Thursday, November 22, 2018

जब मकान हमारे कच्चे थे,...रिश्ते सारे पक्के थे

दादी माँ बनाती थी.. रोटी !!
पहली.. गाय की ,
और आखरी.. कुत्ते की..!
हर सुबह.. नन्दी आ जाता था ,
दरवाज़े पर.. गुड़ की डली के लिए..!

कबूतर का.. चुग्गा ,
चीटियों.. का आटा..!
शनिवार, अमावस, पूर्णिमा का सीधा.. सरसों का तेल ,
गली में.. काली कुतिया के ब्याने पर.. चने गुड़ का प्रसाद..!
सब कुछ.. निकल आता था !
वो भी उस घर से..,
जिसमें.. भोग विलास के नाम पर.. एक टेबल फैन भी न था..!
आज..
सामान से.. भरे घरों में..
कुछ भी.. नहीं निकलता !
सिवाय लड़ने की.. कर्कश आवाजों के.!
....हमको आज भी याद है -
मकान चाहे.. कच्चे थे
लेकिन रिश्ते सारे.. सच्चे थे..!!
चारपाई पर.. बैठते थे ,
दिल में प्रेम से.. रहते थे..!
सोफे और डबल बैड.. क्या आ गए ?
दूरियां हमारी.. बढा गए..!
छतों पर.. सब सोते थे !
बात बतंगड.. खूब होते थे..!
आंगन में.. वृक्ष थे ,
सांझे.. सबके सुख दुख थे..!
दरवाजा खुला रहता था ,
राही भी.. आ बैठता था...!
कौवे छत पर.. कांवते थे
मेहमान भी.. आते जाते थे...!
एक साइकिल ही.. पास था ,
फिर भी.. मेल जोल का वास था..!
रिश्ते.. सभी निभाते थे ,
रूठते थे , और मनाते थे...!
पैसा.. चाहे कम था ,
फिर भी..
माथे पे.. ना कोई गम था..!
मकान चाहे.. कच्चे थे ,
पर..रिश्ते सारे सच्चे थे..!!
अब शायद..सब कुछ पा लिया है !
पर..
लगता है कि.. बहुत कुछ गंवा दिया!!!

Saturday, November 10, 2018

भाई हाफ़िज़ हो गया है ,....

भाई हाफ़िज़ हो गया है ,....
जगह बैंगलोर ,.... नाम शाहिदा ,.... भाई का नाम जुनैद ,.. पिता रज्जाक ,....
घर के पास ,... एक दुकान में लॉन्ड्री चलाते है ,.... काम काफी रहता है,..
आज दुकान पहुँच,.. कपडे उठाने,.. तो ,...
तो कपड़ों की तह,... कुछ अलग तरह से लगी थी ,.. पूँछा
किसने करे ,.... बोली भाई ने ,... पापा गाँव गये है ,..
वो थोड़ा ,.. सहमी हुई सी,... बोली -
अगर ठीक नहीं बने तो दुबारा कर देती हूँ ,... हमने कहा ,..
कपडे ही तो है ,... क्या फर्क पड़ता है ,.. छोड़ो !!
खैर - करे किसने थे ?? वो बोली ,.. भाई ने ,...
पूँछा ,.. अच्छा वो स्कूल जाता है ,... बोली नहीं ,... वो तो हाफ़िज़ हो गया है ,....
हमने कहा ,... हाफ़िज़????,.. अरे कितनी क्लास में ,...
उसने कहा,.. वो हाफ़िज़ हो गया है ,...
(हमने मतलब निकाला - शायद सारी कक्षा पास कर के - पारंगत हो गया है ,... पता नहीं,..सही की गलत )
खैर हमने आगे पूँछा ,... तुम स्कूल जाती हो ,...
वो बोली हाँ ,... हमने कहा तुम कौन सी क्लास में ??
वो बोली नहीं उर्दू स्कूल में ,... हमने कहा उर्दू स्कूल - मतलब मदरसा ??
वो बोली - नहीं उर्दू स्कूल ,...
हमने कहा ,.. अच्छा तुम्हारी कौन सी क्लास ,...
जवाब फिर वही ,.. उर्दू स्कूल ,...
हमने कहा ,... अच्छा पहाड़े आते हैं ??,... वो थोड़े अचरज सी हंसी ,...
हमने कहा ,.. पहाड़े मतलब ,... table ,.. बोली नहीं ,.. बस थोड़ा मुस्काती रही ,...
आगे हमने पूँछा ,... अच्छा पैसे कितने देने है बोली ,... 4 कम 100 ,..
हमने मन में ,.. पहाड़े तो इसको ,... जिंदगी ने सीखा दिए है ,..
स्कूल तो बस धोखा दे रहा है ,....
सोचते हुए ,... कपडे ले ,.. घर आ गए ,... और ,...
तुरंत आप सभी को बता दिया ,..
वैसे ,.. हाफ़िज़ का मतलब जो हमने समझा ,.. सही की गलत ??
और एक बात ,.. अच्छे अच्छे ,.. इंटरनेशनल स्कूल के,... इस उम्र के बच्चे ,... ना बता पायेंगे ,...
एक कपडे के 8 रूपये ,... कुल १२ कपडे तो पैसे कित्ते ??,...
सच है ,... जिंदगी ,... सबसे बड़ी गुरु है !! और स्कूल चाहे ये हों या वो हो ,... बस धोखा ही दे रहे है !! #NagShukl

