Saturday, August 31, 2013

#Satyagraha4AAP Promotion Content#2



अभी अभी "सत्याग्रह" फिल्म देखकर आ रहे हैं ना....क्यों कैसी लगी फिल्म ? अच्छा लगता है ना जब कोई भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ लड़ता है- अनशन करता है, सडकों पर उतरता है, पुलिस की लाठियां खाता है, पानी की बौछारें झेलता है, भूखा रहता है, दर्द सहता है...
आपको लगता होगा कि काश असल जिन्दगी में भी ऐसा हो पता..काश कोई भ्रष्टाचार, आतंक, आत्याचार, असमानता, अज्ञानता, अन्याय, बेरोज़गारी, बलात्कार, वंशवाद, भाई-भतीजावाद, गुंडागर्दी, अव्यवस्था, गंदगी , अँधेरे के खिलाफ आगे बढ़कर सारी सड़ी-गली व्यवस्था को बदल देता..
अगर आपको ऐसा लगता है तो फिर आप किसके डर से अनजान बने हुए हैं ? क्या आपको नहीं लगता कि इस फिल्म के किरदार तो बहुत पहले ही आपकी और हमारी असल जिन्दगी में बहुत पहले से ही उतर चुके हैं- कोई अन्ना बनकर, कोई अरविन्द नानकर, कोई मनीष बनकर, कोई गोपाल राय बनकर, कोई कुमार विश्वास बनकर, कोई शाजिया बनकर तो कोई संजय सिंह बनकर..
ये सब "आम आदमी" उन्ही सुनहरे सपनों को तो साकार करने के लिए अपना आज और आने वाला कल तक दांव पर लगाये बैठे हैं जिन सपनों को आप फिल्म के परदे पर साकार होते हुए देखने की तमन्ना लिए तालियाँ बजाते हुए आशावान थे..
दोस्तों, ये मौका फिर नहीं आएगा...इतिहास में बहुत विरले ही ऐसा होता है कि फिल्म का "नायक" वास्तविक "सत्याग्रह" करते हुए किसी मुल्क का नया इतिहास रचने के लिए परदे से



उतर कर असल जिन्दगी में सड़क पर उतरता है...ये मौका आप हाथ से मत गँवा देना- ना जाने फिर कितने सालों बाद फिर कोई "सत्याग्रह" करने की हिम्मत कर सके..
अपने असल जिन्दगी के नायकों का साथ दीजिये, उनका हौसला बढाइये और उनकी आवाज़ में आवाज़ मिलाकर "सत्याग्रह" को गूंगी-बहरी मौजूदा व्यवस्था को जगाया जा सके..किसी महान रचनाकार ने इसी किस्म के "सत्याग्रह" की अवधारणा को सोचकर लिखा होगा-
"मिटटी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता , अब इससे ज्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता , मेरी आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलकर तो देख, फिर देख कि इस मुल्क में क्या हो नहीं सकता "
तो आ रहे हैं ना आप असल जिन्दगी के "सत्याग्रह" के यज्ञ में अपने हिस्से की आहुति डालने..देश आपका, वोट आपका और फैसला भी आपका !!
जय हिन्द !! वन्दे मातरम !! भारत माता की जय !!
निकलो बाहर इस भ्रामक विकास से और जागो, अपनी आँखे मलो और देखो फिर करो जो सही समझ आये। http://www.aamaadmiparty.org/
http://www.facebook.com/AamAadmiParty http://www.facebook.com/FinalWarAgainstCorruption http://www.facebook.com/WeWantArvindKejriwalAsIndianPm http://www.facebook.com/AamaadmipartyGurgaon?ref=hl
ये कागज़ हमारे और आपके पैसे का है इसे नष्ट ना करे, पढ़े और पढ़ने के बाद दूसरे को दे

#Satyagraha4AAP Promotion Content#1

दोस्त, सवाल ये नहीं है की हम खुश है या नहीं? हम सही है या गलत, सवाल ये भी नहीं की हमारे देश की राजनीती और व्यवस्था कैसी है? आज सवाल ये है की इसे ऐसा किया किसने?...एक बार सोंचने की जरुरत है की दोषी कौन है, दोषी हम सब है और दोषी हमारा डर है। जाहिर सी बात है की जब अच्छे और सच्चे लोग अपने घर की कुंडी बंद कर डरे डरे अन्दर रहेंगे तो सड़क पर सिर्फ गुंडों का ही राज होगा।
दोस्त, सवाल ये है कि अगर सड़क पर हममे या आपमें से किसी के साथ कोई दुर्घटना हो जाए तो हमारी हिम्मत नहीं पड़ती की हम उसकी मदद करे। इस ही तरह हमारी इच्छा तो होती है पर हमारी हिम्मत नहीं पड़ती की गलत को गलत कह सके। क्यों? क्योंकि इस पूरी व्यवस्था पर सिर्फ भ्रष्ट लोग हावी हो चुके है और चुप रह कर कहीं ना कहीं हम भी भ्रष्टाचार का हिस्सा है, हमारी चुप्पी ही देती है बढ़ावा इस भ्रष्टाचार को।
देश की व्यवस्था ऐसी दिखाई देती है जैसे हम अपने खेतो, अपने घरो में किसी और के लिए काम करते रहेंगे और हमारे ही उपजाये आनाज को आटा बना कर कोई और एक्सपोर्ट करेगा, फिर उस ही आटे की बनी हुई रोटी इम्पोर्ट करेगा मुनाफा कमाएगा और इस बात पर खुश रहेंगे की बच्चे को स्कूल में खाना सरकार देती है और हमें पेड़ की छाँव में बैठने के इतने पैसे मिलेंगे की हम जिन्दा तो रहे पर जी ना सके।
नहीं तो ऐसा कैसे हो गया की हम व्यापार के नाम पर अपने देश में बना सामान नहीं अपनी मेहनत और पसीने को बेंचने लगे ?
कहीं ना कहीं, कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है जो निष्क्रिय कर रहा है हमारी सोंच को, समाज को, और आत्मा को। ऐसे हालत में हम क्या भविष्य देंगे अपनी आने वाली पीढ़ी को? जबकि हम सभी काम सिर्फ इस लिए करते है की जी सके और आने वाली पीढ़ी को कुछ दे सके ....हम ये नहीं कहते की यही सही वो सही है, पर जो सही है उसकी खोज खुद करो और जो गलत है उसे बदलने के लिए लड़ो।
निकलो बाहर इस भ्रामक विकास से और जागो, अपनी आँखे मलो और देखो फिर करो जो सही समझ आये। http://www.aamaadmiparty.org/
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(गुडगाँव में कार्यालय और बाँकी सभी संपर्क सूत्र उपलब्ध है इस पेज पर)
ऐसा नहीं की इन सब का कोई समाधान नहीं है, है जरुर है Janlokpal, Right to Reject, Right to Recall, Citizen Charter समाधान कैसे? कैसा होना चाहिए लोकतंत्र कैसी हो व्यवस्था इसके लिए पढ़िए "स्वराज".
ये कागज़ हमारे और आपके पैसे का है इसे नष्ट ना करे, पढ़े और पढ़ने के बाद दूसरे को दे

Friday, August 30, 2013

हमारा धर्म क्या है ये जानने की फुर्सत ही नहीं हमारे पास ...

