत मंदों तक पहुचने का लक्ष्य रखा गया है। महा-दलित, अति-पिछड़े, आदिवासियों और घूमंतू समुदाय पर विशेष जोर है।
शिक्षा के लिए सरकारी स्कूलों को सुधारकर निजी स्कूलों की तरह बनाने की बात पर बल दिया गया है।
राईट टू रिकाल और राईट टू रिजेक्ट की मांग साथ चल ही रही है।
महगाई पर नियंत्रण के लिए पेट्रोल-डीजल-गैस के दाम सस्ते करते हुए सट्टेबाजो और विचौलियों पर नियंत्रण की बात भी है।
पार्टी के संचालको ने और समर्थकों ने किसी एक व्यक्ति की जिंदाबाद न करते हुए उस आम आदमी की जिंदाबाद की जिसको अभी तक सभी राजनैतिक दल अंतिम व्यक्ति के कल्याण की चासनी चटा कर अपनी झोली भरते रहे हैं।
एक परिवार के एक से अधिक सदस्य को चुनाव न लड़वाने की बात भी इस पार्टी की तरफ से की जा रही है।
 इसके अलावा उन सभी मुद्दों पर राय राखी गयी है जो आम आदमी के जीवन से जुड़े है।

आन्दोलन के मिजाज़ से ये स्पष्ट है की आम आदमी पार्टी की पहली परीक्षा 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में होगी।
From:- http://amitantarnaad.blogspot.in/2012/11/blog-post.html

अगर पार्टी बनाने में और देर होती तो देश बिक जाता:अरविंद केजरीवाल

अगर पार्टी बनाने में और देर होती तो देश बिक जाता:अरविंद केजरीवाल

देश में 2014 के लिए मोदी और राहुल की बहस के बीच हमने अपने मित्र आनंद दत्त के साथ बात की एक्टिविस्ट से राजनीति में आये 'आप' के संयोजक अरविंद केजरीवाल से और उनसे पार्टी के कुछ कार्यक्रमों और देश की राजनीति के बारे में विस्तृत चर्चा की. प्रश्नावली बनाने में श्रीश चन्द्र जी के सहयोग के लिए हम उनके आभारी हैं। पेश है उनसे बातचीत...

सत्ता में आने के बाद जनता कैसे निर्णय लेगी?
                                                                               फोटो-आनंद दत्त
एक तो पार्टी से सम्बंधित निर्णय होगे और दूसरे  देश से सम्बंधित, जो पार्टी से संबंधित निर्णय होंगे वो कार्यकर्ताओं से पूछ कर लिए जायेगें जिसका स्ट्रक्चर अभी बन रहा है , ये नयी पार्टी है। जो भाजपा और  कांग्रेस ने पचास-सौ सालों में खड़ा किया वो हमारी पार्टी को छः महीने में खड़ा करना है। एक ढांचा बन रहा है, स्ट्रक्चर बनने के बाद सभी से पूछ कर निर्णय लेगें। FDI जैसे मुद्दे पर पहले कार्यकर्ताओ से पूछ कर निर्णय लिया लिया जायेगा  फिर इसको वेबसाइट आदि पर डाल कर लोगों से राय मांगी जाएगी। इसको लेकर हमने काम शुरु  कर दिया है। आने वाले दिनों में हमारी 100 विशेषज्ञों की  बैठक  होनी है। ढेर सारी समितियां बनायीं जा रही है, जिस से सम्बंधित ड्राफ्ट हमने अपनी वेबसाइट पर भी डाल दिया है जिसको डॉ. योगेन्द्र यादव जी देख रहे है। इसके साथ ही सेमिनार, सभाएं करेंगे और उसमे लोगो के विचारों के अनुसार निर्णय लेगें।

क्या सभी निर्णय जनता से पूछ कर लेगे?
महत्वपूर्ण निर्णय जनता से पूछ कर लेगें, रोज के निर्णय जनता से पूछ कर नही लिए जायेगें। कुछ निर्णय ऐसे होते हैं जो जनता को widespread (व्यापक रूप से) प्रभावित करते है जब की कुछ आंशिक रूप से प्रभावित करते हैं, ऐसे निर्णय जनता पर थोपे नहीं जा सकते। FDI जैसे मुद्दों पर हम वार्डो के आधार पर निर्णय लेंगे।इन वार्डों में जनता बैठ कर निर्णय लेगी। फिर वार्डो  के बहुमत के आधार पर सरकार फैसला लेगी।

विदेश नीति और रक्षा नीति पर भी जनता से पूछ कर निर्णय लिए जायेंगे?
नही, विदेश, रक्षा और वित्त जैसे मुद्दों पर जनता से पूछ कर निर्णय नहीं लिए जायेंगे। यहाँ पर केंद्र सरकार ही निर्णय लेगी।

आपकी पार्टी से चुन कर आये जन-प्रतिनिधि अगर लुटियंस दिल्ली के बड़े-बड़े सरकारी बंगलो में नही रहेंगे, तो फिर इनका (बंगलों) का क्या होगा?
इसके लिए भी जनता से सुझाव लिए जायेंगे लेकिन सच्चाई ये है कि एक तरफ तो 40 प्रतिशत जनता दिल्ली में झुग्गियों में रहती है, एक-एक झुग्गी में 10-10 लोग रह रहे हैं वहीँ दूसरी ओर इतने बड़े-बड़े बंगलों में 2-3 लोग रहते हैं। कुछ न कुछ तो गड़बड़ है। स्वीडन का प्रधान मंत्री बस में सफ़र करता है और भारत जैसे गरीब देश का प्रधान मंत्री 20-25 गाड़ियों के काफिले में सफ़र करता है। 3-4 बेड-रूम का फ्लैट पर्याप्त हैं संसद-विधायकों के लिए।

भारत में भ्रष्टाचार कभी प्रमुख मुद्दा नहीं रहा, भ्रष्टाचार एक मुद्दा तो हो सकता है पार्टी बनाने/चुनाव जीतने के लिए लेकिन एकमात्र मुद्दा नहीं।
देश में कोई एक पार्टी अगर भ्रष्टाचार को ख़त्म कर दे तो अन्य जो मुद्दे हैं उनका समाधान अपने आप हो जायेगा। (उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के चुनावों में...)
उत्तर प्रदेश में लोगों के पास विकल्प नहीं था और उतराखंड में खंडूरी की वापसी और लोकायुक्त के कारण ही भाजपा इतनी टक्कर दे पायी।

2013 में दिल्ली के अतिरिक्त पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होने है, आपकी पार्टी केवल दिल्ली में ही चुनाव लड़ेगी या अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ेगी? चूंकि आपको 2014 में लोक सभा चुनाव लड़ना है तो आपको कम से कम जितने राज्यों में हो सके उतने में तो अपनी पार्टी का परिचय दे देना चाहिए।
 इसका फैसला लेना अभी शेष है। उन राज्यों में हमारी पार्टी की कमेंटियां निर्णय लेगीं।

इंडिया टुडे-नीलसन सर्वे में लोग आपको नेता की तुलना में एक्टिविस्ट के रूप में ज्यादा देखना पसंद करते हैं, लोगों का मानना है कि पार्टी बनाने से आपकी विश्वसनीयता कुछ कम हुई है। क्या आपको लगता है कि पार्टी बनाने में कुछ जल्दबाजी कर दी?
तब तक भारत ही नही बचता। ये लोग देश को बेच देते। आयरन ओर खाली हो रहीं हैं, वैलाडील्हा की कोयले की खाने खाली हो गयी है, गोवा आयरन की खाने खाली हो गयी, छत्तीसगढ़ नदी बेच दी, हिमाचल प्रदेश में पहाड़ बेंच दिए। थोड़े दिनों में ये राष्ट्रपति भवन और संसद भी बेंच देगे। अब और देर नहीं कर सकते है, भारत दांव पर लगा हुआ है।

आपने अनशन से पहले रजत शर्मा को दिए गये एक इंटरव्यू में 2014 में व्यापक परिवर्तन (क्रांति ) की बात की थी। इस वक्तव्य से लगता है कि पार्टी बनाने का विकल्प आपके दिमाग में आ चुका था?
जनता में जो गुस्सा था और अभी भी है उसके हिसाब से हम लोगों का मानना था/है की 2014 का चुनाव कोई सामान्य चुनाव नहीं होने जा रहा है, इसलिए हमने ये कहा था, पार्टी बनाने का कोई  विचार नही था।