Sunday, September 9, 2018

उस दिन की ही तो बात है ,....

उस दिन की ही तो बात है ,....
गर्मी की छुट्टी थी ,... दोपहर का समय ,..... गूलर का पेड़ और उसकी छाँव में - वो 5 नंबर का पत्थर ही तो था ,....
जिसपे कुछ बैठे थे ,... कुछ सामने दीवार से सटे खड़े थे ,... और कुछ उधर दीवार पर टेक ले खड़े थे ,..
शायद बिजली आ नहीं रही थी ,... धुप तेज़ थी,... लू भी ,.... आह स्वर्ग
हम्म्म ,.... स्वर्ग ,..
स्वर्ग क्या ???,....ओय ,... स्वर्ग वही था उल्लू !!

कोरा कागज़ ,...

कभी कभी सोंचता हूँ - लिख के ,.... ये लिख क्या दिया??,...
फिर ,.. मिटा के सोंचता हूँ ,... लिखा ही था तो मिटाया क्यों ??
लिख के मिटा तो दिया ,.. पर ,..
पर वो कागज़ - जो कोरा था ,... अब कोरा कहाँ ??
करूँ उस कागज़ को - कोरा कैसे ??
शायद वो कागज़ - कोरा ही महान है ,... जीने का आसार है ,....
उसी में है - लिखने की सम्भावनाएं अपार!
जो लिख गया ,... वो बिकेगा एक दिन,...
पान में लिपट,... या ,...
या मिलेगा किसी दिन ,.... समोसे के नीचे !!
कागज़ - जो कोरा है ,....
एक खुला आसमान,... धरती विशाल ,..... गहरा समंदर ,... उड़ता पंक्षी ,.. गमले की तुलसी,.... जंगल का बरगद ,...
मोहल्ले का गूलर ,... बुधई की नीम ,... नीम पर गिल्लू ,... वो क्या हो सकता है ,...
वो क्या - नहीं हो सकता ??,...
पर हो कुछ भी ,.. मिटना तो उसे भी है ,....
मिलेगा वो भी कभी ,.... यहाँ या वहाँ ,...
लिखा हो - ना लिखा हो ,.... अंत सभी का एक है ,...
जो लिखा है ,.. शायद उसे सुकूँ है - किसी ने तो पढ़ा है ,... पर दुःख शायद ,..
जो लिखा है - उसे समझा कहाँ ??
समझा नहीं शायद उसने - है कोरा कागज पास जिसके !!#NagShukl

Sunday, September 2, 2018

भगवान् श्री कृष्ण ,....

भगवान् श्री कृष्ण ,....
भगवान् श्री कृष्ण ,.... जब युद्ध से पहले दुर्योधन को समझाने गये ,... की तुम्हे ऐसे काम नहीं करने चाहिये - जिनसे युद्ध हो ,...
धर्म और अधर्म को समझो ,... जो तुमने किया वो गलत था ,.... जो तुम कर रहे हो वो भी ,....
तब ,..
तब दुर्योधन ने कहा ,...
माधव ,... धर्म क्या है - अधर्म क्या ,... सही गलत का - ज्ञान है मुझे ,...
बस दिक्कत इतनी है ,... की ,...

