Wednesday, May 29, 2013

क्या है सलवा जुडूम और उसका का सच ...........

 कई दिनों से लगातार पढ़ और सुन रहे है ....की महेंद्र कर्मा ....हत्या ...सलवा जुडूम का बदला था ...इस सलवा जुडूम के चलते ही ..महेंद्र कर्मा को ...बक्सर का टाइगर कहा जाता था,....पर कोई भी टाइगर ...अगर नरभक्षी हो जाये ...तो क्या होना चाहिए ?....

क्या है सलवा जुडूम और उसका का सच ...........
सलवा जुड़ूम के नाम पर छत्तीसगढ़ से नक्सलवादियों को भगाने के लिए महेन्द्र कर्मा ने 2005 में एक अनोखो मिशन चलाया. सलवा जुड़ूम यानि मिशन मारो, रेप करो और जमीन हड़पों. कहा जाता है कि इस मिशन के तहत उन्होंने गांव वालों को नक्सलियों से लड़ने के लिए हथियार मुहैया कराएं और उन्हें नक्सलवादियों और माओवादियों से लड़ने के लिए एकजुठ किया. गांव वालों को नक्सलियों से आमने-सामने की लड़ाई के लिए तैयार कर वह दुनिया की निगाहों में हीरो बनना चाहते थे लेकिन अंदर की सच्चाई कुछ और थी.


सलवा जुडूम (Salwa Judum) कागजी पन्नों पर सरकार द्वारा तथाकथित रूप से सहायता प्राप्त नक्सवाद विरोधी आंदोलन माना जाता है लेकिन सत्य के धरातल पर यह एक खूनी खेल था जिसमें ना जानें कितने मासूम आदिवासियों की जान गई, बच्चें अनाथ हुए, लड़कियों का बलात्कार किया गया. अपनी जमीन, अपना घर, अपने लोग छिन जाने का डर और दर्द महसूस कर पाना हर किसी के लिए संभव नहीं होता.


सलवा जुडूम के नाम पर छत्तीसगढ़ के कई गांवों और आदिवासियों के रहने की जमीनों को हड़प लिया गया. माना जाता है कि इन जमीनों पर माननीय मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेहद करीबी पूंजीपतियों की निगाहे थीं. और आज के समय में एक मुख्यमंत्री के लिए पूंजीपति किंगमेकर से कम नहीं होते. फिल्म शिवाजी का वह करोड़पति पूंजीपति इस संदर्भ में विचारणीय है जो फिल्म में अपना काम ना होने की सूरत में सरकार ही बदल देता है. पूंजीपतियों का प्रेशर और शायद कर्मा जी की हीरो बनने की चाहत ने नक्सलवाद की समस्या को नासूर बना दिया.


सत्ता और शक्ति का मेल अकसर इंसान को बर्बाद कर देता है. कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा को तो वैसे भी बक्सर का टाइगर कहा जाता था. लेकिन दबी जबान में लोग उनके क्रुर व्यवहार की भी गवाही देते हैं जो आदिवासियों को कीड़े-मकोड़े समझते थे. लेकिन शायद उन्हें नहीं पता था यही कीड़े-मकोड़े जब नक्सलवाद की विचारधारा से मिलेंगे तो ऐसा विस्फोट करेंगे कि उनकी जान पर बन आएगी.

क्या है नक्सलवाद और आतंकवाद .....दोनों एक नहीं है .....
आज कई लोग नक्सलवाद और आतंकवाद को एक बताते हैं. टीवी मीडिया चन्द टीआरपी की चाह में नक्सलवाद को आधुनिक आतंकवाद और आर्म्स मार्केट से ज्जोड़ कर दिखा रही है. दरअसल इसके पीछे भी एक सोची-समझी चाल है. क्या आपने कभी किसी न्यूज चैनल में जंगल में रहने वाली आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के बारें में देखा है? क्या कोई मीडिया चैनल यह दिखाने की कोशिश करता है कि वन विभाग के आला अफसरों रात के अंधेरे में इन आदिवासियों पर क्या जुल्म ढ़ाते हैं?


नहीं, क्यूं? दरअसल इसके पीछे वजह है बाजार की कमी. मीडिया में आज खबरें एक प्रोडेक्ट हैं जिसका मार्केट इन जंगलों और आदिवासियों के बीच नहीं है. यहां ना कोई न्यूज देखने वाला है ना अखबार पढने वाला. जब वह इनका न्यूज नहीं देख रहें तो यह क्यूं उनकी न्यूज बनाएं. आईपीएल में आज कौन सा खिलाड़ी पकड़ा गया यह दिखाने की सभी को जल्दी है लेकिन छत्तीसगढ़ में जो कुछ हो रहा है उसकी तह तक जाने की किसी को टोह नहीं.


आज मीडिया में आज नक्सलवाद के समर्थन में बोलना पाप है. मीडिया अगर नक्सलवाद के बारें में कुछ सकारात्मक दिखा भी दे तो नीचे डिस्केलमर दे देता है कि “हम किसी भी तरह की अहिंसा की निंदा करते हैं” (दरअसल इसका अर्थ होता है हम मूल रूप से नक्सलवाद की निंदा करते हैं, बस टीआरपी के लिए थोड़ा ड्रामा कर रहे हैं). अफजल गुरु को फांसी होती है तो लोग जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करते हैं लेकिन जब आदिवासियों की जमीन, इज्जत, आबरु और सम्मान के साथ खिलवाड होता है तो सब चुप रहते हैं.


यह हालात आज कमोबेस छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश जैसे इलाकों में है लेकिन क्या सिर्फ ग्रीन हंट या सलवा जुडूम जैसी सैन्य गतिविधियों सॆ इन्हें खत्म किया जा सकता है. अगर हां, तो पूर्वोत्तर में आज भी सेना क्यूं आए दिन  अलगाववादियों से दो चार होती हैं, क्यूं कश्मीर में शांति हर पल अशांति के निगाहों में रहती हैं?


दमन की नीति को छोड़ कर अगर शांति का रास्ता ना अपनाया गया तो हो सकता है आने वाले दिनों में नक्सलवाद और अधिक उग्र हो. लोग कहते हैं कि नक्सलवादियों को लोकतांत्रिक तरीके से बातचीत का रास्ता तय करना चाहिए. लेकिन इस सच से सरकार कैसे मुंह मोड़ सकती है कि जब भी नक्सलवादियों ने बातचीत की कोशिश की, हर बार नाकामी ही हाथ लगी.


आज नवभारत में किसी महोदय ने नक्सलियों के विषय में एक खूब लाइन लिखी कि “पानसिंह तोमर हो या नक्सलवाद सभी को पालता शोषण ही है”. शोषण की रोटियां खाकर ही यह नक्सली आज गोलियों से खेलने चलें हैं.


आंख की जगह आंख निकाल लेने से दुनिया अंधी हो जाएगी. लेकिन एक आंख निकालने वाले की आंख निकाल देने से हो सकता है दूसरा कोई दुबारा आंख निकालने की हिम्मत ना करें. शायद यही नक्सलियों का नियम हो.


अंत में अपने ब्लॉग द्वारा मैं उन सभी तथाकथित बुद्धिजीवियों को एक संदेश देना चाहता हूं जो नक्सलवाद के साथ आतंकवाद को जोड़ते हैं कि नक्सलवाद एक पारिवारिक क्लेश के समान है और आतंकवाद पड़ोसी द्वारा घर में कुड़ा फेंकने जैसा. घर में अगर छोटे बेटे को प्यार ना मिले या उसे सभी सुविधाओं से विहिन रखा जाए तो वह विद्रोही हो सकता है लेकिन इस विद्रोह को घर में ही शांति से बात कर सुलझाया जा सकता है. उस बेटे को घर से निकाल देना उचित रास्ता नहीं.

अगली पोस्ट में ...जरुर पढ़े ....की अब नक्सली से लड़ने के लिए ....सरकार का नया ...उपाय क्या? ...उसे पढने से पहले ये सब जानना जरुरी था ....
आपकी राय ..अपेक्षित है ............

Source:- http://manojkumarsah.jagranjunction.com/2013/05/28/salwa-judum-and-naxalism/
Fb Link:- http://www.facebook.com/photo.php?fbid=579928032030332&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater

रमेश जी ...जयराम जी की ....हम तो ऐसा वैसा समझ रहे थे ....पर तो बड़े ज्ञानी निकले ....

रमेश जी ...जयराम जी की ....हम तो ऐसा वैसा समझ रहे थे ....पर तो बड़े ज्ञानी निकले ....अपने एक बयान से बड़ी दूर की कौड़ी लेकर आये हो आप ...जनाब अपने अरविन्द की तारीफ तो की ....ये तो माना की ..अरविन्द से नक्सलियों को सीखना चाहिए ...पर क्या ये तो बताया ही नहीं ???????????

जनाब बड़े चालाक हो तुम लोग ....जब एना - अरविन्द से डर लगा ...तो बोले राजनीती करके दिखाओ ....हम राजनीती में आ गए ..
अब नक्सलियों से डर लगा तो ..उनको सलाह दी की ....अरविन्द से सीखो ...क्या

सुवर की एक आदत होती है .....जब किसी दूसरे जानवर से ...वो लड़ता है ....तो पीछे हट कर ...कोशिश यही करता है ...की किसी तरह दूसरे ...जानवर को ...खींच कर कीचड में ले आये ....और एक बार कीचड़ में ले आया ...फिर क्या ...वो तो कीचड़ का ...खिलाडी है ...मजे से लोटता है ...और दूसरा जानवर थक जाता है ...

शायद ...इस कहानी के बारे में ....आपको अच्छे से पता है ...शायद इसीलिए ...तुम सबको ..राजनीती में बुलाते रहते हो ...क्योंकि वो तो तुम्हारा फैलाया हुआ जी कीचड़ है ....आराम से लोटोगे ....पर एक बात बता दें ...की अब तुम्हारा पाला ...आम आदमी से पड़ा है ......जिसको सब पता है ....उसकी ताकत भी ...और कमजोरी भी ...वैसे भी आम आदमी ....की तो आदत ही पड़ चुकी है ....परेशानियों  को झेलने ...लड़ने ...और उबरने की ....हम ढूंढ ही लेते है ...कोई ना कोई .....समाधान ....

देखो तुमने ...हमको राजनीती ,में बुला तो लिया ......हम आ भी गए ....फिर भी ...तुम्हें खुश होने का मौका नहीं देंगे ....तुम इंतज़ार करो ....हमारे थकने का .....लोटो इस कीचड़ में ....पर हम भी सोंच कर आये है .....की लड़ेंगे बाद में ...पहले इस कीचड़ को साफ़ करेंगे .....क्योंकि अगर कीचड़ साफ़ नहीं हुआ .....तो तुम जीत सकते हो .....और अब हम ..ऐसा होने नहीं देंगे ....

इसीलिए ...AAP ...अभी राजनीती कर नहीं रही है ...परेशान मत हो अभी से .....अभी तो AAP सिर्फ कीचड़ की सफाई में लगी है .....और जल्द ही ...करेंगे ....दो - दो हाँथ ...तुमसे ....तब तक लोट ..लो ...मजे ले लो ..इस कीचड़ के ...वैसे भी समय कम ही बचा है ....तुम्हारे पास .....अरे हमसे लड़ोगे ...तो जीतोगे कैसे ?.....क्योंकि अब तुम किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं .....आम आदमी से लड़ रहे हो ......आम आदमी ..ये कौन ...अरे जनाब आप .....सिर्फ आप ...और कौन .....नागेन्द्र शुक्ल

Tuesday, May 28, 2013

आदिवासियों की समस्या का समाधान कोई,....चाहता ही नहीं

नक्सली समस्या आजकल की नहीं,.... काफी पुरानी है,.... फिर इसका हल क्यों नहीं निकला?
क्या सरकार इसे ..सिर्फ हथियार से हल करना चाहती है .....अगर नहीं तो ...
जिस तरह ..अर्धसैनिक वहाँ तंबू लगा ....बैठे है लड़ रहे है ....
उसी तरह ..नेता ....जी हाँ सभी पक्ष के ..क्यों नहीं ...जा सकते बात करने ..नक्सलियों ने अभी तक ...ऐसे धोखे तो देने शुरू नहीं किये है ...की आप इतना डरो ...बात भी ना कर पाओ .....अरे एक नेताओं का प्रतिनिधि मंडल बनाओ ....मीडिया ...पुलिस सब ले जाओ ....और करो खुली बात ....जनता और सारे अधिवासियों के बीच ....

सच्चाई तो ये है की, आदिवासियों की समस्या का समाधान कोई,....चाहता ही नहीं,
क्योंकि आदिवासियों की समस्या का समाधान होगा तो,............ पूंजीपतियों के लिए समस्या पैदा हो जाएगी।

छत्तीसगढ़ में पिछले तीन दशकों से क्या हो रहा है?,... क्या हम सब उससे वाक़िफ़ हैं? अगर हाँ,
तो फिर शनिवार की घटना को आप,.... अप्रत्याशित कैसे मान सकते हैं!
किसका विकास हुआ है,... छत्तीसगढ़ में?
छत्तीसगढ़ किनके नाम पर,.... अलग राज्य बना?

अजीत जोगी की सरकार रही हो या,... रमन सिंह की, सभी ने आँखें मूँदकर,... उद्योगपतियों की चरण पूजा की है।
आदिवासियों की ज़मीनें छीनी गईं, मुआवज़े की लूट हुई,... रोटी-मकान और रोज़गार माँगने पर गोलियों का शिकार बनाया गया।

अहिंसक तरीके से,... पुलिस के अत्याचारों के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वालों को देशद्रोही बताकर जेल में ठूंसा गया।
हत्यारे और बलात्कारी अधिकारियों-पुलिसकर्मियों और नेताओं के ओहदे बढ़े, पुरस्कार मिला।
तो फिर ऐसी स्थिति में निरीह आदिवासी अपनी अस्तित्व रक्षा के लिए क्या करें? वैसे जो किया ,.... वो भी ठीक नहीं किया ....पर थी तो उनकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया

अगर देश लोकतांत्रिक है,... तो सभी को,.... जीवन का अधिकार है।
अगर देश जनतांत्रिक है,... तो सत्ता का वास्तविक दायित्व,.... जनहित होना चाहिए।
अगर जनतंत्र में जनता का हित,... चंद पूंजीपतियों की तिजोरी भरने की शर्त पर,.... सत्ता द्वारा अपहृत कर लिया जाए, तो,...
समस्या पैदा होती है,.... पैदा होता है नक्सलवाद,..