कई बार ऐसा नहीं लगता की हम इतने व्यस्त हो गए है की हमारा धर्म क्या है ये जानने की फुर्सत ही नहीं हमारे पास ....इसलिए ये काम दूसरों पर छोड़ दिया है .....जो उसने बता दिया ...बस वही धर्म ....या जिसमे कोई स्वार्थ सिद्ध हो जाए वही धर्म है ....साधारण रूप से ऐसा मान लेते है ...ऐसा नहीं की सब मेरी तरह ही नालायक है ...बहुत सारे अच्छे भी है ....जो सोंचते है ....
आज गलती से हमने भी सोंचने की कोशिश की ...तो हमें जो पता चला वो ये की ....
धर्म सामुदायिक नहीं होता है .....धर्म व्यक्तिगत होता है .....
जिसके कर्म अच्छे .....उसका धर्म अच्छा ...और कर्म बुरे ..तो धर्म बुरा .....
धर्म के बारे में मेरा मानना है की .....
वेदकाल में सिर्फ दो ही धर्म थे .....सुर और असुर ....देवता और दानव ....
अब जिनके कर्म अच्छे थे ....वो देवता ....और जिनके बुरे वो दानव ....
अब हिन्दू धर्म में तो जिंदगी से जुडी हर चीज़ के लिए एक भगवान् है ...जैसे ज्ञान के लिए सरस्वती माता ....हवा के लिए वायु देव ....पानी के लिए इंद्रा देव ....
तो मुझे लगता है की ...उस काल में कुछ लोगो के समूह होंगे ...जिनके जिम्मे ये काम रहे होंगे ....और इनके नायक जो थे ...वो उस काम के, भगवान् के नाम से जाने जाते है ....
तो मेरी समझ से धर्म कुछ व्यक्तिगत सा लगता है .....पता नहीं ...पर एक विचार तो है ????.....
और ब्रम्हा विष्णु महेश ....राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री और गृह मंत्री रहे होंगे ...
लोकतान्त्रिक भी है हिन्दू धर्म ....बस जब भगवान् थे तब भ्रष्टाचार नहीं था ....फिर सतयुग से कलयुग तक ...
और हमारे देश की व्यवस्था में नेता भी ....लालबहादुर, पटेल जी से होते हुई ....कहाँ तक पहुँच गयी ...भ्रष्टाचार बढता गया ....
जो व्यवस्था को सुधार वापस लालबहादुर और पटेल तक ले जाने की कोशिश ना करे ....वो देश का हित नहीं कर सकता ....


पुनर्जन्म और कर्मो के आधार पर फल ....ये इसी ओर इंगित करते है ...कैसे?,..बस थोडा सोंचने की जरुरत है ...

और हिन्दू धर्म का तो स्वरुप ही बदलाव रहा है ......श्री राम से लेकर ....श्री कृष्ण जी तक .....धर्म हमेशा वही रहा ...मानवता का विकास ....सत्य की रक्षा ...पर आदर्श थोड़े बदलते गए ....स्वामी विवेकानंद भी हिन्दू धर्म ही है ....और आर्यसमाज भी ....गुरुनानक देव जी भी ....और भी बहुत सारे .....और मुझे विस्वास है की ...सभी,......
उसी सनातन हिन्दू धर्म का ही हिस्सा है ......इसीलिए ये सनातन था .....सनातन है ......
और सनातन का अर्थ होता है ...जो हमेशा रहे .....और हमेशा वही रहता है ..जो बदलता रहता है ....शरीर बदल तो सकता है ...पर आत्मा वही रहती है ....और आत्मा ...आत्मा तो पमात्मा का ही हिस्सा है ....
वास्तव में ....गीता...बात ही निराली है .
गीता सिर्फ ग्रन्थ नहीं सागर है ...मथने पर सब मिलेगा ...किसे क्या लेना है ...वो ले ले .....
...हर बात का जवाब है ..बस समझना आता हो ....गीता जी ...कर्म ...धर्म ...और ज्ञान ...तीनो है ....
अंत में फिर यही बोलूँगा .....धर्म व्यक्तिगत है मेरी समझ से ....सामुदायिक नहीं ......
और त्यौहार धर्म में ..सामुदायिक तत्व देने के लिए है ...

माफ़ करना बहस मत करना ......क्योंकि धर्म तर्क से भी ऊपर होता है .....मेरा तो पक्का ...धर्म वो जो करो ....जो मानो ....
जय श्री कृष्ण .....
नन्द के आनंद भयो,....जय कन्हैया लाल की

हे ब्रज में आनंद भयो,....जय यशोदा लाल की
नन्द के आनंद भयो,...जय कन्हैया लाल की
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ......गौरवान्वित करने वाला त्यौहार है ये ......शुभ जन्माष्टमी .....नागेन्द्र शुक्ल


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राजनीती अच्छे लोगों के लिए है ही नहीं....अ

दोस्तों,

कुछ लोगों का कहना है कि राजनीती अच्छे लोगों के लिए है ही नहीं....अच्छे लोगों का राजनीती में क्या काम ? और इसी तर्क को सामने रखकर वो अरविन्द केजरीवाल और साथियों द्वारा "आम आदमी पार्टी " बना कर राजनीती में आने के फैसले के खिलाफ भी रहे....

इनमे से बहुत से लोग ऐसे जो यहाँ तक कहते हैं कि एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्हें अरविन्द और उनकी नीतियाँ बहुत पसंद है पर एक राजनेता के तौर पर वो उन्हें नापसंद करते हैं क्योंकि राजनीती अच्छी चीज़ नहीं है और उनके लिए अरविन्द भी राजनीती में आते ही "बुरे" बन गए हैं .......

इन लोगों से हम एक ही बात पूछना चाहते हैं कि क्या राजीनीति सिर्फ बुरे का पर्याय है ?