वर्तमान में राहुल बनाम मोदी की चर्चा है... (सवाल के पूरा होने से पहले ही बीच में टोकते हुए )
अंडर करेंट को कोई महसूस नही करता, ये मीडिया का पूर्वानुमान है। ये भाजपा और कांग्रेस की अंदरूनी  लड़ाई है। इस बार के चुनाव में देश की सारी  पार्टियाँ  एक तरफ होगी और दूसरी तरफ देश का आम आदमी होगा। लड़ाई जनता और कौरवों के बीच होगी।

गठबंधन की परिस्थितियों में किस पार्टी  के साथ जाना पसंद करेगे?
                                                                              फोटो-आनंद दत्त
गठबंधन में हम विश्वास नही करते। ये सब सत्ता पाने और सत्ता में बने रहने के तरीके है। हम सब इस बारे में नही सोचते. महंगाई के कारण  लोगो के घरो में चूल्हे नही जलते, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा नही मिल पाती। कांग्रेस और भाजपा इन सब के बारे में बात नहीं करती। हम इन्ही मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे। जोड़-तोड़ की राजनीति सत्ता में बने रहने का माध्यम है, हम ऐसा नहीं करेगे।

समर्थन लेने के मुद्दे पर किसका साथ लेना चाहेंगे? (गठबंधन के प्रश्न को दोबारा पूछने पर)
अभी हम इसके (गठबंधन समीकरण ) बारे में सोच नही रहे है। ये बहुत दूर की बात है।

आप एक बाद एक मुद्दे उठाते है उसका कोई समाधान नही हो पाता उससे पहले आप अन्य मुद्दा उठा देते हैं?
बताइए रॉबर्ट वाड्रा को जेल कैसे भेजा जाए। मुकेश अंबानी पर कार्रवाई कैसे/कौन करे? ये कांग्रेस का चलाया प्रोपेगेंडा है कि जब तक एक मुद्दे को न सुलझा लिया जाए तब तक दूसरा मुद्दा नही उठाना चाहिए। रॉबर्ट वाड्रा  के मुद्दे को कोर्ट में सुलझने में 25 साल लग जायेगे, तब तक कलमाड़ी को भ्रष्टाचार करने दिया जाये? कलमाड़ी के मुद्दे को न उठाया जाये? हम तो रोज इन चोरों का मुद्दा उठायेगें।

आप  खुद चुनावी कैरियर की शुरुआत कहाँ से करेगे, लोकसभा से या फिर विधानसभा से?
इसका भी फैसला नही किया गया है। आने वाले समय में पार्टी इस पर फैसला करेगी। ये सारी सत्ता की राजनीति है, कौन लडेगा, कौन नही लडेगा। ये सब सत्ता में आने के खेल है। हमारी पार्टी सत्ता क लिए चुनाव में नही उतर रही है. हम इस देश को बदलने आये है और इस देश की राजनीति बदलने आये है।

समय देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
From:- http://amitantarnaad.blogspot.in/2013/02/blog-post.html

लोकतंत्र

लोकतंत्र की परिभाषाओं पर अगर गौर किया जाए तो अब्राहम लिंकन द्वारा दी गयी परिभाषा-"लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा शासन" शायद सबसे
सटीक और प्रसिद्द है। लोकतांत्रिक प्रणाली के मूल में शासन का उत्तरदायित्य स्वयं जनता का ही आता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो व्यक्ति और समाज के लिए क्या कायदे-कानून होंगे इसका निर्णय जनता ही करती है।


लोकतंत्र-स्वतंत्रता, भागीदारी,विकल्प,अधिकार,प्रतिनिधित्व
लोकतंत्र के दो रूप प्रचलित है एक प्रत्यक्ष और दूसरा अप्रत्यक्ष। लोकतंत्र की सफलता उसमें जनता की भागीदारी पर करती है, उसका स्वरुप भले ही कुछ भी हो। जनता अगर स्वयं शासन  करने में सक्षम हो तो प्रत्यक्ष लोकतंत्र स्थापित हो सकता है लेकिन अगर जनता सक्षम न हो तो  फिर प्रतिनिधि लोकतंत्र ही संभव हो सकताहै। प्रत्यक्ष लोकतंत्र के लिए जनसंख्या आकर का जितना छोटा होगा उतना ही अच्छ रहेगा या फिर किसी बड़े भौगोलिक इकाई पर शासन करने के लिए उसे कई छोटे-छोटे भागों में बांटना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो ये किसी गावों की बहुलता वाले देश में ग्रामसभाओं को मजबूत करने जैसा है। सत्ता को विकेंद्रीकृत कर गांधी जी के ग्राम-स्वराज को लाया जा सकता है। भारत में पेसा-1996 (Panchayat Extension to Scheduled area Act) और फेरा-2006 (Forest Right Act) जैसे कानून इस दिशा में मज़बूत कदम हो सकते हैं। प्रत्यक्ष लोकतंत्र वैसे तो आदर्श स्थिति ही अधिक लगती है लेकिन फिर भी कुछ हद तक इसका प्रतिबिम्ब स्वित्ज़रलैंड में देखने मिलता है जहाँ कानून बनाने, उसमें संसोधन करने और किसी कनून को वापस (हटाने) करने से संबंधी मुद्दों पर जनता की राय ली जाती है। लेकिन वास्तविक रूप से प्रत्यक्ष लोकतंत्र वर्तमान में कहीं नहीं मिलता।

अप्रत्यक्ष लोकतंत्र की आलोचना करता हुआ एक कार्टून
ऐसी स्थिति में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को ही अधिक जन्नौमुखी बनाने की जरुरत है। उसमे जनता की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है। वैसे तो भारत 65-66 साल के अपने इतिहास में कई गौरवमयी लोकतांत्रिक उपलब्धियों को समेटे हुए है लेकिन फिर भी 'लोकतंत्र के मंदिरों' {संसद/विधानमंडल} में बढ़ता बहुबल और धनबल भारत के नागरिकों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से दूर कर रहा है। इस स्थिति को और बिगड़ने से पहले हमे कुछ कदम उठाने की जरूरत है।
भारत के परिप्रेक्ष्य में अगर सुधारों की बात की जाये तो सबसे पहले मतदान को मूल कर्तव्यों में शामिल किया जाए। भले ही कर्त्तव्यों का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य नहीं होता लेकिन फिर भी कर्तव्य एक नैतिक दबाव तो डालते ही हैं। ऐसी ही अनुशंसा 2000 में गठित संविधान समीक्षा आयोग ने भी की थी। 
आर्थिक उदारीकरण के बाद में उच्च/मध्यम वर्ग के आकार में उल्लेखनीय वृद्धि हुयी है जिसकी चुनाव में निर्णायक भूमिका हो सकती है और है भी। ऐसा इसलिए कि एक यह वर्ग तो संख्या के हिसाब से और दूसरा ये वर्ग शिक्षित/जागरूक होने के कारण धर्म या जाति जैसे संकीर्ण मुद्दों से हटकर वोट कर सकता है। लेकिन अभी यह (उच्च/मध्यम) वर्ग दो कारणों से वोट डालने नहीं जाता-एक, वह सोचता है कि उसके पास पर्याप्त संसाधन है और सरकार के कार्यों का उसके जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं है, चुनाव लड़ने वाले से उसका सीधा संबंध नहीं है। फिर क्यों 'झंझट' में पड़ा जाए.!! दूसरा, जैसे-तैसे अगर वह पांच वर्षों में वोट डालने की हिम्मत भी करे तो चुनाव में उतरे प्रत्याशियों की 'आपराधिक पृष्ठभूमि' देखकर वह हताश-निराश होकर घर से नहीं निकलता।