नक्सली ग़लत कर रहे हैं,.... उन्हें सज़ा मिले।
लेकिन सत्ता-पोषित आतंकवाद, लूटतंत्र और भ्रष्ट-व्यवस्था के ख़िलाफ़,.... कौन अभियान चलाएगा?

सत्ता को निर्देशित करने वाले हमेशा सात पर्दों,.... की आड़ लिए रहते हैं।
देश और संसाधनों से ज्यादा इनके सुरक्षा-प्रबंधों पर ध्यान दिया जाता है।
किसी ख़ास कम्पनी को फ़ायदा पहुंचाने के लिए नीतियाँ बदल दी जाती हैं।
ऐसी निर्लज्ज स्थिति में आम-आदमी क्या करे?,.....कुछ गिने चुने रास्ते ही दिखते है 

1. क्या सभी को अन्ना की तरह टोपी लगाकर, किसी चौराहे पर बैठ जाना चाहिए?
2. या अरविन्द केजरीवाल की तरह पार्टी बना लेनी चाहिए?
3. या नक्सलियों ने जो किया उन्हें वही करना चाहिए था ?
4. या कि सभी को सामूहिक रूप से ख़ुदकुशी कर लेनी चाहिए?

जब अन्ना की टोपी लगा ...अनसन पर बैठो ...तब यही सरकार के ज्ञानी कहते है ...हम नहीं सुनते ..
जब अरविन्द की टोपी लगा ....चुनाव की तैयारी करो ...तो इनके पालतू गुंडे ....सडक पर लड़ते - झगड़ते रहते है ...और यही ज्ञानी पुलिस का दुरुप्योंग करते  है ....
चुनाव के मामले में ...ये नेता थोडा निश्चिन्त से दिखते है ....वो इसलिए नहीं की ....ये जीत जायेंगे ....वो इसलिए की ..इनको पता है की ...जनता को कैसे बेवकूफ बनाना है ....यही तो करने की महारत हाशिल है इन्हें ...और इसी महारत का परिणाम है ...जो हुआ अभी हाल में ....

ऊपर के रास्तों में से #1 को हम पूरी तरह से ...अजमा कर देख चुके है ...और #2 को अजमा रहे है,...इस रास्ते में ...अच्छी बात ये है ...की ताकत जनता के पास है ....और जनता चाहे तो #2 पास ..या फेल ...
#3 ...ठीक नहीं दिखता ...और समुचित समाधान भी नहीं देता ...इससे लड़ा तो जा सकता है ...पर जीता नहीं ...
#4 आपकी .....चाहत कभी नहीं हो सकती ...और उससे भी होगा क्या ....सिर्फ वही जीतेंगे ....जिस सोंच को हम हराना चाहते है

अभी इस घटना के बाद एक बार फिर,.... नये सिरे से आदिवासियों का सरकारी क़त्लेआम होगा। जबकि हत्यारे (नक्सली!),....या ये कहें प्रायोजित नक्सली,...
अपने सुरक्षित ठिकानों में आराम फ़रमा रहे होंगे।
संदिग्धों की सूची बनेगी, पकडे जायेंगे और फिर थर्ड डिग्री टॉर्चर,..... कर उनका जीवन नरक बनाया जायेगा,.....
लेकिन हकीक़त तो यह है,... कि आज राजनीति, राजनीतिक दल, उसके नेता, उनके द्वारा निर्मित सत्ता-व्यवस्था और उनकी नैतिकता… सब संदिग्ध हैं।.....

सच्चाई तो ये है की, आदिवासियों की समस्या का समाधान कोई,....चाहता ही नहीं,......नागेन्द्र शुक्ल


Saturday, May 25, 2013

आपका मूल्य कम नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए


एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की. हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,” ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठना शुरू हो गए.
फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर उससे पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” और उसने नोट को अपनी मुट्ठी में चिमोड़ना शुरू कर दिया. और फिर उसने पूछा,” कौन है जो अब भी यह नोट लेना चाहता है?” अभी भी लोगों के हाथ उठने शुरू हो गए.
“अच्छा” उसने कहा,” अगर मैं ये कर दूं ? “ और उसने नोट को नीचे गिराकर पैरों से कुचलना शुरू कर दिया. उसने नोट उठाई , वह बिल्कुल चिमुड़ी और गन्दी हो गयी थी.
“ क्या अभी भी कोई है जो इसे लेना चाहता है?”. और एक बार फिर हाथ उठने शुरू हो गए.
“ दोस्तों , आप लोगों ने आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण पाठ सीखा है. मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया पर फिर भी आप इसे लेना चाहते थे क्योंकि ये सब होने के बावजूद नोट की कीमत घटी नहीं,उसका मूल्य अभी भी 500 था.
जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं. हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है. लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य में जो हो जाए , आपका मूल्य कम नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.
कभी भी बीते हुए कल की निराशा को आने वाले कल के सपनो को बर्बाद मत करने दीजिये. याद रखिये आपके पास जो सबसे कीमती चीज है, वो है आपका जीवन.”

तो सुनो ..एक भुक्त भोगी .....देशभक्त की .....


65 साल में ....देश को विकास के नाम पर ... के नाम पर, सिर्फ इतना मिला था ...की अगर हम चाहें ...तो सूचना ...आम आदमी की सूचना ....आम आदमी तक ... पहुंचती थी ....इसमें ...इस नामाकूल ...मीडिया का बहुत बड़ा हाँथ था ...इतना की खा गया ..ये प्रिंट मीडिया को ......और जब खा लिया .....तो लगे देश को बेचने ......और जिनका प्रिंट मीडिया ....उन्हीं का मीडिया ....मतलब अगर ...चाँद लोग ना चाहें ...तो किसी की ...कोई खबर नहीं ....मिल सकती ,...
और ऐसा तब जब ....हमारे देश में ....लोकतंत्र है .....हम वोट देते है .....हमारी सरकार होती है .....

जब ऐसे हालत हों ......."सूचना के अधिकार के" .......तो लिखने की विधा होती है ...द्रष्टान्त (आँखों देखा हाल )....आज कुछ वैसा try करना पड़ेगा ....

तो सुनो ..एक भुक्त भोगी .....देशभक्त की .....

वो कल शाम को जाता है ....विधायक वालिया जी ....मिलने का समय मांगता है ....समय मिलता है ..सुबह 11 बजे .....जब पहुंचा ...तो ताला बंद ....बोर्ड के नंबर पर फोन किया ....तो अहसान की ..जवाब मिला ....अगर मिलना है तो घर आजो ....चाणक्य पूरी .....

चाणक्य पूरी .....मतलब वो ..नगरी ..जहां आप और हम ..एक दम चीटी है .....अब मिलना था ...और,... डरते है क्या ....पहुँच गए ...जनाब ..
sorry ..मोहतरमा ...किरण वालिया की गली ...देखा ...इनको खतरा है किसी से .....बड़ी पुलिस खड़ी है ...सुरक्षा को ....

कोई नहीं ...डर लगता है ...इनको ...उनसे ...जिन्होंने इनको वोट दिया .....
अब हमें तो मिलना था ....अरे मिलने देते .....डर था तो तलाशी ..ले लेते ....4 / 5 ..को ही बुला लेते ....
या .....संगीनों के शाये ...में .....बैरिकेट के उस तरफ ...से ही बात कर लेती ....

अरे हम सवाल ...पूंछने ..आये थे ...
अब आप को ....सवाल ...तीर लगते है ...तो हम क्या करे ....और
वालिया जी ,.....आप भी ...क्या करो ......आप लोग तानाशाह ..जो ठहरे ...
कोई सवाल करे ..ये कहाँ ..बर्दाश्त .....

और ....हद तो तब हो गयी ....जब ...हमारी ...जान माल ...की सुरक्षा ..देने वाली पुलिस ....दोनों को ....लुटते हुए .....
बेतहाशा...हाँथो ..लातो से ....चालू ...हो गए ...उन पर ....
जो समझ गए है ....की हमारे देश में ...अजीब लोकतंत्र है ...अजीब व्यवस्था है ...हर समय ...हम,...सब खतरे में है ....

और ये क्या ...ये पड़ा थप्पड़ ....वो पकड़ा ..एक ने हाँथ ....दुसरे ने पैर .....झुला ...झुलाया ....फेक दिया ...सड़क पर .....
आह ...आह ...लगी तो जोर की ......पर ख़ुशी इस बात की .....की सर नहीं टकराया ....फुटपाथ से .....

चलो भाई .....अब उठा लो ....उठ तो नहीं पाऊंगा .....गाडी में डाल लो .....ले चलो ..जहां मर्जी ....

पहुँचे ..चाणक्यपुर थाने ,.....अच्छा है ...दिखने में ....
अब .....पूछ रहें है ..की भाई ..क्यों लेकर आये ...कौन से कानून का पालन कर रहे थे ....कौन कौन सी धाराएँ है .....
पर फिर वही,... तानाशाही ...बदतमीजी .....अरे ..ये क्या DCP Bhoop Singh,....जी पधार रहे है ....

ताकत के नशे में चूर ....गर्दन टेढ़ी किये .....आते ही ...पूछा ..भाई क्यों ,..किस धारा में लाये .....
जवाब में ..तिरश्कार ...चुप कर बैठ .....
फिर सवाल ...अब बदतमीजी ....जी हाँ ये ..थे,..... DCP Bhoop Singh,...

थोड़ी देर में ...पता चला की ....जिस आम आदमी ,...को वो धमका रहें है ....
वो एक वकील भी है ....वो सुप्रीम कोर्ट में ...और ऐसा वैसा नहीं ....इनके IG साहब जी जानते होंगे ....कैसा ....

ओह !!!...ये बाल ..तो baundary पार हो गयी ...DCP जी ..नदारद ....
सभा समाप्त .....सारे वक्ता ...गायब .....

श्रॊत ..अभी भी ...बैठे है ...सवाल के जवाब में ....
काफी ..समय बीत गया ...चलो ..अब घर चलते है ...इनसे तो कुछ होना जाना है नहीं .....
पर अजीब बात है .....अगर ...वो इतना काबिल और तेज़ ...वकील ना होता तो ?......तो ये क्या करते ?....
और ऐसा क्यों है ....की मेरे देश में ....मेरे आज़ाद देश में .......हम गुलाम है ...ताकत ..धन .....और सत्ता के ...क्या हम आज़ाद है ?.....

आज तो दिन भर ..दिल्ली की सडकों ...पर सभी .....मीडिया कर्मी .....होटी (hotty) डे ..मना रहे थे .....
अरे आपको नहीं पता .....आज दिल्ली का पारा 45 था ....टीवी नहीं देखि होगी ....हाँ ...

दिन ढल गया ....9 बजे ....पैरों पर चल कर निकले थे .....लड़खड़ाते जाऊँगा .....और पर घर में तो संभल कर ही चलना पड़ेगा ....नहीं घर वाले परेशान होंगे ....आम आदमी ..जो ठहरे ...द्रवित ह्रदय के मालिक ....

अब तो बस ....pain किल्लर खाने का ....और नींद का इंतज़ार ....पर करवट लेना मुश्किल होगा ,....आज बहुतों को ....
कोई नहीं .....कुछ किया तो .....कुछ भी कहो ..मजा आया .....

एक बात और .....आज IIT 1st year का भी एक साथी ....पहली बार ..निकला था मेरे साथ ..... हिल गया ...दुखी हो ...रोने लगा ...की ...भाई ...इतनी मुश्किल होती है .....वाकई में ...शर्मनाक है ....

पर आज तीसरी ...आँख ....चुप रही .....गुस्सा तो बहुत आया .....जब किसी का चश्मा 5/6 हो ..और कहीं दूर गिरे ....टूट जाये ....तो गुस्सा ...तो आयेगा ही न .....अजीब सा दिखता है ....

चलो ...कोई नहीं ...good night ....

ऐसा कुछ ...एक दोस्त ने बताया ....तो पता चला ...

अब मीडिया तो आज पूरी तरह से ..होत्ती डे ...पर थी ....और शायद ..इसी वजह ....से पुलिस ...अपने शबाब ..पर ......

एक दोस्त, से बात चीत के आधार पर ...वो दोस्त , दीप जैन नहीं है .....और किसी ...एक का नाम नहीं बता सकता ....क्योंकि ऐसी कहानी ....बहुतों की है ..आज ...उन सबको ...सच्चा ...सलाम ....नागेन्द्र शुक्ल
http://www.facebook.com/photo.php?fbid=575359845820484&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater
 

और वो ....भागे ...विधायक जी .....क्यों भागे विधायक जी ...जनता के सवाल से घबरा कर .


और वो ....भागे ...विधायक जी .....क्यों भागे विधायक जी ...जनता के सवाल से घबरा कर ....

कल कोई मिला नहीं ....कोई घर में बैठा रहा ...और अपने पालतू .. भेजे ...आपकी आवाज़ बंद कराने .....जो बड़े विधायक मंत्री थे ... ने ....पुलिस से घर के रास्ते बंद करवा दिए ....कोशिश की ....तो ...डंडे चले ....जेल गए ....कुछ मिले ...पर सिर्फ शक्ल दिखाने को ....जैसे ही ...आया सवाल सामने ....आई नानी ...याद ...आपका समय समाप्त ....जन्प्रतिनिधि हूँ ....और भी हैं काम ....