क्या राजनीति का मतलब सिर्फ लूट, भ्रष्टाचार, दमन और अत्याचार है ?
क्या राजनीति का मतलब सिर्फ सत्ता की मलाई चाटना भर रह गया है ?
क्या राजनीती का मतलब सिर्फ पैसे और ताक़त के बलबूते पर जनमानस को दबाना है ?
क्या राजनीती का मतलब सिर्फ संसद में वोटों की खरीद-फरोख्त कर कुर्सी बचाना है ?
क्या राजनीती का मतलब कुछ परिवारों की वंशवाद की जहरीली बेल का पोषण है ?
क्या राजनीती का मतलब अवैध तरीके से धन, जमीं और सम्पति की अनुचित लूट है ?

नहीं..कदापि नहीं- हमारा ये मानना है कि राजनीति का अर्थ होता है- बिना किसी भी लालच के पूरे जनमानस के भले को सोचते हुए सर्वसम्मति से काल-खंड के व्यवहार के अनुसार, कानून-सम्मत, नीति-परक, न्यायपूर्ण और लोकहितकारी निर्णय लेते रहना...

राजनीती- यह एक सतत प्रक्रिया है....इसमें लगातार बदलाव होते रहते हैं....असल में इस परिभाषा को आज की गन्दी राजनीति ने इतना बदनाम कर दिया है कि अब अच्छी राजनीति के बारे में हम सोचते तक नहीं हैं......

तो फिर क्यों नहीं अच्छे लोग राजनीती में आते ? क्या एक छोटे से जख्म को नासूर बन जाने दिया जाये? क्या इस मुल्क के प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नही बनती? क्या जिस सरजमीं को हम "माँ" कहते और मानते है तो ये हमारा फ़र्ज़ नहीं बन जाता कि हम उसकी अस्मिता, गौरव, वैभव और शान को नुक्सान पहुँचाने वाले किसी भी नापाक हाथ तो रोक लें ? क्या अच्छाई पर बुराई को राज करने दिया जाये ?

क्या करोड़ों लोगों को अब भी भूखा ही सोने दें ? क्या लाचार बच्चियों और महिलायों को यूँ ही हवास का शिकार होने दें ? क्या यूँ ही करोड़ों लोगों को खुले आसमान के नीचे ठण्ड और गर्म लू से तड़प तड़प कर मरने दें? क्या यूँ ही अपने सैनिकों के सिर काटने दें ? क्या यूँ ही बिना हस्पताल के इलाज़ के लाखों लोगों को मौत के मुंह में जाने दें ? क्या यूँ ही बिना अच्छी सड़क, बिजली, पानी , स्कूल के करोड़ों लागों को बस जानवरों की तरह जीने दें ?

आखिर कब तक सिर्फ साल में एक बार दशहरा के दिन इस मुल्क के अच्छे लोग " बुरे पर अच्छाई की", असत्य पर सत्य की", अधर्म पर धर्म की" जीत के इतिहास को याद कर खुश होते रहेंगे या कभी ऐसा भी होगा कि वो लोग खुद भी एक नया इतिहास बनायेंगे ?

क्यों नहीं इस आम जनता में से ही कोई नया भगवान राम या कृष्ण सा अवतार पैदा होकर अन्याय, अधर्म, असत्य, असमानता, अत्याचार का नाश करता ? क्यों नहीं अब देश में अच्छे लोग आगे बढ़कर हनुमान जी और सुग्रीव की तरह इस नए अवतार का साथ देते ताकि पाप की लंका को नेस्तनाबूद किया जा सके ?

इन्ही किस्म की भावनाओं के साथ "आम आदमी पार्टी" के मंच का निर्माण किया गया ताकि राजनीती से नफरत करने वाले अच्छे लोग भी राजनीती में आकर इसे पुनर्भाषित कर सकें.....तो फिर इसका विरोध क्यों ?

क्या समय के हिसाब से लोकहितकारी निर्णय लेना कोई जुर्म है ?
क्या विचारों की सीढियाँ चढ़ते हुए अपने दृष्टि के आयाम को नयी ऊंचाई देना गलत है ?
क्या किसी कल्याणकारी विचार को नई दशा और दिशा देना अपराध है ?

क्या इलाज करते हुए डॉक्टर अपना निर्णय बदल कर कई बार सिर्फ दवाइयों की जगह एकदम से आप्रेशन का निर्णय नहीं लेते ? क्या भगवान कृष्ण को अपने निर्णय बदलने की कूटनीति के कारण " रणछोड" नहीं कहा जाता ? क्या कौटिल्य ( चाणक्य) ने नहीं कहा था कि अगर मेरे देश के हित के बीच में आता है तो फिर मैं "साम-दाम-दंड भेद " से उस बाधा को पार करूँगा ?

अब सिर्फ राजनीती की आलोचना करने के कुछ नहीं होगा...अब आँखें बंद करके बैठने से कुछ नहीं होने वाला....या तो अच्छे लोग राजनीती में आकर इसमें आमूल-चूल परिवर्तन करने के लिए हाथ बढाएं या फिर देश और समाज के हालातों पर शिकायत करना छोड़ दें और चुप-चाप अपनी चाय पीते रहे....अब आप या तो सत्य के साथ हैं या उसके खिलाफ- अब बीच का कोई रास्ता नहीं बचा है....


अगर हम एक बेहतर कल चाहते हैं तो इस मुल्क के हर अच्छे इंसान को इस समाज की गंदगी दूर करने में अपना योगदान देना ही होगा....

और अपना योगदान देते हुए अपने जेहन में किसी महान शायर की ये दो पंक्तियाँ हमेशा याद रखियेगा-----

"सूरज तो नहीं हूँ, महज एक अदना सा दिया हूँ मैं,
जितनी मेरी बिसात है, उतनी रौशनी कर रहा हूँ मैं ".....

जय हिंद !! वंदे मातरम !! भारत माता की जय !!

डॉ राजेश गर्ग.

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चोर ki शिकायत करने जाओ,.. तो डकैत मिलते है ...