भारतीय लोकतंत्र में चुनावी मुद्दे-आलोचना का कारण
मतदान न करने की इस समस्या से निपटने में (दिल्ली बलात्कार के मामले में गठित) न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति की वह सिफारिश महत्वपूर्ण हो सकती है जिसमें उन्होंने जन प्रतिनिधि कानून-1951 में अबिलम्ब संसोधन करते हुए प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए (सेशन/जिला न्यालय में) व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराये जाने की बात की है, उच्च/सर्वोच्च न्यायलय में अंतिम अपील का इंतज़ार नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा करना स्वच्छ लोगों को राजनीति में आने के लिए प्रेरित  करेगा। दूसरे, अब अगर चुनाव लड़ने वाले सही हों तो जनता का ये कर्तव्य बनता है कि वो हर हालत में मतदान करे। इसके लिए मतदान के सभी संभव माध्यमो का उपयोग हो-पारंपरिक जैसे ईवीएम से मतदान, संचार के आधुनिक माध्यमों का प्रयोग करते हुए इन्टरनेट या एसएमएस से, डाक से मतदान करना संभव बनाया जाए। लेकिन मतदान प्रतिशत अधिक करने के लिए इतना ही काफी नहीं है। दुनिया में लोकतंत्र का सफल उदहारण माने जाने वाले अमेरिका में मतदान  करने के कई विकल्प होते हैं लेकिन फिर भी वहां 1972 के राष्ट्रपति चुनावों से किसी भी बार मतदान प्रतिशत 56-57 से अधिक नहीं रहा है, इस बार ये 57.1 प्रतिशत रहा। जो निश्चित ही अच्छा नहीं कहा जा सकता। भारत के हालात भी सही नहीं कहे जा सकते। यह 2009 लोकसभा चुनावों में 59.7% रहा। लोकसभा के लिए भारत में मतदान का अधिकतम प्रतिशत 1984 के चुनावों में 63.56 रहा था। अब प्रश्न उठता है- फिर क्या किया जाए?

हार नहीं, रार नई ठाननी होगी
इसके जबाव के लिए हमें थोडा कठोर होने की जरूरत है। मसलन लोकतंत्र  दो या दो से अधिक विकल्पों में से किसी एक सर्वश्रेष्ठ को चुनने की आज़ादी देता है और अगर आपको उन विकल्पों में कोई भी उपयुक्त नहीं है तो 'सभी को नकारने" का विकल्प भी होना चाहिए। (सभी को नकारने का विकल्प ईवीएम में नहीं है लेकिन पीठाशीन अधिकारी से चुनाव नियम सहिंता-1961 के नियम 49-O के तहत कोई मतदाता फॉर्म भर कर ऐसा कर सकता है). अब यहां कोई ऐसा विकल्प नहीं है जिसकी संभावना बनती हो। इतना होने के बाद भी अगर कोई लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में भागीदारी कर अपने कर्त्तव्य का निर्वहन नहीं कर सकता तो राज्य को ये शक्ति होनी चाहिए वो ऐसा करने वालों को कुछ सार्वजनिक सेवाओं से वंचित कर सके। जैसे उसे सब्सिडी का लाभ न दिया जाए। यह पेट्रोलियम या सार्वजनिक वितरण से संबंधित हो सकती है। हालांकि ये विकल्प थोड़े मुश्किल लग सकते हैं और ये व्यवहार्यता की कसौटी पर असहज भी हो सकते हैं लेकिन ऐसे ही अन्य संभावित विकल्पों पर विचार किया जा सकता है।
'लोक' भागीदारी हो तो 'तंत्र' में परिवर्तन संभव है
लोकतंत्र की सफलता के लिए सिर्फ जनता के जागरूक होने का इंतज़ार नहीं किया जा सकता। ऐसा नहीं की जागरूकता महत्व पूर्ण नहीं है लेकिन इसके लिए लम्बा इंतज़ार करना पड़ता है। अगर इंतज़ार किया गया तो चीजें और बिगड़ सकती हैं। कहीं ऐसा न तो कि तब तक लोकतंत्र बहुबल या धनबल की कठपुतली बन जाए। हमें हर हाल में लोकतंत्र के इन मंदिरों को पवित्र रखना है। 'संस्थागत पवित्रता' {Institutional Integrity- Hon,ble SC In PJ Thomas Case} सुनिश्चित करने के लिए सुधारों की ज़िम्मेदारी संसद और विधानसभाओं में बैठने वाले हमारे प्रतिनिधियों की तो है ही, लेकिन जनता भी अपने को कर्तव्यों से मुक्त नहीं कर सकती आखिर जो सुधार हम देखना लाना चाहते हैं उसकी शुरुआत हमसे ही होनी चाहिए। लोकतंत्र के मूल में तो जनता ही है।
Copied from :- http://amitantarnaad.blogspot.in/2013/07/blog-post.html

Tuesday, September 24, 2013

बस हमें बात करनी है आपस में ...


मीडिया में, अखबार में, झूठ प्रचार करने के बाद अब दिल्ली में ...
पैसे दिये हुए लोग भी इधर उधर ...जनता को धोखा देने में लगे है ...कल ही मिला था एक ...
बहुत बहस कर रहा था ...की शीला ताई अच्छी है ..बहुत देर भीड़ के बीच बहस के बाद ....ये बात भीड़ को साफ़ गयी की ...उस व्यक्ति को किसी ने 60,000 रुपये दिए है ...उसकी अपनी कॉलोनी में ...अनपढ़ गरीबो को धोखा देने के लिए ...
बहस के दौरान कारण पूँछने पर की ...क्यों अच्छी है शीला ...एक भी जवाब नहीं था ...
उसका सिर्फ कहना था की ये सड़क बनवा दी ...
तो आप बताओ की ....सड़क बनवा कर क्या किसी ...नेता मंत्री ने ...अहसान किया है जनता पर ???
नहीं यही तो उनका काम है ..इसी काम के लिए तो देते है ..उनको हम ताकत और पैसा ....फिर अहसान कैसा ????

आगे बहस करने पर पता चला ...की वो व्यक्ति शीला की इतनी तारीफ़ सिर्फ इसलिए कर रहा था ...क्योंकि उसके भाई की नौकरी लगवा दी थी ...NDMC में जुगाड़ से ...

उसके ये बोलते ही जब मैंने जनता से पूंछा की ..आपमें से कितनो के भाई की नुकरी लगवाई गयी ...तो जवाब था ....किसी के नहीं ..
मैंने अगला सवाल किया ..फिर सिर्फ इसके भाई की ही नौकरी क्यों लगी ...क्या वो बहुत तेज़ दिमाग का और काबिल है ...
तो जनता ने जवाब दिया ...की
ये लगा है की ..इसको पार्षद की टिकट मिल जाए ....इस इलाके से ...इसलिए ये सब बोल रहा है ...रही बात इसके भाई की तो ...वो तो एक नंबर का दारू बाज़ और गुंडा टाइप है ....
ख़ास बात ये थी ....की ऐसा मैंने नहीं बोला था ....
वहाँ की जनता ने ही बोला था ...
और बस फिर क्या ....
निकल लिए ...ये चापलूस ..और जनता को गुमराह करने वाले छुट भैये नेता जी ...
ये चमचे है गुंडों के ....
पर ये कुछ भी सच को दबा नहीं सकते ....छुपा नहीं सकते ....
आम आदमी ...को सब पता है .....
बस आम आदमी को ...आम आदमी से बात करनी है ...और उस सच को सभी को बताना है ...
कोई क्रांति ...कभी किसी मीडिया की ...मोहताज़ नहीं रही ....
किसी क्रांति को आज तक कोई ...झूठ बोल और धोखा दे रोक नहीं पाया है ....
इस बार भी कामियाब नहीं होंगे ये ...ये सब ...
बस हमें बात करनी है आपस में ...एक दुसरे को सुने ...समझे ....और समझाए ....नागेन्द्र शुक्ल
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=599188100146748&set=a.363919133673647.88835.363917453673815&type=1&theater

जमीन पर ...काम करो ..मजा आ जाएगा ...विस्वास करो ....


Just reached, a long tiresome day!!!!...But it was Great...
Yes i, donated my weekend to AAP...you missed....next will come...
दोस्त, कल ही तो पता चला था की...दिल्ली की,....
दिल्ली की सडको में इस समय क्रांति चल रही है ...तो आज अपने कई दोस्तों के साथ सोंचा क्यों ना इस बार आम आदमी पार्टी वालो के साथ में काम करके देखा जाए ....
facebook पर तो बहुत पढ़ा ...ऐसा वैसा ....
अब दिल्ली में है ...
अब है तो ,...क्यों खुद ही बाहर निकल पता करे ....देखे ...ये अरविन्द की कोई इज्ज़त विज्जत है की नहीं जमीन पर ....तो बस आ गए ...जमीन पर काम करने देखने ....
और उन दोस्तों के साथ आज मेरा भी रविवार ..."आपके" नाम रहा ...इतनी देर रात घर आ ...थकी ..जोरदार नीद आने से पहले ....ख़ुशी है ...की कुछ किया ....
कुछ किया ...देश के लिए ...समाज के लिए ....अरे ...आपके लिए ....
सच पूंछो ...बहुत मजा आया ...