की धर्म का मार्ग पकड़ने की मेरी इच्छा नहीं और ,.. इस अधर्म का आनंद मैं त्याग सकता नहीं ,....
ये कुछ वैसा है ,... जैसे हम अपने दोस्त को समझायें ,...
सुन ,. गुटखा मत खाया कर ,... प्लीज़ दारू मत पियो ,.... और वो जवाब दे ,...
"अबे ज्ञान मत दे मुझे ,... सब पता है",...
खैर ,...
मतलब सिर्फ इतना है की ,...
की जब हम गलत कर रहे होते है ,... हमें अच्छी तरह ज्ञात होता है ,...
"हम गलत कर रहे है",....
और गलत कर देते है ,... जानते हुए की गलत है ,.... अर्थात ,...
गलत हम ,... जानबूझ कर करते है ,....
जो जानबूझ कर की गयी - गलतियाँ ,.... अक्षम्य है !!,...
और अक्षम्य का - दंड अनिवार्य है ,.... जो मिलता है और मिलेगा अवश्य !!,..
अंतिम बात - बस इतनी है की ,...
की वो क्या है ,...
वो क्या है जो हमें - जानबूझ कर गलत करने को मजबूर करता है ???
वो है हमारा ,... काम - क्रोध - मद - लोभ ,.....
जो मात्र इसलिए ,... क्योंकि - उस वक्त अपनी इन्द्रयों के स्वामी बनने की जगह - दास बन गए ,.... तो
तो ,... यदि मोक्ष पाने का रास्ता ,... धर्म है (जो सिद्ध है) तो ,...
तो मोक्ष पाने ,... उपकरण - कर्म ,... मात्र एक है ,...
मात्र एक ,.... और वो है ,... इन्द्रियों पर विजय !!,....
शायद - यही गीता का ज्ञान है ,... की,...
की मोक्ष आसान है ,... और ,... और है तुम्हारे हाथ ,....
खैर छोड़ो ,... मेरा क्या ,.. मैं तो पौधा हूँ ,...

प्रैक्टिकल गीता ज्ञान ,....
गीता का सार ,... वैसे तो गीता का सार बता पाने की क्षमता,... शायद हम मनुष्यो में है ही नहीं ,....
फिर भी ,... कुछ महामानव अपनी अपनी - समझ के अनुसार कुछ न कुछ बता ही देते है ,.. तो ,..
पहली बात ,...
पहली बात तो ये की ,... जो सबसे प्रचलित गीता सार है ,.... वो है की ,..
"कर्म करो - फल की चिंता किये बिना",...
देखा जाये तो कितना सटीक है ,... यदि आप फल चिंता करेंगे - तभी कर्म से आसक्ति उतपन्न होगी ,.. तभी दुःख होगा - तभी सुख होगा और मोक्ष ,..
और मोक्ष,...
मोक्ष दुःख - सुख से परे,... की ही स्थिति,.. का ही नाम है ,....
खैर ,... अब व्यवहारिक बात ,...
यदि फेसबुक पर पोस्ट करते ,... ट्विटर पर ट्वीट करते ,... हम ये सोंचना छोड़ पायें ,..
इसे कितने लाइक, शेयर, रीट्वीट, कमेंट मिलेगा ,... कौन इसको लाइक करेगा - कौन कमेंट ,...
किसको इससे फायदा होगा - किसको इससे नुक्सान ,...
तभी ,...
हाँ तभी ,.. और सिर्फ तभी ,...
हम वो लिख पायेंगे जो हमारे मन का सत्य है ,....
और मोक्ष ,....
मोक्ष तो मात्र सत्य में है - धर्म में है !!,..
छोड़ो ,... मेरा क्या - मैं तो पौधा हूँ ,... चलो बोलो ,..
"जय श्री कृष्ण",...
श्री कृष्ण गोविन्द - हरे मुरारी ,... हे नाथ नारायण वासुदेवा !! #Nagshukl

मैं ब्राम्हण हूं

मैं ब्राम्हण हूं
जब मैं पढ़ता हूँ और पढ़ाता हूँ
मैं क्षत्रिय हूँ
जब मैं अपने परिवार की रक्षा करता हूँ
मैं वैश्य हूँ
जब मैं अपने घर का प्रबंधन करता हूँ
मैं शूद्र हूँ
जब मैं अपना घर साफ रखता हूँ
ये सब मेरे भीतर हैं, इन सबके सयोजन से मैं बना हूँ

वस्त्तुतः सच यही है कि हम सुबह से रात तक इन चारो वर्णो के बीच बदलते रहते हैं।

अंग्रेजों में ,.... जो सोने का काम करता है वो Goldsmith है ,....
हिन्दुस्तान में ,.... वो सुनार है ,....
और ,...
अंग्रेजों में ,.... जो भेड़चारता है वो Shepard है ,....
हिन्दुस्तान में ,.. वो गडरिया ,....
कौन,... है कौन???- जो कहता है ,....

हिन्दू में - हिन्दुस्तान में ,.... जातिवाद है ???
गर है तो ,..
तो,... निश्चित रूप से वही है ,... जो सब जगह है ,...
preacher + Teacher = ब्राम्हण Isn't it??

Tuesday, March 20, 2018

Collection

“मैं गया था सोच के, बातें बचपन की होंगी, दोस्त मुझे अपनी तरक़्क़ी सुनाने लगे।”

किसको बर्दाश्त है "साहेब" तरक़्क़ी आजकल दुसरो की लोग तो मय्यत की भीड़ देखकर भी जल जाते है

"वो दोस्त मेरी नज़र में बहुत ‘माईने’ रखते है, जो वक़्त आने पर मेरे सामने ‘आईने’ रखते हैं।"

आँखें ही थी जो कह गयी सब कुछ ... लफ्ज़ होते तो मुक्कर गए होते ...