अजीब हालात है ....चोर शिकायत करने जाओ,.. तो डकैत मिलते है ...
दिल्ली कि एक प्राइवेट बस में मैं और मेरा दोस्त चढ़ते है ...थोड़ी ही दूर जा कर पता चलता है की जेब से मोबाईल चुरा लिया गया ...चुरा क्या छीन लिया गया ...इधर हमने शोर किया आवाज ऊँची की ...उधर चोर ने इशारा,....और तेज़ी से चलती बस थोड़ी देर के लिए धीमी होती है ....वो चोर चलती बस से कूद जाता है ...और बस वापस रफ़्तार पकड़ लेती है ...
और हम बस के दरवाजे पर लटके कूदने की हिम्मत जुटाते और चिल्लाते है ...पर बस धीमे होने की जगह और तेज़ होती है ...फिर करीब 3/4 सौ मीटर के बाद रोक दी जाती है ....
बस के धीमे होते ही ...कूदे ...पीछे दौड़े ...और बस अपने रास्ते चल आँखों से ओझल .....
इतनी देर में ना ही चोर ....ना ही चोर का आता पता ...कहाँ गया ....
साफ़ समझ आता है ...की बस का स्टाफ और चोर की मिलीभगत है ...गुस्सा आता है ...और सोंचते है की पुलिस में शिकायत करते है ...100 पर फोन किया ...फिर 1 घंटे से ज्यादा रात के समय ..सुनसान सड़क पर इंतज़ार ....पर देश की व्यवस्था देख ख़ुशी होती है ...और आखिर पुलिस आती है ...
अब शुरू होता है ...शिकायत दर्ज करने का नाटक ...
अजीब अजीब सवाल ....तुम पहचानते हो उस चोर को ...जवाब हाँ अच्छी तरह से ...
पुलिस ...सोंच लो ..नौकरी पेशे वाले आदमी हो ...रोज़ रोज़ थाने आना पड़ेगा ...
जवाब अरे सर वो बस का स्टाफ भी मिला है .....पुलिस ...बकवास करते हो कैसे कह सकते हो ..बस का नंबर क्या था ...नंबर भी बता दिया ...
पुलिस तो शिकायत में बस के लोगो का भी नाम लिखवाना चाहते हो ...जवाब हाँ ....पुलिस सोंच लो रोज़ आना जाना है इस सडक पर ...FIR करवाओगे तो ....नौकरी छोड़ रोज़ थाने फिर कोर्ट कचहरी के चक्कर ....कर पायेगा इतना ...
सर कोई नहीं ...पर आप चोर को तो पकड़ो ...
पुलिस एक बार फिर सोंच लो ...एक बार लिख गयी तो परेशान हो जाओगे ....
सर आप रिपोर्ट लिखो ...पुलिस अरे कितने का मोबाईल था ..उससे ज्यादा तो आने जाने में लग जायेंगे ...
अरे सर बस अभी ...३/4 स्टॉप आगे ही होगी ...अभी क्यों नहीं चलते ...बस वालो से पूंछो उनको सब पता है सर ....पुलिस पागल है क्या ...उधर तो नॉएडा है ...उत्तर प्रदेश ...हम दिल्ली पुलिस है ...
अरे सर अजीब बात है ....बस नॉएडा से दिल्ली आ जा सकती है ..पर पुलिस नहीं ...
पुलिस .....चुप ...अब एकदम चुप ...हमें कानून बताता है ...
सर चलो आप रिपोर्ट तो लिखो .....नहीं लिखते ....मोबाईल चोरी हो गया ....
सर चोरी नहीं हुआ ..उसने भरी बस में छीना है ..चाकू भी दिखाई जब हाँथ पकड़ा था ...
पुलिस ...अभी तू कह रहा था की चोरी हुआ है ...अब कह रहा है की छीना है ...बंद कर बकवास ...
अरे सर आप रिपोर्ट तो लिख लो ......
और ये क्या गाडी स्टार्ट ...और चल दी ....
अरे सर रिपोर्ट ....सुबह थाने में जा कर लिखवा देना .....
फिर सड़क सुनसान रात का अँधेरा ....चल दिए पैदल घर की ओर ....
सुबह फिर हिम्मत जुटाई ...थाने पहुँचे ...सर रिपोर्ट लिखवानी है ....
इंतज़ार ..इंतज़ार घंटो का ..फिर सवाल ...कहाँ हुआ ये सब ...साहब मयूर विहार वाली रोड ...अच्छा ...
फिर इधर क्यों आया है ...मयूर विहार थाने जा ....
अरे सर वो कल 100 नंबर पर फोन किया था ...पुलिस आयी थी ...पर रिपोर्ट नहीं लिखी ...
अच्छा तो अब ...पुलिस की गलती है ...अबे तू चोरी की रिपोर्ट लिखाने आया है या पुलिस की ..भाग ...
अब क्या करता ....ऑफिस से मेनेजर का फोन ...आज छुट्टी क्यों मार ली ...
नहीं सर छुट्टी नहीं ...थोड़ी देर होगी ....
फिर वही धाक के तीन पात ....
समझा दिया सारे दोस्तों ने ....पैसे जोड़ कर मोटर साइकिल ले लो ...बस में तो ये रोज़ रोज़ का चक्कर है ...कहाँ लिखवाओगे मोबाईल चोरी की रिपोर्ट ....बुरे फँसोगे ...परेशान हो जाओगे ....
दो दिन बाद ...वो फिर दिखा बस में ....
पकड़ा ..चिल्लाया ...बस से उतर ...बस के सटाफ के साथ मिल ...काफी पिटाई भी हो गयी ....
100 पर फोन ...फिर वही कहानी ...2 घंटे का इंतज़ार ...फिर मैनेजर का फोन ..ये रोज़ रोज़ लेट आने का चक्कर नहीं चलेगा ...लम्बी चौड़ी डांट ....
दोस्तों ने फिर समझाया ....यार मोटर साइकिल खरीद ले ...बस में तो ऐसा ही रहेगा ....
बस ...बस समझ आ गया ....की जिंदगी चलाने के लिए ..नौकरी जरुरी है ...और उसके समय पर ऑफिस जाना ....
कहाँ ...लिखवा पायेंगे रिपोर्ट ...भूल जाओ की मोबाईल था ..भूल जाओ की मार भी पड़ी थी ....
पैसे जोड़ो ....मोटर साइकिल खरीद लो ...सारी परेशानी हल हो जायेगी ....

पर क्या इस तरह ..मोटर साइकिल खरीद परेशानी हल हो जायेगी ?.....क्या हो सकती है हल परेशानी कुछ भी खरीद ?.....
बस ऐसे ही भागते रहे ..परेशानियों से ....पर भागे कहाँ ...एक परेशानी छोड़ ...दूसरी में फँसते रहे ...
आम आदमी ....आम आदमी की तरह बस भागते रहे ...कभी लड़ने की सोंची पर .....किस से लड़ते ..या यूँ कहे की किस किस से लड़ते ....हाल ये की जब आप बस के गुंडों से पिट रहे तो ....बस में बैठी बांकी सवारी को ....कितना भी बताओ की ये चोर है ...छीना था मोबाईल इन्होने ....पर नहीं ...
मजाल है की बस पर बैठा कोई एक आदमी भी हो ...जिसे ऑफिस जाने की देरी ना हो रही हो ....सबको जल्दी है ...की जल्दी से मारो - पीटो ..कुछ भी करो ..पर बस ..बस जल्दी मेरे स्टॉप तक पहुँचाओ ...देर हो रही है .....
कुछ ऐसे ...हूँ ऐसे क्या ..ये तो कुछ नहीं ...हालत इससे भी बत्तर है ....
चोरी की रिपोर्ट करवाने जाओ तो डकैत मिलते है ......जो रोज़ लुटते है ..उन्हें देर होती है ...जब कोई दूसरा लुटता है ....
बस चल रहा है देश ...चल रही है व्यवस्था ...चल रही जिंदगी यूँ ही लुटते - पिटते - घसीटते ....

