Tuesday, March 20, 2018

Collection

“मैं गया था सोच के, बातें बचपन की होंगी, दोस्त मुझे अपनी तरक़्क़ी सुनाने लगे।”

किसको बर्दाश्त है "साहेब" तरक़्क़ी आजकल दुसरो की लोग तो मय्यत की भीड़ देखकर भी जल जाते है

"वो दोस्त मेरी नज़र में बहुत ‘माईने’ रखते है, जो वक़्त आने पर मेरे सामने ‘आईने’ रखते हैं।"

आँखें ही थी जो कह गयी सब कुछ ... लफ्ज़ होते तो मुक्कर गए होते ...

सिर्फ शब्दों से न करना किसी के वजूद की पहचान हर कोई उतना कह नहीं पाता जितना समझता और महसूस करता है...

पर्वतों की तरह खामोश हैं, आज के संबंध और रिश्ते..! जब तक हम न पुकारें... उधर से आवाज़ ही नहीं आती..!!

“मुस्कुरा कर दर्द को सहना क्या सीख लिया सबने सोच लिया हमे तकलीफ ही नही होती”

उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा . धूल चेहरे पर थी ,आइना साफ़ करता रहा !!

फिसलती ही चली गई एक पल रुकी भी नही अब जाके महसूस हुआ रेत के जैसी है ज़िन्दगी

मुद्दतें लगीं बुनने में ख्वाबों का स्वैटर.. जब तैयार हुआ तो मौसम बदल चुका था..

"सुकून वो था जब" होठों पे मुस्कान थी... कंधो पे बस्ता था सुकून के मामले में वो जमाना सस्ता था ....

“बचपन में पापा की लगायी बंदिशो को तोड़ने में बहुत मज़ा आता था, अब बड़े होकर ख़ुद पर लगायी बंदिशें तोड़ी नहीं जाती.”

“कितना जानता होगा वो शख़्स मेरे बारे में, मेरे मुस्कुराने पर जिसने पूछ लिया तुम उदास क्यूँ हो.”
 
 
 

Monday, March 19, 2018

विश्व गौरैया दिवस (#WorldSparrowDay) पर फोटो दिखाने की कोशिश

आजकल तो हर बात की फोटो खिंच जाती है ,.... क्या हुआ, कैसे हुआ - इसके लिए फोटो ढूंढी जाती है ,... पर ,...
पर बचपन में,...
कुछ फोटो आँखों ने खींची थी ,...
वो फोटो जो आँखों ने खींची थे उन्हें किसी को दिखा पाना मुश्किल - लेकिन ढूंढना बहुत आसान ,...
आज ,...
आज विश्व गौरैया दिवस (#WorldSparrowDay) पर ऐसी ही फोटो दिखाने की कोशिश ,....
महीना चैत्र - बैशाख का ,.... समय दोपहर के खाने का ,... थाली ,...
थाली में ,..
शानदार (चैतुई) अरहर की दाल ,... घी लगी रोटी ,... आलू के साथ कोई सूखी सब्जी और चावल ,...
बगल में,...
मिटटी की चकती पर रखी थोड़ी सी अगियार और एक छोटी थाली ,... उस रखी कई छोटी - छोटी रोटियाँ ,...
छोटी - छोटी रोटियाँ ,....
एक,... अगियार (हवन) के लिए ,...
एक,... गाय के लिए ,...
एक,... कुत्ते के लिए ,...
एक,... कौवे के लिए ,...
और भोजन की शुरुवात ,... भोजन मन्त्र के साथ ,...
हवन की समाप्ति ,.... "नैवेद्यं समर्पयामि" के साथ ,...
निवाला तोड़ने से पहले ??,... गाय की रोटी ,... गाय को पहुँची ,...
कौवे की कौवे को ,... और कुत्ते वाली - कुत्ते को ,...
पर ,...
पर क्या हमारी प्यारी चिरैया ,....
हमारी प्यारी चिरैया ,....वो गौरैया ,.. वो गौरैया क्या भूखी ही रहेगी ??
उसकी तो कोई रोटी नहीं ,....
ना जी ,... वो हमारी प्यारी चिरैया है - गौरैया है ,... वो भला कब फेंके हुए दाने खाती थी ?? वो तो ,..
वो तो ,.. थाली की बाट पर बैठ ,... थाली के चावल ही ले जाती थी ,... बेझिझक ,... निडर - अधिकार के साथ ,...
साझा हुआ करता है ,....
प्यारी चिरैया का ,... थाली में हमारी!!
बस ,.. यही फोटो ,... बस यही फोटो है जो आँखों में है ,.. जब याद आती है गौरैया की ,...
कोशिश की ,... की आप भी देख लो ,....
पर शायद ,...
पर शायद ,... आपके लिये इस फोटो पर विश्वास करना उतना मुश्किल ना हो ,... जितना आने वाले समय में बच्चो को बता पाना मुश्किल होगा की ,..
की ये कोई झूठी कहानी नहीं ,..... दैनिक दिनचर्या थी हमारी - तुम्हारी ,....
प्यारी गौरैया ,....पुराना घर टूटा ,... उसके साथ उजड़ी वो भी ,...
घर हमारा दुबारा बना ,...
वो धन्नी - वो छपरे अब नहीं ,... वो आँगन - वो चौके अब नहीं ,...
अब लेंटर है ,... फाइबर सीट है ,...
किचन और ड्राइंग रूम पर ,... डाइनिंग टेबल है ,....
घर हमारा - बना दुबारा ,... बसा दुबारा ,....लेकिन ,...
लेकिन वो हमारी प्यारी चिरैया ,.... हमारी प्यारी गौरैया ,...
उसका घर खो गया ,...
उसे थाली की बाट पर बैठ - खाना पसंद था ,.... शायद ,.. ये डाइनिंग टेबल अच्छा ना लगा ,...
उसे धन्नी के छेद में रहना पसंद था ,... रहने को कमरे हमारे पसंद नहीं ,...
उसे खुले आँगन में चहचहाना पसंद था ,... ड्राइंग रूम में बैठ - टीवी देखना नहीं ,...
शायद ,...
शायद ,... इसिलये ,... वो छोड़ गयी ,.. हमें ,.. हमेशा के लिए ,...
वो बोली थी जाते - जाते ,... पर सूना नहीं था हमने ,...
वो बोली थी ,...
वो बोली थी ,... ये लेंटर की छत नहीं ,... वो AC लगा ड्राइंग रूम नहीं ,...
मुझे ,..
मुझे तो ,... वो धन्नी की खोह,.... खुला आँगन और थाली की बाट ही चाहिये ,...
वो नहीं आयेगी ,...
वो नहीं आयेगी ,... मेरे पास रहने ,.... मेरे साथ इस विकास में ,...
वो साथी है मेरे सुकून की ,.... वो साथी नहीं विकास की ,...
इस धत्त तेरे ,.. विकास की !! #NagShukl