Thursday, September 26, 2013

Donate your weekend


बाँट दिया इस जमीन को, चाँद सितारों का क्या होगा?
नदियों के कुछ नाम रख दिये , बहती धारों का क्या होगा?
मेरे स्कूल में एक टीचर हुआ करते थे ...अब सरकारी स्कूल था तो बच्चे class में ही बैठ बड़ा शोर करते थे ...शायद ऐसा ही एक culture था ....शोर से परेशान हो वो कहते थे ....
मैं यहाँ पूरी भीड़ को पढ़ाने नहीं आया ...
मैं पढ़ाने आया हूँ ..उन 10 / 5 बच्चो को जो पढना चाहते है ....उनको नहीं जो ,...
सिर्फ समय बर्बाद करने या काम से बचने के लिए स्कूल आते है ..
वो कहते थे ...सिर्फ 2 मिनट शांत रहे ....मुझे शुरू करने दें ....
फिर जिसे लगे की मैं उसे पढ़ा रहा हूँ ...कक्षा में रुके ....और जिसे लगे उसे नहीं पढ़ा रहे ...वो बाहर जा सकता है ....
पर कमाल के होते थे वो 2 मिनट ....फिर ना गले आवाज निकलती थी ...और ना ही बाहर जाने का मन ....

पिछले साल 2 October की छुट्टी वाले दिन सोंचा ...चलो एक बार अरविन्द को सुनते है ....चला गया उनकी मीटिंग में ....तब उस मीटिंग में बहुत कम भीड़ थी 2/3 सौ ....
उस दिन ध्यान से सूना ....
फिर कई दिन सोंचा ....
की क्या अरविन्द ...हमें पढ़ा रहे थे ...
जवाब मिला हाँ ...याद आयी उस टीचर की ....
की अगर उसको दो मिनट ना ....दिए होते तो ....शायद आज ...दो ...दुनी चार ....ना पता होता ....
और अब शुक्रिया उस 2 October को जिसमे अरविन्द को सुना ....सोंचता हूँ ...अगर ना जाता तो कभी ...
कभी पता ही नहीं चलता की ...
देश क्या है ...देशवासी क्या ?....और देशभक्ति ...तो शायद अरविन्द के सिवाय किसी को पता ही नहीं ...............नागेन्द्र शुक्ल
 
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