कुछ का जवाब .....हर सवाल पर ...राजनीती मत करो ....अजीब हैं ...खुद ने ही ...राजनीती करने का न्योता दिया ....
राजनीती करने ...पर मजबूर किया ....और अब चिल्ला रहें है ...राजनीती मत करो ....

अरे नेता जी ...अभी से ...खो रहे हो ...मानसिक संतुलन ....अभी तो हम राजनीती कर ही नहीं रहे .....
अभी तो हम राजनीती को ...बदल रहें है ...इस लायाक बना रहे है ....की जा सके राजनीती ....क्योंकि ..हम नहीं कर सकते ..तुम्हारी जैसी ..बकवास ...और बेकार की ,.....राजनीती .....

इनकी राजनीती ..इतनी बकवास .....की ..कोई साँप ...आज तक नहीं मरा .....सिर्फ लाठियां टूटी ....जनता टूटी ....देश टूटा ....आम आदमी टूटा ....आम आदमी का हौसला टूट .....राजनीती से ...लोकतंत्र ...और व्यवस्था से ....विस्वास टूटा ....

नेता जी ....तुम्हारी राजनीती ...ने सिर्फ तोडा है ......अब हम करेंगे राजनीती .....
पर उससे पहले ...बताएँगे तुमको ...की होती क्या है ...राजनीति .....

और अगर है ...हिम्मत ...तो करो राजनीती ...अब हमारे साथ ....अगर है ...हिम्मत तो सामने आओ ....ये लुक छिपी ..के खेल हम नहीं खेलते ....ये चाय पीने ...पिलाने ..के काम ...ये मिलीभगत ...की राजनीती ...हम नहीं कर सकते ....

तुम सम्मानित हो ......क्योंकि तुमको ...ये सम्मान हमने दिया है ...पर अगर पाना है ...विस्वास और सम्मान ....तो काबिल बनो ..मेहनत करो ...जनता के लिए लड़ो ....है ...हिम्मत तो ...हमसे राजनीती करो ....बात करो ....

छतरपुर के ...विधायक बलराम तंवर ...का घर ...ऊँची चार दीवारी .....ऊंचा और मजबूत गेट ....इतना ऊँचा ...की बाहर से दीखता ही नहीं ...अन्दर क्या है ..कैसा है ....दुनिया से .....छुप कर रहने की आदत है ......या मजबूरी पता नहीं .....

उधर गेट खुला ,....इधर आँखे ....क्या आलिशान घर .....एक दम महल ...बड़ा सा गार्डन ....जिसे पार्क कहना चाहिए ...घर के अन्दर .....कटी हुई ...सजी हुई घास ....चमकती हर एक पत्ती ....पता नहीं ...इनके घर पर पानी के लिए ...कौन सी लाइन ...आती है ....की गर्मी में भी ....धुल रहें है पेड़ .....

बगल में ...80 साल की माता जी .....जिनका पानी का बिल 16 हज़ार का .....और हाल ऐसे ...की पिछले ....8 दिनों से ....पानी का नल ....सिर्फ हवा ...फेंक रहा है ....और मीटर है ...की चले जा रहा है ....

कभी टैंकर आया ....जो थोडा ...पानी मिला ...समझ नहीं आता ...उसे पीने के लिए ...रखू,...या फिर बर्तन या कपडे धो लूँ .....मन तो कर रहा है .....नहाने का भी ....पर वो अगले हफ्ते .....

पर विधायक जी ने ....ना ही ये बताया ...की उनको इतना पानी कहाँ से मिलता है .....(घर का समरिबल तो बैन है ).....

ना ही ये बताया ....की पानी 8 दिन से क्यों नहीं आया ...और हवा का बिल 16 हज़ार का क्यों ?...
कुछ नहीं ...हर सवाल का जवाब ...राजनीती मत करो .....

नेताजी ...उवाच :- बिजली पानी ...को छोड़ ...कुछ और पूंछो ....
आम आदमी ...ने सवाल दागा ...विधायक जी ...एक बनी हुई सड़क ...बार - बार क्यों बनती है ....और गरीब की टूटी सड़क कभी नहीं ..क्यों ?....नेता जी को पानी चाहिए ...जो पानी लाया ...उस पर गुस्सा ...साले ठंडा पानी ले कर आ ....अब नेता जी ...बताने लगे ...अपने गुणगान ....पर सवाल का जवाब नहीं ....पानी आया ...पिया ....और सीधे ...

नेता जी उवाच .....कोई पर्सनल काम हो तो बोलो ......जनाब ...हम पर्सोनल ....काम वाली राजनीती नहीं करते ...इसलिए जनता के जवाब दो ....
नेता जी ....हाँ तो पूँछ ....पहले वाले का क्या ?.....नेता जी ...फिर कहा ना ...राजनीती ना करो ....

चलो कोई नहीं ....हम ही आगे बढ़ते है ...अगला सवाल शायाद ...इनको पास करा दे ...
अगला सवाल ....नेता जी ...आपके घर के सामने ...जो ..बारिस के पानी का रास्ता बन रहा है ...उसमे गड़बड़ है ....वो कौन बना रहा है .....
नेता जी का ..जवाब ..मुझे नहीं पता ...
जनता :- नेता जी ...नियम के हिसाब से ...इस ढाँचे में ....सरिया ...हर 5 इंच पर होनी चाहिए ....पर है तो 9 - 10 पर ....आपने देखा नहीं ....क्या ?....

ये तो techinical ...बात है ...मैं नहीं जानता ....
क्यों पता करने की खोशीश नहीं की नेता जी .....की क्या, क्यों ...कैसे बन रहा ....आपके घर के सामने ....

नेता जी उवाच :- इतना टाइम नहीं ...

अच्छा अब तो ...हमने बता दिया ..गड़बड़ क्या है ...पता करो ...और ठीक करवाओ ...
नेता जी उवाच :- उसके लिए ..इंजीनयर से मिलो ....MCD को लिखो ...मुझे भी भेज देना ....

पर नेता जी ...ये काम तो आपका है ...इसी के लिए ...वोट दिया था ...और इसी के लिए तनख्वाह ...देते है ....
नेता जी उवाच :- राजनीती मत करो ....टाईम नहीं अब ...आपका समय समाप्त ..और बस घिर गए ....चमचो के बीच ...निकल लिए नेता जी .....
पीछे से ...आवाज़ ..आई ...नेताजी ..ये तो पता ही होगा ....की ...किस रिश्तेदार ...को ..मिला है ठेका ....कम से कम ये तो बता दो ....
नेता जी ...जल्दी ...चलो ...देर हो रही है ......बहुत काम है ....

करना है ...."भारत निर्माण "......

मिल गए ..जवाब ..नेता जी से ....

ना इंजिनियर को पता ...ना नेता को पता ....किसी को ...पता ही नहीं ...की हमारे में ...जो चल रहा है ...चला कौन रहा है ....अभी कुछ दिन पहले ...कुछ ऐसा ही सवाल ...एक JE से किया था ..उसका जवाब थे ...मंत्री / पार्षद / विधायक से पूंछो ...
पढो @ http://shaashwatlife.blogspot.in/2012/11/2012-2014.html

किसी को ...कुछ नहीं पता ...
की लुट कौन रहा है ....और लूट कौन रहा है .....
बस ...राजनीती हो रही है ....और हमसे कहते है ...राजनीती मत करो ...

अब तो हम करेंगे ....हमारी राजनीती ...जनता की राजनीती ...रोक नहीं सकते तुम ....नागेन्द्र शुक्ल
 http://www.facebook.com/photo.php?fbid=575566322466503&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater
 

IPL Ek Chamatkaar

दुनीया का सबसे ज्यादा खेला जाने वाला खेल Football है.. 200 देश खेलते हैं ...
11 देशों में खेला जाने वाला खेल cricket ऐसा खेल है जिसने BCCI को दुनिया का सबसे "अमीर" board बना दिया है FIFA को टक्कर देता है, खास तौर से IPL के आ जाने के बाद से तो BCCI के सामने सभी बौने बन गए हैं....
ये चमत्कार कैसे हो रहा है भाई ? दुनियाँ के सबसे गरीब देशों में शुमार भारत की निजी संस्था दुनिया में सबसे अमिर कैसे है ?

नहीं जी, अमीर बनना अच्छी बात है, लेकिन कुछ तो गड़बड़ झाला है....

जहाँ भारतीय राष्ट्रीय खेल, कई बार के विश्व विजेता हॉकी के खिलाडियों को रहने और खाने के लिए पैसे नहीं होते... वहाँ क्रिकेट की निजी संस्था इतनी अमीर.... कैसे ?
तो जानीए कैसे और क्यों ??
भारतीय संविधान के हिसाब से नेता गण(विधायीका पैसों का allocation तो कर सकती है, पर सिधे तौर पर उस्का उपयोग नही कर सकती, इसके लिए उन्हे कार्यपालीका, या प्राइवेट कंपनीयो, संस्थाओं की मदद लेनी होती है......
बस BCCI वही सुविधा प्रदान करती है..... Tax में छुट दिलवा कर, देश की सुविधाएं free में दिलवा कर.... भ्रष्ट पैसे बनाते हैं, जनता को सम्मोहित कर पैसे ऐंठे जाते हैं....

1. Cricket एक खास अमीर तबके का खेल था,
2. निचला वर्ग हमेशा अमिर तबके का अनुसरण करना चाहता है, cricket के लिए भी यही हुआ..
3. cricket तभी भारत में पनपने लगा जब पुंजीवाद भारत में पैर पसार रहा था...
4. Cricket popular नहीं हुआ popular बनाया गया.....
5. ध्यान करिए, cricket पर कितनी पत्रिकाएं निकलती है, कितने समाचार पत्र इसको प्रथम पृष्ठ पर जगह देते है, रेडियो, T.V .... सभी प्राईवेट कंपनीयाँ cricket को ही sponsor करती हैं.... दुसरे खेल गए तेल लेने.... cricket को जबरदस्ती प्रचारित कर के गाँव गाँव पहुचां दिया गया है....
6. भारत की कोई भी जरूरी सुचना गाँव देहात तक नहीं पहुँच पाती... लेकिन Rajasthan royal, Chinnai super king, Kolkata Knight riders......IPL गाँव देहात तक अगले ही दिन पहुँच जाता है.... भईया कौन सा ऐसा चमत्कार हो रहा है, यह तो भगवान की आकाशवाणी की तरह है...(आधार कार्ड कई सालों से बंगले झाँक रहा है... कई दशकों तक लटका भी रहेगा...)
7. राजीव शुक्ला (Congress) हो या अरुण जेटली(BJP), cricket के बादशाह बने रहना चाहते है... (यहाँ सब एक हैं, भाई भाई)
8. Black money को बडि आसानी से भारत में लाकर व्यापार हो रहा है.... White बनाया जा रहा है, सभी कंपनीयाँ, फ्रेन्चाइजी 5 साल से लगातार मुनाफे में हैं...
9. IPL = Bollywood + glamour + Cheer girls + beer + betting + fun + money (everything but NO Cricket)
10. आप क्या कर सकते है ?
आधी से अधिक आबादी को सम्मोहित कर गुलाम बनाया जा चुका है.....
जो लोग होश में हैं अब उनकी जिम्मेदारी है की लोगों को झकझोरें .....
होश में आओ यह तिलिस्म तोड़ो....
अगर आप जिन्दा हैं तो जिन्दा दिखना जरूरी है...

"हम अभी जिन्दा हैं"

+++ गाँव वाला


किस्सा CAG के विनोद राय को समर्पित है

सुना है कि किसी "स्वयंभू सर्वज्ञानी, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और समस्त शास्त्रों के ज्ञाता " और "मृदुभाषी" , "संस्कारित" एक महान व्यक्ति ने CAG के श्री विनोद राय को "शास्त्रार्थ" के लिए "सादर आमंत्रित" किया है ......

इस बात को सुनकर बचपन की याद आ गयी.....बचपन में बुजुर्ग एक किस्सा सुनते थे- पंचतंत्र का तो नहीं था पर उससे प्रभावित जरुर था क्योंकि इसमें भी जानवरों के माध्यम से ही शिक्षा देने का प्रयास रहता था.....किस्से का सार कुछ यूँ था-------

अगर आप किसी सुअर से बहस या लड़ाई करने का प्रयास करेंगे तो सबसे पहले सुअर आपको कीचड़ में ले जाने की कोशिश करेगा, और अगर आप कीचड़ में उतर गए तो वो आपसे लड़ने की , आपसे मुकाबला करने की कोशिश करेगा...फिर कुछ देर बाद उससे लड़ते-लड़ते आप थकना शुरू कर देंगे पर सुअर को कीचड़ में मजा आना शुरू हो जायेगा...और अंत में आप कीचड़ में गंदे होकर, थक कर , हार कर बैठ जायेंगे और लोग आप पर हसेंगे पर सुअर बड़े गर्व के साथ सीना चौड़ा कर अपनी जीत का जश्न मानना शुरू कर देगा....

कहानी से शिक्षा -- सुअर से लड़ने में समय और उर्जा बर्बाद करने की बजाए अपने लक्ष्य को पाने की और अग्रसर रहे....

ये किस्सा CAG के विनोद राय को समर्पित है ताकि वो अपना काम इमानदारी से करते रहे और इस मुल्क की बेहतरी के लिए प्रयासरत रहे ना कि कीचड़ में उतरकर किसी सुअर को जश्न मानाने का मौका दें.....

( जो लोग "सुअर" शब्द के सन्दर्भ को लेकर उत्तेजित हैं उनकी जानकारी के लिए एक बात- "सुअर" भी एक जीवित प्राणी है और उसे भी उतना ही मान- सम्मान हासिल है जो कि एक लोकतंत्र में किसी और जानवर को हासिल है.....और साथ ही साथ एक बात और- जिस तरह से "मधुमक्खी " भी "देवी का एक रूप है ठीक उसी तरह से सुअर भी पूजनीय है क्योंकि भगवान् विष्णु एक कई अवतारों में एक "वराहां अवतार" भी सुअर रूप में है जिसने पृथ्वी को पाताल से बाहर निकला था....)


