Wednesday, January 10, 2018

हे मूर्ख ,.. धर्म का विरोध ही - तेरा धर्म है !!

धर्म ,...
धर्म ,.. जो कुछ भी है ,.. व्यक्तिगत है ,... सामूहिक नहीं

मेरी समझ ये नहीं आता ,..
कोई भीड़ ,... कोई समूह ,..
धर्म के लिए लड़ कैसे सकता है??
क्योंकि ,....
क्योंकि धर्म ,....
धर्म,....नाम की जो चीज है,...
वो हो ,.. चाहे जो ,..
चाहे जो कुछ भी हो ,...होगी व्यक्तिगत,..
,... सामूहिक नहीं ,...

तो जो चीज ही व्यक्तिगत है - उसके लिए समूह कैसे लड़ सकता है ??
व्यक्तिगत ?,...
जैसे बिच्छू का धर्म ,... डंक मारना ,..
और ,..
साधू का धर्म ,.. बिच्छू को बचाना ,...

वैसे धर्म ,..
कोई सीधी लाइन भी नहीं ,.... और स्थूल भी नहीं की ,...
बाहरी कारक प्रभाव ना डाल सके ,..
परन्तु ,...
जिसका जो धर्म हो ,... होना ऐसा चाहिए की.... बाहरी कारक प्रभाव ना डाल सकें !!

एक उदाहरण ये है की ,...
"वो कहते हैं ,... वो नास्तिक है ,...
हम कहते हैं ,...
हे मूर्ख ,.. धर्म का विरोध ही - तेरा धर्म है !!"

बाँकी  - कभी बाद में ,...

Sunday, January 7, 2018

हमें याद आता है ,.. आंदोलन के समय सब साथी,.....

हमें याद आता है ,.. आंदोलन के समय सब साथी - जब एक दुसरे को फोन करते थे तब ,....
तब ,.. हेलो की जगह "वन्दे मातरम" बोला करते थे ,... फिर आम आदमी पार्टी बनी ,...
ये सिलसिला तब भी जारी रहा ,...
49 दिन में इस्तीफा हुआ ,.. मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान हुआ ,..
ऐलान होते ही ना जाने क्या हुआ की ,...
अचानक ,... "वन्दे मातरम्" वाले में 50% हिचकिचाने लगे,... फिर ,..
फिर 67 जीती ,.. और जीतने के बाद ,..
जीतने के बाद ,.. मोदी विरोध ,... मोदी विरोध इस कदर सिर्फ पर हावी हुआ की ,...
वो ,.. "वंदे मातरम्" विरोध तक में बदल गया ,..
यहाँ तक बढ़ा की,.. यदि आप ,..

आप ,.. "आप" के दफ्तर में जा - किसी पुराने जानने वाले से भी "वन्दे मातरम्" बोल दें तो ,..
तो ,... पार्टी दफ्तर में बैठे ,... 67 के दम्भी - नवोदित क्रांतिकारी ,...
पलट के "वन्देमातरम" बोलने की जगह ,... तुरत वहीं ,... आपको ,... संघी - चढ्ढीधारी घोषित कर देते थे ,...
और बाँकी बैठे कुछ क्रांतिकारी ,.. उनकी सहमति में ठहाके लगा देते थे ,...
दफ्तर के इस वैचरिक और चारित्रिक परिवर्तन और सोंच - समझ का ये बदलाव ,...
किसी के विरोध मात्र को ,... देशभक्ति बना / बता देना,...
किसी के विरोध मात्र को ,... स्वराज बना / बता देना
किसी के विरोध मात्र को ,... सारी समस्याओ का समाधान बना / बता देना
किसी के विरोध मात्र को ,... पार्टी के प्रति समर्पण बना / बता देना
किसी के विरोध मात्र को ,... राजनीति - स्वक्ष राजनीति बना / बता देना
ये सब ,..
ये सब ,.. इंगित कर रहा था ,... की ,..
की इनकी दिशा,.. क्या होने जा रही है और इस दिशा के चलते,.. दशा ,..
दशा वही जो होने वाली है ,..
ध्यान रहे ,... "आप" किसी मोदी से विरोध कीजिये ,... हमारा समर्थन है,... पर ,...
पर "वंदे मातरम" के साथ ,... इसके बिना ,...
इसके बिना ,... माफ़ कीजियेगा,.. कोई तरीका नहीं की ,...
की हम आपके पक्ष में खड़े दिखाई दें ,.. #NagShukl

Friday, January 5, 2018

ये सन्देश "आप" के उन तथाकथित अंधभक्तों के लिए जिन्हें पार्टी का हर फैसला मंजूर है

दोस्तों,

ये सन्देश "आप" के उन तथाकथित अंधभक्तों के लिए जिन्हें पार्टी का हर फैसला मंजूर है चाहे वो गलत भी क्यों ना हो.