ये बात 2006 की है ...तब अरविन्द का तो नाम भी नहीं सुना था ....पर 2013 आते - आते ...और अरविन्द जी का नाम सुनते और समझते ...कुछ तो हिम्मत बंधी है ....ये समझ आया है की ...मोटर साइकिल खरीदने से ..बचोगे नहीं ...हाँ उसमे पर पर किसी दूसरी परेशानी में फंसोगे ...जरुर फँसोगे ....क्यों?....क्योंकि व्यवस्था ही ऐसी है की .....आम आदमी ...आम आदमी एक चूहा है ...जो रोज़ इधर उधर धूमता है शेर बन ...पर बिल्ली ..बिल्लियाँ बैठी है ..घात लगाये ...और इन बिल्ली से बचाने के लिए जो कुत्ते पाले गाये है ....वो बिल्ली से मिल बाँट खा रहे है ..चूहों को ....
पर चूहे ..तो चूहे है ...डरते रहेगे ....कहते रहेंगे की कुछ नहीं हो सकता इस देश का ....
पर नहीं कुछ चूहों ने सोंची है ...बिल्ली से नहीं ..कुत्तो और भेडियों से टकराने की ....इस व्यवस्था को बदलने की ...
रास्ते दो ही है ..या तो निकालो बाहर मकानों से,...जुडो ...और जंग करो बैमानो से ....
या यूँ ही डर - डर कर मोटर साइकिल खरीदते रहो ...
वो मोबाईल था ..कुछ दिन बाद नया आ गया ....

पर वो बहन दामिनी ....जो चली गयी ...वो कैसे वापस आएगी ....क्या है कोई जो कहे नहीं ...अब दामिनी नहीं होने देंगे ...हम लड़ेंगे ....

है एक है जो कह रहा है ...कह नहीं रहा ...लड़ रहा दामिनी, गुडिया और मेरे और तेरे लिए ...पर शायद आपको हमको अभी भी ...मैनेजर का फोन आ रहा ...ऑफिस जल्दी जाना है ...क्योंकि परेशानी से बचने के लिए ...मोटर साइकिल खरीदनी है ...पर मोटर साइकिल खरीद ...कब तक बचोगे मेरे दोस्त .....नागेन्द्र शुक्ल


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Tuesday, August 27, 2013

Gujrat V/s Bihar Development

अभी हाल के दिनों में देख रहा हूँ की बिहार और गुजरात की विकास की तुलना की जाती है और गुजरात को ज्यादा बेहतर बताया जाता है पर पता नही क्यों मझे लगता है की बिहार आज से नही बल्कि शुरू से ही गुजरात से ज्यादा बेहतर रहा है कारण नीचे दे रहा हूँ किसी भी सफल प्रदेस का क्या मापदंड होना चाहिए मै गुजरात और बिहार की तुलना पुरे भारत में कर रहा हूँ ताकि किसी के साथ अन्याय न हो ------1)शिक्षा से लगाव ---आप पुरे भारतके बोर्डिंग स्कूल कोचिंग संस्थान में सर्वे कीजिये ज्यादा विद्यार्थी गुजरात के नही बल्कि बिहार के मिलिंगे२)मेडिकल आप दिल्ली के सभी नामी हॉस्पिटल जैसे एम्स, राम मनोहर लोहिया, सफदरजंग, अपोलो,में सर्वे कीजिये ज्यादा डॉक्टर गुजरात के नही बल्कि बिहार के मिलिंगे३) टेक्नोक्रेट----आप पुरे भारत के प्राइवेट या सरकारी फैक्ट्री जैसे टाटा,बिरला,रिलायंस महिंद्रा विप्रो भारत पेट्रोलियम, हिदुस्तान पेट्रोलियम आदि में इंजिनियर का सर्वे कीजिये आपको गुजरात सेज्यादा बिहार के मिलेंगे4)ब्यूरोक्रेट---आप दिल्ली सचिबालय तथा मंत्रालय में जाकर सर्वे कीजिये ज्यादा आईएएस गुजरात नही बल्कि बिहार के मिलेंगे दिल्ली रास्ट्रीय राजधानी है वंहा के पुलिस कमिशनर गुजरात के कम बिहार के ज्यादा बने है रेलवे में आपको ज्यादा कर्मचारी गुजरात नही बल्कि बिहार के मिलिंगे आजतक देश जितनी भी लड़ाई लड़ी है उनमे बिहार के सैनिको का योगदान गुजरात से ज्यादा रहा है5)कला---- सिने जगत कलाकार गुजरातसे ज्यादा बिहार दिया है6)इतिहास--- गुजरात से ज्यादा नामी स्वतंत्रा सेनानी बिहार के थे जैसे राजेंद्र बाबु सच्चिदानंद सिन्हा आदि भारत का संबिधान दिल्ली के अलावे केवल बिहार आया है हिंदी के ज्यादा नामी कवि और लेखक देश को गुजरात नही बल्कि बिहार दिया है देश के बाहर किसी देश के रास्त्रपति गुजरात के नही बल्कि बिहार के बने थे, देश के नामी खगोलशास्त्री भी बिहार के थे गुजरात के नही विश्व का पहला गणराज्य वैशाली गुजरात ने नही बल्कि बिहार ने दिया था सम्राट अशोक चन्द्रगुप्त चाणक्य भगवानबुद्ध महावीर गुजरात के नही बल्कि बिहार के थे विश्व का पहला विश्वविदाल्य बिहार ने दिया गुजरात ने नही कितना लिखू सभी क्षेत्र में बिहार गुजरात से आगे था आगे है और आगे रहेगाहाँ एक क्षेत्र है जिसमे बिहार बहुत पीछे है गुजरात से वो है पैसा धन दौलत और भौतिक सुख सुविधा किन्तु ये सफलता का पैमाना नही हो सकता क्योंकि अगरये पैमाना होता अयोध्या से ज्यादा भौतिक सुख लंका के प्रजाको था तथा रावण के पास भगवान राम से ज्यादा धन था किन्तु आदर्श श्री राम रहे न की रावण और आदर्श राज्य अयोध्या है न की लंका,

" सोती प्रजा, मज़े लूटता राजा "

" सोती प्रजा, मज़े लूटता राजा "

एक राजा था जिसकी प्रजा हम
भारतीयों की तरह सोई हुई थी !