डॉ राजेश गर्ग.

http://www.facebook.com/photo.php?fbid=575818339107968&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater
 

क्या कोई ...ज्ञानी ...बताएगा की ..ये क्यों हुआ

क्या कोई ...ज्ञानी ...बताएगा की ..ये क्यों हुआ
किसकी गलती थी ये? ...
कैसे कपडे थे इनके? ...
क्या ये रात में ...घूमने निकली थी ?
क्या ये ..खुद गयी थी ..और बाद में आरोप लगाया ?
ये भारत की निवासी थी ..या India की ?
ये कैसे ...और किसे ?....हाँथ जोड़ कर कहती
भैया ..मैं तुम्हारी ..बहन बेटी हूँ ...
बोलो ज्ञानियों ....कोई ना कोई तो ज्ञान दो ...

मैं बताता हूँ ...ये इसलिए हुआ ...की देश की जनता ..नेता और अफसर (भ्रष्ट) की जागीर है ...
कानून ..ये बनाते है ....पर सिर्फ तुम्हारे लिए ...अपने लिए नहीं ...
ये कैसे बदलेगा? ....ये सिर्फ तब बदलेगा ..जब इनको सजा का भय हो ....मिलीभगत से Clean चिट ना मिले ?
कौन बदल सकता है ..इस मिली भगत ....क्लीन चिट वाली व्यवस्था को ....
जनाब ...सिर्फ आप ...और कौन ....नागेन्द्र शुक्ल

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शर्मनाक है ...जब तुम, मांगते हो गारंटी ....की अरविन्द ...जो कहते है ..वही करेंगे ....

मेरा ऐसा मानना हो या ना हो ...कोई फर्क नहीं पडता ...पर हाँ बहुत बार ...लोगों के मुंह से सुनी है ये बात की ..."कहते है ...की औरत ही ...औरत की ..दुश्मन होती है ".....ये सही है या गलत ....इसके लिए सन्दर्भ का पता होना जरुरी है ...पर मैं इसकी बात नहीं करना चाहता ....पर एक बात तो ...आज के सन्दर्भ में ...एक बात ..एक दम सही लगती है ....की ,...

आम आदमी ..ही आम आदमी का सबसे ..बड़ा दुश्मन है ....जो खींचता है ...टांग ...मेढकों की तरह ....इसीलिए ..तो देखने पद रहे ..ऐसे दिन ...की भ्रष्टाचारी ...छाती ठोंक कर कहता है ....की कर लो,.. जो कर सकते हो ....वहीँ दूसरी तरफ

सारे भ्रस्ताचारी ....नेता और अफसर ....एक दूसरे के ...पक्के साथी है ....चाहे,... जो जाये ..चाहे दुनिया .....इधर की उधर हो जाये ....पर किसी भी भ्रस्ताचारी को सजा नहीं होनी चाहिए ....अगर ऐसा हो गया तो ...एक गलत परम्परा पड़ ...जाएगी ...इस देश में ...
आज की तारीख में ...कहीं कुछ नहीं होता ...कानून से ....
जो होता है ...वो सिर्फ ...ताकत, पैसे ...और मिलीभगत से ....

कौन से ...आदर्श ...कौन से उधाहरण ..प्रस्तुत कर रहे है ....हमारे नेता ...अभिनेता ...खिलाडी ....सभी ....
सभी को ...सिर्फ पैसा चाहिए ...क्योंकि ..पैसे से ...मिलती है ...असीम ताकत ....और देश में कुछ भी ...हां कुछ भी,.. कर गुजरने का ...लाइसेंस,......

बस सबको सर्वशक्तिमान बनना है .....

दूसरी तरफ ....आम आदमी है ...जो लगा रहता है ..दिन भर ..की मेरा नेता ...मेरी पार्टी ..अच्छी ...
अरे क्यों अच्छी है ...कोई पार्टी ...क्योंकि वो ...आपकी जाती या धर्म के ...पक्ष में ...भाषण देता है ...और आपको लगता है ....की ....उसके आने से आपके दिन बदल जायेंगे ....आप आम ....से ....ख़ास बन जायेंगे ....कैसे? .....जनाब कैसे ?.....

ऐसा नहीं है ...की हमारे देश में ..किसी जाती या धर्म के लोगों को ...आज तक के इतिहास में ..मौका नहीं ....मिला है ...तकरीबन सभी को मिला है ....भरपूर मौका मिल चुका है ....पर क्या हुआ ...बदले आपके ..हालत? ....

चलिए एक मिनट के लिए .....मान लिया ..की आपके ...मनचाहे नेता जी ...सत्ता में आ गए ....तो क्या होगा ...ज्यादा से ज्यादा ..कुछ दिन ..अपना सीना चौड़ा कर ...गर्दन टेढ़ी कर ...घर से निकल सकते हो ....पर उसे क्या होगा ....

क्या ..आपको सम्मान मिलेगा ?....क्या आपको अच्छी शिक्षा मिलेगी ?....क्या आपको ...अच्छा और सस्ता इलाज़ मिलेगा ....
क्या ...रोटी ...पर रख कर ...रोटी खाने को मिलेगी ...क्या?.... होगा क्या ....

ऐसा क्या होगा ....जिसकी वजह से ....आपने ....अपनी आँखों पर पट्टी बाँध रख्खी है .....और देखना ही नहीं चाहते .....की सच्चाई क्या है ....

दोस्त, कबूतर हो तुम ....आँख बंद करने से ....हो सकता है ..की डर कम लगे ...पर बचोगे ..नहीं बिल्ली से ....
और अगर बचे भी तो ....बकरे माँ ..कब तक खैर मनाएगी ....

जब आज ...आनैतिक आधार पर ...अनर्गल रूप से ...तुम सीना चौड़ा कर ...गर्दन टेढ़ी कर ...घर से निकलते हो ....
तो जब कल ऊंट ..जब दूसरी करवट ..बैठेगा ...तब ?.....
तब कहाँ जाकर छुपोगे ....ऐसे कब तक ....बचोगे ?...

दोस्त, बचने का सिर्फ एक ही ..तरीका है ...की ना ही आनैतिक, अनर्गल ...करो ...और ना ही उसको सहो ....

दोस्त, शर्म आती है ...मुझे,.. जो ...आज भी इतना सब होने के बाद ...सब कुछ ...साफ़ नज़र आने के बाद भी ...अजीब अजीब ...से सवाल करते है ...की अरविन्द ऐसा ...वैसा ....
अरे अब तो शर्म करो ...आँखे खोलो ...हो चुकी है ..पहचान .....

शर्मनाक है ...जब तुम, मांगते हो गारंटी ....की अरविन्द ...जो कहते है ..वही करेंगे ....
इसका सिर्फ एक ही मतलब ..निकलता है ...की तुम्हें ...आज भी ...भरोषा है ...देश का बेडा गर्ग ..करने वाले ...महानायकों पर ....
जब की ...देख चुके हो ...सबको ...नंगे हो चुके ये सब ....खुल चुकी है बात ....

लड़ते तो सिर्फ हम है ....और लड़ाते है ...तुम्हारे नेता ...पर क्यों? ...
क्योंकि उनको चाहिए ...सारी ताकत ...भगवान् बनना चाहते है ..वो तुम्हारे ....

इससे दो बाते साफ़ होती है ...या तो तुम प्योर मूर्ख हो ...या स्वार्थी मूर्ख .....

पर दोस्त, कबूतर के बचने का ...एक ही तरीका है ....की मिल जाये ....
और एक साथ एक ...ही उद्देश्य के लिए उड़े ....
फिर चाहे ..वो डाल दें ..जाल तुम पर ...वो भी रोक नहीं पायेगा ....और एक बात बता दे ...
ये बात ...इनको अच्छी तरह से पता है ...की अगर कबूतर मिल गए .....तो बिल्ली कुछ नहीं कर पायेगी ....
इसीलिए ...वो याद दिलाते है ...की तुम सफ़ेद कबूतर हो ...वो तुम काले ....

नेता नहीं ...बदमास है ...साले ..समझ जाओ ....या लुटने के लिए तैयार रहो ...आज नहीं तो कल ...
हो सकता की मेरे बाद ...पर आएगा जरुर ...तुम्हारा भी नंबर ....पर मैं यूँ आँख नहीं बंद कर सकता ....
खुली आँख से ...दूंगा चुनौती ....इन बिल्लियों को ....आपकी आप जानो ...आँख खोल कर लड़ना है ...या आँख बंद किये हुए ...रोते ...सिसकते रहना है,.....नागेन्द्र शुक्ल

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कुछ ऐसी राजनीती झेल रहे हो आप .....तोड़ो, फोड़ो ..

कुछ ऐसी राजनीती झेल रहे हो आप .....तोड़ो, फोड़ो ...
पकड़ो, मारो ...कुछ भी करो ..बस सरकार बनाओ ....
कैसे भी कर के ...जनता से सच छुपाओ ...
जनता के हर सवाल पर ....पहले थप्पड़ दिखाओ ...
फिर भी ना माने ...तो जेल भिजवाओ ...
तब भी ...सवाल करे ....तो काले शीशे वाली ...गाड़ी बुलवाओ ...
पुलिस ...उससे क्या डरना ...कानून वो तो ...मेरी जेब में है ...
विपक्ष ...अरे वो तो ...मेरे मालिक की ...दूसरी दुकान है ...

वाकई ...मेरे देश की जनता महान है ...
जो झेलती है ...ऐसी व्यवस्था ...ऐसी राजनीती ...
और पूछती है ...हमसे ...की कौन ईमानदार है ..
क्या तुम हो .....?
गर तुम हो ....तो क्यों चुप हो ?....
बाहर निकालो ...मकानों से ...जंग करो ...बैमानो से ........नागेन्द्र शुक्ल

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ओ पागल, इस से बढ़िया मौका कबआयेगा? फिर भी इस पिस्टल को इस्तेमाल करने का तुझे मौका नजर नहींआया?

एक बार एक सेठ शहर से अपने गांव पैदल ही आ रहा था कि रास्ते में डाकू आ गए| डाकू ने सेठ को लट्ठ जमा दिए। सेठ ने अपनी जेब में जो धन था वह डाकू को दे दिया, फिर भी डाकुओं ने सेठ की कमीज उतरवा ली| तभी डाकुओं ने देखा की बनियान में भी एक जेब हे सो सेठ की बनियान भी उतरवा ली|

सेठ ने कुछ धन अपनी धोती की अंटी में भी रखा था सो डाकू सरदार ने सेठ की धोती भी खुलवा ली| अब सेठ जी सिर्फ कच्छे में थे|

डाकू सरदार ने सेठ का कच्छा गौर से देखा तो उसे लगा कि सेठ ने कच्छे में भी कुछ छुपा रखा है| सो डाकू सरदार ने सेठ से पुछा- “कच्छे में भी धन छुपा रखा है क्या?"

सेठ : जी धन नहीं है! इसमें मैंने एक पिस्टल छुपा रखी है|
डाकू सरदार : पिस्टल किस लिए? तू क्या करेगा पिस्टल का? तेरे किस काम की पिस्टल?

सेठ : जी! समय आने पर मौके पर काम लूँगा!

डाकू सरदार : ओ पागल, इस से बढ़िया मौका कबआयेगा? तेरी धोती, तेरा कुर्ता, तेरी बनयान तक लुट गया| तू कच्छे में नंगा खड़ा है, तेरा सारा धन लुट गया! फिर भी इस पिस्टल को इस्तेमाल करने का तुझे मौका नजर नहींआया? लगता है तू भी भारत के मतदाता की तरह ही पागल है|

सेठ को कुछ समझ नहीं आया, तो उसने डाकू से निवेदन किया –
"हे डाकू महाराज! कम से कम मुझे ये तो बता दीजिये कि मुझमें व भारतीय मतदाता में आपको ऐसी कौन सी समानता नजर आई जो आपने मुझे भारतीय मतदाता के समान पागल कह दिया|"

डाकू कहने लगा : देख सेठ तू पिस्टल पास होते हुए भी पूरा लुट गया| धन के साथ तेरे कपड़े तक हमने उतार लिये| फिर भी तूने अपना धन और कपड़े बचाने को पिस्टल का उपयोग नहीं किया. यह ठीक उसी तरह है जैसे भारतीय मतदाता पुरे पांच साल तक नेताओं से लुटता हुआ डायलोग मारता रहता है कि अगले चुनाव आने दीजिये, अपने वोट से इन नेताओं को सबक सिखाऊंगा|
अब देख भारतीय जनता को नेताओं ने इतना लुटा कि अब उसके पास कुछ नहीं बचा है जबकि उसके पास "मत" (वोट) रूपी ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल से वह नेताओं द्वारा लुटे जाने से आसानी से बच सकता है| पर वह भी तेरी तरह ही सोचता रहता है कि इस चुनाव में नहीं, अगले चुनावों में इस नेता को देखूंगा! और इसी तरह देखने का इंतजार करते करते भारतीय मतदाता नेताओं के हाथों लुटता रहता है, ठीक वैसे ही जैसे तुम पिस्तौल होने के बावजूद हमसे लुट गए|

अब देखो, इतने घोटालों के बाद भी सब मस्त हैं और बेचारा आम आदमी कोने में खडा रो रहा हे। कारण, धरम-जाति, बाहु-बल, पर्लोभनो, पैसे से सत्ता, सत्ता से पैसा की राजनीति। बंटा हुआ आम आदमी अपने पिस्टल (मत ) का सही इस्तेमाल नहीं करता और फिर कभी एक या दूसरा दल इसे बुधू बना कर सत्ता में आ जाता है। और फिर शुरू हो जाता हे पांच साल का लम्बा इंतजार।


Gk Khanna : 

सूचना का अधिकार ( RTI )

सूचना का अधिकार ( RTI )

क्या है सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार अधिनियम भारत की संसद द्वारा पारित एक कानून है, जो 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ. यह कानून भारत के सभी नागरिकों को सरकारी फाइलों/रिकॉडर्‌‌स में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है. जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है. सरकार के संचालन और अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन के मद में खर्च होने वाली रकम का प्रबंध भी हमारे-आपके द्वारा दिए गए करों से ही किया जाता है. यहां तक कि एक रिक्शा चलाने वाला भी जब बाज़ार से कुछ खरीदता है तो वह बिक्री कर, उत्पाद शुल्क इत्यादि के रूप में टैक्स देता है. इसलिए हम सभी को यह जानने का अधिकार है कि उस धन को किस प्रकार खर्च किया जा रहा है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है.