आज आन्दोलन से निकली पार्टी के इतने बुरे दिन आ गए कि अब हमें कांग्रेस के लोगों को राज्यसभा भेजना पड़ रहा है "आप" की तरफ से ?

कहाँ थे ये गुप्ता जी बंधु जब इस मुल्क का आम आदमी सड़कों पर पुलिस की लाठियां खा रहा था और एक नए राजनैतिक विकल्प के लिए सड़कों पर गलियों की धूल फांक रहा था ?

जिन्हें हटाने, जिन्हें बदलने , जिन्हें सजा दिलवाने के लिए हम दिन रात एक थे आज उन्ही को सर माथे पर बैठा राज्यसभा भेजा जा रहा है.

और जो पार्टी समर्थक और कार्यकर्ता इस फैसले का विरोध कर रहे हैं उन्हें ही कुछ चापलूस "गद्दार" कह रहे हैं और कहते हैं कि पार्टी छोड़ दो !!

इन अंधभक्तों की रीढ़ की हड्डियों का पानी खत्म हो गया पर हमारा नही।

प्रश्न पहले भी करते थे और आगे भी करेंगें। आखिर प्रश्न पूछना भी तो इस मुल्क में अन्ना और अरविंद ने ही तो सिखाया था।

अगर आंखें मूंद कर नेताओं के गलत फैसले मान लेना ही पार्टी से वफादारी है तो फ़िर कांग्रेसियों और भाजपाइयों से बड़ा वफादार इस मुल्क में कौन है ? क्या हम इनसे भी दो कदम आगे जाना चाहते हैं चाटुकारिता में ?

तुम लोगो की हैसियत क्या है जो प्रश्न उठाने वालों को कह रहे हो कि या तो चुप रहो तो पार्टी छोड़ो।

क्यों भाई, क्यों छोडें ? ये पार्टी किसी के बाप की थोड़े ही है ???????

" वजीर ना सही , हम सिर्फ प्यादे ही सही,
पर खेल में औकात सिर्फ तुम्हारी थोड़ी ही है

वो कहते हैं हमें कि चुप रहो या छोड़ दो इसे,
क्यों भाई, मुंह में जुबान किसी और की थोडी ही है,

हमारी थी, हमारी है और सदा हमारी ही रहेगी,
कहदो उनसे कि किसी के बाप की ये "आप" थोडी ही है."

डॉ राजेश गर्ग.

सोंचता हूँ - ऐसे कैसे ??

आये दिन ,...
खबर आती है की ,...
इस गाँव में ,...कभी उस गाँव में ,.....
कोई मर गया.
भूख से ,...
सोंचता हूँ - ऐसे कैसे ??
उस गाँव में,..
उस गाँव में,...कोई और,.. जिन्दा नहीं था??,.... या
उस गाँव में,...कोई और,.. समर्थ नहीं था ??
पता नहीं ऐसे कैसे,..हो रहा है / हो सकता है ??
क्योंकि ,... हमने,.. जो सभ्यता ,..
जो समरसता ,... देखी है ,..
अपने गाँवों में ,....
उसमे ,... कोई एक भूख,... से नहीं मर सकता था ,...
एक भूख से नहीं मर सकता था ,...
क्योंकि गाँव के बाँकी लोग ,.. उन एक - दो ख्याल रखते थे ,...
हमें याद ,...
कितने लोग ,... गेंहू - दाल - मठ्ठा - शकरकंद - आलू आदि ऐसे ही ,... एक दुसरे को दिया लिया करते थे ,...
लेकिन हकीकत है की लोग मर रहे है ,... तो
तो क्या ,..."देना लेना - बंद हो गया - गाँव में" ?? #NagShukl

Tuesday, January 2, 2018

आप के एक - सबसे शुरुवाती साथी ,..