सिर्फ शब्दों से न करना किसी के वजूद की पहचान हर कोई उतना कह नहीं पाता जितना समझता और महसूस करता है...

पर्वतों की तरह खामोश हैं, आज के संबंध और रिश्ते..! जब तक हम न पुकारें... उधर से आवाज़ ही नहीं आती..!!

“मुस्कुरा कर दर्द को सहना क्या सीख लिया सबने सोच लिया हमे तकलीफ ही नही होती”

उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा . धूल चेहरे पर थी ,आइना साफ़ करता रहा !!

फिसलती ही चली गई एक पल रुकी भी नही अब जाके महसूस हुआ रेत के जैसी है ज़िन्दगी

मुद्दतें लगीं बुनने में ख्वाबों का स्वैटर.. जब तैयार हुआ तो मौसम बदल चुका था..

"सुकून वो था जब" होठों पे मुस्कान थी... कंधो पे बस्ता था सुकून के मामले में वो जमाना सस्ता था ....

“बचपन में पापा की लगायी बंदिशो को तोड़ने में बहुत मज़ा आता था, अब बड़े होकर ख़ुद पर लगायी बंदिशें तोड़ी नहीं जाती.”

“कितना जानता होगा वो शख़्स मेरे बारे में, मेरे मुस्कुराने पर जिसने पूछ लिया तुम उदास क्यूँ हो.”
 
 
 

Monday, March 19, 2018

विश्व गौरैया दिवस (#WorldSparrowDay) पर फोटो दिखाने की कोशिश

आजकल तो हर बात की फोटो खिंच जाती है ,.... क्या हुआ, कैसे हुआ - इसके लिए फोटो ढूंढी जाती है ,... पर ,...
पर बचपन में,...
कुछ फोटो आँखों ने खींची थी ,...
वो फोटो जो आँखों ने खींची थे उन्हें किसी को दिखा पाना मुश्किल - लेकिन ढूंढना बहुत आसान ,...
आज ,...
आज विश्व गौरैया दिवस (#WorldSparrowDay) पर ऐसी ही फोटो दिखाने की कोशिश ,....
महीना चैत्र - बैशाख का ,.... समय दोपहर के खाने का ,... थाली ,...
थाली में ,..
शानदार (चैतुई) अरहर की दाल ,... घी लगी रोटी ,... आलू के साथ कोई सूखी सब्जी और चावल ,...
बगल में,...
मिटटी की चकती पर रखी थोड़ी सी अगियार और एक छोटी थाली ,... उस रखी कई छोटी - छोटी रोटियाँ ,...
छोटी - छोटी रोटियाँ ,....
एक,... अगियार (हवन) के लिए ,...
एक,... गाय के लिए ,...
एक,... कुत्ते के लिए ,...
एक,... कौवे के लिए ,...
और भोजन की शुरुवात ,... भोजन मन्त्र के साथ ,...
हवन की समाप्ति ,.... "नैवेद्यं समर्पयामि" के साथ ,...
निवाला तोड़ने से पहले ??,... गाय की रोटी ,... गाय को पहुँची ,...
कौवे की कौवे को ,... और कुत्ते वाली - कुत्ते को ,...
पर ,...
पर क्या हमारी प्यारी चिरैया ,....
हमारी प्यारी चिरैया ,....वो गौरैया ,.. वो गौरैया क्या भूखी ही रहेगी ??
उसकी तो कोई रोटी नहीं ,....
ना जी ,... वो हमारी प्यारी चिरैया है - गौरैया है ,... वो भला कब फेंके हुए दाने खाती थी ?? वो तो ,..
वो तो ,.. थाली की बाट पर बैठ ,... थाली के चावल ही ले जाती थी ,... बेझिझक ,... निडर - अधिकार के साथ ,...
साझा हुआ करता है ,....
प्यारी चिरैया का ,... थाली में हमारी!!
बस ,.. यही फोटो ,... बस यही फोटो है जो आँखों में है ,.. जब याद आती है गौरैया की ,...
कोशिश की ,... की आप भी देख लो ,....
पर शायद ,...
पर शायद ,... आपके लिये इस फोटो पर विश्वास करना उतना मुश्किल ना हो ,... जितना आने वाले समय में बच्चो को बता पाना मुश्किल होगा की ,..
की ये कोई झूठी कहानी नहीं ,..... दैनिक दिनचर्या थी हमारी - तुम्हारी ,....
प्यारी गौरैया ,....पुराना घर टूटा ,... उसके साथ उजड़ी वो भी ,...
घर हमारा दुबारा बना ,...
वो धन्नी - वो छपरे अब नहीं ,... वो आँगन - वो चौके अब नहीं ,...
अब लेंटर है ,... फाइबर सीट है ,...
किचन और ड्राइंग रूम पर ,... डाइनिंग टेबल है ,....
घर हमारा - बना दुबारा ,... बसा दुबारा ,....लेकिन ,...
लेकिन वो हमारी प्यारी चिरैया ,.... हमारी प्यारी गौरैया ,...
उसका घर खो गया ,...
उसे थाली की बाट पर बैठ - खाना पसंद था ,.... शायद ,.. ये डाइनिंग टेबल अच्छा ना लगा ,...
उसे धन्नी के छेद में रहना पसंद था ,... रहने को कमरे हमारे पसंद नहीं ,...
उसे खुले आँगन में चहचहाना पसंद था ,... ड्राइंग रूम में बैठ - टीवी देखना नहीं ,...
शायद ,...
शायद ,... इसिलये ,... वो छोड़ गयी ,.. हमें ,.. हमेशा के लिए ,...
वो बोली थी जाते - जाते ,... पर सूना नहीं था हमने ,...
वो बोली थी ,...
वो बोली थी ,... ये लेंटर की छत नहीं ,... वो AC लगा ड्राइंग रूम नहीं ,...
मुझे ,..
मुझे तो ,... वो धन्नी की खोह,.... खुला आँगन और थाली की बाट ही चाहिये ,...
वो नहीं आयेगी ,...
वो नहीं आयेगी ,... मेरे पास रहने ,.... मेरे साथ इस विकास में ,...
वो साथी है मेरे सुकून की ,.... वो साथी नहीं विकास की ,...
इस धत्त तेरे ,.. विकास की !! #NagShukl