किससे और क्या सूचना मांग सकते हैं
सभी इकाइयों/विभागों, जो संविधान या अन्य कानूनों या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है.

सरकार से कोई भी सूचना मांग सकते हैं.
सरकारी निर्णय की प्रति ले सकते हैं.
सरकारी दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं.
सरकारी कार्य का निरीक्षण कर सकते हैं.
सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले सकते हैं
किससे मिलेगी सूचना और कितना आवेदन शुल्क

इस कानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग में जन/लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पद का प्रावधान है. आरटीआई आवेदन इनके पास जमा करना होता है. आवेदन के साथ केंद्र सरकार के विभागों के लिए 10 रुपये का आवेदन शुल्क देना पड़ता है. हालांकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शुल्क निर्धारित हैं. सूचना पाने के लिए 2 रुपये प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देने पड़ते हैं. यह शुल्क विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है. आवेदन शुल्क नकद, डीडी, बैंकर चेक या पोस्टल आर्डर के माध्यम से जमा किया जा सकता है. कुछ राज्यों में आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं और अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं. ऐसा करने पर आपका शुल्क जमा माना जाएगा. आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं.
आवेदन का प्रारूप क्या हो
केंद्र सरकार के विभागों के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है. आप एक सादे कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही आवेदन बना सकते हैं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा कर सकते हैं. (अपने आवेदन की एक प्रति अपने पास निजी संदर्भ के लिए अवश्य रखें)
सूचना प्राप्ति की समय सीमा
पीआईओ को आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आवेदन सहायक पीआईओ को दिया गया है तो सूचना 35 दिनों के भीतर मिल जानी चाहिए.
सूचना न मिलने पर क्या करे
यदि सूचना न मिले या प्राप्त सूचना से आप संतुष्ट न हों तो अपीलीय अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19(1) के तहत एक अपील दायर की जा सकती है. हर विभाग में प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है. सूचना प्राप्ति के 30 दिनों और आरटीआई अर्जी दाखिल करने के 60 दिनों के भीतर आप प्रथम अपील दायर कर सकते हैं.
द्वितीय अपील क्या है?
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है. द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर की जा सकती है. केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध केंद्रीय सूचना आयोग है और राज्य सरकार के विभागों के विरुद्ध राज्य सूचना आयोग. प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के 90 दिनों के भीतर कि जब तक प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर की जा सकती है. अगर राज्य सूचना आयोग में जाने पर भी सूचना नहीं मिले तो एक और स्मरणपत्र राज्य सूचना आयोग में भेज सकते हैं. यदि फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जा सकते हैं.

सवाल पूछो, ज़िंदगी बदलो

सूचना कौन देगा
प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ - PIO ) का पद होता है. आपको अपनी अर्जी उसके पास दाख़िल करनी होगी. यह उसका उत्तरदायित्व है कि वह उस विभाग के विभिन्न भागों से आप द्वारा मांगी गई जानकारी इकट्ठा करे और आपको प्रदान करे. इसके अलावा कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जाता है. उनका कार्य जनता से आरटीआई आवेदन लेना और पीआईओ के पास भेजना है.

आरटीआई आवेदन कहां जमा करें
आप अपनी अर्जी-आवेदन पीआईओ या एपीआईओ के पास जमा कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. मतलब यह कि आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई काउंटर पर अपना आरटीआई आवेदन और शुल्क जमा करा सकते हैं. वहां आपको एक रसीद भी मिलेगी. यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वह उसे संबंधित पीआईओ के पास भेजे.

यदि पीआईओ या संबंधित विभाग आरटीआई आवेदन स्वीकार न करने पर
ऐसी स्थिति में आप अपना आवेदन डाक द्वारा भेज सकते हैं. इसकी औपचारिक शिक़ायत संबंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर 25,000 रुपये का अर्थदंड लगाने का अधिकार है, जिसने आवेदन लेने से मना किया था.

पीआईओ या एपीआईओ का पता न चलने पर
यदि पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप आवेदन विभागाध्यक्ष को भेज सकते हैं. विभागाध्यक्ष को वह अर्जी संबंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी.

अगर पीआईओ आवेदन न लें
पीआईओ आरटीआई आवेदन लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. भले ही वह सूचना उसके विभाग/कार्यक्षेत्र में न आती हो. उसे अर्जी स्वीकार करनी होगी. यदि आवेदन-अर्जी उस पीआईओ से संबंधित न हो तो वह उसे उपायुक्त पीआईओ के पास पांच दिनों के भीतर अनुच्छेद 6(3) के तहत भेज सकता है.
क्या सरकारी दस्तावेज़ गोपनीयता क़ानून 1923 सूचना के अधिकार में बाधा है नहीं. सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुच्छेद 22 के अनुसार सूचना का अधिकार क़ानून सभी मौजूदा क़ानूनों का स्थान ले लेगा.

अगर पीआईओ सूचना न दें
एक पीआईओ सूचना देने से मना उन 11 विषयों के लिए कर सकता है, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद आठ में दिए गए हैं. इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन 18 अभिकरणों की सूची दी गई है, जिन पर यह लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वे सूचनाएं देनी होंगी, जो भ्रष्टाचार के आरोपों और मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी हों.

कहां कितना आरटीआई शुल्क

प्रथम अपील/द्वितीय अपील की कोई फीस नहीं है. हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है. विभिन्न राज्यों में सूचना शुल्क/अपील शुल्क का प्रारूप अलग-अलग है.कहीं आवेदन के लिए शुल्क 10 रुपये है तो कहीं 50 रुपये. इसी तरह दस्तावेजों की फोटोकॉपी के लिए कहीं 2 रुपये तो कहीं 5 रुपये लिए जाते हैं.

क्या फाइल नोटिंग मिलता है
फाइलों की टिप्पणियां (फाइल नोटिंग) सरकारी फाइल का अभिन्न हिस्सा हैं और इस अधिनियम के तहत सार्वजनिक की जा सकती हैं. केंद्रीय सूचना आयोग ने 31 जनवरी 2006 के अपने एक आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है.

सूचना क्यों चाहिए, क्या उसका कारण बताना होगा
बिल्कुल नहीं. कोई कारण या अन्य सूचना केवल संपर्क विवरण (नाम, पता, फोन नंबर) के अतिरिक्त देने की ज़रूरत नहीं है. सूचना क़ानून स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जाएगा.

कैसे करे सूचना के लिए आवदेन एक उदाहरण से समझे
यह क़ानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है? कोई अधिकारी क्यों अब तक आपके रुके काम को, जो वह पहले नहीं कर रहा था, करने के लिए मजबूर होता है और कैसे यह क़ानून आपके काम को आसानी से पूरा करवाता है इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं.

एक आवेदक ने राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया. उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था. लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत आवेदन दिया. आवेदन डालते ही, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया. आवेदक ने निम्न सवाल पूछे थे:
1. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 10 नवंबर 2009 को अर्जी दी थी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति रिपोर्ट बताएं अर्थात मेरी अर्जी किस अधिकारी के पास कब पहुंची, उस अधिकारी के पास यह कितने समय रही और उसने उतने समय तक मेरी अर्जी पर क्या कार्रवाई की?
2. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड कितने दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जाएगी? वह कार्रवाई कब तक की जाएगी?
4. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जाएगा?
आमतौर पर पहले ऐसे आवेदन कूड़ेदान में फेंक दिए जाते थे. लेकिन सूचना क़ानून के तहत दिए गए आवेदन के संबंध में यह क़ानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. ज़ाहिर है, ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना अधिकारियों के लिए आसान नहीं होगा.
पहला प्रश्न है : कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं.
कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह काग़ज़ पर ग़लती स्वीकारने जैसा होगा.
अगला प्रश्न है : कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.
यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, तो उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति का़फी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.

घूस को मारिए घूंसा
कैसे यह क़ानून आम आदमी की रोज़मर्रा की समस्याओं (सरकारी दफ़्तरों से संबंधित) का समाधान निकाल सकता है. वो भी, बिना रिश्वत दिए. बिना जी-हुजूरी किए. आपको बस अपनी समस्याओं के बारे में संबंधित विभाग से सवाल पूछना है. जैसे ही आपका सवाल संबंधित विभाग तक पहुंचेगा वैसे ही संबंधित अधिकारी पर क़ानूनी तौर पर यह ज़िम्मेवारी आ जाएगी कि वो आपके सवालों का जवाब दे. ज़ाहिर है, अगर उस अधिकारी ने बेवजह आपके काम को लटकाया है तो वह आपके सवालों का जवाब भला कैसे देगा.

आप अपना आरटीआई आवेदन (जिसमें आपकी समस्या से जुड़े सवाल होंगे) संबंधित सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पास स्वयं जा कर या डाक के द्वारा जमा करा सकते हैं. आरटीआई क़ानून के मुताबिक़ प्रत्येक सरकारी विभाग में एक लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है. यह ज़रूरी नहीं है कि आपको उस पीआईओ का नाम मालूम हो. यदि आप प्रखंड स्तर के किसी समस्या के बारे में सवाल पूछना चाहते है तो आप क्षेत्र के बीडीओ से संपर्क कर सकते हैं. केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के पते जानने के लिए आप इंटरनेट की भी मदद ले सकते है. और, हां एक बच्चा भी आरटीआई क़ानून के तहत आरटीआई आवेदन दाख़िल कर सकता है.

सूचना ना देने पर अधिकारी को सजा

स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार कोई क़ानून किसी अधिकारी की अकर्मण्यता/लापरवाही के प्रति जवाबदेही तय करता है और इस क़ानून में आर्थिक दंड का भी प्रावधान है. यदि संबंधित अधिकारी समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है तो उस पर 250 रु. प्रतिदिन के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि दी गई सूचना ग़लत है तो अधिकतम 25000 रु. तक का भी जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना आपके आवेदन को ग़लत कारणों से नकारने या ग़लत सूचना देने पर भी लगाया जा सकता है. यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है.
सवाल : क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि आवेदक को दी जाती है?
जवाब : नहीं, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है. हालांकि अनुच्छेद 19 के तहत, आवेदक मुआवज़ा मांग सकता है.

आरटीआई के इस्तेमाल में समझदारी दिखाएं

कई बार आरटीआई के इस्तेमाल के बाद आवेदक को परेशान किया किया जाता है या झूठे मुक़दमे में फंसाकर उनका मानसिक और आर्थिक शोषण किया किया जाता है . यह एक गंभीर मामला है और आरटीआई क़ानून के अस्तित्व में आने के तुरंत बाद से ही इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं. आवेदकों को धमकियां दी गईं, जेल भेजा गया. यहां तक कि कई आरटीआई कार्यकर्ताओं पर कातिलाना हमले भी हुए. झारखंड के ललित मेहता, पुणे के सतीश शेट्टी जैसे समर्पित आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या तक कर दी गई.

इन सब बातों से घबराने की ज़रूरत नहीं है. हमें इस क़ानून का इस्तेमाल इस तरह करना होगा कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. मतलब अति उत्साह के बजाय थोड़ी समझदारी दिखानी होगी. ख़ासकर ऐसे मामलों में जो जनहित से जुड़े हों और जिस सूचना के सार्वजनिक होने से ताक़तवर लोगों का पर्दाफाश होना तय हो, क्योंकि सफेदपोश ताक़तवर लोग ख़ुद को सुरक्षित बनाए रखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. वे साम, दाम, दंड और भेद कोई भी नीति अपना सकते हैं. यहीं पर एक आरटीआई आवेदक को ज़्यादा सतर्कता और समझदारी दिखाने की आवश्यकता है. उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आपको एक ऐसे मामले की जानकारी है, जिसका सार्वजनिक होना ज़रूरी है, लेकिन इससे आपकी जान को ख़तरा हो सकता है. ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे? हमारी समझ और सलाह के मुताबिक़, आपको ख़ुद आरटीआई आवेदन देने के बजाय किसी और से आवेदन दिलवाना चाहिए. ख़ासकर उस ज़िले से बाहर के किसी व्यक्ति की ओर से. आप यह कोशिश भी कर सकते हैं कि अगर आपके कोई मित्र राज्य से बाहर रहते हों तो आप उनसे भी उस मामले पर आरटीआई आवेदन डलवा सकते हैं. इससे होगा यह कि जो लोग आपको धमका सकते हैं, वे एक साथ कई लोगों या अन्य राज्य में रहने वाले आवेदक को नहीं धमका पाएंगे. आप चाहें तो यह भी कर सकते हैं कि एक मामले में सैकड़ों लोगों से आवेदन डलवा दें. इससे दबाव काफी बढ़ जाएगा. यदि आपका स्वयं का कोई मामला हो तो भी कोशिश करें कि एक से ज़्यादा लोग आपके मामले में आरटीआई आवेदन डालें. साथ ही आप अपने क्षेत्र में काम कर रही किसी ग़ैर सरकारी संस्था की भी मदद ले सकते हैं.

सवाल - जवाब

क्या फाइल नोटिंग का सार्वजनिक होना अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से रोकेगा?
नहीं, यह आशंका ग़लत है. इसके उलट, हर अधिकारी को अब यह पता होगा कि जो कुछ भी वह लिखता है वह जन- समीक्षा का विषय हो सकता है. यह उस पर उत्तम जनहित में लिखने का दबाव बनाएगा. कुछ ईमानदार नौकरशाहों ने अलग से स्वीकार किया है कि आरटीआई उनके राजनीतिक व अन्य प्रभावों को दरकिनार करने में बहुत प्रभावी रहा है. अब अधिकारी सीधे तौर स्वीकार करते हैं कि यदि उन्होंने कुछ ग़लत किया तो उनका पर्दाफाश हो जाएगा. इसलिए, अधिकारियों ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया है कि वरिष्ठ अधिकारी भी उन्हें लिखित में निर्देश दें.