दोस्तों,

बहुत महीनों से "आप" के बारे में कुछ लिखा नहीं, कोई स्व -विचार नहीं रखे. सिर्फ राजनैतिक और सामाजिक पोस्ट्स को शेयर करता रहा. अब राज्य सभा के लिए "आप" के संभावित उम्मीदवारों के लिए सोशल मीडिया पर जूतमपैजार चालू है. पढ़कर सिर्फ अफ़सोस करने के सिवा
किया भी क्या जा सकता था , सो वही किया.

पर आज देखा कि कोई गुप्ता जी है ,जो एक CA है और दुसरे भी गुप्ता जी है जो पहले कांग्रेस में थेऔर अब "आप" में - इन दोनों का नाम संभावित उम्मीदवारों में आ रहा है. पढ़कर दिल को ठेस लगी. क्या अब "आप" के इतने बुरे दिन आ गए हैं कि सिर्फ ऊँचे पदों पर बैठे लोगों या कांग्रेस से लाये लोगों को अपना नुमाइंदा बनाना पड़ रहा है.

क्या हमारा संघर्ष इसी दिन के लिये था ? क्या सड़कों पर इन्ही कांग्रेसी नेताओं को अपना "नेता" बनाने के लिए उतरे थे ? क्या "आप" को अपनी मेहनत की नेक कमाई का छोटा सा "दान" इसीलिए लाखों लोगों ने दिया कि सत्ता के गलियारों के नजदीक बैठे लोग चापलूसी से सत्ता की मलाई खाएं ?

नहीं, "आप" का सत्ता में आना एक आम आदमी का सत्ता में आना है. वो आम आदमी जो इस भ्रष्ट तंत्र से बुरी तरह हिल चूका था. जिसे इस मुल्क के लिए कोई आशा की किरण नज़र नहीं आती थी. तब अरविन्द, मनीष, संजय, गोपाल राय, योगेन्द्र और प्रशांत जैसे कुछ लोगों ने अन्ना की अगुवाई में जनता की आवाज़ उठाई.

हमारे जैसे लाखों आम लोग इस जूनून का हिस्सा बने, इसे और आगे तक बढाया- किसी ना किसी तरह योगदान देकर- तन से, मन, से, धन से, समय देकर, सड़कों पर प्रचार कर, लाठियां खाकर, नौकरियां खोकर, अपमान सहकर - दिन रात इस सपने को देखा, जिया और हकीक़त बनाने में योगदान दिया.

जब दिल्ली में सत्ता आई, तब कई तथाकथित बुद्धिजीवी अपने अपने ड्राइंग रूम से बहार निकलकर "आप" से जुड़ने लगे- ये वो लोग थे जो अपने अपने काम में सफल, अमीर और प्रसिद्ध थे- पर आन्दोलन के वक़्त बिलकुल चुप थे- अब दिल्ली में सत्ता मिलने पर इन्हें "आप" में रस आने लगा. अब ये अपने नाम और प्रसिद्धी को भुनाते हुए "आप" में शामिल होना शुरू हुए. ये प्रसिद्ध वकील, पत्रकार, उद्योगपति, बैंकर, लेखक आदि थे जो "बहती गंगा में हाथ धो " लेने चाहते थे और इन्होने हाथ धोये भी. अपनी प्रसिद्धी का फायदा उठा ये लोग सरकार के नेताओं के नजदीक आ गए.

पर इस पूरी कयावद में वो आम आदमी कहाँ गुम हो गया जो "कुछ भी नहीं था" ? जो अनजान सा था ? जो इस पूरे आन्दोलन का असली केंद्र था ? जो कुछ ना होते हुए भी पारंपरिक राजनैतिक दलों को चुनौती देने की धुरी था ? वही अनजान चेहरे जिन्होंने अरविन्द के नेतृत्व में सरकार चलाई और जिन्होंने देश को दिखा दिया कि बिना तजुर्बे के भी अच्छी नियत से बेहतरीन तरीके से सरकार चलाई जा सकती है.

तो इतने अनजान "आम" समर्थकों और कार्यकर्ताओं के रहते हुए अब "आप" में प्रसिद्ध चेहरे या राजदरबार के चाटुकारों की जरुरत क्यों आन पड़ी ?

"आप" को आम की बजाये "खास" चेहरे क्यों चाहिए ?

खेल का मज़ा तो तब आये जब आन्दोलन से ही निकले हुए अनजान लोगों में से किसी योग्य "आम आदमी" को राज्य सभा भेजा जाए जो ठोक कर अपनी बात वहां रख सके. जो आम आदमी की बात करे, उसके दुखों की, उसके कष्टों की, उसके रोजमर्रा के मुद्दों की, देशहित ही, जनमानस की बात कर सके- ठीक वैसे ही जैसे अरविन्द करते हैं.