बहुत से लोगों ने कोशिश की
प्रजा जग जाए ..
अगर कुछ गलत हो रहा है तो
उसका विरोध करे,
लेकिन प्रजा को कोई फर्क
नहीं पड़ता था !

राजा ने तेल के दाम बढ़ा दिये
प्रजा चुप रही
राजा ने अजीबो गरीब टैक्स
लगाए प्रजा चुप रही
राजा ज़ुल्म करता रहा लेकिन
प्रजा चुप रही

एक दिन राजा के दिमाग मे एक
बात आई उसने एक अच्छे-चौड़े
रास्ते को खुदवा के एक पुल
बनाया ..
जबकि वहां पुल की कतई
ज़रूरत नहीं थी ..
प्रजा फिर भी चुप थी किसी ने
नहीं पूछा के भाई यहा तो किसी
पुल की ज़रूरत नहीं है
आप काहे बना रहे है ?

राजा ने अपने सैनिक उस पुल
पे खड़े करवा दिए और पुल से
गुजरने वाले हर व्यक्ति से टैक्स
लिया जाने लगा फिर भी किसी
ने कोई विरोध नहीं किया !

फिर राजा ने अपने सैनिको को
हुक्म दिया कि जो भी इस पुल
से गुजरे उसको 4 जूते मारे जाए
और एक शिकायत पेटी भी पुल
पर रखवा दी कि किसी को अगर
कोई शिकायत हो तो शिकायत
पेटी मे लिख कर डाल दे लेकिन
प्रजा फिर भी चुप !

राजा रोज़ शिकायत पेटी खोल
कर देखता की शायद किसी ने
कोई विरोध किया हो लेकिन
उसे हमेशा पेटी खाली मिलती !

कुछ दिनो के बाद अचानक एक
एक चिट्ठी मिली ..
राजा खुश हुआ के चलो कम से
कम एक आदमी तो जागा ,,,,,
जब चिट्ठी खोली गयी तो उसमे
लिखा था -

"हुजूर जूते मारने वालों की
संख्या बढ़ा दी जाए ...
हम लोगो को काम पर जाने मे
देरी होती है !

ऐसे हो चुके हैं हम भारतीय . . !"

Jai Hind !

Monday, August 26, 2013

" अहंकारी राजा "

" अहंकारी राजा "

पक्षियों की सभा हो रही थी। सभा में तय होना था की उनका राजा कौन बनेगा। इस मुद्दे पर कुछ पक्षी लड़ने लगे। यह देख कर एक सबसे बुजुर्ग पक्षी, जिसे सारे पक्षी संत कहते थे ने कहा, " राजा वोही बन सकता है जिसमे सच्चाई, ईमानदारी और सूझबूझ हो और जो अपने समाज को एकजुट रख सुरक्षा कर सके।

यह सुन सभी पक्षी एक दूसरे को देखने लगे। उसी समय एक ईमानदार पक्षी ने खड़े हो कर कहा, " मैं पक्षी समाज का भला करूंगा, इसलिए मैं राजा बनूगा"। उसकी बगल मैं बैठे एक दूसरे पक्षी ने कहा, "तुमसे ज्यादा ताकतवर और बुद्धिमान मैं हूँ। इसलिए राजा बनने का मौका मुझे मिलना चाहिए"। जब सर्वसम्मति से फैसला नहीं हुआ कि राजा कौन बने, तो संत ने कहा, "तुम दोनों चुनाव लड़ो और जो जीत जायेगा, वोही राजा बनेगा"। दोनों आपस में लड़ने लगे। दूसरे वाले पक्षी ने छल कपट से जीत हासिल कर ली। संत ने उसे राजा घोषित कर दिया। सभी विजयी पक्षी के इर्द गिर्द जमा हो कर उसका गुणगान करने लगे।

विजयी पक्षी चाहता था कि उसके राजा बनने की बात आसपास के सभी पक्षी भी जान लें। इसलिए इठलाता हुआ पेड़ की सबसे ऊपर वाली डाल पे बैठ गया और अकड कर ऊँची आवाज़ में बोल, " सब लोग देखो मुझे। मैं हूँ विजयी पक्षी। मैं राजा बन गया हूँ"।

तभी ऊपर से एक चील ने झपट्टा मारा और उसे पंजे में दबा कर उड़ गया। पक्षियों की सभा में हडकंप मच गया और सारे पक्षी आंसू बहाने लगे।

पक्षियों का संत बोल, "तुम रो क्यूँ रहे हो। तुम्हे तो खुश होना चाहिए"। एक पक्षी ने पूछा, "आखिर क्यूँ?" संत ने कहा, तुम लोगों ने देखा होगा कि राजा बनने पर उसमे कितना अहंकार आ गया था। वो अहंकार वश अपना गुणगान खुद कर रहा था। एक अहंकारी भ्रष्टाचारी कपटी राजा से हमें इतनी जल्दी छुटकारा मिल गया। यह तो हमारे समाज का सोभाग्य है। अहंकारी राजा कभी भी अपने समाज को सुरक्षा नहीं दे सकता। आओ, ईश्वर का धन्यवाद करें।

और फिर संत ने ईमानदार पक्षी को राजा बना दिया। सच्चाई और ईमानदार वयवस्था से सब पक्षी सुखपूर्वक रहने लगे।

जय हिन्द !

" एक स्वर्णिम अवसर "

" एक स्वर्णिम अवसर "

एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई | चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी| पर साधु ने कहा-

” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!”

धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया , और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा, इतने में वहां से एक नाव गुजरी|

मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |”

“नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया.

नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया.

कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया|

पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |”

उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया |

कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी |

मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की… तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु ?

भगवान बोले , ” हे साधु महात्मा मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया , पहला, ग्रामीणों के रूप में , दूसरा नाव वाले के रूप में , और तीसरा हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में. किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए |”

इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर देता है , इन अवसरों की प्रकृति कुछ ऐसी होती है कि वे किसी की प्रतीक्षा नहीं करते है, वे एक दौड़ते हुआ घोड़े के सामान होते हैं जो हमारे सामने से तेजी से गुजरते हैं , यदि हम उन्हें पहचान कर उनका लाभ उठा लेते है तो वे हमें हमारी मंजिल तक पंहुचा देते है, अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है|

अब ऐसा ही एक 'स्वर्णिम' अवसर भारत की इतने घोटालों के बाद लुटी पिटी जनता के पास आया है। इसे व्यर्थ ना जाने दें। आओ, सब मिलकर, 'अन्ना ' के अर्जुन, एक सच्चे सुच्चे निस्वार्थी देशभक्त 'अरविन्द केजरीवाल ' का साथ दें, वयवस्था बदले और एक ईमानदार भारत निर्माण में जुट जाएँ।

जय हिन्द !

