Friday, July 28, 2017

मै पौधा हूँ ,... साँस लेता हूँ ,..... ये बोस ने सिद्ध किया था

मै पौधा हूँ ,...
साँस लेता हूँ ,..... ये बोस ने सिद्ध किया था !!
ये बोस ने बताया था तुमको ,....
मुझे भी ,... ऑक्सीज़न चाहिये ,...
मुझे भी ,... दर्द होता है ,..
मुझे भी ,...
मुझे भी ,.. सूखा मारता है ,..
मुझे भी ,... बाढ़ बर्बाद करती है ,..

मेरे लिए भी ,...प्राणवायु घट रही है ,...
मेरा दम भी,... घुट रहा है !!
लगता है,...
अब मुझे भी कमाना पड़ेगा ,..
पौधों को - ज्ञान विज्ञान - धर्म - अधर्म नहीं ,...
ऑक्सीज़न खरीदना सिखाना होगा !!
अब मुझे भी कमाना होगा ,....
तुम खरीद लेते हो पानी - बोतल में ,.....
अब मुझे भी ,.. खरीदना होगा ,...
जीना है,.. तो ,... जीना होगा ,....
क्योंकि ,...
ऑक्सीज़न बनाने की तुम्हारी औकात नहीं ,..
मैं पौधा हूँ ,... पर जिन्दा हूँ,..
अरे ,.. मैं नहीं कह रहा ,..
जगदीश चंद्र बोस ने बताया था ,...
खैर ,..
खैर ,.. तुम्हे बोस ,...
तुम्हे बोस ,...याद हे कब रहते है??
चाहे ये बोस हों ,... या,...वो बोस हों,....
वो बोस ??,...
सुभाष चंद्र ,....
खैर मैं पौधा हूँ ,.... और,....
और मुझमे जान दी थे ,.. बोस ने !! #NagShukl #ChaloDeshSudhare #मै_पौधा_हूँ

Friday, July 7, 2017

India - China,...Issue to fought at all level.

Hey, Friends,...The war is on.
Today,
One of my best friend sent an International Quality document for review, to the Managers.
Then, in that 400 pages document. She got just one comment.
The Chinese employee - who is manage and reviewer for this document.
just updated one line, where-ever in document she referred Taiwan Manager/reviewer changes it to China-Taiwan.
This was the only review comment.
Now,...
She had a great concern, how come manager changed Taiwan to China-Taiwan.
Then, she called a meeting for clarification.
In meeting people involved (including Japanese and Indian document author) had a big fight.
reviewer emphasized that Taiwan is China-Taiwan.
While author fought that,..it could be in your thoughts only. but not for rest of the world.
We will not change Taiwan to China-Taiwan.
Finally,...
Japanese supported and it remains as "Taiwan".
Its unfortunate, but no matters.
that same reviewer/manager has to do her performance appraisal next week.
See,...the war is already on. and people fighting at their level. #NagShukl
https://www.facebook.com/nagendra.shukla.984/posts/1111599408974356?notif_t=like&notif_id=1499416076981913