मेट्रो स्टेशन पर बच्चो की भीड़ ने घेर लिया ....की टोपी दो ....हमने कहा दे तो देंगे ...पर ये ध्यान रहे ...इस टोपी का सम्मान करना ...ये एक विचार धारा है .....कोई लिबाज़ नहीं ....
पता नहीं ...मेरी बात को कितनी तवज्जो देंगे ..ये बच्चे ....
पर ...भूलेंगे भी नहीं ..की ये टोपी ..ऐसे नहीं मिलती ....कुछ करना पड़ता है उसके लिए .....

आज तो निकल गया ....अपना अगला शनिवार - रविवार ....दान करके देखो ....काम करो हमारे साथ ....
घूमो दिल्ली की सड़को ...और जानो इतिहास ....
दिल्ली की गलियों ....कई कच्चे घरो .......पुराने क्रन्तिकारी मिलते ....
सच जमीन पर ...हीरे भी मिलते है ....और कांच भी ....
पर जब मिलते है ..चमक दोनों की बढ़ा ही देती है ..मेहनत ..आपकी ....

जमीन पर ...काम करो ..मजा आ जाएगा ...विस्वास करो ....
और एक बात ....
एक कार रुकी उसमे बैठे दो लोगो ने पूंछा की पैसे कितने मिलते है ....????
अब इन मूर्खो को ये बताना बेवकूफी ही तो थी ...
की हेमंत अमेरिका से नौकरी छोड़ कर आया है ......
और अमित जर्मनी से .....
सोंचने दो ....जो सोंचना है ....हमें तो काम करना है ....देश को बदलना है ...है की नहीं ??????......नागेन्द्र शुक्ल
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=599146980150860&set=a.363919133673647.88835.363917453673815&type=1&theater
 

सिर्फ 2 मिनट शांत रहे ....मुझे शुरू करने दें ....


बाँट दिया इस जमीन को, चाँद सितारों का क्या होगा?
नदियों के कुछ नाम रख दिये , बहती धारों का क्या होगा?
मेरे स्कूल में एक टीचर हुआ करते थे ...अब सरकारी स्कूल था तो बच्चे class में ही बैठ बड़ा शोर करते थे ...शायद ऐसा ही एक culture था ....शोर से परेशान हो वो कहते थे ....
मैं यहाँ पूरी भीड़ को पढ़ाने नहीं आया ...
मैं पढ़ाने आया हूँ ..उन 10 / 5 बच्चो को जो पढना चाहते है ....उनको नहीं जो ,...
सिर्फ समय बर्बाद करने या काम से बचने के लिए स्कूल आते है ..
वो कहते थे ...सिर्फ 2 मिनट शांत रहे ....मुझे शुरू करने दें ....
फिर जिसे लगे की मैं उसे पढ़ा रहा हूँ ...कक्षा में रुके ....और जिसे लगे उसे नहीं पढ़ा रहे ...वो बाहर जा सकता है ....
पर कमाल के होते थे वो 2 मिनट ....फिर ना गले आवाज निकलती थी ...और ना ही बाहर जाने का मन ....

पिछले साल 2 October की छुट्टी वाले दिन सोंचा ...चलो एक बार अरविन्द को सुनते है ....चला गया उनकी मीटिंग में ....तब उस मीटिंग में बहुत कम भीड़ थी 2/3 सौ ....
उस दिन ध्यान से सूना ....
फिर कई दिन सोंचा ....
की क्या अरविन्द ...हमें पढ़ा रहे थे ...
जवाब मिला हाँ ...याद आयी उस टीचर की ....
की अगर उसको दो मिनट ना ....दिए होते तो ....शायद आज ...दो ...दुनी चार ....ना पता होता ....
और अब शुक्रिया उस 2 October को जिसमे अरविन्द को सुना ....सोंचता हूँ ...अगर ना जाता तो कभी ...
कभी पता ही नहीं चलता की ...
देश क्या है ...देशवासी क्या ?....और देशभक्ति ...तो शायद अरविन्द के सिवाय किसी को पता ही नहीं ...............नागेन्द्र शुक्ल
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=630878806935254&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater
 

प्रायोजित मीडिया के दिल्ली-चुनाव सर्वेक्षणों को सादर समर्पित :

प्रायोजित मीडिया के दिल्ली-चुनाव सर्वेक्षणों को सादर समर्पित :
“एक रोज़ मुर्गे जी जाकर कहीं चढ़ा आए कुछ भांग, सोचा चाहे कुछ हो जाए आज नहीं हम देंगे बांग,
आज ना बोलेंगे कुकड़ू-कूँ, देखें कैसे होगी भोर, किन्तु नशा उतरा तो देखा धूप खिली थी चारों ओर... “

मित्रों, ऐसा ही कुछ परिदृश्य उन महानुभावों के साथ नवम्बर में होने वाला है, जो दिन-रात आम आदमी पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता और इसके सरकार बनाने के दावों को नकार रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के इन दावों का आधार, देश के जाने-माने और प्रतिष्ठित चुनाव-विश्लेषक AAP के योगेंद्र यादव जी के नेत्रत्व में किए गए सर्वेक्षणों के परिणाम हैं। योगेंद्र जी ने इन परिणामों की विश्वसनीयता पर संदेह करने वालों को सादर आमंत्रित किया है, आयें और इन सर्वेक्षणों से संबन्धित रॉ-डाटा को खुद चैक करें, और साथ ही दूसरे सर्वेक्षणों से ऐसी ही पारदर्शिता दिखाने की अपेक्षा की है । “साँच को आंच नहीं” http://www.youtube.com/watch?v=an_SsxVyWLs

प्रश्न 1 : लेकिन दिल्ली के छात्र-चुनावों में तो ABVP(BJP) जीती ?
उत्तर : यहाँ AAP के छात्र संगठन ने चुनाव में हिस्सा ही नहीं लिया क्योंकि उनका एकमात्र लक्ष्य दिल्ली के आगामी विधान सभा चुनाव हैं।

प्रश्न 2 : लेकिन हम ये कैसे मान लें कि आज का युवा-वर्ग/छात्र AAP का समर्थन करता है ?
उत्तर : हाल ही में हुए दो मौकों पर ऐसा सिद्ध हुआ, एक टाइम्स ग्रुप द्वारा आयोजित “माइंडरॉक्स-यूथ-सम्मिट”, दूसरा NDTV द्वारा आयोजित “वोट का दम”। इन दोनों उपलक्ष्यों पर युवाओं की पहली पसंद थी AAP, ना ना मेरी बात ना मानें, लिंक देखकर स्वयं निर्णय लें।
http://www.youtube.com/watch?v=s9EWkB9ubXY&feature=share
http://www.ndtv.com/video/player/vote-ka-dum/video-story/291343

प्रश्न 3 : तो क्या दिल्ली में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का प्रभाव नहीं है ?
उत्तर : 67 साल के लोकतन्त्र के बाद मतदाता को विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अंतर करना आता है। दिल्ली वासियों को पता है आगामी दिल्ली-विधानसभा चुनाव मोदी-राहुल के बीच नहीं हैं बल्कि अरविन्द केजरीवाल, हमेशा गायब रहने वाले विजयगोयल और बदनाम शीलादीक्षित के मध्य हैं । अगर भाजपा इसे मोदी के नाम पर लड़ने का प्रयास करेगी तो ये ऐसा ही होगा कि पैसे लिए कलर टीवी के नाम पर, दे दिया ब्लैक&व्हाइट टीवी। (वैसे आपकी जानकारी के लिए, SRCC जहां मोदीजी ने बहु-चर्चित भाषण दिया था, ABVP(BJP) वहाँ से छात्र चुनाव हारी है)

प्रश्न 4 : कहीं "आप" को वोट देने से वोट खराब न हो ?
उत्तर : अपराधियों, बलात्कारियों और भ्रष्टाचारियों को दिया जाने वाला वोट अच्छा होता है?