Wednesday, January 10, 2018

हे मूर्ख ,.. धर्म का विरोध ही - तेरा धर्म है !!

धर्म ,...
धर्म ,.. जो कुछ भी है ,.. व्यक्तिगत है ,... सामूहिक नहीं

मेरी समझ ये नहीं आता ,..
कोई भीड़ ,... कोई समूह ,..
धर्म के लिए लड़ कैसे सकता है??
क्योंकि ,....
क्योंकि धर्म ,....
धर्म,....नाम की जो चीज है,...
वो हो ,.. चाहे जो ,..
चाहे जो कुछ भी हो ,...होगी व्यक्तिगत,..
,... सामूहिक नहीं ,...

तो जो चीज ही व्यक्तिगत है - उसके लिए समूह कैसे लड़ सकता है ??
व्यक्तिगत ?,...
जैसे बिच्छू का धर्म ,... डंक मारना ,..
और ,..
साधू का धर्म ,.. बिच्छू को बचाना ,...

वैसे धर्म ,..
कोई सीधी लाइन भी नहीं ,.... और स्थूल भी नहीं की ,...
बाहरी कारक प्रभाव ना डाल सके ,..
परन्तु ,...
जिसका जो धर्म हो ,... होना ऐसा चाहिए की.... बाहरी कारक प्रभाव ना डाल सकें !!

एक उदाहरण ये है की ,...
"वो कहते हैं ,... वो नास्तिक है ,...
हम कहते हैं ,...
हे मूर्ख ,.. धर्म का विरोध ही - तेरा धर्म है !!"

बाँकी  - कभी बाद में ,...

Sunday, January 7, 2018

हमें याद आता है ,.. आंदोलन के समय सब साथी,.....

हमें याद आता है ,.. आंदोलन के समय सब साथी - जब एक दुसरे को फोन करते थे तब ,....
तब ,.. हेलो की जगह "वन्दे मातरम" बोला करते थे ,... फिर आम आदमी पार्टी बनी ,...
ये सिलसिला तब भी जारी रहा ,...
49 दिन में इस्तीफा हुआ ,.. मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान हुआ ,..
ऐलान होते ही ना जाने क्या हुआ की ,...
अचानक ,... "वन्दे मातरम्" वाले में 50% हिचकिचाने लगे,... फिर ,..
फिर 67 जीती ,.. और जीतने के बाद ,..
जीतने के बाद ,.. मोदी विरोध ,... मोदी विरोध इस कदर सिर्फ पर हावी हुआ की ,...
वो ,.. "वंदे मातरम्" विरोध तक में बदल गया ,..
यहाँ तक बढ़ा की,.. यदि आप ,..

