Tuesday, October 29, 2013

चलो दिल्ली .....पर क्यों चलो दिल्ली ...

चलो दिल्ली .....पर क्यों चलो दिल्ली?...
दोस्त, आपको दिल्ली आना है ...पर क्यों आना है दिल्ली?

दोस्त, आपको दिल्ली इसलिए आना है क्योंकि ....आज तक जितने बार भी ...जब जब भी आप अपने शहर और गाँव में ..मोमबत्ती ले इन्साफ के लिए अपने घर से निकले थे ..उन सारी लड़ाइयों का ....एक निर्णायक युद्ध लड़ा जा रहा है दिल्ली में ...एक इतिहास लिखा जा रहा है दिल्ली में,....और आपको दिल्ली उसी युद्ध में उतरने के लिए आना है .....

ये युद्द है ..भ्रष्ट व्यवस्था और सच्चे लोकतंत्र के बीच ...
ये युद्द है ..पैसे से सत्ता और सत्ता से पैसे वाली राजनीति ...और देश के सच्ची समाज सेवा वाली राजनीति के बीच ...
ये युद्द है ..उस झूठ और पाखण्ड के खिलाफ ...जिसमे देश कि सर्वोच्च संस्था संसद में बैठ ..हमारे नेताओ ने अच्छे - अच्छे भाषण तो दिए थे ...पर जब करने का नंबर आया तो मुकर गए ...
ये युद्द है ..आम जनता के सम्मान का ...और हमारे नेताओ के अहंकार का ....अरे क्या माँग रही थी देश कि जनता ...क्या मांग रहे थे अन्ना ...सिर्फ जनलोकपाल ..एक ऐसी व्यवस्था जिसमे पारदर्शिता हो ...जो सच्चा लोकतंत्र हो ..स्वराज हो ...पर नहीं दिया ...धोखा दिया ....

धोखा दिया ...और क्या-क्या नहीं कहा ...सड़क पर नहीं बनते कानून .....गटर कीड़ो से बातचीत नहीं होती ..यही कहा था ना ?....याद है कि भूल गए? ....
ये युद्ध है उसी अपमान का ...ये अपमान किसी एक व्यक्ति या संस्था का नहीं था ..
ये अपमान था ..देश कि आत्मा का ...ये अपमान था ...देश कि जनता का ....
अरे जब हमारा संविधान कहता है ....कि जनता के लिए ..जनता के द्वारा ...
तो क्या मतलब बनता है ये कहने का ...कि ...
सड़क पर नहीं बनते कानून .....जनता के कहने से नहीं बनते कानून ....कोई बात नहीं हो सकती गटर के कीड़ो से ...
ये भी कहा गया था ...कि ..
गर चाहिए कानून ...तो लड़ो चुनाव ...और ले लो ...जनलोकपाल ..ले लो स्वराज ...ले लो सम्मान ...
पर ऐसे नहीं देंगे ...चुनाव लड़ो ...और जीत लो ..ले लो ....

किसे चाहिए था "जनलोकपाल"
किसे चाहिए थे "स्वराज" ....
किसका हुआ था अपमान ....जनाब सिर्फ आपका ..इस देश कि जनता का .....
हमारे नेताओ ने ...खुले आम जनता का ...जनता की भावनाओ का ...और उस तरीके का ....
जिस तरीके से ...आज़ाद हुआ था हमारे देश ..खुले आम मजाक बनाया था ...और दी थी चुनौती ..चुनाव की...

क्यों दी थी चुनौती ..चुनाव की ...
इसीलिए ना कि ..उनको भरोषा है ..अपने उस महा भ्रष्ट राजनीतिक तौर - तरीके पर ....
उन्हें विस्वास था ..कि वो अपने छल - प्रपंच और दारु पैसे के आधार पर जीतने नहीं देंगे ...इसीलिए ना ...

पर शायद वो ये भूल गए थे ...कि अपने दंभ में ..आकर उन्होंने किसे चुनौती दे दी ...
अरे जनाब आपको ..चुनौती दे दी ...हमें चुनौती दे दी ....
क्या जीत सकते है ये ....हमारे ही दम पर ...हमको ही बेवकूफ बना ...और हमें - आप से लड़ा ....
नहीं गुजर गया वो दौर ..जब नेता थे वो हमारे ...
खो चुके है वो विस्वास ..और हमारे भाग्य विधाता होने का हक़ ....
अब नहीं ..अब हम समझ चुके है ...अब आप खुद युद्ध में कूद चुके है ....
अब आप कूदे है ..तो हम इन्हे जीतने नहीं देंगे ....

और वैसे भी ....ये जीत नहीं सकते ....पर है आपको ....आपका आमंत्रण ...कि शामिल हो दिल्ली के इस युद्ध में ....ताकि बता सके भविष्य को ....
कि हाँ ...हम हिस्सा थे उस बदलाव का ...जिसने तुम्हे दिया है ....एक समृद्ध राष्ट्र ....और अछय सम्मान ....

दोस्त दिल्ली का चुनाव ..कोई चुनाव मात्र नहीं है ...
ये शुरुवात है ....सच्चे लोकतंत्र की..
ये शुरुवात है ...स्वराज की ....
ये शुरुवात है,... उस समाज की ...जिसे कोई बाँट ना पाये ...आपस में लड़ा भिड़ा नहीं पाये ....
ये शुरुवात है,...उस व्यवस्था की ..जिसमे आपको वो मिले ...जो सही है ...देश के लिए ..आपके लिए ..और आपके बच्चो के भविष्य के लिए .....

जाग चुकी है दिल्ली ....और आप,...जीत चुके हो ये युद्ध ....
4 दिसंबर को तो ये भ्रष्ट राजनीति ....अपनी हार मानेगी ..और
8 दिसंबर को होगा ...जनता की जीत का ऐलान ....उस जीत का ऐलान ...जिसके लिए आप निकले थे अपने घर से ..कभी एक मोमबत्ती और कुछ सपने लेकर .....और मानेगा जश्न आपकी इस जीत और बदलाव कि शुरुवात का 29 दिसंबर को ..उसी रामलीला मैदान में ....जिसमे दिया गया सबसे बड़ा धोखा ....