प्रश्न 5 : तो क्या वास्तव में आम आदमी की सरकार बनेगी ?
उत्तर : हाँ, ऐसे नहीं कह रहे, इनकी जन सभाओं में मिलने वाले असीम जन समर्थन ने दिशा तय कर दी है।
यदि आप दिल्ली में रहते है तो स्वयं इनकी रैली में जा कर देखे। यदि समय ना हो तो आपके जो रिश्तेदार - दोस्त दिल्ली में रहते हों उन्हें फ़ोन कर पूंछे, हाँथ कंगन को आरसी क्या ..... खुद देखें, सुने, बात करे और निर्णय लें।
- आम आदमी, अभीष्ट

http://www.facebook.com/photo.php?fbid=599773856754839&set=a.363919133673647.88835.363917453673815&type=1&theater

दिल्ली जल बोर्ड ने माना है की बिल में गड़बड़ है और 30% की छूट देने की घोषणा की

वैसे ये आपको किसने बताया था की दिल्ली में पानी के मीटर, सिर्फ पानी से नहीं,... हवा से भी चलते है?
बताया तो ये अरविन्द जी ने ही था ...है की नहीं ?...
वैसे ये काम किसका था ?....जिसका था वो क्या कर रहे थे ...और आज भी क्या करने में लगे है ?...
आप खुद पता करो ....
ये इसका एजेंट ..वो उसका एजेंट ...सब बकवास ...सच तो सिर्फ इतना है ...
और इस बात से ये सच ...सिद्ध होता है की ...
अरविन्द - आम आदमी पार्टी ...एजेंट है ...पर सिर्फ जनता की ....
खैर ....अच्छी खबर ये की ...
"दिल्ली जल बोर्ड ने माना है की बिल में गड़बड़ है और 30% की छूट देने की घोषणा की"....

अजीब है वो ....जो विधान सभा और संसद में बैठ ...ऊँघते रहते है ...और जनता के सामने रोते रहते है ...
कुछ करते नहीं ...सिर्फ रोना रोते है ...हर बात का एक जवाब ...
की हमारे पर सत्ता नहीं ...हम क्या कर सकते है ....
अरे क्या घास छीलने के लिए ...विधान सभा में हो ...

अरे जनता के मुद्दे उठाने के लिए ....जनता को सच बताने के लिए ..कौन सी सत्ता चाहिए ?...
जो विपक्ष में बैठने के बाद भी जनता के हित के लिए ....
जनता की बात को सच्चाई से नहीं उठा सकते ...
चुनाव आने पर ..कहते है ...
सत्ता दे दो ...क्यों दे दे ?.....
क्यों दे दे सत्ता ...जनता ऐसे नाकारो को ?....

अरे बीजेपी और गोयल साहब ...जनता के काम करने के लिए ...कोई सत्ता नहीं ...नियत चाहिए ..
पर आपको क्या पता ....क्योंकी ...आप लोग तो ना कभी सत्ता में होते है और ना ही विपक्ष में ...
दोनों स्थिति में ....जनता को चूना लगाते हो ..मिल्झुल कर ...
पर अब नहीं ....
अब जनता जाग चुकी है .....साफ़ नज़र आती है ...तुम्हारी और इनकी राजनीति ....
रहने दो ..आप लोग से कुछ नहीं हो पायेगा ....अब जनता खुद कर लेगी ....
अब उसे स्वराज पता है ....अब उसके पास ..उसका अपना संगठन है .....आम आदमी पार्टी .....

ये बता दे ..इन राजनीती के दलालों को .....की अब देश में ...असली राजनीति होगी ...जनता की राजनीति होगी ...मुद्दे की राजनीति होगी ....
मैं ..मेरी ..तू ..तेरी ..बहुत हो चूका ....
अब होगा public ka direct action ,.....
जब बनेगी दिल्ली में ...."आप" की सरकार ......नागेन्द्र शुक्ल
http://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/Delhi-Jal-Board-admits-error-gives-30-rebate-on-bills/articleshow/22902589.cms

Dr. Kumar's Words

बाँट दिया इस जमीन को, चाँद सितारों का क्या होगा?
नदियों के कुछ नाम रख दिये , बहती धारों का क्या होगा?

शिव की गंगा भी पानी है, काबे ज़मज़म भी पानी है,
मुल्ला भी पिए पंडित भी पिए, पानी का मज़हब क्या होगा?

इन फिरकापरस्तों से पूछो क्या सूरज अलग बनाओगे?
एक हवा में साँस है सबकी, क्या हवा भी नयी लाओगे?

नस्लों का करे जो बटवारा रहबर वो कौम का ढोंगी है,
क्या खुदा ने मंदिर तोडा था? या राम ने मस्जिद तोड़ी है
++++Dr. Kumar's Words++++++++++++++


"दोनों ही पक्ष आए हैं तैयारियों के साथ
हम गर्दनों के साथ हैं, वो आरियों के साथ"
'सच के रास्ते में कठिनाइयाँ आती हैं'- ये सुनने में जितना सरल लगता है, जीने में उतना ही कठिन। पिछले कुछ दिनों से मेरे खिलाफ चल रहे षड्यंत्र की अगली कड़ी में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा एक नया संपादित विडियो जारी किया गया है, जिसमे मुझे सिख समुदाय के बारे में बोलते हुए दिखाया गया है।
इसी षडयंत्र के अन्तर्गत पहले मुझे 'हिन्दू धर्म के खिलाफ' और उसके बाद 'इस्लाम के खिलाफ' बताने की कोशिश की गई। सबसे पहले मै पुनः माफ़ी मांगता हूँ, यदि मेरी बात से किसी की भी धार्मिक भावना को ठेस पंहुची हो। यंहा पर मै यह भी कहना चाहता हूँ कि मै हर धर्म का बराबर सम्मान करता हूँ और किसी भी धर्म के प्रति मेरे मन में कोई दुर्भावना नहीं है। ये वीडियो 8-10 वर्ष पुराने कवि-सम्मेलनों के हैं। यदि मैंने किसी कवि-सम्मलेन में पचास हज़ार की भीड़ के सामने कोई अनुचित बात कह दी होती, तो क्या मुझे उसी समय जनता की कड़ी प्रतिक्रिया का सामना नहीं करना पड़ता? निश्चित है, कि कवि-सम्मलेन सुनने आई जनता में हर धर्म-मज़हब के लोग होंगे। यदि मैंने दुर्भावना से किसी धर्म के बारे में कोई आहत करने वाली बात कही होती, तो क्या उस समुदाय के लोगों ने वहीँ सवाल नहीं खड़े किये होते? क्यों इतने वर्षों बाद मेरे दोस्तों और मेरे प्रशंसकों को मेरे खिलाफ करने का प्रयास शुरू हो गया है? जो भी हो, मुझे इस बात से बल मिला है कि मेरे मित्र, प्रशंसक, और मुझे देखने-पढने-सुनने वाले आप सब ने पिछले विडियो दुष्प्रचार के दौरान भी सच्चाई को समझा और मेरे साथ रहे, एक दूसरे के साथ रहे, देश के साथ रहे और इनका षड्यंत्र कामयाब नहीं होने दिया।

रही इस षड्यंत्र और इसके पीछे लगे षड्यंत्रकारियों की बात, तो मै स्पष्ट कर दूँ कि मेरे खिलाफ चाहे कितने भी हमले सियासत की ओर से होते रहें, मै जिस काम में लगा हूँ और जो करने की ठानी है, उस रास्ते में किसी को भी रूकावट नहीं बनने दूंगा, क्यूंकि मै सच के साथ हूँ और मेरी लड़ाई जारी रहेगी।
सरकार और उसके सफेदपोशों की वंदना में गीत, और उनके भाषण लिखने वाले दर्ज़नों कवि अलग-अलग राज्यों में सरकारी सम्मान, पद और लाल-बत्ती तक के हकदार बने हुए हैं। मुझे नहीं बनना, क्योंकि "किसी का क़द बढ़ा देना, किसी के क़द को कम कहना// हमें आता नहीं ना-मोहतरम को मोहतरम कहना". जो सरकारें मिल कर आज़ादी के 67 वर्षों बाद भी देश के लोगों का भोजन-सुरक्षा-बिजली-पानी सुनिश्चित नहीं कर पाई, और अपने-अपने भण्डार भरने के लिए देश को ताक पर रख दिया, उनका यश-गान कैसे लिख दूं मैं? सरकारें और राजनेता कवियों को मुंह खोलने के बदले पुरस्कार, सम्मान और लाल-बत्ती देते हैं, मुझे मुंह बंद रखने के लिए इन सब की पेशकश की गई, और न मानने पर धमकियाँ मिलीं, और अब यह षड्यंत्र। आन्दोलन से जुड़ने से पहले भी, और उसके बाद भी मैंने कभी सरकारी कवि सम्मेलनों में शिरकत नहीं करनी चाही। मुझे अपने लिए किसी सरकारी सर्टिफ़िकेट की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मेरा संवाद सीधे आपसे है और मेरी हर लड़ाई के लिए इतना ही काफी है।
"सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में रहे
शाखों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दो कि औकात में रहे" -(राहत इन्दौरी)
http://www.youtube.com/watch?v=eg91xhetHxM

Wednesday, September 18, 2013

कौन है कांग्रेस की असली "B-टीम"?