क्या बहुत लंबी-चौड़ी सूचना मांगने वाले आवेदन को ख़ारिज किया जाना चाहिए?
यदि कोई आवेदक ऐसी जानकारी चाहता है जो एक लाख पृष्ठों की हो तो वह ऐसा तभी करेगा जब सचमुच उसे इसकी ज़रूरत होगी क्योंकि उसके लिए दो लाख रुपयों का भुगतान करना होगा. यह अपने आप में ही हतोत्साहित करने वाला उपाय है. यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक अर्ज़ी में 100 पृष्ठ मांगते हुए 1000 अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का भी लाभ नहीं होगा. इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि लोग ऐसे मुद्दों से जुड़ी सूचना मांग रहे हैं जो सीधे सीधे उनसे जुड़ी हुई नहीं हैं. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए, पूर्णतः ग़लत है. आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद 6(2) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे ख़र्च हो रहा है और कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. भले ही वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति ऐसी कोई भी सूचना मांग सकता है जो तमिलनाडु से संबंधित हो.

सरकारी रेकॉर्ड्स सही रूप में व्यवस्थित नहीं हैं.
आरटीआई की वजह से सरकारी व्यवस्था पर अब रेकॉर्ड्स सही आकार और स्वरूप में रखने का दवाब बनेगा. अन्यथा, अधिकारी को आरटीआई क़ानून के तहत दंड भुगतना होगा.

प्रथम अपील कब और कैसे करें

आपने सूचना पाने के लिए किसी सरकारी विभाग में आवेदन किया है, 30 दिन बीत जाने के बाद भी आपको सूचना नहीं मिली या मिली भी तो ग़लत और आधी-अधूरी अथवा भ्रामक. या फिर सूचना का अधिकार क़ानून की धारा 8 के प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर आपको सूचना देने से मना कर दिया गया. यह कहा गया कि फलां सूचना दिए जाने से किसी के विशेषाधिकार का हनन होता है या फलां सूचना तीसरे पक्ष से जुड़ी है इत्यादि. अब आप ऐसी स्थिति में क्या करेंगे? ज़ाहिर है, चुपचाप तो बैठा नहीं जा सकता. इसलिए यह ज़रूरी है कि आप सूचना का अधिकार क़ानून के तहत ऐसे मामलों में प्रथम अपील करें. जब आप आवेदन जमा करते हैं तो उसके 30 दिनों बाद, लेकिन 60 दिनों के अंदर लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी, जो सूचना क़ानून के तहत प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है, के यहां अपील करें. यदि आप द्वारा अपील करने के बाद भी कोई सूचना या संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है या आपकी प्रथम अपील पर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप दूसरी अपील कर सकते हैं. दूसरी अपील के लिए आपको राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में जाना होगा. फिलहाल इस अंक में हम स़िर्फ प्रथम अपील के बारे में ही बात कर रहे हैं. हम प्रथम अपील का एक प्रारूप भी प्रकाशित कर रहे हैं. अगले अंक में हम आपकी सुविधा के लिए द्वितीय अपील का प्रारूप भी प्रकाशित करेंगे. प्रथम अपील के लिए आमतौर पर कोई फीस निर्धारित नहीं है. हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां प्रथम अपील के लिए भी शुल्क निर्धारित कर रखा है. प्रथम अपील के लिए कोई निश्चित प्रारूप (फॉर्म) नहीं होता है. आप चाहें तो एक सादे काग़ज़ पर भी लिखकर प्रथम अपील तैयार कर सकते हैं. हालांकि इस मामले में भी कुछ राज्य सरकारों ने प्रथम अपील के लिए एक ख़ास प्रारूप तैयार कर रखा है. प्रथम अपील आप डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से संबंधित कार्यालय में जाकर जमा करा सकते हैं. प्रथम अपील के साथ आरटीआई आवेदन, लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना (यदि उपलब्ध कराई गई है तो) एवं आरटीआई आवेदन के साथ दिए गए शुल्क की रसीद आदि की फोटोकॉपी लगाना न भूलें. इस क़ानून के प्रावधानों के अनुसार, यदि लोक सूचना अधिकारी आपके द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों के भीतर उपलब्ध नहीं कराता है तो आप प्रथम अपील में सारी सूचनाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए भी कह सकते हैं. इस क़ानून में यह एक बहुत महत्वपूर्ण प्रावधान है. भले ही सूचना हज़ार पन्नों की क्यों न हो. हम उम्मीद करते हैं कि आप इस अंक में प्रकाशित प्रथम अपील के प्रारूप का ज़रूर इस्तेमाल करेंगे और अन्य लोगों को भी इस संबंध में जागरूक करेंगे.

आरटीआई की दूसरी अपील कब करें

आरटीआई अधिनियम सभी नागरिकों को लोक प्राधिकरण द्वारा धारित सूचना की अभिगम्यता का अधिकार प्रदान करता है. यदि आपको किसी सूचना की अभिगम्यता प्रदान करने से मना किया गया हो तो आप केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के समक्ष अपील/ शिकायत दायर कर सकते हैं.

दूसरी अपील कब दर्ज करें

19 (1) कोई व्यक्ति, जिसे उपधारा (1) अथवा धारा 7 की उपधारा (3) के खंड (क) के तहत निर्दिष्ट समय के अंदर निर्णय प्राप्त नहीं होता है अथवा वह केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी के निर्णय से पीड़ित है, जैसा भी मामला हो, वह उक्त अवधि समाप्त होने के 30 दिनों के अंदर अथवा निर्णय प्राप्त होने के 30 दिनों के अंदर उस अधिकारी के पास एक अपील दर्ज करा सकता है, जो प्रत्येक लोक प्राधिकरण में केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ स्तर का है, जैसा भी मामला हो:

1. बशर्ते उक्त अधिकारी 30 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद अपील स्वीकार कर लेता है. यदि वह इसके प्रति संतुष्ट है कि अपीलकर्ता को समय पर अपील करने से रोकने का पर्याप्त कारण है.

19 (2): जब केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी, जैसा भी मामला हो, द्वारा धारा 11 के तहत तीसरे पक्ष की सूचना का प्रकटन किया जाता है, तब संबंधित तीसरा पक्ष आदेश की तिथि के 30 दिनों के अंदर अपील कर सकता है.

19 (3) उपधारा 1 के तहत निर्णय के विरुद्ध एक दूसरी अपील तिथि के 90 दिनों के अंदर की जाएगी, जब निर्णय किया गया है अथवा इसे केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग में वास्तविक रूप से प्राप्त किया गया है:

1. बशर्ते केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, 90 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद अपील स्वीकार कर सकता है, यदि वह इसके प्रति संतुष्ट हो कि अपीलकर्ता को समय पर अपील न कर पाने के लिए पर्याप्त कारण हैं.

19 (4): यदि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी का निर्णय, जैसा कि मामला हो, दिया जाता है और इसके विरुद्ध तीसरे पक्ष की सूचना से संबंधित एक अपील की जाती है तो केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, उस तीसरे पक्ष को सुनने का एक पर्याप्त अवसर देगा.

19 (7): केद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का निर्णय, जैसा भी मामला हो, मानने के लिए बाध्य होगा.

19 (8): अपने निर्णय में केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, को निम्नलिखित का अधिकार होगा.

(क) लोक प्राधिकरण द्वारा वे क़दम उठाए जाएं, जो इस अधिनियम के प्रावधानों के साथ पालन को सुनिश्चित करें, जिसमें शामिल हैं
सूचना तक पहुंच प्रदान करने द्वारा, एक विशेष रूप में, यदि ऐसा अनुरोध किया गया है;
केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति द्वारा, जैसा भी मामला हो;
सूचना की कुछ श्रेणियों या किसी विशिष्ट सूचना के प्रकाशन द्वारा;
अभिलेखों के रखरखाव, प्रबंधन और विनाश के संदर्भ में प्रथाओं में अनिवार्य बदलावों द्वारा;
अपने अधिकारियों को सूचना के अधिकार पर प्रशिक्षण के प्रावधान बढ़ाकर;
धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (ख) का पालन करते हुए वार्षिक प्रतिवेदन प्रदान करना;

(ख) लोक प्राधिकरण द्वारा किसी क्षति या अन्य उठाई गई हानि के लिए शिकायतकर्ता को मुआवज़ा देना;

(ग) अधिनियम के तहत प्रदान की गई शक्तियों को अधिरोपित करना;

(घ) आवेदन अस्वीकार करना.

19 (9): केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, अपील के अधिकार सहित अपने निर्णय की सूचना शिकायतकर्ता और लोक प्राधिकरण को देगा.

19 (10): केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग, जैसा भी मामला हो, उक्त प्रक्रिया में निर्धारित विधि द्वारा अपील का निर्णय देगा.

ऑनलाइन करें अपील या शिकायत

क्या लोक सूचना अधिकारी ने आपको जवाब नहीं दिया या दिया भी तो ग़लत और आधा-अधूरा? क्या प्रथम अपीलीय अधिकारी ने भी आपकी बात नहीं सुनी? ज़ाहिर है, अब आप प्रथम अपील या शिकायत करने की सोच रहे होंगे. अगर मामला केंद्रीय विभाग से जुड़ा हो तो इसके लिए आपको केंद्रीय सूचना आयोग आना पड़ेगा. आप अगर बिहार, उत्तर प्रदेश या देश के अन्य किसी दूरदराज के इलाक़े के रहने वाले हैं तो बार-बार दिल्ली आना आपके लिए मुश्किल भरा काम हो सकता है. लेकिन अब आपको द्वितीय अपील या शिकायत दर्ज कराने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग के दफ्तर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे. अब आप सीधे सीआईसी में ऑनलाइन द्वितीय अपील या शिकायत कर सकते हैं. सीआईसी में शिकायत या द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए हीं http:rti.india.gov.in में दिया गया फार्म भरकर जमा करना है. क्लिक करते ही आपकी शिकायत या अपील दर्ज हो जाती है.

दरअसल यह व्यवस्था भारत सरकार की ई-गवर्नेंस योजना का एक हिस्सा है. अब वेबसाइट के माध्यम से केंद्रीय सूचना आयोग में शिकायत या द्वितीय अपील भी दर्ज की जा सकती है. इतना ही नहीं, आपकी अपील या शिकायत की वर्तमान स्थिति क्या है, उस पर क्या कार्रवाई की गई है, यह जानकारी भी आप घर बैठे ही पा सकते हैं. सीआईसी में द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए वेबसाइट में प्रोविजनल संख्या पूछी जाती है. वेबसाइट पर जाकर आप सीआईसी के निर्णय, वाद सूची, अपनी अपील या शिकायत की स्थिति भी जांच सकते हैं. इस पहल को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है. सूचना का अधिकार क़ानून लागू होने के बाद से लगातार यह मांग की जा रही थी कि आरटीआई आवेदन एवं अपील ऑनलाइन करने की व्यवस्था की जाए, जिससे सूचना का अधिकार आसानी से लोगों तक अपनी पहुंच बना सके और आवेदक को सूचना प्राप्त करने में ज़्यादा द़िक्क़त न उठानी पड़े.
आरटीआई ने दिलाई आज़ादी
मुंगेर (बिहार) से अधिवक्ता एवं आरटीआई कार्यकर्ता ओम प्रकाश पोद्दार ने हमें सूचित किया है कि सूचना का अधिकार क़ानून की बदौलत बिहार में एक ऐसा काम हुआ है, जिसने सूचना क़ानून की ताक़त से आम आदमी को तो परिचित कराया ही, साथ में राज्य की अ़फसरशाही को भी सबक सिखाने का काम किया. दरअसल राज्य की अलग-अलग जेलों में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे 106 क़ैदियों की सज़ा पूरी तो हो चुकी थी, फिर भी उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा था. यह जानकारी सूचना क़ानून के तहत ही निकल कर आई थी. इसके बाद पोद्दार ने इस मामले में एक लोकहित याचिका दायर की. मार्च 2010 में हाईकोर्ट के आदेश पर ससमय परिहार परिषद की बैठक शुरू हुई, जिसमें उन क़ैदियों की मुक्ति का मार्ग खुला, जो अपनी सज़ा पूरी करने के बावजूद रिहा नहीं हो पा रहे थे.