तो क्यों हमें किसी बड़े पद पर आसीन व्यक्ति की जरुरत है राज्यसभा में भेजने के लिए ? क्या हमारे पास आन्दोलन की नीव रखने वाले और उस आग से निकले सोने जैसे " आम " लोग नहीं मिल सकते क्या ?

अरविन्द जी , जरा सोचिये अगर आप तक बात पहुंचे तो.

डॉ राजेश गर्ग

राजनीति को बदलना है तो पूरा - बदलो ,...

आज इसलिए बवाल करना पड़ा की ,...
पार्टी के बाहर से - किन्ही फर्जियो को क्यों चुना ,...
कल ,...
अब ऐसी छीछालेदर देखने के बाद ,... कोई सभ्य बाहरी तो जाने से रहा ,...
और अंदर से ,...
अंदर से ,... कुमार को नहीं भेजा तो ,...
तो ,.. फिर बवाल - कुमार को क्यों नहीं - उससे बेहतर हो तो बताओ ,..

गर कुमार को भेजा तो ,...
तो ,.. का क्या ??,.. जिसमे कहा गया , ..
पद लालची व्यक्ति पार्टी छोड़ें ,..
खैर ,...
कुछ भी हो ,.... जो होगा ,... सो होगा ,...
पर एक बात तो साफ़ है - जनाब ,...
ये राजनीति है ,.. और यही राजनीति है ,.. राजनीति ऐसी ही होती है ,..
तुमने क्या सोंचा था ,.. कोई हलुवा ,है,....
जो तुम खाते रहोगे - हम खिलाते रहेंगे,...
.
ध्यान रहे ,...
राजनीति को बदलना है तो पूरा - बदलो ,...
ये सुविधानुसार ,... जहाँ मर्जी - वहां बदल ली ,...
जहाँ मर्जी - नहीं ,...
ये ना चल पायेगा ,..
चलो ,... शुभरात्रि !! #NagShukl

Monday, January 1, 2018

#HappyNewYear हमारे देश में एक त्यौहार सा बन गया है ,....

#HappyNewYear हमारे देश में एक त्यौहार सा बन गया है ,....
शहरों से ज्यादा - गाँवों में मनाया जाता है ,...
New Year - मतलब दारु - अनिवार्य ,....
और वही लोग ,..
वही लोग ,..
जिन्हे होली फूहड़ लगती है ,...
जिनकी समझ से प्रदुषण का कारण ,... दीवाली के पटाके है ,...
वही ,.. 1 जनवरी को - आतिशी स्वागत में व्यस्त रहते है ,..

खैर ,...
खैर हम विरोधी नहीं है इस हैप्पी नई ईयर के ,.... क्योंकि ,..
वृन्दावन में रहना है - तो राधे - राधे तो कहना ही पड़ेगा ,...
तो भाई हमारी भी ,...
आपको ,... हैप्पी न्यू ईयर ,... लेकिन ,...
लेकिन हमारा "नव वर्ष ",... हमारा नववर्ष तो तब होता है जब ,...
जब तकरीबन हर पौधे पर ,.... लाल - सुनहरी पत्तियाँ चमकती है ,...
हमारा नव वर्ष तब होता है ,.. जब पीपल के पेड़ पर ,... कोमल कोप फुट रही हो ,...
ऐसा दिखे ,...
सोते हुए - मौसम ने ,... आँख खोली है ,...
ऐसा दिखे ,... पेड़ पौधे ,.. हवा - सूरज ,... सब ,..
सब अंगड़ाई तोड,.... जाग खड़े हो गए ,..

खैर ,...
दीवारों पर कैलेंडर बदलने वाला - न्यू ईयर तो - कल ही था ,...
पर प्रकृति का - कलेवर बदलने वाला - हमारा नववर्ष - अभी आने वाला है ,..

विकास ,..
विकास ,... पता नहीं हमने - कब इतना कर डाला की ,..
की ,...
रक्षा - बंधन ,.... पर वेलेंटाइन डे ,... हावी हो गया !!

खैर ,... कहना क्या और सुनना क्या ,...
जाहि विधि - राखे राम ,.... ताही विधि रहिये राम ,...

आप सभी को ,... सुबह की ,.... राम राम #NagShukl