कौन है कांग्रेस की असली "B-टीम"?
वो जो कांग्रेस के गले की हड्डी बन गयी है या वो जो विपक्ष में बैठ कर सोती रहती है और कांग्रेस को मनमानी करने देती है?
1) AAP (आम आदमी पार्टी) का सबसे मजबूत प्रत्याशी शीला दिक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है (अरविन्द केजरीवाल), क्या बीजेपी विजय गोयल को लडवाएगी शीला के खिलाफ ताकि शीला हारे इस बार? हम तो शीला को हराना चाहते है पर बीजेपी नहीं.

2) चाहे केंद्र हो या दिल्ली आज तक कांग्रेस के भ्रस्टाचार को सिर्फ AAP या CAG ने ही उजागर किया है. ऐसा तो हो ही नहीं सकता की बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी को इन सब की जानकारी न हो. पर वो लोग चुप चाप बैठे रहे. बेशक अपना हिस्सा ले कर चुप बैठे है. हाँ जब AAP ने या CAG ने भ्रस्टाचार उजागर कर दिया तब जा कर उस पर बोलना चालू किया.

3) कितने बीजेपी शाशित राज्यों में 1 भी कांग्रेस के नेता को भ्रस्टाचार के मामले में अभी तक जेल भेजा गया? 1 को भी नहीं. उस ही तरह 1 भी बीजेपी के भ्रष्ट नेता को कांग्रेस शाशित राज्यों में जेल नहीं भेजा गया. दोनों पार्टी की मिली भगत है आपस में.

4) दिल्ली में सरकार कांग्रेस की है और दिल्ली महा नगर पालिका पर राज बीजेपी का है. सरकार भी भ्रष्ट है और महा नगर पालिका भी भ्रष्ट और निकम्मी है. ना तो बीजेपी ने 15 साल में कांग्रेस का भ्रस्टाचार उजागर किया न कांग्रेस ने बीजेपी का. ये दोनों है एक दुसरे की "B-टीम".

5) दिल्ली में रेप पर रेप हो रहे है सालों से. क्या बीजेपी ने कुछ भी किया सरकार के खिलाफ ताकि रेप रुक जाये? क्या बीजेपी ने 1 भी रेप पीढित की मदद की? AAP ने पार्टी बनने के बाद निर्भया से ले कर गुडिया जैसे कई सारे मामलों में रेप पीढित की मदद की. पुलिस जहाँ FIR दर्ज नहीं कर रही थी किसी भी मामले में AAP के कारण सभी मामलों में उन को FIR दर्ज करनी पड़ी और अपराधियों को पकड़ना पड़ा. बीजेपी शाशित राज्य मध्य प्रदेश में देश में सबसे ज्यादा रेप होते है.

6) मामला चाहे RTI का हो, लोकपाल का, या अपराधियों को राजनीती के बाहर करने के कानून का हो. बीजेपी और कांग्रेस तुरंत हाथ मिला लेते है और जनता के खिलाफ काम करते है. ये दोनों है एक दुसरे की "B-टीम".

7) दिल्ली में बिजली के दाम गलत तरह से बढ़े है इस बात का सबूत 1 साल से बीजेपी के पास था पर बीजेपी के नेता विजय गोयल चुप रहे. क्यों बीजेपी कांग्रेस को बचा रही थी? क्यों जनता के सामने नहीं लाया वो सबूत? क्यों संसद में नहीं पूछे प्रश्न कांग्रेस के खिलाफ?

दिल्ली में पिछले 3 चुनाव (15 सालों) में बीजेपी ने कांग्रेस को जिताया (अपनी अंदरुनी कलह से) और इस बार बोलते है की हम वोट काटेंगे? इस बार भी आपस में लड़ना चालू कर दिया है बीजेपी के नेताओं ने. पहले किसने वोट काटे बीजेपी के? क्या शीला पहले भ्रस्टाचार नहीं कर रही थी? क्या शीला पहले अच्छा काम कर रही थी? सच तो ये है की बीजेपी इस बार AAP के वोट कटेगी. कांग्रेस को भगाना है तो AAP को ही वोट दो इस बार.

9) बीजेपी बोलती है की वो दिल्ली से भ्रस्टाचार को हटा देंगे. तो फिर नितिन गडकरी जिस को बीजेपी ने पार्टी प्रमुख के पद से भ्रस्टाचार के कारण हटाया था को क्यों दिल्ली में चुनाव व्यवस्था का प्रमुख बनाया? गडकरी के चुने हुवे नेता भगायेंगे भ्रस्टाचार दिल्ली से?

10) मोदी ने कहा था की "फ़ूड सेक्युरिटी बिल" बहुत खतरनाक बिल है. पर फिर क्यों बीजेपी ने उस बिल को पास करवाने में कांग्रेस का साथ दिया? कितना पैसा मिला बीजेपी को इस के लिए?

11) जब अन्ना ने अनशन किया था जनलोकपाल कानून के लिए तब बीजेपी और कांग्रेस दोनों के सभी नेताओं ने अपने हस्ताक्षर कर के एक पत्र अन्ना को दिया था की अगले सत्र में हम कानून पास कर देंगे. आज 2 साल हो गए. न बीजेपी को याद आई जनलोकपाल की न कांग्रेस को. ये है दोनों की मिली भगत.

12) बीजेपी क्यों रोबर्ट वाड्रा के मामले में चुप बैठी है? जब बीजेपी की केंद्र में सरकार थी तब क्यों बीजेपी ने CBI से बोफोर्स मामले में राजीव गाँधी के भ्रस्टाचार की जाँच 6 सालों में पूरी नहीं करवाई? दोनों पार्टिया एक दुसरे से मिली हुई है और एक दुसरे को बचा लेती है.

असल बात तो ये है की ये दोनों पार्टिया जनता की अपनी खुद की पार्टी AAP (आम आदमी पार्टी) से बुरी तरह से डरी हुई है. और इस तरह की अफवाह फैला रही है. आम आदमी को इस बार आम आदमी को ही जिताना है और इन दोनों भ्रष्ट पार्टियों को हराना है. जय हिंद ! जय आम आदमी !!
By: SS

Tuesday, September 17, 2013

AAP Stand in case of Mixed verdict.

Let both the Congress and the BJP take the help of each other to form a government, in case Delhi throws up a hung assembly. Behind the scenes, anyway, the Congress and the BJP are together. So let them come together form a government. But in case that doesn’t happen, then there would be a repoll. We are confident of getting a sweeping majority in such a repoll.
Arvind Kejriwal
मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं .....
मेरी समझ से हमें सोशल मीडिया में ये फैलाना चाहिए की अगर ऐसी स्थिति बनती की की हमारे बिना सरकार नहीं बन सकती तो ...तो AAP किसी भी (बीजेपी /Congress) को बाहर से समर्थन दे सकती है सिर्फ उस शर्त पर की ...वो सरकार 15 दिन के अन्दर जन्लोकपाल पारित करे ....नहीं तो AAP दुबारा चुनाव में जाना पसंद करेगी ....
क्योंकि जनता ने वोट "स्वराज" के लिए किया है "जनलोकपाल" के लिए किया है ...
अरविन्द जी का ऊपर वाला मेसेज ...थोडा negative लगता है मुझे ....
बेवजह चुनाव में जाना ...AAP के लिए नुक्सान दायक होगा ..उस स्थिति में चुनाव लोकसभा के साथ होगा ...और फिर लोग लोकसभा के बारे में सोंच वोट करेंगे ...और उस समय तक हमने (AAP) ने सिर्फ बात की होगी कुछ सिद्ध नहीं किया होगा ....
ये गलत होगा .....