आप ,.. "आप" के दफ्तर में जा - किसी पुराने जानने वाले से भी "वन्दे मातरम्" बोल दें तो ,..
तो ,... पार्टी दफ्तर में बैठे ,... 67 के दम्भी - नवोदित क्रांतिकारी ,...
पलट के "वन्देमातरम" बोलने की जगह ,... तुरत वहीं ,... आपको ,... संघी - चढ्ढीधारी घोषित कर देते थे ,...
और बाँकी बैठे कुछ क्रांतिकारी ,.. उनकी सहमति में ठहाके लगा देते थे ,...
दफ्तर के इस वैचरिक और चारित्रिक परिवर्तन और सोंच - समझ का ये बदलाव ,...
किसी के विरोध मात्र को ,... देशभक्ति बना / बता देना,...
किसी के विरोध मात्र को ,... स्वराज बना / बता देना
किसी के विरोध मात्र को ,... सारी समस्याओ का समाधान बना / बता देना
किसी के विरोध मात्र को ,... पार्टी के प्रति समर्पण बना / बता देना
किसी के विरोध मात्र को ,... राजनीति - स्वक्ष राजनीति बना / बता देना
ये सब ,..
ये सब ,.. इंगित कर रहा था ,... की ,..
की इनकी दिशा,.. क्या होने जा रही है और इस दिशा के चलते,.. दशा ,..
दशा वही जो होने वाली है ,..
ध्यान रहे ,... "आप" किसी मोदी से विरोध कीजिये ,... हमारा समर्थन है,... पर ,...
पर "वंदे मातरम" के साथ ,... इसके बिना ,...
इसके बिना ,... माफ़ कीजियेगा,.. कोई तरीका नहीं की ,...
की हम आपके पक्ष में खड़े दिखाई दें ,.. #NagShukl

Friday, January 5, 2018

ये सन्देश "आप" के उन तथाकथित अंधभक्तों के लिए जिन्हें पार्टी का हर फैसला मंजूर है

दोस्तों,

ये सन्देश "आप" के उन तथाकथित अंधभक्तों के लिए जिन्हें पार्टी का हर फैसला मंजूर है चाहे वो गलत भी क्यों ना हो.


आज आन्दोलन से निकली पार्टी के इतने बुरे दिन आ गए कि अब हमें कांग्रेस के लोगों को राज्यसभा भेजना पड़ रहा है "आप" की तरफ से ?

कहाँ थे ये गुप्ता जी बंधु जब इस मुल्क का आम आदमी सड़कों पर पुलिस की लाठियां खा रहा था और एक नए राजनैतिक विकल्प के लिए सड़कों पर गलियों की धूल फांक रहा था ?

जिन्हें हटाने, जिन्हें बदलने , जिन्हें सजा दिलवाने के लिए हम दिन रात एक थे आज उन्ही को सर माथे पर बैठा राज्यसभा भेजा जा रहा है.

और जो पार्टी समर्थक और कार्यकर्ता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं उन्हें ही कुछ चापलूस "गद्दार" कह रहे हैं और कहते हैं कि पार्टी छोड़ दो !!

इन अंधभक्तों की रीढ़ की हड्डियों का पानी खत्म हो गया पर हमारा नही।

प्रश्न पहले भी करते थे और आगे भी करेंगें। आखिर प्रश्न पूछना भी तो इस मुल्क में अन्ना और अरविंद ने ही तो सिखाया था।

अगर आंखें मूंद कर नेताओं के गलत फैसले मान लेना ही पार्टी से वफादारी है तो फ़िर कांग्रेसियों और भाजपाइयों से बड़ा वफादार इस मुल्क में कौन है ? क्या हम इनसे भी दो कदम आगे जाना चाहते हैं चाटुकारिता में ?

तुम लोगो की हैसियत क्या है जो प्रश्न उठाने वालों को कह रहे हो कि या तो चुप रहो तो पार्टी छोड़ो।

क्यों भाई, क्यों छोडें ? ये पार्टी किसी के बाप की थोड़े ही है ???????

" वजीर ना सही , हम सिर्फ प्यादे ही सही,
पर खेल में औकात सिर्फ तुम्हारी थोड़ी ही है

वो कहते हैं हमें कि चुप रहो या छोड़ दो इसे,
क्यों भाई, मुंह में जुबान किसी और की थोडी ही है,

हमारी थी, हमारी है और सदा हमारी ही रहेगी,
कहदो उनसे कि किसी के बाप की ये "आप" थोडी ही है."

डॉ राजेश गर्ग.

सोंचता हूँ - ऐसे कैसे ??

आये दिन ,...
खबर आती है की ,...
इस गाँव में ,...कभी उस गाँव में ,.....
कोई मर गया.
भूख से ,...
सोंचता हूँ - ऐसे कैसे ??
उस गाँव में,..
उस गाँव में,...कोई और,.. जिन्दा नहीं था??,.... या
उस गाँव में,...कोई और,.. समर्थ नहीं था ??
पता नहीं ऐसे कैसे,..हो रहा है / हो सकता है ??
क्योंकि ,... हमने,.. जो सभ्यता ,..
जो समरसता ,... देखी है ,..
अपने गाँवों में ,....
उसमे ,... कोई एक भूख,... से नहीं मर सकता था ,...
एक भूख से नहीं मर सकता था ,...
क्योंकि गाँव के बाँकी लोग ,.. उन एक - दो ख्याल रखते थे ,...
हमें याद ,...
कितने लोग ,... गेंहू - दाल - मठ्ठा - शकरकंद - आलू आदि ऐसे ही ,... एक दुसरे को दिया लिया करते थे ,...
लेकिन हकीकत है की लोग मर रहे है ,... तो
तो क्या ,..."देना लेना - बंद हो गया - गाँव में" ?? #NagShukl

Tuesday, January 2, 2018

आप के एक - सबसे शुरुवाती साथी ,..