कब करें आयोग में शिकायत

दरअसल, अपील और शिक़ायत में एक बुनियादी फर्क़ है. कई बार ऐसा होता है कि आपने अपने आरटीआई आवेदन में जो सवाल पूछा है, उसका जवाब आपको ग़लत दे दिया जाता है और आपको पूर्ण विश्वास है कि जो जवाब दिया गया है वह ग़लत, अपूर्ण या भ्रामक है. इसके अलावा, आप किसी सरकारी महकमे में आरटीआई आवेदन जमा करने जाते हैं और पता चलता है कि वहां तो लोक सूचना अधिकारी ही नियुक्त नहीं किया गया है. या फिर आपसे ग़लत फीस वसूली जाती है. तो, ऐसे मामलों में हम सीधे राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में शिक़ायत कर सकते है. ऐसे मामलों में अपील की जगह सीधे शिक़ायत करना ही समाधान है. आरटीआई अधिनियम सभी नागरिकों को एक लोक प्राधिकारी के पास उपलब्ध जानकारी तक पहुंच का अधिकार प्रदान करता है. यदि आपको कोई जानकारी देने से मना किया गया है तो आप केंद्रीय सूचना आयोग/राज्य सूचना आयोग, जैसा मामला हो, में अपनी शिक़ायत दर्ज करा सकते हैं.
सूचना क़ानून की धारा 18 (1) के तहत यह केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग का कर्तव्य है, जैसा भी मामला हो, कि वे एक व्यक्ति से शिक़ायत स्वीकार करें और पूछताछ करें. कई बार लोग केंद्रीय सूचना लोक अधिकारी या राज्य सूचना लोक अधिकारी के पास अपना अनुरोध जमा करने में सफल नहीं होते, जैसा भी मामला हो. इसका कारण कुछ भी हो सकता है, उक्त अधिकारी या केंद्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी या राज्य सहायक लोक सूचना अधिकारी, इस अधिनियम के तहत नियुक्त न किया गया हो, जैसा भी मामला हो, ने इस अधिनियम के तहत अग्रेषित करने के लिए कोई सूचना या अपील के लिए उनके आवेदन को स्वीकार करने से मना कर दिया हो, जिसे वह केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या धारा 19 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट राज्य लोक सूचना अधिकारी के पास न भेजें या केंद्रीय सूचना आयोग अथवा राज्य सूचना आयोग में अग्रेषित न करें, जैसा भी मामला हो.
जिसे इस अधिनियम के तहत कोई जानकारी तक पहुंच देने से मना कर दिया गया हो. ऐसा व्यक्ति जिसे इस अधिनियम के तहत निर्दिष्ट समय सीमा के अंदर सूचना के लिए अनुरोध या सूचना तक पहुंच के अनुरोध का उत्तर नहीं दिया गया हो.
जिसे शुल्क भुगतान करने की आवश्यकता हो, जिसे वह अनुपयुक्त मानता/मानती है.
जिसे विश्वास है कि उसे इस अधिनियम के तहत अपूर्ण, भ्रामक या झूठी जानकारी दी गई है.
इस अधिनियम के तहत अभिलेख तक पहुंच प्राप्त करने या अनुरोध करने से संबंधित किसी मामले के विषय में.

जब मिले ग़लत, भ्रामक या अधूरी सूचना

द्वितीय अपील तब करते हैं, जब प्रथम अपील के बाद भी आपको संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है. राज्य सरकार से जुड़े मामलों में यह अपील राज्य सूचना आयोग और केंद्र सरकार से जुड़े मामलों में यह अपील केंद्रीय सूचना आयोग में की जाती है. हमने आपकी सुविधा के लिए द्वितीय अपील का एक प्रारूप भी प्रकाशित किया था. हमें उम्मीद है कि आपने इसका इस्तेमाल ज़रूर किया होगा. इससे निश्चय ही फायदा होगा. इस अंक में हम सूचना का अधिकार क़ानून 2005 की धारा 18 के बारे में बात कर रहे हैं. धारा 18 के तहत शिक़ायत दर्ज कराने की व्यवस्था है. एक आवेदक के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि किन-किन परिस्थितियों में शिक़ायत दर्ज कराई जा सकती है. लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है अथवा परेशान करता है तो इसकी शिक़ायत सीधे आयोग में की जा सकती है. सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण सूचना उपलब्ध कराने, भ्रामक या ग़लत सूचना देने के ख़िला़फ भी शिक़ायत दर्ज कराई जा सकती है. सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के ख़िला़फ भी आवेदक आयोग में सीधे शिक़ायत दर्ज करा सकता है. उपरोक्त में से कोई भी स्थिति सामने आने पर आवेदक को प्रथम अपील करने की ज़रूरत नहीं होती. आवेदक चाहे तो सीधे सूचना आयोग में अपनी शिक़ायत �

Other Links:-
२. file RTI online @ http://rtionline.gov.in/
३. RTI विकी पीडिया


Wednesday, May 22, 2013

10 Questions for BJP supporters

10 Questions for BJP supporters

1. why BJP didn't do anything to bring black-money in India when NDA was in power? or what BJP is doing today to unearth black-money in BJP ruled states?
2. What about police reforms? why BJP don't implement police reforms in BJP ruled states?
3. How many Congress leaders are in jail in BJP ruled states? or Why no Congress leader was ever procecuted for 1984 Sikh genocide when NDA was in power at center?
4. Why CBI was not made independent when NDA was at center?
5. Why farmers are commiting suicide in BJP ruled staes?
6. Why no BJP states have implemented Lokayukta based on Anna's Janlokpal?
7. Is it not true that in mid-2005 BJP chief ministers - Vasundhara Raje and Raman Singh objected in writing to changing the system of allocating coal blocks to private companies and PSUs other than Coal India by the introduction of competitive bidding?
8. Why BJP don't protest on SPG cover given to Sonia Gandhi's son-in-law Robert Vadra?
9. Why did BJP save Rahul Gandhi in 2001 when he was arrested by FBI for carrying $ 1,60,000 at Boston Airport,USA?
10. If BJP is honest, why did it loose elections in Himachal, Uttrakhand and Karnataka recently?

Monday, May 20, 2013

सभी फेंकू sorry मोदी भक्तों से १६ सवाल -

सभी फेंकू sorry मोदी भक्तों से १६ सवाल -
(1)...agar ram mandir ka faisla court ne hi karna tha to babri masjid ko todne ki kya jaroorat thi?
(2)...agar modi suchhe aur imaandaar hain to anna ke lokpal se bhaagte kyon hain?
(3)..modi bhrastachaar aur kale dhan ke mudde per kuch kyon nahi bolte..?..kya ye unki nazar me koi mudda nahi..?
(4)...election ke time per modi ne khud ko secular kyon ghoshit kiya..?
(5)...mandir ki jo ek ek eant bechi gayi uske paise kahaan gaye..?
(6)..gatkari ke mamle me kya hua..?
(7)...karnatak me modi ke prachaar karne ke bawjood bjp congress se haar kyon gayi..?..kahaan hai modi ka jadu..?
(8)..agar modi itne hi powerfull neta hain to bjp unhe pm pad ka umeedwar kyon nahi ghoshit karti..?
(9)..election ke time per hi bjp ko ram mandir aur hindu ki chinta kyon satane lagti hai..?
(10)...congress ne bijli pani petrol aur khane peene ki sabhi vastu ke rate aasmaan per pahuncha diye...vipaksh me hone ke naate modi aur bjp ne iske khilaaf kya kiya..?
(11)..apne vote bank ke liye ye poore sehar ko band karwa dete hain..ek dihadi majdoor aur gareeb ke ghar ka chulha us din kaise jalega..ye sochte kyon nahi..?
(12)..adwani ne grihmantri hote hue ram setu todne ka karaar kiya ..ab ram setu bachane ka shor machakar ye kisko bewakoof banana chahte hain..?
(13)..gau mata ko bachane walon ne goa me gau ka maans parosne ki ijaajat kaise de diya..?
(14)..bjp ya modi ne vipaksh ke naate congress ke kitne ghotalon ka parda faash kiya hai aur kitne mamlon me congress per case kar rakhha hai..?
(15)..jab kejriwal jaise naye khiladi ke pass itne ghotalon ke saboot pahunch jate hain to bjp ko in ghotalon ke baare me kyon kuch nahi pata..?
(16)...agar bjp ne desh ke liye kuch karna hi nahi hai to janta inhe apna keemti vote kyon de..?.....jai hind jai arvind

Tuesday, May 14, 2013

क्यों? ऐसी बात ....और ऐसे काम करते हो ....की दरवाजे की जगह .....खिड़की ...ज्यादा काम आती है

अभी TV खोली तो एक ,....न्यूज़ चैनल .....दिखाने में व्यस्त हैं की ....संजय दत्त के घर के बाहर कैसा माहौल है ....कौन - कौन मिलने आएगा ...क्या पहन कर ..क्या लेकर मिलने आएगा ....
दूसरा,...चैनल ....लालू जी की .....परिवर्तन रैली की तयारी दिखने में व्यस्त है ......
परिवर्तन तो जरुरी है .....पर वो नहीं लालू जी .....के बेटों को नेता बना दे .....

परिवर्तन चाहिए वो .........
जो ....आम आदमी को ....जगा दे .....जनता में विस्वास जगा दे ....देश में ....लोकतंत्र ला दे .....

खैर, हैरान हूँ ....की दिन भर ब्रैकिंग न्यूज़ ....दिखने वालों को ....पता ही नहीं ......की
ब्रैकिंग न्यूज़ तो .....मिलेगी .....का-पिल ......से-बल .....के घर से .....
उनके घर का भी ....माहौल दिखा दो .....
या ....सिर्फ अपनी ....औकात ही दिखाते रहोगे .......

बगल वाले ....शर्मा जी .....पीछले ....कई दिनों से .....घर से निकलने से पहले ....खिड़की से झांकते है ......और रहू काल .....का जायजा लेते है .....पर आज जब ....खिड़की से झाँकते देखा ...तो बरबस ...निकल ही गया ..."अरे शर्मा जी ...बेझिझक बाहर आ जाइये" .....आज बात करके खुश हो जायेंगे .....

आज बात नहीं करेंगे .....की
पहले बजरंगी और कोदनानी के लिए फांसी ..माँगने के बाद अब U टर्न क्यों ?....
नहीं बात करेंगे .....की गोवा ...में ....सरकार ने ...गों हत्या को ....वैध करने की माँग .....क्यों की ?....
आज नहीं .....
शर्मा जी ,... बाहर ....आओ .....आज तो आप खुश हो जाओगे ....ये बताएँगे की .....का-पिल ....ने क्या गुल खिलाये ....
हिम्मत बढ़ी .....जनाब बाहर आये ....
बोले क्या किया ......मैंने कहा ...2 बजे तक इंतज़ार कर लो .....पता चल जायेगा ....
काफी खुश ....हो बोले ...अच्छा ....
पर दुःख ...शर्मा जी ...की ख़ुशी ...काफूर हो गयी .....जब पूंछा .....की "अब अरविन्द को .....कांग्रेस का एजेंट नहीं कहोगे ".....
अरे ये क्या .....शर्मा जी तो फिर ....झाँकने लगे ......खिड़की से ....

अरे ...भाई क्यों ऐसी बात ....और ऐसे काम करते हो ....की दरवाजे की जगह .....खिड़की ...ज्यादा काम आती है ....दिन भर ....इंतज़ार ...की कैसे कटे ....कब हटे ......राहू काल ......नागेन्द्र शुक्ल

Monday, May 6, 2013

गरीब वो होता है जो पूरी जिंदगी धन जमा करने में लगा देता है

हमारे देश में महामहिम राष्ट्रपति जी से लेकर एक छोटे से मंत्री तक कैसे राजसी ठाठ बाठ से रहते हैं ये आप सब जानते हैं वहीँ दूसरी और आपको एक ऐसे राष्ट्रपति से मिलवाता हूँ जो सिर्फ कर्म में विश्वास रखते हैं ...
उरुग्वे के राष्ट्रपति हैं – जोसे मुजिका. इनका पूरा नाम है – जोसे एल्बर्टो पेपे मुजिका कोर्डैनो इन्हें दुनिया का सबसे गरीब राष्ट्रपति की संज्ञा दी गई है. यह जिस तरह का जीवन जीते हैं, वैसा जीवन कोई फकीर ही जी सकता है. जोसे मुजिका उरुग्वे के राष्ट्रपति भवन के बजाय अपने दो कमरे के मकान में रहते हैं. सुरक्षा के नाम पर बस दो पुलिसकर्मी की सेवा लेते हैं. सामान्यद लोगों की तरह कुएं से पानी भरते हैं और अपने कपड़े खुद धोते हैं.वो अपनी पत्नी के साथ मिलकर फूलों की खेती करते हैं ताकि कुछ एक्स्ट्रा आमदनी हो सके. खेती के लिए ट्रैक्टर खुद से चलाते हैं और इसके खराब होने पर खुद ही मैकेनिक की भांति ठीक भी करते हैं.कोई नौकर-चाकर अपनी सेवा के लिए नहीं रखते हैं. अपनी बहुत पुरानी फॉक्सवैगन बीटल गाड़ी को खुद चलाकर ऑफिस जाते हैं. हालांकि ऑफिस जाते समय वह कोट-पैंट पहनते है.एक देश के राष्ट्रपति को जो भी सुविधाएं मिलनी चाहिए, इन्हें वो सारी सुविधाएं दी गई हैं. पर इन्होंने इन सुविधाओं को लेने से इनकार कर दिया. वेतन के तौर पर इन्हें मिलता है हर महीने 13300 डॉलर.अपने वेतन से 12000 डॉलर गरीबों को दान दे देते हैं. बाकी बचे 1300 डॉलर में से 775 डॉलर छोटे कारोबारियों को देते हैं. अगर आपको कहीं से भी ऐसा लगता है कि शायद उरुग्वे एक गरीब देश है, इसीलिए यहां का राष्ट्रपति भी गरीब है, तो यह आपका भ्रम है. उरुग्वे में प्रति माह प्रति व्यक्ति की औसत आय 50000 रुपये है.वो 2014 में अपने पद से रिटायर हो जाएंगे. साथ ही अगला चुनाव भी नहीं लड़ेंगे. इसके बावजूद भी उन्हें भविष्य के लिए धन जमा करने की आम ललक नहीं है.
उनका मानना है कि गरीब वो होता है जो पूरी जिंदगी धन जमा करने में लगा देता है. उनका यह भी मानना है कि चूंकि उनकी जरूरते कम हैं, इसलिए उन्हें पैसे की ज्यादा आवश्यकता नहीं है......
हम भारत वासी इन लोगों के सिर्फ नाकारात्मक गुण ही क्यूं ग्रहण करते हैं,,ऐसे ''बुलंद संस्कार'' क्यूं नहीं .....


Friday, May 3, 2013

वो क्या कहते है अंग्रेजी में ...Leading by Example ....

देखो दोस्तों, नेता वो ...जो कहने से पहले करके दिखाए .....वो क्या कहते है अंग्रेजी में ...Leading by Example ....
वैसे ...आपने ऐसे तो बहुत सारे नेता देखे सुने होंगे ....जो अपने समर्थकों के बीच ...बातें तो बड़ी बड़ी करते है ....पर जब करने का नंबर आता है ....तो पीछे खिसक लेते है .......और ऐसे भी कई नेता है ....जो अपने भाषण में तो गला फाड़ कर चिल्लाते है ....मैं ये कर दूंगा .....में वो कर दूंगा .....कोई कहता है ...बस 5 मिनट चाहिए ....और कोई कहता है .....की 5 साल .....पर करते हुए .......इन नेताओं को अपनी आँखों से कभी .....शायद ही किसी ने देखा हो .......