पर आना है आपको,...
आपको आना है,....इस यज्ञ में ..अपने हिस्से कि आहुति देने ...और दिल्ली वालो को ये बताने कि ....
दोस्त, आप दिल्ली बदलो ....हम देश बदलेंगे .....
अब ना भटकेंगे ...अब ना रुकेंगे ...आप दिल्ली बदलो ....हम देश बदलेंगे ...

आप को आना है ...दिल्ली कि इस रणभूमि से ...एक चिंगारी लेने ....
ताकि जला सके एक ....मशाल ..वहाँ जहां आपका घर है ...और दिखा सके रोशनी उनको जो आपके अपने है ....
बदल सके उनका जीवन ...जिनके लिए आप जीते है .....आना है आपको ..और इसलिए आना है आपको ....

पर युद्ध में आने से पहले ..पैने कर लो ..अपने हथियार ....कर लो तैयारी ..और पढ़ लो स्वराज .....समझ लो स्वराज ..समझ लो RTI ....
मिलेंगे दिल्ली दिल्ली में ...आपको आपके वो साथी ....जिन्होंने थाम रख्खी है ...ये धधनकती मशाल ...जो मिटा रही भ्रष्टाचार के अँधेरे को ....और फैलाएगी ...सदाचार कि रौशनी ....

तो करो तैयारी ...क्योंकि ये है अंतिम आवाज़ ....अंतिम आवाज़ .की ....
बढ़ो ..लड़ो ..और बदल दो तकदीर देश कि ...बदल दो तस्वीर समाज की ....

रखो नीव उस संकल्पना कि जो थी ...शहीद भगत सिंह कि ...आज़ाद की ...शास्त्री और कलाम की .....
हम तैयार है .....आपके स्वागत के लिए दिल्ली में ...हमसे बात करो ....
08588833525
08588833537
08588833534
09873703054
07830398955......
छोड़ो कल की बांते,....कल की बात पुरानी.....
उठो धरा के अमर सपूतो ..पुनः नया निर्माण करो .....नागेन्द्र शुक्ल
Please Provide Your Data @ http://goo.gl/oG1w6e

Download & Read Swaraaj => http://iacmumbai.org/downloads.php?id=Tmc9PQ==
Part 1- https://www.youtube.com/watch?v=kJwvsMy83Lw (Just 7 min, glimpse of Swaraaj)
Part 2- https://www.youtube.com/watch?v=sv5v5qem2l4
Part 3- https://www.youtube.com/

Friday, October 18, 2013

ऐसे बन रही है आम आदमी की पार्टी

राजनीतिक संघर्ष की नयी परिभाषा गढ़ते केजरीवाल


दफ्तर-एआईसी यानी भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत। पता-ए-119 कौशांबी। पहचान-बंद गली का आखिरी मकान। उद्देश्य-राजनीतिक व्यवस्था बदलने का आखिरी मुकाम अरविन्द केजरीवाल। कुछ यही तासीर...कुछ इसी मिजाज के साथ इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनर तले अन्ना हजारे से अलग होकर सड़क पर गुरिल्ला युद्द करते अरविन्द केजरीवाल। किसी पुराने समाजवादी या वामपंथी दफ्तरों की तरह बहस-मुहासिब का दौर। आधुनिक कम्प्यूटर और लैपटाप से लेकर एडिटिंग मशीन पर लगातार काम करते युवा। और इन सब के बीच लगातार फटेहाल-मुफलिस लोगों से लेकर आईआईटी और बिजनेस मैनेजमेंट के छात्रों के साथ डाक्टरों और एडवोकेट की जमात की लगातार आवाजाही। अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते समाजसेवी से लेकर ट्रेड यूनियन और बाबुओं से लेकर कारपोरेट के युवाओं की आवाजाही। कोई वालेन्टियर बनने को तैयार है तो किसी के पास लूटने वालों के दस्तावेज हैं। कोई अपने इलाके की लूट बताने को बेताब हैं। तो कोई केजरीवाल के नाम पर मर मिटने को तैयार है। और इन सबके बीच लगातार दिल्ली से लेकर अलग अलग प्रदेशों से आता कार्यकर्ताओं का जमावड़ा, जो संगठन बनाने में लगे हैं। जिले स्तर से लेकर ब्लाक स्तर तक। एकदम युवा चेहरे।

मौजूदा राजनीतिक चेहरों से बेमेल खाते इन चेहरों के पास सिर्फ मुद्दों की पोटली है। मुद्दों को उठाने और संघर्ष करने का जज्बा है। कोई अपने इलाके मे अपनी दुकान बंद कर पार्टी का दफ्तर खोल कर राजनीति करने को तैयार है। तो कोई अपने घर में केजरीवाल के नाम की पट्टी लगा कर संघर्ष का बिगुल फूंकने को तैयार है। और यही सब भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत[एआईसी] के दफ्तर में आक्सीजन भी भर रहा है और अरविन्द केजरीवाल का लगातार मुद्दों को टटोलना। संघर्ष करने के लिये खुद को तैयार रखना और सीधे राजनीति व्यवस्था के धुरंधरों पर हमला करने को तैयार रहने के तेवर हर आने वालों को भी हिम्मत दे रहा है।

संघर्ष का आक्सीजन और गुरिल्ला हमले की हिम्मत यह अलख भी जगा रहा है कि 26 नवंबर को पार्टी के नाम के ऐलान के साथ 28 राज्यों में संघर्ष की मशाल एक नयी रोशनी जगायेगी। और एआईसी की जगह आम
आदमी की पहचान लिये आम आदमी की पार्टी ही खास राजनीति करेगी। जिसके पास गंवाने को सिर्फ आम लोगो का भरोसा होगा और करने के लिये समूची राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव। दिल्ली से निकल कर 28 राज्यों में जाने वाली मशाल की रोशनी धीमी ना हो इसके लिये तेल नहीं बल्कि संघर्ष का जज्बा चाहिये और अरविन्द केजरीवाल की पूरी रणनीति उसे ही जगाने में लगी है। तो रोशनी जगाने से पहले मौजूदा राजनीति की सत्ताधारी परतों को कैसे उघाड़ा जाये, जिससे रोशनी बासी ना लगे। पारंपरिक ना लगे और सिर्फ विकल्प ही नहीं बल्कि परिवर्तन की लहर मचलने लगे। अरविन्द केजरीवाल लकीर उसी की खींचना चाहते हैं। इसीलिये राजनीतिक तौर तरीके प्रतीकों को ढहा रहे हैं।