दोस्तों,

बहुत महीनों से "आप" के बारे में कुछ लिखा नहीं, कोई स्व -विचार नहीं रखे. सिर्फ राजनैतिक और सामाजिक पोस्ट्स को शेयर करता रहा. अब राज्य सभा के लिए "आप" के संभावित उम्मीदवारों के लिए सोशल मीडिया पर जूतमपैजार चालू है. पढ़कर सिर्फ अफ़सोस करने के सिवा
किया भी क्या जा सकता था , सो वही किया.

पर आज देखा कि कोई गुप्ता जी है ,जो एक CA है और दुसरे भी गुप्ता जी है जो पहले कांग्रेस में थेऔर अब "आप" में - इन दोनों का नाम संभावित उम्मीदवारों में आ रहा है. पढ़कर दिल को ठेस लगी. क्या अब "आप" के इतने बुरे दिन आ गए हैं कि सिर्फ ऊँचे पदों पर बैठे लोगों या कांग्रेस से लाये लोगों को अपना नुमाइंदा बनाना पड़ रहा है.

क्या हमारा संघर्ष इसी दिन के लिये था ? क्या सड़कों पर इन्ही कांग्रेसी नेताओं को अपना "नेता" बनाने के लिए उतरे थे ? क्या "आप" को अपनी मेहनत की नेक कमाई का छोटा सा "दान" इसीलिए लाखों लोगों ने दिया कि सत्ता के गलियारों के नजदीक बैठे लोग चापलूसी से सत्ता की मलाई खाएं ?

नहीं, "आप" का सत्ता में आना एक आम आदमी का सत्ता में आना है. वो आम आदमी जो इस भ्रष्ट तंत्र से बुरी तरह हिल चूका था. जिसे इस मुल्क के लिए कोई आशा की किरण नज़र नहीं आती थी. तब अरविन्द, मनीष, संजय, गोपाल राय, योगेन्द्र और प्रशांत जैसे कुछ लोगों ने अन्ना की अगुवाई में जनता की आवाज़ उठाई.

हमारे जैसे लाखों आम लोग इस जूनून का हिस्सा बने, इसे और आगे तक बढाया- किसी ना किसी तरह योगदान देकर- तन से, मन, से, धन से, समय देकर, सड़कों पर प्रचार कर, लाठियां खाकर, नौकरियां खोकर, अपमान सहकर - दिन रात इस सपने को देखा, जिया और हकीक़त बनाने में योगदान दिया.

जब दिल्ली में सत्ता आई, तब कई तथाकथित बुद्धिजीवी अपने अपने ड्राइंग रूम से बहार निकलकर "आप" से जुड़ने लगे- ये वो लोग थे जो अपने अपने काम में सफल, अमीर और प्रसिद्ध थे- पर आन्दोलन के वक़्त बिलकुल चुप थे- अब दिल्ली में सत्ता मिलने पर इन्हें "आप" में रस आने लगा. अब ये अपने नाम और प्रसिद्धी को भुनाते हुए "आप" में शामिल होना शुरू हुए. ये प्रसिद्ध वकील, पत्रकार, उद्योगपति, बैंकर, लेखक आदि थे जो "बहती गंगा में हाथ धो " लेने चाहते थे और इन्होने हाथ धोये भी. अपनी प्रसिद्धी का फायदा उठा ये लोग सरकार के नेताओं के नजदीक आ गए.

पर इस पूरी कयावद में वो आम आदमी कहाँ गुम हो गया जो "कुछ भी नहीं था" ? जो अनजान सा था ? जो इस पूरे आन्दोलन का असली केंद्र था ? जो कुछ ना होते हुए भी पारंपरिक राजनैतिक दलों को चुनौती देने की धुरी था ? वही अनजान चेहरे जिन्होंने अरविन्द के नेतृत्व में सरकार चलाई और जिन्होंने देश को दिखा दिया कि बिना तजुर्बे के भी अच्छी नियत से बेहतरीन तरीके से सरकार चलाई जा सकती है.

तो इतने अनजान "आम" समर्थकों और कार्यकर्ताओं के रहते हुए अब "आप" में प्रसिद्ध चेहरे या राजदरबार के चाटुकारों की जरुरत क्यों आन पड़ी ?