इसके आलावा मैं ये भी देख रहा हूँ की हमारे volunteer overloaded है थक रहे है ...मुझे नहीं लगता की Nov चुनाव के बाद ..एक बार फिर लोग अपने घर परिवार नौकरी को छोड़ ...इतनी ही मेहनत कर पायेंगे ...मुझे ये practical नहीं लगता, मैं अभी से देख रहा हूँ की volunteers थक रहे है ..छोड़ भी रहे है ....यही सच है कोरी देश भक्ति ..ज्यादा दिन ...बिना रिजल्ट के टिकने में मुस्किल होगी ....मुझे पता है पिचले एक साल में सैकड़ो आये और गए ..पर टिके कितने ...और जो टिके वो भी ये सोच कर की Nov तक की बात है .....

Monday, September 16, 2013

ये दर्द है उन लाखों करोड़ों भारतीयों का का

दोस्तों,

नीचे लिखी ये महज कुछ चंद पंक्तियाँ ही नहीं हैं- ये दर्द है उन लाखों करोड़ों भारतीयों का का जिन्हें आज़ादी के इतने सालों के बाद भी ना तो हमारे भ्रष्ट नेता और अफसरशाह इन्हें रोटी मुहैया करवा पाए, ना पानी, ना कपडा, ना घर, ना सड़क, ना बिजली, ना अस्पताल, ना स्कूल.......कुछ भी तो नहीं !!

इसी तड़प को शायर/ कवि गोंडवी साहब ने कुछ यूँ बयान किया है-

" वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है

उसी के दम से रौनक आपके बँगले में आई है,

इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का

उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है,

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले

हमारा मुल्कि इस माने में बुधुआ की लुगाई है,

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी

जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है "

और अगर कुछ मुहैया करवा पाए भी हैं ये बेशर्म भ्रष्ट लोग इस देश की अधिकांश जनता को तो वो है सिर्फ और सिर्फ- भूख, गरीबी, नंगापन, बीमारी, अनपढ़ता, अन्याय, असमानता, रिश्वत, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, महंगाई, छदम सेकुलरवाद, असुरक्षा, दंगे, हत्या, बलात्कार, अपराधिक राजनीती, राजनितिक अपराध, सारे-आम खजाने की नंगी लूट....

और दियें हैं तो वो बेशर्मी से भरे वो "कुटिल" चेहरे जो हर नाजायज बात / फैसले को मीडिया पर आकर को उतनी ही आसानी से जायज़ बतलाते हैं जितनी आसानी से तिवारी जी ने अपनी ही औलाद को नाजायज़ बतलाया था.....

बस एक निवेदन है तुम लोगों से- अब ये तमाशा बंद करो- हम हिंदुस्तानिओं का मज़ाक उड़ाना बंद करो -

और नहीं तो कम से कम गरीबी रेखा - BPL ( Below Poverty Line ) का नाम बदल कर भुखमरी रेखा - BSL ( Below starvation Line) कर दो साहब...

क्या कहा .......क्यों ?

क्योंकि अब 28 रूपए में जिया तो नहीं जा सकता साहब, पर हाँ इस कीमत में भुखमरी की मौत से तो बचा ही जा सकता है ना...इसीलिए कहा कि नाम बदल दो !!

" रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है " ......

मुल्क आपका, पेट आपका, भूख आपकी तो फैसला भी आपका !!

जय हिन्द !! भारत माता की जय !! वन्दे मातरम !!

प्रेम फैलाइए, दुनिया में यही एक ऐसी चीज है

जब आपका धर्म आपको गाय मारने की इजाज़त नहीं देता.
जब आपका मज़हब आपको सूअर मारने की इजाज़त नहीं देता.
फिर आप किस आधार पर धर्म और मज़हब के नाम पे इंसान को मारने-काटने की बातें करते हो?

प्रेम फैलाइए, दुनिया में यही एक ऐसी चीज है, जो ज्यादा होने पर भी नुकसान नहीं करती है.
Wake up and kill this hate politics...
By: Sumit Negi

बीजेपी कांग्रेस भाई भाई, दोनों ने बैठ कर मलाई खाई...

बीजेपी कांग्रेस भाई भाई, दोनों ने बैठ कर मलाई खाई...
दिल्ली में न जाने कितनी समस्याए है. सरकार भ्रस्टाचार में लिप्त है. रोज औसतन 4 रेप होते है दिल्ली में. अपराध चरम सीमा पर है (लूट, हत्या, चोरी, डकैती). बिजली के दाम सरकार ने मनमाने ढंग से बढ़ा रखे है. आधा शहर पानी टैंकर माफिया से खरीद कर पिने को मजबूर है. घोटालो के लाइन लगी है.
इस सब के बाद भी 15 साल से विपक्ष में बैठी बीजेपी ने सरकार के खिलाफ कभी आवाज नहीं उठाई, इन सब मुद्दों पर जनता का कभी साथ नहीं दिया. विधान सभा में 1 प्रश्न तक नहीं पूछा.
दिल्ली में MCD पर BJP का राज है. पिछले 5 साल में MCD को 14,100 करोड़ रुपये प्राप्त हुवे पर क्या BJP की MCD ने कुछ काम किया दिल्ली में?? बिना रिश्वत दिए कुछ काम होता है MCD के अन्दर?
तो प्रश्न उठता है की क्यों कांग्रेस और बीजेपी ने एक दुसरे के खिलाफ कुछ नहीं किया? बात साफ़ है. दोनों की मिली भगत है. तुम भी लूटो हम भी लूटें और एक दुसरे की लूट पर चुप रहें.
चुनाव आते ही ये दोनों दल एक दुसरे के खिलाफ होने का नाटक जनता के सामने करने लगते है. चुनाव में लड़ाई बस इस बात की होती है की लूट में कौन कितना हिस्सा लेगा. जो चुनाव जीता वो ज्यादा बड़ी लूट कर सकता है जो हारा वो कम.

फ्री में कुछ नहीं मिलता ...और ख़ास कर AAP तो कुछ देगी भी नहीं ...

सरकरी गणित के हिसाब से दिल्ली में अनिल अम्बानी की कम्पनी BSES (बिजली सप्लाई के लिए) को 20 हज़ार करोड़ का घाटा हो रहा है इसलिए बिजली के दाम बढ़ाये जा सकते है ..तो सवाल ये है की जिन अनिल अम्बानी ने थोड़े से घाटे के चलते पहले तो एयर पोर्ट मेट्रो की लाइन को बंद कर दिया था और फिर छोड़ दिया DMRC के हवाले कर दिया,...वाही अनिल अम्बानी इतने बड़े घाटे के बाद भी इस काम को क्यों नहीं छोड़ना चाहते?....क्यों ...
मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से जब बोलो की इनकी कम्पनी का ऑडिट करवाओ तो कहती है ...की सरकार तो ऑडिट करवाना चाहती है कम्पनी मालिक अनिल अम्बानी ऐसा नहीं चाहते ....अजीब है ...
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जी है या अम्बानी ?....
और विपक्ष ...बीजेपी के विजय गोयल जी का अब चुनाव के पहले कहना है की अगर वो जीते तो 30% दाम में कटौती होगी ...क्यों भाई सिर्फ 30% ही क्यों ..जब गड़बड़झाला 50% का है ....
खैर विजय गोयल जी से ...सवाल तो ये है की उन्होंने या उनकी पार्टी के किसी विधायक ने ...विधान सभा में कितने बार बिजली के दामो के बारे में प्रश्न किये ?.....
दोस एक बार भी नहीं ....हाँथ कंगन को आरसी क्या .....एक RTI लगाओ और पता करो बीजेपी के किस - किस विधायक ने ....विधान सभा में ...कितने और कौन कौन से प्रश्न किये ?....
जवाब शून्य ही होगा ..इन बीजेपी वालो को करना कभी कुछ नहीं होता ...बस इंतज़ार में रहते है की लोग कांग्रेस की लूट से ऊबे ...तो इनका काम बने ....
वैसे काम क्या बनना ...काम तो इनका वैसे भी बनता ही रहता है ...वो 4 मेरे काम 4 तेरे काम ...मिलीभगत की सरकार ...और जनता ...जनता के मुद्दे सब बेकार ...
बस खाओ मिल बाँटकर मलाई ...
पर जब खोली अरविन्द ने इनकी मिली भगत की कलाई .....तो गोयल की छूटी रुलाई ....
अब समझ जाओ जनता ....
सोंच समझ कर वोट करो ...
और देखो आपकी ...खुद की सरकार आई ...स्वराज आया .....
पर फ्री में कुछ नहीं मिलता ...और ख़ास कर AAP तो कुछ देगी भी नहीं ...
तो  AAP भी लेगी जरुर आपसे ...
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Saturday, September 7, 2013

Congress doesn't have to pay money :


Congress doesn't have to pay money : . Hindustan Times – Shobhna Bhartia, owner and editor-in-chief of Hindustan Times is a Congress MP from Rajya Sabha.