जरा सिलसिले को समझें। 2 अक्टूबर को राजनीतिक पार्टी बनाने का एलान होता है। 5 अक्तूबर को देश के सबसे ताकतवर दामाद राबर्ट वाड्रा को भ्रष्टाचार के कठघरे में खड़ा करते हैं। 17 अक्तूबर को भाजपा अध्यक्ष
नितिन गडकरी के जमीन हड़पने के खेल को बताते हैं। 31 अक्तूबर को देश के सबसे रईस शख्स मुकेश अंबानी के धंधे पर अंगुली रखते हैं और नौ नवंबर को हवाला-मनी लैंडरिंग के जरीये स्विस बैक में जमा 10 खाताधारकों का नाम बताते हुये मनमोहन सरकार पर इन्हें बचाने का आरोप लगाते हैं। ध्यान दें तो राजनीति की पारंपरिक मर्यादा से आगे निकल कर भ्रष्टाचार के राजनीतिकरण पर ना सिर्फ निशाना साधते हैं बल्कि एक नयी राजनीति का आगाज यह कहकर करते है कि , "हमें तो राजनीति करनी नहीं आती"। यानी उस आदमी को जुबान देते हैं जो राजनेताओं के सामने अभी तक तुतलाने लगता था। राजनीति का ककहरा राजनेताओं जैसे ही सीखना चाहता था। पहली बार वह राजनीति का नया पाठ पढ़ रहा है। जहां स्लेट और खड़िया उसकी अपनी है। लेकिन स्लेट पर उभरते शब्द सत्ता को आइना दिखाने से नहीं चूक रहे। तो क्या यह बदलाव का पहला पाठ है। तो क्या अरविन्द केजरीवाल संसदीय सत्ता की राजनीति के तौर तरीके बदल कर
जन-राजनीति से राजनीतिक दलों पर गुरिल्ला हमला कर रहे हैं। क्योंकि आरोपों की फेरहिस्त दस्तावेजों को थामने के बावजूद अदालत का दरवाजा खटखटाने को तैयार नहीं है। केजरीवाल चाहें तो हर दस्तावेज को अदालत में ले जाकर न्याय की गुहार लगा सकते हैं। लेकिन न्यायपालिका की जगह जन-अदालत में जा कर आरोपी की पोटली खोलने का मतलब है राजनीति जमीन पर उस आम आदमी को खड़ा करना जो अभी तक यह सोचकर घबराता रहा कि जिसकी सत्ता है अदालत भी उसी की है। और इससे हटकर कोई रास्ता भी नहीं है। लेकिन केजरीवाल ने राजनीतिक न्याय को सड़क पर करने का नया रास्ता निकाला। वह सिर्फ सत्ताधारी कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्षी भाजपा और बाजार अर्थव्यवस्था के नायक अंबानी पर भी हमला करते हैं। यानी निशाने पर सत्ता के वह धुरंधर हैं, जिनका संघर्ष संसदीय लोकतंत्र का मंत्र जपते हुये सत्ता के लिये होता है। तो क्या संसदीय राजनीति के तौर तरीकों को अपनी बिसात पर खारिज करने का अनूठा तरीका अरविन्द केजरीवाल ने निकाला है। यानी जो सवाल कभी अरुंधति राय उठाती रहीं और राजनेताओं की नीतियों को जन-विरोधी करार देती रहीं। जिस कारपोरेट पर वह आदिवासी ग्रामीण इलाकों में सत्ता से लाइसेंस पा कर लूटने का आरोप लगाती रहीं । लेकिन राजनीतिक दलों ने उन्हें बंदूकधारी माओवादियों के साथ खड़ा कर अपने विकास को कानूनी और शांतिपूर्ण राजनीतिक कारपोरेट लूट के धंधे से मजे में जोड़ लिया। ध्यान दें तो अरविन्द केजरीवाल ने उन्हीं मु्द्दों को शहरी मिजाज में परोस कर जनता से जोड़ कर संसदीय राजनीति को ही
कटघरे में खड़ा कर दिया। तरीकों पर गौर करें तो जांच और न्याय की उस धारणा को ही तोड़ा है, जिसके आधार पर संसदीय सत्ता अपने होने को लोकतंत्र के पैमाने से जोड़ती रही। और लगातार आर्थिक सुधार के तौर तरीकों को देश के विकास के लिये जरुरी बताती रही। यानी जिस आर्थिक सुधार ने झटके में कारपोरेट से लेकर सर्विस सेक्टर को सबसे महत्वपूर्ण करार देकर सरकार को ही उस पर टिका दिया उसी नब्ज को बेहद बारिकी से केजरीवाल की टीम पकड़ रही है। एफडीआई के सीधे विरोध का मतलब है विकास के खिलाफ होना। लेकिन एफडीआई का मतलब है देश के कालेधन को ही धंधे में लगाकर सफेद बनाना तो फिर सवाल विकास का नहीं होगा बल्कि कालेधन या हवाला-मनीलैडरिंग के जरीये बहुराष्ट्रीय कंपनी बन कर दुनिया पर राज करने के सपने पालने वालों को कटघरे में खड़ा करना। स्विस बैंक खातों और एचएसबीसी बैकिंग के कामकाज पर अंगुली उठी है तो सवाल सिर्फ भ्रष्टाचार पर सरकार के फेल होने भर का नहीं है। बल्कि जिस तरह सरकार की आर्थिक नीति विदेशी बैंको को बढ़ावा दे रही हैं और आने वाले वक्त में दर्जनों विदेशी बैंक को सुविधाओं के साथ लाने की तैयारी वित्त मंत्री चिदबरंम कर रहे हैं, बहस में वह भी आयेगी ही। और बहस का मतलब सिर्फ राजनीतिक निर्णय या नीतियां भर नहीं हैं या विकास की परिभाषा में लपेट कर सरकार के परोसने भर से काम नहीं चलेगा। क्योंकि पहली बार राजनीतिक गुरिल्ला युद्द के तौर तरीके सड़क से सरकार को चेता भी रहे हैं और राजनीतिक व्यवस्था को बदलने के लिये तैयार भी हो रहे हैं।

