Thursday, September 26, 2013

हम आज भी मानसिक रूप से गुलाम ही है,.

दोस्त, अंग्रेजो से आज़ाद हुए तो वर्षो बीत गए, पर नहीं हम आज भी मानसिक रूप से गुलाम ही है,..मानसिक गुलामी हमारे व्यवहार व कियाकलापों में झलकती है।
कल ही मिला था एक जनाब से बात के दौरान उन्होंने बोला की जो कुछ भी आप कह रहे हो सही है पर ...
पर हम तो पुराने कांग्रेसी है और कांग्रेसी ही रहेंगे ...अरे क्यों? क्यों भाई हम कांग्रेसी या भाजपाई ही रहेंगे ...जब कांग्रेस नहीं थी जब भाजपा नहीं थी तब भी तो हमारी कुछ विचारधारा थी पर जब समय के साथ कांग्रेस / भाजपा बनी तो उनमे से एक को चुना और हमने तोड़ी थी पुरानी गुलामी की जंजीरे ..पर जिस क्षण हमने आपने ,....सोंच लिया की हम कांग्रेसी या भाजपाई है उसी समय हम एक बार फिर गुलाम हो गए ..और दे दी आज़ादी इन काले अंग्रेजो को मनमानी करने की ...

अब ये मनमानी नहीं तो और क्या है की सुप्रीम कोर्ट ने कहा दागी मंत्री हटाओ, RTI के अन्दर आओ पर नहीं ..इन्होने मिलकर कर दिया क़त्ल इन दोनों का .... और अध्यादेश के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं ये संदेश दिया जा रहा है कि निचली अदालतें और सर्वोच्च्य न्यायलय सही निर्णय नहीं सुनाती या सुना सकतीं हैं,....सिर्फ संसद ही है जो सही निर्णय कर सकता है.
यधि ऐसा है तो क्यों है न्याय पालिका ?....
जब हर बात का फैसला इन संसद में ही होना है ..उनका भी ...जिनमे वादी संसद में बैठे लोग ही हो,...तो ऐसी स्थिति में कहाँ बचा लोकतंत्र ...
लोकतंत्र के चार स्तम्भ ..क्या मतलब रहा इसका ..जन मीडिया को कण्ट्रोल कर लिया खरीद लिया ...अफसर को निलंबन की सजा धमकी ...और न्यायपालिका की सुननी नहीं ....संसद में पैसा उडता है ..सांसद बिकता है ...तो कहाँ बचा लोकतंत्र ...कहाँ बची आज़ादी .....

इसके बाद भी,..आपका,...इनका विरोध ना करना ..और ये कहना की हम तो कांग्रेसी या भाजपाई है ..ये मानसिक गुलामी नहीं तो और क्या है ?....
ये मानसिक गुलामी ही मूल कारण है सारे दुखो का और नेताओ की तानाशाही का ...
क्यों नहीं,.. हम सोंच सकते क्या सही है क्या गलत ...
क्यों नहीं,..हम पूँछ सकते अपने नेता से सवाल
क्यों नहीं मजबूर कर सकते की ...बरगलाना छोड़ो और मुद्दे की बात करो ....
पर नहीं ...हम ऐसा नहीं करते ..यधि हम ऐसा नहीं करते तो गुलाम ही तो हुए ना ?...मानसिक गुलाम ..है की नहीं ..


भारत में  कमी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया भारतीय प्रतिभा का लोहा मान चुकी है पर अपने घर में इन प्रतिभाओं को यथोचित सम्मान नहीं मिलता और वे पलायन कर जाती हैं. यही कारण है  कि ये प्रतिभाएं दूसरे देशों को लाभान्वित कर रही हैं. जब इन्हें वहां सम्मान मिलता है और दुनिया इन्हें पहचानने लगती है तब हमारी नींद खुलती है, तब हम इस फारेन रिटर्न प्रतिभा को हाथों हाथ लेते हैं.

क्या ये हमारी हजारों सालों कि मानसिक गुलामी का ज्वलंत प्रमाण नहीं? जब तक हमारी प्रतिभा को पश्चिम का ठप्पा नहीं लग जाता हमें उनकी प्रतिभा दिखाई ही नहीं देती. हम आखिर कब तक स्वयं को दूसरे के चश्में से देखते रहेंगे?

इस मानसिक गुलामी के चलते ही,..... हम अपने महत्त्व को कम करके आंकते हैं.
ये मानसिक गुलामी ही तो है जिसके चलते ..दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में भी चल रही गुंडे भ्रष्ट नेताओ की तानाशाही ....

अब वक्त आ गया है जब हमें अपनी इस सड़ी-गली मानसिकता को अलविदा कहना होगा अन्यथा प्रतिभा संपन्न होते हुए भी हम पिछड़ जायेंगे और हमारी कुशलता,....उसका लाभ दूसरे उठाते रहेंगे।
यधि इस मानसिक गुलामी से ना छूते तो हम सिर्फ एक प्रयोग किये जाने वाले सामान की तरह ही बन कर रह जायेंगे ....और ऐसे ही प्रयोग किये जाते रहेंगे ....कोई नहीं पूंछेग ....की तुम्हे क्या चाहिए ...जो मर्जी होगी बताता रहेगा देता रहेगा और हम यूँ ही खुद को ...सरकार को ...व्यवस्था को कोसते रहेंगे ....
हमे भारतीय होने का गर्व होना चाहिए,...और आज़ाद होने अहसास ...
आज़ादी का सिर्फ एक अर्थ है ....की व्यक्ति के अन्दर गलत को गलत और सही को सही  कहने की क्षमता ....
क्या वो है ..आज हममे ...यधि नहीं ...तो हम गुलाम है ...मानसिक गुलाम ....
इस गुलामी से आज़ादी का वक्त आ चुका है ..और यही सही समय है ....पहचानो अपने आपको ...और लड़ो उसके लिए जो सही है ..यही तो वो व्यवस्था परिवर्तन है जिसके लिए हम और आप प्रयास कर रहे है ....

तोड़े मानसिक गुलामी को ...जुड़े राजनीतिक आन्दोलन से ....इसलिए नहीं की कोई सत्ता पानी है ..इसलिए की इस मानसिक गुलामी को मिटाना है और एक आज़ाद व्यवस्था कड़ी करनी है ....

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