कई तो इतने महान नेता होते है ....चुनाव में वोट ...के लिए अपने भाषण में कहते है ....की ये काम मैंने किया ....वो काम मैंने किया फिर ...कौर्ट में ....जाकर बोल देते है ...नहीं मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया ....नहीं अब क्या नाम बताएं ऐसे नेताओं के ...बहुत सारे है ऐसे नेता .....अपने दिमाग पर जोर डालो .....कई नाम याद आयेंगे ......खैर ऐसे बेकार .....और दोगले लोगों की बातो में वक्त क्या जाया करना .....चलिए काम की बात करते है ....और वो ये की .....

आम आदमी पार्टी के ....नेता ....हमारे सेनापति ......वाकई अलग होते है ....क्योंकि वो कोई नहीं .,...अरे आप ही तो होते है ....एक आम आदमी ......जो सिर्फ कहने में .....विस्वास नहीं रखते .....खुद अपने हाँथ से करके दिखाते है ....

अब कल की ही तो बात है .....इन सेनापतियों ...ने अपनी सेना के साथ मिल कर .....बण्डल उठाये ...और खुद रख्खे .....
अब उनका मैं ...क्या कर सकता हूँ .....जिनको हर काम को ....एक नाटक कहने की आदत है ....क्योंकि इनके नेता ...तो उपवास भी .....नाटकीय तरीके से करते है ....

ये सिर्फ ऐसा पहला मौका नहीं .....जब देखा है ...इनको जमीन पर खुद आगे बढ़ कर ....स्वयं काम करते हुए ...बल्कि ....कई बार ...और ये कहूँ की बार बार ...हर बार ,....देखा है .....तो भी पूरा सच ही होगा .....

एक बार मैं आम आदमी पार्टी की एक लोकल मीटिंग में गया था ....ऐसा लगा की वाकई ये पार्टी बहुत अलग है .....मीटिंग में पता ही नहीं चला ...की कौन मुख्य है ...और आम कार्यकता ....सब एक जैसे ही दिखे
और ...सभी के पास अधिकार भी था ....अपनी बात रखने का ...और किसी की बात का विरोध भी करने का --- वाकई आम आदमी पार्टी के लोग ही मीटिंग कर रहे थे - मजा आ गया ये देख कर ...की अगर हम सभी ने ढंग से मेहनत की ..तो
ऐसे ही अधिकार हर आम आदमी को मिल सकता है ...
ऐसा बहुत कुछ है जो बताया जा सकता है ...पर सब नहीं बताऊँगा .अपने आस पास के एरिया की लोकल मीटिंग में जा कर खुद देख लेना ...
एक ख़ास बात मीटिंग ख़त्म हुई ...तो अपनी आदत के अनुसार खड़े हुए और चल पड़े ....देखा सिर्फ हम कुछ ही जा रहें है पीछे मुड़ कर देखा ....
तो जिनको बस TV पर ही बहस करते सुना था ....वो अपने हाथ से ..पानी के गिलास और बोतल उठा कर dustbin में डाल रहे थे ....शर्म लगी ..वापस गया बोला ...आप रहने दो ...हम कर देंगे.....वो बोले हमारा काम ही है .... सफाई करना ....राजनीती की भी ...

बात थोड़ी आगे बढ़ी तो पता चला की इनको अभी हाल में जेल भेजा गया था तो ...अपनी बैरक की भी सफाई करी थी निकलने से पहले ...ना ही कोई माला ..ना ही फूल ....कोई औपचारिकता नहीं .....सब के सब बस कुछ करना चाहते थे .......
लोगों की आशा ...कुछ पाने की नहीं दिखी ....सिर्फ देने की ही थी .....
दोस्तों ये request है की अपने आस पास के Active members को identify करें ....contact करें और मिल बाँट कर ....जमीन पर भी काम करना सुरु करें .....कुछ ही सही थोडा बहुत जो भी संभव हो ...वो समय जरुर दें .....एक पार्ट टाइम Job समझ ले .....
जिसका payment ....आप अपनी जेब से ही ....अपने आप को कर ले .....अब जमीन पर काम करना पड़ेगा अगर हमें वाकई में अरविन्द जी का साथ देना है .....इस व्यवस्था को बदलना है .....तो फ्री में कुछ नहीं मिलेगा ....मिलता भी नहीं ...करना तो आपको ही पड़ेगा ....
बस थोडा प्रयास करना पड़ेगा ...और आप को पता चलेगा की ...आप के आस पास .....आप से भी बड़े अरविन्द जी के समर्थक हैं ....जो आप के इंतज़ार मैं हैं ....बस थोडा ढूंढना पड़ेगा ..और काम हो जायेगा ..बात बन जायगी,.....है की नहीं ....हां ..नागेन्द्र शुक्ल

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हिन्दू , मुस्लिम ..सिख इसाई .....नहीं ...भारत वासी चाहिए ......सिर्फ इंसान चाहिए

दोस्त, जब भी किसी से पूंछो...की भाई हमारे देश में बहुत गड़बड़ हो रख्खी है ....और हम हैं की बस अपने तक सीमित है .....हमें देश के लिए भी कुछ करना चाहिए ....
तो वो जो ,....
ख़ास कर उनका जो comfort में है .....उनका जवाब होता है ...की कुछ नहीं हो सकता .....हमारे देश में ...
जब किसी गरीब अनपढ़ से पूंछो .....तो कहता है की ...की साहब हम क्या कर सकते है ...हमारी कौन सुनता है ....पर साहब बदलना तो चाहिए ....हमे बताओ ...क्या करना है ...हम साथ देंगे ....
जब मिडिल क्लास से पूंछो .....जो मुस्किल में फंसता ....और उबरता रहता है ......तो कहता है ...साहब टाइम ही कहाँ है ...अपनी परेशानियों .....फुर्सत ही कब मिलती है .....पर जितना हो सकेगा ...करेंगे जरुर .....

जब एक देश भक्त से पूंछो .......तो जवाब होता है ......बदले ना बदले ....पता नहीं ....पर कोशिश तो पूरी करेंगे .....अब बर्दाश्त नहीं होती ...ऐसी अव्यवस्था .......

कई ज्ञानी होते है ....वो ज्ञान देते है ...की बदलना तो चाहिए ....पर बदलेगा ...कैसे ...करेगा कौन ...और क्या ....ये भ्रष्टाचार ...जाती और धार्मिकता ....हमारे ...देश की नशों में भरी है .....

पर एक बात बता दें ......की ये जाती, धर्म ...और भाषा ....दुनिया दारी .....ज्ञान ....सिर्फ उसको दिखता है ....जो अकर्मण्य है .....जो कर्ता है .....वो बस करता है .....हर वो काम ....जिससे ...जुडी हो उम्मीद .....एक अच्छे कल की .....

अगर आपको .....लगता है .....की जाती धर्म ....इंसान से ऊपर है .....मानवता और देश से ऊपर है .....तो आपके लिए ...मेरी सलाह है ......की कभी .....एक बार ....किसी बड़े सरकारी अस्पताल ....जैसे ....aiims में जा कर देखो .....उनसे पूंछो ....
दोस्त, परेशानी के वक्त ...क्या आलम होता है ......जब खून की जरुरत होती है ....तो लोग ...blood group ...तक जानना उचित नहीं समझते .....बस एक ही चीज़ पहचानते है .....खून का रंग .....ना जाती ना धर्म ..ना भाषा .....बस मदद चाहिए ....और मदद करनी है .......

यही ....दो धर्म ....दिखाई देते है .....मुसीबत के समय .....मुसीबत के समय .....इंसान की सिर्फ एक पहचान होती है ....और वो ..ये की .....जिस दुःख ...दर्द को ...परेशानी को वो ....झेल रहा है ....कोई और ना झेले .....

अभी कल की ही बात है ......अस्पताल से ....अपने मरीज के ठीक होने के बाद .....एक मुस्लिम ...भाई ....बोला ....मैं यहाँ से सीधे ....अजमेर शरीफ .....जा रहा हूँ ......शुकराना अदा करने ....और ...उसने सबसे ....उनके नाम ...पते पूंछे .....की भाई तुम्हारे लिए ....दुआ करूँगा .......किसी ने एक बार बही ...सोंचा ...की वो अपनी पूजा ...मंदिर में करता है ....गुरूद्वारे में .....बस ....दुआ चाहिए ....कहीं से एक ....आस चाहिए .....वाकई ...मुश्किल समय में ....हम सब एक होते है .....और शायद ...यही समय होता है ....जब हम इंसान भी .......

और देश को सुधारने के लिए .....हिन्दू , मुस्लिम ..सिख इसाई .....नहीं ...भारत वासी चाहिए ......सिर्फ इंसान चाहिए .....
पर पता नहीं क्यों ...हमें अपनी ख़ुशी ...में ....दूसरे का दर्द दिखता ही नहीं ......और अपने दुःख में ...मदद करने वाले ....साथ आने वाले की .....की जाती और धर्म ......

तो बस दोस्त, .....जिस दिन हम अपने देश के .....इंसान के दुःख दर्द ...को महसूस करने लगे .....
सब समझ आ जायेगा ....की देश बदल सकता है ...या नहीं ......और बदलेगा तो कैसे ......क्या करना होगा .....
और करेगा कौन .....कोई और नहीं ...सिर्फ आप .....हम और आप .....आम आदमी .....क्योंकि ....परेशान भी ....सिर्फ हम ही है ...और ताकत भी .....सिर्फ हम ही है ......

महसूस करो .....एक बार ....फिर जवाब देना ....की क्या करना है ...कैसे बदलेगा मेरा ....देश ......नागेन्द्र शुक्ल

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पानी तो क्या ...हवा के भी पैसे देने पड़ेंगे .....


जब छोटा था, तब एक बार दादा जी ने कहा था ...बेटा जमाना जिस तरफ जा रहा है ...एक दिन पानी तो क्या ...हवा के भी पैसे देने पड़ेंगे .....
ये बात उन्होंने यों कही थी ...क्योंकि उस समय लोग ...अपने खानदानी पुराने बड़े - बड़े बागों को कटवा कर ....खेत बना रहे थे ....
और आज बने - बनाये ....खेतों ...को,....सीमेंट के जंगलों में ...बदला जा रहा है .....

और कल ही अरविन्द ने खुलासा किया ...की दिल्ली के इन नए पानी के मीटरो में ....सिर्फ पानी के नहीं ......हवा के भी दाम आते है ...
और आपको बता दें की .........जब आपके घर में पानी आता है ...तो उससे पहले ...कम से कम 15 मिनट तक ....नल से सिर्फ हवा पास होती है ....

मतलब ....इन नए मीटरों के हिसाब से ....आप रोज़ दिन में ...कम से कम दो - तीन बार ...15 ..हवा के पैसे ...अदा कर रहें है .....हमारी सरकार को .......
उस सरकार को .....जो आपसे ...सड़क पर चलने के लिए रोड टैक्स लेती है .......और उनके दामाद ....टोल टैक्स ....और दामादों के चमचे .....अवैध पार्किंग के पैसे .....

कई गुना ...लगान चूका रहे हो आप ......बिना आवाज़ किये ......क्यों ?.....
और आवाज़ उठाने के लिए .....जिसे आपने विपक्ष .....की हस्ती बनाया .....वो तो बस ...मोटे माल में ....सरकार से ....मिल बाँट खा रहे ......अरे छोड़ो ....विपक्ष तो ...आप ही हो .....जनता ही है .....और इसीलिए ...आप ही बता रहे है ....इन चुने हुए मालिको .....को की बस अब बहुत हो गया ......अब और नहीं ....नागेन्द्र शुक्ल
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जो मजबूर ...वही मजदूर ......मजदूर ....


जो मजबूर ...वही मजदूर ......मजदूर ....

देश की नैया को ये खेता हमारे देश में
हर बशर इसका लहू पीता हमारे देश में।

तन से लिपटा चीथड़ा है पेट से पत्थर बंधा,
इस तरहा मजदूर जीता है हमारे देश में।

इसका है अजन्ता, और ऐलोरा इस की है,
फिर भी ये फुटपाथ पर सोता हमारे देश में।

चाहे हंसी-मजाक में ही कहा जाता है कि मजदूर यानी मजे से दूर, पर बात बिलकुल सही है ......

अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस जिसको मई दिवस के नाम से जाना जाता है, इसकी शुरुआत 1886 में शिकागो में उस समय शुरू हुई थी, जब मजदूर मांग कर रहे थे कि काम की अवधि आठ घंटे हो और सप्ताह में एक दिन की छुट्टी हो।

ऐसा हुआ क्या ?.....

मई माह का पहला पूरा दिन सिर्फ मजदूरों की चर्चा के लिए नियत है।
ऐसा नहीं है कि इस एक दिन मजदूरों को बिना काम किए पगार मिलेगी या अधिक मिलेगी।
जब उतनी मिलने की भी गारंटी नहीं है जितने पर अंगूठा लगवाया जाता है तो
अधिक की सोचना ही बेमानी है। कारण इसमें सब तरफ बेईमानी ही पसरी हुई है।

इस दिन मजदूर को खाने का समय एक घंटे के बजाय दो घंटे भी नहीं दिया जाएगा और न शाम को ही एक घंटे पहले छुट्टी दी जाएगी। वो बात दीगर है कि वो बीड़ी फूंकने या चाय सुड़कने के बहाने कुछ पल यूं ही गुजार ले। ऐसा करने से भी मजदूर दिवस पर कोई आंच नहीं आती है। मजदूर दिवस पर ही क्‍यों, हर दिन मजदूर बेबस है। आज खास इसलिए है क्‍योंकि उसके बारे में खुली चर्चा हो रही है।..........नागेन्द्र शुक्ल
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