यह अपने आप में गुरिल्ला युद्द का नायाब तरीका है कि दिल्ली में बिजली बिलों के जरीये निजी कंपनियो की लूट पर नकेल कसने के लिये सड़क पर ही सीधी कार्रवाई भुक्तभोगी जनता के साथ मिलकर की जाये। और कानूनी तरीकों से लेकर पुलिसिया सुरक्षा को भी घता बताते हुये खुद ही बिजली बिल आग के हवाले भी किया जाये और बिजली बिल ना जमा कराने पर काटी गई बिजली को भी जन-चेतना के आसरे खुद ही खम्बो पर चढ़ कर जोड़ दिया जाये। और सरकार को इतना नैतिक साहस भी ना हो कि वह इसे गैर कानूनी करार दे। जिस सड़क पर पुलिस राज होता है वहां जन-संघर्ष का सैलाब जमा हो जाये तो नैतिक साहस पुलिस में भी रहता। और यह नजारा केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट की लूट के बाद सड़क पर उतरे केजरीवाल और उनके समर्थकों के विरोध से भी नजर आ गया। तो क्या भ्रष्टाचार के जो सवाल अपने तरीके से जनता के साथ मिलकर केजरीवाल ने उठाये उसने पहली बार पुलिस से लेकर सरकारी बाबुओं के बीच भी यही धारणा आम
कर दी है कि राजनेताओं के साथ या उनकी व्यवस्था को बनाये-चलाये रखना अब जरुरी नहीं है। या फिर सरकार के संस्थानों की नैतिकता डगमगाने लगी है। या वाकई व्यवस्था फेल होने के खतरे की दिशा में अरविन्द केजरीवाल की राजनीति समूचे देश को ले जा रही है। यह सवाल इसलिये बड़ा है क्योकि दिल्ली में सवाल चाहे बिजली बिल की बढ़ी कीमतो का हो या सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट का विकलांगों के पैसे को हड़पने का। दोनों के ही दस्तावेज मौजूद थे कि किस तरह लूट हुई है। पारंपरिक तौर-तरीके के रास्ते पर राजनीति चले तो अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। जहां से सरकार को नोटिस मिलता। लेकिन अरविन्द केजरीवाल ने इस मुद्दे पर जनता के बीच जाना ही उचित समझा। यानी जिस जनता ने सरकार को चुना है या जिस जनता के आधार पर संसदीय लोकतंत्र का राग सत्ता गाती है,उसी ने जब सरकार के कामकाज को कटघरे में खड़ा कर दिया तो इसका निराकरण भी अदालत या पुलिस नहीं कर सकती है। समाधान राजनीतिक ही होगा। जिसके लिये चुनाव है तो चुनावी आधार तैयार करते केजलीवाल ने बिजली और विकलांग दोनों ही मुद्दे पर जब यह एलान किया कि वह जेल जाने को तैयार हैं लेकिन जमानत नहीं लेंगे तो पुलिस के सामने भी कोई
चारा नहीं बचा कि वह गिरफ्तारी भी ना दिखायी और जेल से बिना शर्त सभी को छोड़ दे।

जाहिर है अरविन्द केजरीवाल ने जनता की इसी ताकत की राजनीति को भी समझा और इस ताकत के सामने कमजोर होती सत्ता के मर्म को भी पकड़ा। इसीलिये मुकेश अंबानी के स्विस बैंक से जुडते तार को प्रेस कॉन्फ्रेन्स के जरीये उठाने के बाद मुकेश अंबानी के स्विस बैक खातों के नंबर को बताने के लिये जन-संघर्ष [राजनीतिक-रैली] का सहारा लिया। और रैली के जरीये ही सरकार को जांच की चुनौती दे कर अगले 15 दिनो तक जनता के सामने यह सवाल छोड़ दिया कि वह सरकारी जांच पर टकटकी लगाये रहे।

साफ है राजनीतिक दल अगर इसे "हिट एंड रन "या "शूट एंड स्कूट" के तौर पर देख रही हैं या फिर भाजपा का कमल संदेश इसे भारतीय लोकतंत्र को खत्म करने की साजिश मान रहा है तो फिर नया संकट यह भी है कि अगर जनता ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को चुनाव में खारिज कर दिया तो क्या आने वाले वक्त में चुनावी
प्रक्रिया पर सवाल लग जायेंगे। और संसदीय राजनीति लोकतंत्र की नयी परिभाषा टटोलेगी जहा उसे सत्ता सुख मिलता रहे। या फिर यह आने वाले वक्त में सपन्न और गरीब के बीच संघर्ष की बिसात बिछने के प्रतीक है। क्योंकि अरविन्द केजरीवाल को लेकर काग्रेस हो या भाजपा या राष्ट्रीय राजनीति को गठबंधन के जरीये सौदेबाजी करने वाले क्षत्रपो की फौज, जो सत्ता की मलाई भी लगातार खा रही है सभी एकसाथ आ खड़े हो रहे हैं। साथ ही कारपोरेट से लेकर निजी संस्थानों को भी लगने लगा है राजनीतिक सुधार का केजरीवाल उन्हें बाजार अर्थवयवस्था से बाहर कर समाजवाद के दायरे में समेट देगा। तो विरोध वह भी कर रहा है।