" खाद्य सुरक्षा बिल : आम आदमी को सस्ता अनाज "

" खाद्य सुरक्षा बिल : आम आदमी को सस्ता अनाज "

एक बार की बात है एक राजा ने अपने बहुत बड़े राज्य में भ्रमण की योजना बनाई और घूमने निकल पड़ा। जब वह यात्रा से लौट कर अपने महल आया। उसने अपने मंत्रियों से पैरों में दर्द होने की शिकायत की। राजा का कहना था कि मार्ग में जो कंकड़ पत्थर थे वे उसके पैरों में चुभ गए थे और इसके लिए कुछ इंतजाम करना चाहिए।

कुछ देर विचार करने के बाद उसने अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि राज्य की सारी सड़कें चमड़े की बना दी जाएं। सब सकते में आ गए। लेकिन किसी ने भी मना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह तो निश्चित ही था कि इस के लिए बहुत अधिक धन की जरूरत थी। ना इतने सड़क बनाने वाले, ना इतनी बड़ी मात्रा में रबड़, ना ढुलाई और ना अन्य कोई जरूरी वयवस्था थी। फिर भी अगर आदेश का पालन करते हैं तो बहुत कम सड़कें बनने पर सारा खजाना खाली हो जाएगा जिससे राज्य में घोर विपत्ति आने का भय मुहं बाएं खड़ा था। सब मंत्री ये जानते थे, पर डर के मारे बोल नहीं पा रहे थे। फिर एक बुद्घिमान मंत्री ने एक युक्ति निकाली। उसने राजा के पास जाकर डरते हुए कहा कि मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ।

यदि आप सारे खजाने को अनावश्यक रूप से बर्बाद न करना चाहें तो एक अच्छी और निहायत सस्ती तरकीब मेरे पास है। जिससे आपका काम भी हो जाएगा और अनावश्यक धन की बर्बादी भी बच जाएगी। राजा हैरान था क्योंकि पहली बार किसी ने उसकी आज्ञा न मानने की जुर्रत की थी। उसने कहा बताओ क्या सुझाव है। मंत्री ने कहा कि पूरे देश की चमड़े की सड़कें बनाने के बजाय आप चमड़े के एक छोटे टुकड़े का उपयोग कर अपने पैरों को ही क्यों नहीं ढंक लेते। राजा ने अचरज भरी दृष्टि से मंत्री को देखा और उसके सुझाव को मानते हुए अपने लिए एक अच्छा जूता बनवाने का आदेश दे दिया। इससे समस्या का हल भी निकल गया और राज्य भी घोर विपत्ति से बच गया।

खाद्य सुरक्षा बिल :

अब अस्सी करोड़ जनता के लिए खाद्य सुरक्षा बिल को ही देखो, इससे अर्थवयवस्था जो पहले ही चरमराई हुई है, उस पर सवा लाख करोड़ रुपये का और ज्यादा भार पड़ेगा। भंडारण, ढुलाई, वितरण आदि की वयवस्था करने में और बहुत धन और साधन की जरुरत होगी। ऐसे तो ना केवल अर्थवयवस्था ही डूब जाएगी, अपितु व्याप्त भ्रष्टाचार से 'आम आदमी' जिसके लिए ये योजना प्रस्तावित है, उसे भी कोई वास्तविक लाभ नहीं होगा।

इससे अच्छा तो सार्वजनिक रसोई हर गाँव, हर शहर में बना देते जिससे गरीब को सस्ता और अति गरीब को मुफ्त भोजन मिलता। कई लोगों को रोज़गार भी मिलता। ऐसे गरीब और अति गरीब जनता की गिनती बहुत कम होती। और जैसे जैसे अति गरीब और गरीब को रोज़गार मिलता जाता, इनकी संख्या समय के साथ और कम होती जाती। ऐसी रसोइयाँ तमिलनाड सरकार चुस्त दुरुस्त शासन से सफलतापूर्वक चला रही है। इससे ना केवल गरीबों को संतुलित पोष्टिक भोजन मिलता अपितु अर्थवयवस्था डूबने से बच जाती।

हमें हमेशा ऐसे हल के बारे में सोचना चाहिए जो ज्यादा उपयोगी हो। जल्दबाजी में अप्रायोगिक हल सोचना बुद्धिमानी नहीं है। दूसरों के साथ सच्चाई और इमानदारी से बातचीत कर और भी अच्छे वय्वाहरिक हल सोचे और निकाले जा सकते हैं।

जय हिन्द !

GK Khanna Jee Post Set 2

" क्यों दूँ अपना वोट 'आम आदमी पार्टी' को? "

कई लोग पूछते हैं कि सिर्फ आठ महीने पहले बनी 'आम आदमी पार्टी' सत्ता में आ कर क्या नया कर लेगी?

भाई, 'आम आदमी पार्टी' ने बिना सत्ता में रहे बहुत काम किये हैं जैसे:

1) "आप" को मिले दान का ब्यौरा वेबसाइट पर पब्लिक किया हुआ है. दूसरी पार्टीयों ने ऐसा पहले कभी नहीं किया, क्या अब वो करेंगी?

2) "आप" ने अपने प्रत्याशी चुनने की प्रक्रिया को पब्लिक किया और पूरी पारदर्शिता के साथ उसको निभाया. क्या दूसरी पार्टीयां ऐसा करेंगी?

3) "आप" ने किसी भी क्रिमिनल या एक ही परिवार के दो लोगों को टिकेट नहीं दी. क्या दूसरी पार्टीयां ऐसा करेंगी?

4) "आप" RTI (राईट टू इनफार्मेशन) के दायरे में आने का स्वागत करती है. दूसरी पार्टीयां एकजुट हो विरोध कर रही हैं. आखिर क्या छुपाना चाहती हैं?

5) "आप" ही इकलोती ऐसी पार्टी है जिसने कई नामी हस्तियों की हक़ीकत सबूतों के साथ देश के सामने रखी. दूसरी पार्टीयां बिलकुल

6) "आप" ने पूरे देश की जनता को नापसन्दी, वापिस बुलाने और जनलोकपाल जैसे जनता के बुनियादी कानूनों की ज़रुरत समझाई और जनता को जगा कर अपने साथ जोड़ा. दूसरी पार्टीयां पैंसठ साल से इस पर गहन चुप्पी साधे हुए है. क्यों? क्या वो नहीं चाहती कि एक जवाबदेह, भ्रष्टाचारमुक्त ईमानदार सिस्टम बने जिसमे जनता की पूरी भागीदारी हो?