"आप" को आम की बजाये "खास" चेहरे क्यों चाहिए ?

खेल का मज़ा तो तब आये जब आन्दोलन से ही निकले हुए अनजान लोगों में से किसी योग्य "आम आदमी" को राज्य सभा भेजा जाए जो ठोक कर अपनी बात वहां रख सके. जो आम आदमी की बात करे, उसके दुखों की, उसके कष्टों की, उसके रोजमर्रा के मुद्दों की, देशहित ही, जनमानस की बात कर सके- ठीक वैसे ही जैसे अरविन्द करते हैं.

तो क्यों हमें किसी बड़े पद पर आसीन व्यक्ति की जरुरत है राज्यसभा में भेजने के लिए ? क्या हमारे पास आन्दोलन की नीव रखने वाले और उस आग से निकले सोने जैसे " आम " लोग नहीं मिल सकते क्या ?

अरविन्द जी , जरा सोचिये अगर आप तक बात पहुंचे तो.

डॉ राजेश गर्ग

राजनीति को बदलना है तो पूरा - बदलो ,...

आज इसलिए बवाल करना पड़ा की ,...
पार्टी के बाहर से - किन्ही फर्जियो को क्यों चुना ,...
कल ,...
अब ऐसी छीछालेदर देखने के बाद ,... कोई सभ्य बाहरी तो जाने से रहा ,...
और अंदर से ,...
अंदर से ,... कुमार को नहीं भेजा तो ,...
तो ,.. फिर बवाल - कुमार को क्यों नहीं - उससे बेहतर हो तो बताओ ,..

गर कुमार को भेजा तो ,...
तो ,.. का क्या ??,.. जिसमे कहा गया , ..
पद लालची व्यक्ति पार्टी छोड़ें ,..
खैर ,...
कुछ भी हो ,.... जो होगा ,... सो होगा ,...
पर एक बात तो साफ़ है - जनाब ,...
ये राजनीति है ,.. और यही राजनीति है ,.. राजनीति ऐसी ही होती है ,..
तुमने क्या सोंचा था ,.. कोई हलुवा ,है,....
जो तुम खाते रहोगे - हम खिलाते रहेंगे,...
.
ध्यान रहे ,...
राजनीति को बदलना है तो पूरा - बदलो ,...
ये सुविधानुसार ,... जहाँ मर्जी - वहां बदल ली ,...
जहाँ मर्जी - नहीं ,...
ये ना चल पायेगा ,..
चलो ,... शुभरात्रि !! #NagShukl

Monday, January 1, 2018

#HappyNewYear हमारे देश में एक त्यौहार सा बन गया है ,....

#HappyNewYear हमारे देश में एक त्यौहार सा बन गया है ,....
शहरों से ज्यादा - गाँवों में मनाया जाता है ,...
New Year - मतलब दारु - अनिवार्य ,....
और वही लोग ,..
वही लोग ,..
जिन्हे होली फूहड़ लगती है ,...
जिनकी समझ से प्रदुषण का कारण ,... दीवाली के पटाके है ,...
वही ,.. 1 जनवरी को - आतिशी स्वागत में व्यस्त रहते है ,..

खैर ,...
खैर हम विरोधी नहीं है इस हैप्पी नई ईयर के ,.... क्योंकि ,..
वृन्दावन में रहना है - तो राधे - राधे तो कहना ही पड़ेगा ,...
तो भाई हमारी भी ,...
आपको ,... हैप्पी न्यू ईयर ,... लेकिन ,...
लेकिन हमारा "नव वर्ष ",... हमारा नववर्ष तो तब होता है जब ,...
जब तकरीबन हर पौधे पर ,.... लाल - सुनहरी पत्तियाँ चमकती है ,...
हमारा नव वर्ष तब होता है ,.. जब पीपल के पेड़ पर ,... कोमल कोप फुट रही हो ,...
ऐसा दिखे ,...
सोते हुए - मौसम ने ,... आँख खोली है ,...
ऐसा दिखे ,... पेड़ पौधे ,.. हवा - सूरज ,... सब ,..
सब अंगड़ाई तोड,.... जाग खड़े हो गए ,..

खैर ,...
दीवारों पर कैलेंडर बदलने वाला - न्यू ईयर तो - कल ही था ,...
पर प्रकृति का - कलेवर बदलने वाला - हमारा नववर्ष - अभी आने वाला है ,..

विकास ,..
विकास ,... पता नहीं हमने - कब इतना कर डाला की ,..
की ,...
रक्षा - बंधन ,.... पर वेलेंटाइन डे ,... हावी हो गया !!

खैर ,... कहना क्या और सुनना क्या ,...
जाहि विधि - राखे राम ,.... ताही विधि रहिये राम ,...

आप सभी को ,... सुबह की ,.... राम राम #NagShukl