तो बड़ा सवाल यह भी है कि चौमुखी एकजुटता के बीच भी अरविन्द केजरीवाल लगातार आगे कैसे बढ़ रहे हैं। न्यूज चैनल बाइट या इंटरव्यू से आगे बढ़कर घंटों लाइव क्यों दिखा रहा है। अखबारों के पन्नो में केजरीवाल का संघर्ष सुर्खिया क्यों समेटे है। जबकि कारपोरेट का पैसा ही न्यूज चैनलो में है। मीडिया घरानों के राजनीतिक समीकरण भी हैं। कई संपादक और मालिक उन्हीं राजनीतिक दलों के समर्थन से राज्यसभा में हैं, जिनके खिलाफ केजरीवाल लगातार दस्तावेज के साथ हमले कर रहे हैं। फिर भी ऐसे समाचार पत्रों के पन्नों पर वह खबर के तौर पर मौजूद हैं। न्यूज चैनलो की बहस में हैं। विशेष कार्यक्रम हो रहे हैं। जाहिर है इसके कई तर्क हो सकते हैं। मसलन मीडिया की पहचान उसकी विश्वसनीयता से होती है। तो कोई अपनी साख गंवाना नहीं चाहता। दूसरा तर्क है आम आदमी जिस तरह सडक पर केजरीवाल के साथ खड़ा है उसमें साख बनाये रखने की पहली जरुरत ही हो गई है कि मीडिया केजरीवाल को भी जगह देते रहें। तीसरा तर्क है इस दौर में मीडिया की साख ही नहीं बच पा रही है तो वह साख बचाने या बनाने के लिये केजरीवाल का सहारा ले रहा है । और चौथा तर्क है कि केजरीवाल भ्रष्टाचार तले ढहते सस्थानों या लोगों का राजनीतिक व्यवस्था पर उठते भरोसे को बचाने के प्रतीक बनकर उभरे हैं तो राजनीतिक सत्ता भी उनके खिलाफ हैं, वह भी अपनी महत्ता को बनाये रखने में सक्षम हो पा रहा है। और केजरीवाल के गुरिल्ला खुलासे युद्द को लोकतंत्र के कैनवास का ही एक हिस्सा मानकर राजनीतिक स्वीकृति दी जा रही है। क्योंकि जो काम मीडिया को करना था, वह केजरीवाल कर रहे हैं। जिस व्यवस्था पर विपक्ष को अंगुली रखनी चाहिये थी, उसपर केजरीवाल को अंगुली उठानी पड़ रही है। लोकतंत्र की जिस साख को सरकार को नागरिकों के जरीये बचाना है, वह उपभोक्ताओं में मशगूल हो चली है और केजरीवाल ही नागरिकों के हक का सवाल खड़ा कर रहे हैं। ध्यान दें तो हमारी राजनीतिक व्यवस्था में यह सब तो खुद ब खुद होना था जिससे चैक एंड बैलेंस बना रहे। लेकिन लूट या भ्रष्टाचार को लेकर जो सहमति अपने अपने घेरे के सत्ताधारियों में बनी उसके बाद ही सवाल केजरीवाल का उठा है। क्योंकि आम आदमी का भरोसा राजनीतिक व्यवस्था से उठा है, राजनेताओं से टूटा है। जाहिर है यहां यह सवाल भी खड़ा हो सकता है कि केजरीवाल के खुलासों ने अभी तक ना तो कोई राजनीतिक क्षति पहुंचायी है ना ही उस बाजार व्यवस्था पर अंकुश लगाया है जो सरकारों को चला रही हैं। और आम आदमी ठगा सा अपने चुने हुये नुमाइन्दों की तरफ अब भी आस लगाये बैठा है। फिर केजरीवाल ने झटके में व्यवसायिक-राजनीति हितों के साथ खड़े होने वाले संपादकों की सौदेबाजी के दायरे को बढ़ाया है। क्योंकि केजरीवाल के खुलासों का बडा हथियार मीडिया भी है और मीडिया हर खुलासे में फंसने वालों के लिये तर्क गढ भी सकता है और केजरीवाल के हमले की धार भोथरी बनाने की सौदेबाजी भी कर सकता है। यानी अंतर्विरोध के दौर में लाभ उठाने के रास्ते हर किसी के पास है और अंतरविरोध से लाभ राजनेता से लेकर कारपोरेट और विपक्ष से लेकर सामाजिक संगठनों को भी मिल सकता है। यह सभी को लगने लगा है। लेकिन सियासत और व्यवस्था की इसी अंतर्विरोध से पहली बार संघर्ष करने वालों को कैसे लाभ मिल रहा है, यह दिल्ली से सटे एनसीआर के कौशाबी में बंद गली के आखिरी मकान में चल रहे आईएसी के दफ्तर से समझा जा सकता है। जहां ऊपर नीचे मिलाकर पांच कमरों और दो हाल में व्यवस्था परिवर्तन के सपने पनप रहे हैं। सुबह से देर रात तक जागते इन कमरों में कम्प्यूटर और लैपटॉप पर थिरकती अंगुलियां। कैमरे में उतरी गई हर रैली और हर संघर्ष के वीडियो को एडिटिंग मशीन पर परखती आंखें। हर प्रांत से आये भ्रष्टाचार की लूट में शामिल नेताओं के दस्तावेजो को परखते चेहरे। और इन सब के बीच दो-दो चार के झुंड में बहस मुहासिबो का दौर। बीच बीच में एकमात्र रसोई में बनती चाय और बाहर ढाबे ये आती दाल रोटी। यह राजनीतिक संघर्ष की नयी परिभाषा गढ़ने का केजरीवाल मंत्र है। इसमें जो भी शामिल हो सकता है हो जाये..दरवाजा हमेशा खुला है।
Copied from :- http://prasunbajpai.itzmyblog.com/2012/11/blog-post_24.html?m=1

Thursday, October 17, 2013

क्या आप जानते है की,...

क्या आप जानते है की,...
जब अरविन्द जी IRS अफसर थे तब उन्होंने अपने छोटे से ही कार्यकाल में 82 बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर छापे डाले थे और 5 सौ करोड़ से ज्यादा वसूले थे .....ऐसा door to door करते हुए,...एक दूसरे IRS ने बताया,... जो की ...अरविन्द जी को 15 साल से जानता था ....उनके साथ ही ट्रेनिंग की थी ......

जब ऐसा मौका हाँथ लगा ....तो लगे हाँथ ये भी सवाल पूँछ ही लिया ...की क्या अरविन्द जी वैसे ही है ....जैसे हम जानते है ?...उनका जवाब था .....तुम कैसा जानते हो,..नहीं पता ....पर वो जैसे आज है वैसे ही 15 साल पहले थे .....
ऐसी ही देश भक्ति ....ऐसा ही जूनून ....यही जज्बा .....
उन्होंने बोला .....नहीं आप कोई गलती नहीं कर रहे ....अरविन्द को अपना आदर्श मान ....
दोस्त .....बात करो ....सबको बताओ ....की क्या ..कौन और क्यों ....है अरविन्द ....ये भी बताओ ..की AAP का जीतना क्यों जरुरी है ....बात करने से ही बात बनेगी ....हर जगह बात करो ...मेट्रो में बस में ...ऑफिस में, स्कूल में, कॉलेज में , कोचिंग में ...चाय की दूकान, पान की दूकान ...हर जगह ...हर तरफ ....नागेन्द्र

Tuesday, October 8, 2013

क्यों दी गयी थी चुनौती हमें - आपको ....देश के कामकाजी आम आदमी को ,..