2. Vinod Sharma, HT Political Affairs editor, is essentially a Congress spokesman on all TV panel discussions, because once his boss’ term gets over, he will be looking out for her RS seatnext.

3. Barkha Dutt and Vir Sanghvi, famous Congress stooges (and intermediaries for UPA allies) who were exposed in the Radiagate scandal, and are virtual Congress spokespersons in their capacities as electronic media personalities, are the ones who write opinion and op-ed columns most frequently (once every week) on the editorial pages of HT. In return, Barkha and Sanghvi are rewarded with Padma Shri and other monetary compensation by the Nehru dynasty or Congress party.

4. NDTV’s promoters are Prannoy Roy and Radhika Roy. Radhika’s sister Brinda Karat is a famous CPM leader (well known for anti-Baba Ramdev views) and Brinda’s husband Prakash Karat is the CPM Politburo General Secretary (well known for preferring Congress over BJP). And Prannoy Roy’s first cousin is the famous far-leftist pro-Maoist-Naxalite pro-Kashmiri-terrorists “intellectual” Arundhati Suzanna Roy.

5. NDTV’s Barkha Dutt’s reality has already been exposed by me in above section.

6. NDTV’s Sonia Singh is the wife of Uttar Pradesh Congress MP, Union minister and ex-princely state ruler, Mr. R. P. N. Singh, who is one of the fastest rising stars in the Congress party. If you remember, Sonia Singh is a very high-profile anchor on NDTV whose pro-Congress anti-BJP bias is legendary.

7. NDTV’s Nidhi Razdan (high-profile anchor of Left Right Centre) is the current girlfriend of J&K CM Omar Abdullah (after Omar recently divorced his wife of several years and mother of his two children, Payal). Nidhi Razdan is also famous for her legendary pro-Congress and anti-BJP bias.

8. CNN-IBN : Rajdeep Sardesai’s wife and co-promoter of CNN-IBN, Sagarika Ghose, who anchors Face the Nation and is famous journalist of CNN-IBN (well, her hubby is the owner-editor-in-chief after all) are famous Congress stooges.

9. Sagarika Ghose’s father Bhaskar Ghose was a famous sarkari babu and was made the chief of Prasar Bharati (Doordarshan) during Indira and Rajiv regimes. Bhaskar Ghose was well-known for personal loyalty to the Nehru dynasty, and now his daughter and son-in-law are rewarded with their own channel to do Congress propaganda.

10. In fact Sagarika’s extended family even consists of her aunts Ruma Pal (former Supreme Court justice and a close friend of the Nehru family) and Arundhati Ghose (former diplomat and Indian ambassador to various countries, predictably, under Congress regimes).

11. Let’s now come to another famous CNN-IBN media personality who also writes columns frequently for Hindustan Times — Karan Thapar. What you may not know is that the Nehru family itself is related, through blood and marriages, to the high-profile Thapar family. India’s Army chief during the 1962 debacle against China, Gen. P. N. Thapar, is brother-in-law of Nayantara Sehgal, the daughter of Vijaylakshmi Pandit and niece of Jawaharlal Nehru. Gen. Thapar’s son is pro-Congress journalist Karan Thapar. Gen. Thapar’s sister is Romila Thapar, a famous “top” typical JNU Nehruvian communist ideologue historian, who gets to write our textbooks and pollute them with pro-Congress Marxist propaganda.

12. The Hindu – The Worst – N. Ram, owner and editor-in-chief (till February 2012) of The Hindu, was once a vice president of the Students Federation of India. SFI is the students’ wing of the CPM.

13. P. Sainath of the The Hindu (acclaimed journalist well known for his, again, unsurprisingly, typical left-wing Nehruvian communism ideology), is the nephew of Congress politician V. Shankar Giri and the grandson of V. V. Giri, ex-President of India and famous Congress politician. Giri was especially known to be one of the first few staunch loyalists of Indira, and whom Indira fielded for President elections against her own party’s Neelam Sanjeeva Reddy, and who ultimately became the cause of the first high-profile split in the Indian National Congress into Congress (O) and Congress (I) — almost all the pre-independence regional stalwarts split away to join Congress (O) or form their own state parties, and the rest including Giri (all the loyalists of the Nehru family staying on with Indira).

14. News24 Hindi media channel? Owned by ex-journalist and editor Rajiv Shukla & his wife, famous Congress MP in Rajya Sabha, Union minister, industrialist, BCCI vice president and IPL chairman.

15. Or even what about little known Lokmat (and IBN Lokmat) that is Marathi newspaper (and channel) in Maharashtra? Owner and editors-in-chief are the brothers Vijay Darda (Congress MP) and Rajendra Darda (Congress MLA in Maharashtra, and minister in state govt).

16. Or even the other bigger and smaller media houses, such as The Times of India and Indian Express, where the Nehru dynasty has managed to infiltrate its loyalists such as Dileep Padgaonkar and Shekhar Gupta, who are essentially paid stooges of the Congress party.

17. Vinod Mehta - Outlook editor has been well known to take anti BJP stand.
The Congress (in fact just the one single family — the Nehru dynasty) has been in power for 56 of the last 65 years of independence. This matters a LOT. Personal relationships have been built, blackmail-worthy secrets have been spied, monumental wealth has been accumulated… all by the one single Nehru dynasty (and its family-business-cum-political-party aka Congress) that helps it maintain its tight iron grip over not just the entire Indian mainstream media, but also deep into our bureaucracy, our governmental institutions, and even our journalism and mass media colleges and grad schools.

We have probably not even scratched the surface of the network of family and personal relationships through which the Nehru dynasty has completely dominated and controlled the entire intellectual, historian and journalist landscape of India. And we haven’t even talked about the monumental wealth or the blackmailing secrets. All because the one single dynasty got to rule over India for 60 years uninterrupted. It matters a LOT. The typical JNU Nehruvian communist left-libbers ideologues have really perpetrated some kind of stranglehold on India’s journalism, media and intellectual space.

Even the great venerable Ramnath Goenka, frustrated and broken by repeated I-T raids and ED investigations ultimately had to fire Arun Shourie twice from the Indian Express, which was once the best Indian newspaper in the 1970s and 80s. That was the team — Goenka the owner, Shourie the editor, and S. Gurumurthy the fearless journalist, that brought political heavyweights like Indira Gandhi down on her knees and even took on corporate honchos like Dhirubhai Ambani. (Ramnath Goenka inspired the Mithun Chakraborty character and S. Gurumurthy inspired the R. Madhavan character in the Ambani biopic movie “Guru”.)

Almost all opposition (or even centre-right ideologues) journalists have been slowly thrown out of their jobs due to pressure from the Congress and the Nehru family. But very few centre-right ideologues are left in India’s media space today, that too in minor publications like The Pioneer. Almost all the mainstream media houses have been thoroughly infiltrated and coerced into towing the Congress’ line, sometimes just through ideology and relationships, and not even money power. The Congress party essentially owns and controls every single mainstream media house in India, including Hindustan Times, The Times of India, NDTV, CNN-IBN, The Hindu, Tehelka, Outlook, etc"....................
Vishal Balana :