Wednesday, July 5, 2017

भारत - इजरायल

जैसे दांतों के बीच जीभ रहती है वैसे ही अरब राष्ट्रों के बीच इजरायल है। वह दुनिया का एक ऐसा देश है जो बहुत छोटा होने व इतने आक्रामक पड़ोसियों से घिरा होने के बावजूद अपनी शर्तो पर जी रहा है ,प्रगति कर रहा है। रक्षा के क्षेत्र में अमेरिका की बराबरी कर रहा है और कृषि विज्ञान, सूचना तकनीक में उसकी उपलब्धिता आकाश को छूने वाली है।
अगर हम इतिहास पर नजर डाले तो पता चलेगा कि जहां यह देश हमारा आजमाया हुआ साथी रहा है वहीं हम अपने कारणों से उसे वह अंहमियत नहीं दे सके जोकि अरब व इस्लामी देशों को देते आए हैं।जब 1962 का युद्ध हुआ तो उस समय अरब देशों ने ही नहीं बल्कि रूस तक ने भारत से दूरी बना ली थी। उस समय इजरायल ने चीन से निपटने के लिए भारत को हथियार व गोला बारूद प्रदान किया। इजरायल भारत की हमेशा मदद करता आया है। जब पोखरण में 1998 में परमाणु परीक्षण किया गया था तब इजरायल ने उसकी कोई आलोचना नहीं की थी। हालांकि जब अरब व इजरायल के बीच कैप डेविड समझौता हुआ तो भारत ने फिलिस्तीन का मुद्दा उठाते हुए इसकी आलोचना की। वह महज 30 लाख इजरायलियों के लिए 1.38 करोड़ अरबों को नाराज नहीं करना चाहता था।
फिर 1965 के युद्ध में रूस व अमेरिका दोनों ने ही भारत व पाक को हथियारों की मदद देने से इंकार कर दिया। उस समय इजरायल ने भारत को हथियारों से मदद की। जब 1968 में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का गठन हुआ तो उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा कि हमें इजरायल के साथ अपने संबंध बेहतर बनाने चाहिए व वहां की खुफिया एजेंसी मोसाद की मदद लेनी चाहिए। इंदिरा गांधी इसके लिए तैयार हो गई। इसका लाभ यह हुआ कि जब बांग्लादेश में मुक्तिवाहिनी को भारत ने पनपाया तो उस समय उसे मिलने वाला हथियारो का जखीरा इजरायल ने ही उपलब्ध करवाया था।
यह देश 1948 अस्तित्व में आ चुका था मगर भारत ने उसे 1950 में वो भी अमेरिका के दबाव में आकर मान्यता दी। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच राजनयिक संवाद, संबंध नहीं बना। इजरायल को 1950 में मुंबई में अपना काऊंसलेट खोलने की अनुमति दी गई व 1992 में पीवी नरसिंहराव की सरकार के दौरान भारत व इजरायल के बीच राजनयिक संबंध स्थापित हुए और तब दोनों देशों ने अपनी राजधानियों में दूतावास खोले। पृथ्वीराज रोड पर जहां इजरायल दूतावास खोला गया वह संपत्ति पहले बीजू पटनायक की थी। उनके बेटे पटनायक ने इसका आधा हिस्सा विवादास्पद बिल्डर तेजवंत सिंह को बेच दिया व उसने इसे इजरायली दूतावास को थमा दिया।
भारत का रवैया हमेशा इजरायल विरोधी रहा। महात्मा गांधी से लेकर इंदिरा गांधी तक को यह लगता था कि अगर हमने इजरायल के प्रति झुकाव दिखाया तो इस देश में रहने वाले मुसलमान नाराज हो जाएंगे जिनके समर्थन से कांग्रेंस सत्ता हासिल करती आई थी। इजरायल से दूरी बना कर रखने की एक अन्य वजह लाखों की तादाद में देश के श्रमिको का इस्लामी खाड़ी के देशों में नौकरी करना था। इसके अलावा हम तेल की खरीद भी इन्हीं देशों से करते थे।
अपना मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद जितने देशों की यात्राएं की हैं उसमें सबसे अहम दौरा इजरायल का है।वह आतंकवाद से लड़ने में हमारी मदद कर रहा है मगर हम इसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं करते हैं। शायद यही वजह है कि एक तरफ तो प्रधानमंत्री मुसलमानों के प्रति लगाव न होने का इशारा करते है व दूसरी और सत्ता में आने के तीन साल बाद इजरायल के दौरे का कार्यक्रम बनाते हैं वो भी सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात व कतर जाने के बाद। कुछ भी हो पर वे इजरायल की यात्रा पर जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन कर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा रहे हैं। खास बात यह है कि वहां जाते या लौटते समय वे फिलिस्तीन नहीं जाएंगे।

Source:- https://www.facebook.com/manish.misra.79/posts/10208953916635455