दोस्तों, आज समझ आता है की क्यों दी गयी थी चुनौती हमें - आपको ....देश के कामकाजी आम आदमी को ,...

"की संसद में बनते है कानून ...अगर कानून बनाना है तो संसद में आओ ...."
क्योंकि इनको लगता है की राजनीति,..... भ्रष्टाचार का खेल है ...
और उसमे तो ...ये बाबू लोग माहिर है .....

सोंचते थे की जीत लेंगे ..... पर जनता से लडाई में....जीत लोकतंत्र की होगी .... वयस्था जरुर बदलेगी ...और इसकी शुरुवात 8 दिसंबर 2013 को ..दिल्ली से ....होगी .... जरुर होगी .....

बस आपको अपने हिस्से का काम करना है .....अपने घर/ ऑफिस /चाय की दूकान /मेट्रो /बस ,.......कही भी और हर जगह ....बस काम करो ...बस बात करो .... किसी अरविन्द के लिए नहीं .....किसी आम आदमी पार्टी के लिए नहीं ..... "ये लडाई हमें जीतनी है .....अपने लिए ...अपने बच्चो के लिए ...और देश के लिए ..." आज आप चूके ......तो इतिहास को सब पता चलता है .......

निकलो बाहर मकानों से ....जंग करो बेईमानों से ......नागेन्द्र शुक्ल

http://www.facebook.com/photo.php?fbid=635626723127129&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater
 

आज door to door करते हुए ...सांगली मेस इलाके में घुसते ही पता चला....


आज door to door करते हुए ...सांगली मेस इलाके में घुसते ही पता चला की यहाँ के मठाधीश जनाब राजू वर्मा जी है .......किसी से मिलने से पहले उनसे मिलना पड़ेगा .....तो मिले ...
और मिले,...तो उनका कहना था की अन्दर मत जाओ ...इस बस्ती के सारे वोट उनकी मर्जी से पड़ते है ...और वहीँ पड़ते है जहाँ वो कहते है ...अन्दर सब कांग्रेसी है .....वो आगे बोले आप लोग क्या दोगे ...
हमने जवाब दिया हम देंगे जरुर पर ........सिर्फ आपको नहीं,...सबको देंगे ....
पानी फ्री और बिजली आधे दाम पर ....अच्छे और Private जैसे ..भ्रष्टाचार मुक्त सरकारी स्कूल और अस्पताल ..चुस्त और सही सरकारी महकामे ........
हम जनलोकपाल देंगे ......हम जनता को स्वराज देंगे ....
सत्ता में भागीदारी .....और जनता को सम्मान देंगे ....

पर इतना सब ...सबको देंगे ..सिर्फ आपको नहीं ....
यही बताने जा रहे है अन्दर सबको .....
जा कर बता देना ..उनको जिन्होंने ठेका दिया तुमको इन्हें कांग्रेसी बनाने का .....

इतना सुनते ही ....राजू जी झल्लाये ..और जोर से चिल्लाये ...
अबे तू जानता नहीं है ....मैं तीन बार जेल जा चूका हूँ ....
मैंने कहा .....
हाँ आम आदमी की सरकार बनने के बाद .......आप किसी को ये बताने में डरोगे जरुर ...की तुम 3 बार जेल जा चुके हो ...
और इतना कह जब उस कॉलोनी के अन्दर गये,...
तो पता चला ........अन्दर गुलाम रहते है ...कांग्रेस और राजू के ........
वाकई अभी तक नहीं मिली आज़ादी .......पूरे देश को .....कैसे मिलेगा लोकतंत्र .....
खैर ...अरविन्द जी के ...स्वराज की आग तो लग गयी .....इन गुलामो में ...
बस ध्यान रखना है जलती रहे और .......चुनाव के पहले शराब और नोट से बुझे नहीं .......
Donate Your Weekend .....Come With Us ....Lets Do door to door ...नागेन्द्र शुक्ल
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अरविंद केजरीवाल की खबर पर स्पष्टीकरण

दोस्तों, आप सभी को ये बताना जरुरी है की ....
नवभारत टाइम्स में आज एक खबर छापी जो की सरा - सर झूठ थी सोशल मीडिया में इस झूठी खबर का पता चलने के बाद नवभारत टाइम्स ने उस खबर को डिलीट किया और फिर उसके बाद इस गलती की जिम्मेवारी लेते हुए गलत खबर का स्पष्टीकरण जारी किया, इस स्पष्टीकरण का लिंक नीचे है ...
स्पष्टीकरण तो ठीक पर सवाल ये उठता है की ...
उन अंधभक्तो का क्या होगा ..जिन्हें आदत है रस्सी का साँप बनाने की ....
जब ये अंध भक्त अपने मन से ही झूठी खबरे बना देते है और जम कर प्रसारित करते है ....वो अंध भक्त नवभारत टाइम्स में छपी इस खबर को तो आड़े हांथो लेंगे .....पर इसके बारे में दिए स्पष्टीकरण की बात नहीं करेंगे ....

इसलिए आप सभी से अनुरोध है की इस स्पष्टीकरण के लिंक को अपने पास रख्खे और जहाँ जरुरत हो ..प्रस्तुत करे ....

और सभी मीडिया वालो से अनुरोध की ....ऐसी गलतियाँ होती तो छोटी है ....पर जमीन पर फैले इसके गलत असर को कम करने के लिए ...सिर्फ एक स्पष्टीकरण से काम नहीं चलता ....
उम्मीद करते है की .....आगे से किसी भी ऐसी अपुष्ट खबर को प्रसारित नहीं किया जाएगा ....धन्यवाद
=====अरविंद केजरीवाल की खबर पर स्पष्टीकरण====जो नवभारत टाइम्स ऑनलाइन ने दिया ======

आज के इकनॉमिक टाइम्स हिंदी अखबार में पेज नंबर 7 पर आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के बारे एक आर्टिकल छपा है। यह खबर नहीं बल्कि एक मजाक है, जो फेंकू न्यूज में लिया गया है। फेंकू न्यूज अखबार का एक नियमित कॉलम है, जिसमें हल्के-फुल्के तरीके से मजाक किया जाता है। इसमें 8 अक्टूबर की खबर है- केजरीवाल होंगे कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट। यह खबर गलती से नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के बिजनस सेक्शन के भीतर दिल्ली-बिजनस सेक्सशन में पब्लिश हो गई। ऐसा खबरों के ऑटो अपलोड होने के कारण हुआ है। इस वजह से इसका मजाक का तत्व पब्लिश नहीं हो पाया और खबर को गंभीर मान लिया गया। इससे अरविंद केजरीवाल की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंची। हमने इस खबर को हटा दिया है।

फेंकू न्यूज में छपी खबरों का मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं होता है। यह मजाक का एक सेक्शन है, जिसका मकसद हल्की-फुल्की बातें करना है। इसमें किसी तरह की दुर्भावना नहीं होती है। फिर भी, अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों की भावनाएं आहत होने का नवभारत टाइम्स ऑनलाइन को खेद है। इसके लिए हम माफी मांगते हैं।
स्पष्टीकरण का लिंक http://navbharattimes.indiatimes.com/delhi/other-news/clarification-on-arvind-kejriwals-news/articleshow/23706087.cms

http://www.facebook.com/photo.php?fbid=637124719643996&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater
 

विकास तो हुआ है, पर कुछ अजीब सा हुआ है ...


विकास तो हुआ है, पर कुछ अजीब सा हुआ है ...
आज से करीब 15 साल पहले दूरदर्शन पर TV के इतिहास का सबसे सुपर हिट प्रोग्राम आता था "रामायण"
उस समय हमारे गाँव में पहली TV खरीद कर आयी थी और पूरा गाँव उसी एक TV में रामायण देखता था ...बड़ा अच्छा माहौल होता था ...
विकास हुआ ..और इतना विकास हुआ की ....
मेरे गाँव में तकरीबन 50% घरो में TV पहुँच गया ...तरह तरह के सेटेलाईट TV पहुँच गए ...70% परिवारों में,...लोगो की जेब में मोबाईल फोन पहुँच गए ...अच्छा है बहुत अच्छा है ....
मेरे जिस गाँव में पहले,.... "परवल और पनीर" तक नहीं मिलता था ...
वहाँ आज पेप्सी कुरकुरे बिन्गो टिंगो सब मिलने लगा ...यहाँ तक की विभिन्न कंपनी की बीयर और शराब मिलने लगी ...दुकानों में बीडी की जगह ....महँगी सिगरेट मिलने लगी ...

हाँ हुआ है विकास ....मानता हूँ ....पर ऐसा क्यों ....की
आज से 15 साल पहले भी ...

मेरे गाँव में एक भी स्कूल नहीं था ...और आज भी नहीं है (हाँ नेता जी के प्राइवेट स्कूल जरुर खुल गए )
मेरे गाँव में एक भी अस्पताल नहीं था ....और आज भी नहीं है ....
मेरे गाँव में एक भी पुलिस चौकी नहीं थी ....और आज भी नहीं है .....

ये कैसा विकास हुआ ?.....क्या ऐसे ही विकास को हम,..... विकास कहेंगे ?.....
दोस्त, हकीकत ये है की .....
हर उस रास्ते से जिससे ....आम जनता की जेब से पैसा निकाला जा सकता था ....उस रास्ते पर विकास हुआ ....
पर हर वो चीज़ ...जो मानव विकास के लिए जरुरी है ....वो ना थी ..और ना है ....क्यों ?....
किसकी चाल है ये ?....
ये कौन है जो चाहता है की ....मेरे गाँव में स्कूल अस्पताल हो ना हो .....पर बाँकी सब मिले और मिलता रहे ?....
क्या आप ऐसे विकास से सहमत है ?.....

हाँ समाधान ....है समाधान ....
और समाधान है ..."स्वराज"....Power to the People ...
हाँ यधि ग्राम सभा मोहल्ला सभा के पास ये अधिकार हो ..की प्राप्त सरकारी पैसे को ..जनता कैसे और किस मद में खर्च करे ...
तो मुझे पक्का विस्वास है ....की ...
मेरे गाँव के लोग ....
सबसे पहले स्कूल खुलवाते ....फिर अस्पताल ...फिर कुछ ग्रामो और लघु उद्योग ..पशु पालन ..वगैरह ....
जब इतना सब होता तब ...तब वो luxury के बारे में सोंचते ....

पर नहीं ..हमारी सरकारों ने तो ...नरेगा - मनरेगा चला कर ...जो थोडा बहुत ...टुटा फूटा ...उद्योग था ..उसे भी मार दिया ....
और बना दिया ....हमारे कुशल कामगार को ....एक मजदूर ...

आ रही है दीवाली ..मिलेंगे "लक्ष्मी - गणेश" भी ..चीन में बने .....

क्या यही विकास है ....क्या ऐसा ही विकास चाहती है हमारे देश की सरकारे और राजनीति ?....
नहीं ...नहीं हमें बदलना पड़ेगा ये ...
और उसके लिए लड़ना पड़ेगा .....और माँगना पड़ेगा अपने नेताओं से ...वो ..
वो जो जरुरी है ....सच्चे विकास के लिए .....है की नहीं ....

तो निकलो बाहर मकानों से ...जंग करो बेइमानो से ......नागेन्द्र शुक्ल
download & Read Swaraaj ==> http://iacmumbai.org/downloads.php?id=Tmc9PQ%3D%3D
 

कहानी कभी हकीकत से जन्म लेती है ....तो कभी हकीकत कहानी से ....


अरविंद की आम-आदमी-कृत-राजनीति देखकर “नायक” मूवी की याद आती है .. नेताओं वाली कोई चालाकी, लच्छेदार बातें हैं ही नहीं, केवल आम आदमी वाली सच्चाई और सरलता है, इसीलिए अरविंद की, दिल से बोली बात, सीधे लोगों के दिल तक पहुँचती भी है। दिल्ली अपना दिल दे रही है... और 4 दिसंबर को वोट भी देने वाली है।

वो कहते है ना की फिल्मे समाज का आईना होती है या फिर कोरी कल्पना यानी की सपना ...और सपने तो पाये जा सकते है यदि सच्चे प्रयास किये जाए ...
देश की जनता ने एक फिल्म नायक में भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था का सपना देखा था ....जिसे सच करने के लिए अब आम आदमी प्रेरित और कार्यरत है ....
और दूसरी तरफ समाज का आईना दिखाने वाली श्रेणी में "सत्याग्रह" जो की बता रही है ..की कैसे जन्म हुआ इस सामाजिक और राजनीतिक क्रांति का यह ये भी बताती है की आम आदमी पार्टी में लोग कैसे जुड़े और कैसे और क्यों पड़ी नीव आम आदमी पार्टी की ..पर हाँ ये दोनों सिर्फ एक कहानी है ...

कहानी कभी हकीकत से जन्म लेती है ....तो कभी हकीकत कहानी से ....

आजतक हमने सत्य घटना से प्रेरित फिल्में देखी हैं, अब की बार फिल्म से प्रेरित और कहीं ज्यादा सुखद सत्य घटना को अपने जीवन के पर्दे पर देखेंगे... जब नेताओं द्वारा “साफ-राजनीति करके दिखने की चुनौती” को आम आदमी न केवल स्वीकार करेगा बल्कि करके भी दिखाएगा ।
रामलीला मैदान में अपनी सीट रिजर्व करने के लिए पहले ही “रुमाल डाल आयें” , क्योंकि 29 दिसम्बर को यहाँ सत्याग्रह-2 के सुखद और अहम् पड़ाव,....वाली घटना होगी जब दिल्ली वालों के सहयोग से बनी आम आदमी की सरकार ,...अन्नाजी वाले लोकपाल/लोकायुक्त बिल को पास करेगी जो कि ये भी सुनिश्चित करेगा कि खुद AAP के नव-निर्वाचित विधायक भ्रष्ट न हो जाएँ ।

#DelhiDeservesBest #Vote4AAP #AAP
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सही में अरविंद ईमानदार हैं ?

सही में अरविंद ईमानदार हैं ?
अरविंद केजरीवाल सचमुच में ईमानदार है भाई साहब ? जित्ता बोलता है उत्ता है ? जब भी लोग टीवी के कारण मुझे पहचानकर मिलते हैं ये सवाल करते हैं । अब सोचने लगा हूँ कि वे इस तरह से आशंकित होकर क्यों पूछते हैं । इस भाव से क्यों पूछ रहे हैं कि कहीं झूठ सच बोलकर तो अरविंद खुद को ईमानदार नहीं बता रहे । इतना सवाल क्या ये लोग बेईमान नेताओं से करते हैं , उन दो दलों से करते हैं जिन पर न जाने भ्रष्टाचार के कितने आरोप लग चुके हैं और रोज़ लगते हैं । कई बार ऐसा लगता है कि इस देश में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार खुद को ईमानदार बताना है । ईमानदार को यू हीं पागल नहीं कहा जाता हमारे देश में । दरअसल राजनीति में लोगों को ऐसा नेता चाहिए जो देश का तो नहीं हो मगर अपने लोगों को लिए सबका हो । रही बात ईमानदार की तो वो किसी का नहीं होता भाई । क्या ये मानसिकता है इस सवाल के पीछे ?

एक आईएएस अफ़सर का फ़ोन आया । अरविंद के साथ मेरा हमलोग चल रहा था । उन्हें ग़ुस्सा इस बात को लेकर था कि इस आदमी को चोर बेईमान बताने में मैंने विशेष परिश्रम क्यों नहीं किया । पहला सवाल क्या ये गारंटी लो सकते हैं कि इनके सारे उम्मीदवार ईमानदार रहेंगे । मैंने कहा क्या ये सवाल आप कांग्रेस बीजेपी से कर रहे हैं ? कोई जवाब हीं । फिर कहने लगे पता है कौशांबी में कितने फ़्लैट हैं । मैंने कहा एक हैं । जैसा देखा था आज तक वैसे ही है । आप के पास सबूत है तो दीजिये कल खुद अरविंद को घेर कर पूछूँगा । जनाब चुप हो गए । फिर मैंने कहा दोनों नौकरी करते हैं । दो घर ख़रीद लिया होगा तो कौन सी बड़ी बात है । मैं भी ख़रीदने की सोच रहा हूँ । यह कहाँ लिखा है कि दूसरा घर चोरी का होता है । तो तड़ से अफ़सर साहब बोले लेकिन आपने क्यों नहीं पूछा कि पत्नी क्यों इंकम टैक्स में नौकरी करती है । मुझसे रहा नहीं गया । पूछ दिया कि उनकी पत्नी क्या करे इसका फ़ैसला आप करेंगे, अरविंद करेंगे या उनकी पत्नी । मैं अरविंद को चोर मानने के लिए तैयार हूँ बस आप अपना बता दीजिये । आप सौ प्रतिशत ईमानदार हैं न । फ़ोन कट गया । सही में कट गया । दोबारा नहीं आया ।

अब समझ आ रहा है । दरअसल भ्रष्टाचार एक सिस्टम है । इस सिस्टम का पीड़ित भी लाभार्थी है । जो रिश्वत देता है वो उससे कमाता भी है । हाँ इस सिस्टम के बाहर के गेट पर खड़ा आम आदमी ही मर रहा है बस । भीतर लेन देन करने वालों को कोई दिक्क्त नहीं है । यही लोग चाहते हैं कि बस कहीं से कोई एक बार अरविंद केजरीवाल को चोर साबित कर दे । ताकि करप्शन को लेकर उन्हें नैतिक संकट का सामना न करना पड़े । भ्रष्टाचार सीमित परंतु बड़ी संख्या में लोगों के रोज़गार का ज़रिया भी है । इसी सिस्टम से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े लोग सवाल करते हैं कि भाई साहब सचमुच अरविंद ईमानदार है । ये लोग चाहते हैं कि हे भगवान अरविंद को फ़ेल करा देना । उनकी बस यही चिंता है कि खुद की ईमानदारी और दूसरे भ्रष्ट को पकड़वाने का दावा करने वाला न जीते । ये और बात है कि हार जीत का निर्णय जनता तमाम बातों को देखकर करेगी मगर इसमें ईमानदारी पर सवाल करने वाला एक तबक़ा अलग से हैं । ............रवीश कुमार - NDTV
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