7) "आप" ने दिल्ली की जनता को बिजली और पानी में चल रही धांधली को ले कर जागरूक किया और इसके लिए अनशन भी किया. दूसरी पार्टीयां पैंसठ साल से घडियाली आंसू रोती हैं. क्यों?

और सबसे बड़ी बात, "आप" ने देश में राजनीती के मायने बदल दिए हैं, अब आम आदमी जाग गया है, "आप" ने उसकी सोई हुई "आशा" को जगा दिया है. आम आदमी भ्रष्टाचार से परेशान और बहुत ज्यादा दुखी है, उसका जीना दूभर हो गया है. अब वो साफ़ सुथरी, जवाबदेह, भ्रष्टाचारमुक्त इमानदार सिस्टम चाहता है जो मानव, नैतिक और चरित्र मूल्यों का विकास करे, भेदभाव ना करे और चहुंमुखी विकास के लए प्रतिबद्ध हो.

जनता 'असली मालिक है' और जन प्रतिनिधि उसके 'सेवक', इसलिए अब आम आदमी को देश, अपने, युवा और बच्चों के उज्जवल भविष्य बनाने के लिए राजनीती में भागीदारी मिलनी चाहिए जो "आप" सुनिश्चित करेगी. दूसरी पार्टीयां पैंसठ साल से आम आदमी को सिर्फ चुनाव जीतने का मोहरा समझती है, उसे धर्म-जाती में बाँट, पर्लोभन देती हैं और फिर पांच साल उसे भूल कर मनमानी करती रहीं. क्यों?

इसके अलावा भी "आप" ने केवल कुछ महीनों में बहुत कुछ ऐसा किया है जो सौ साल पुरानी कांग्रेस और पच्चास साल पुरानी भाजपा आज तक ना कर सकी.

देशसेवा में समर्पित "आप" सत्ता लोलुप नहीं है बल्कि सत्ता "आम आदमी" के हाथ में देकर उसे वापिस "असली मालिक" बनाना चाहती है.

"आम आदमी" सत्ता में आते ही सब बराबर भारतीयों में नैतिकता, इंसानियत और भाईचारे का वातावरण बनेगा. 'नापसन्दी, (राईट टू रिजेक्ट), 'वापिस बुलाने' (राईट टू रिकॉल), जन लोकपाल जैसे 65 साल से लंबित पड़े जनता के बुनियादी कानून तुरंत बनेगे. अनिवार्य अच्छी शिक्षा, सुरक्षा, शीघ्र न्याय, सबको काम, अंतिम आम आदमी तक को सुखी करने की अच्छी योजनायें बनेगी. अपराध और भ्रष्टाचार मुक्त होने से, सब वस्तुए बहुत सस्ती हो जायेंगी. सब एक दूसरे के सुख-दुःख के साथी होंगे और देश दिन दोगुनी रात चोगुनी रफ़्तार से प्रगति करेगा.

क्या दूसरी कोई पार्टी ने ऐसा कुछ किया या आगे ऐसा करने का विश्वास दिलाती है?

जनता जाग गयी है, इसलिए सोचे और समझे, आखिर अपने भविष्य का फैसला उसे ही करना है.

जय हिन्द !
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"इंसानियत धर्म" में आस्था रखने वाली 'आम आदमी पार्टी' के उद्देश्य :

देश की प्रभुसत्ता, सुरक्षा, प्रादेशिक अखंडता सर्वोपरि के साथ,
1 . सब भारतीय बराबर। सब इंसान बराबर। नैतिकता, भाईचारे और देशप्रेम की स्थापना। वोट-बैंक की राजनीती समाप्त।
2 . साफ़ सुथरे, सच्चे, ईमानदार, कुशल और जवाबदेह सिस्टम की स्थापना।
3 . सत्ता का विकेंद्रीकर्ण, आम आदमी की सत्ता में पूरी भागीदारी, आम आदमी का अपना "स्वराज"।
4 . नापन्दी, वापिस बुलाने और जन लोकपाल कानून पास। चुनाव, पुलिस और न्याय प्रक्रिया में सुधार।
5 . सबको अनिवार्य अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षा, शीघ्र न्याय और रोज़गार।
6 . भ्रष्टाचार का अंत होने से सभी वस्तुएं और सेवाएँ बहुत सस्ती (आधी से भी कम) होंगी।
7 . अंतिम आम आदमी वर्गों, महिलाओं, बच्चों, वृद्धों, अपंगो की विशेष सुरक्षा और सहायता।
8 . एक ऐसा भाईचारे के वातावरण बनाना जिसमे सब एक दूसरे की दिल खोल कर मदद करेंगे।
9 . अंतिम आम आदमी तक सब सुख-संपन्न और देश का चहुंमुखी विकास होगा।

आओ, देश और बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए निष्काम निस्वार्थ देशसेवा के लिए "आप" से जुड़ जाएँ।

"आप" से जुड़ने पर मिलती है "देशभक्ति की संतुष्टि" और "मन की शान्ति"।

जय हिन्द !
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एक बूढ़ा कारपटर अपने काम के लए काफ जाना जाता था , उसके बनाये लकड़ी के घर दूर -दूर तक स थे . पर अब बूढा हो जाने के कारण उसने सोचा िक बाक क िज़दगी आराम से गुजारी जाए और वह अगले िदन सुबह-सुबह अपने मालक के पास पहंचा और बोला , ” ठेकेदार साहब , मने बरस आपक सेवा क है पर अब म बाक का समय आराम से पूजा-पाठ म िबताना चाहता हँ , कृपया मुझे काम छोड़ने क अनुमित द . “

ठेकेदार कारपटर को बहत मानता था , इसलए उसे ये सुनकर थोडा दुःख हआ पर वो कारपटर को िनराश नह करना चाहता था , उसने कहा , ” आप यहाँ के सबसे अनुभवी यि ह , आपक कमी यहाँ कोई नह पूरी कर पायेगा लेिकन म आपसे िनवेदन करता हँ िक जाने से पहले एक आखरी काम करते जाइये .”

“जी , या काम करना है ?” , कारपटर ने पूछा .

“म चाहता हँ िक आप जाते -जाते हमारे लए एक और लकड़ी का घर तैयार कर दीजये .” , ठेकेदार घर बनाने के लए ज़री पैसे देते हए बोला .

कारपटर इस काम के लए तैयार हो गया . उसने अगले िदन से ही घर बनाना शु कर िदया , पर ये जान कर िक ये उसका आखरी काम है और इसके बाद उसे और कुछ नह करना होगा वो थोड़ा ढीला पड़ गया . पहले जहाँ वह बड़ी सावधानी से लकिड़याँ चुनता और काटता था अब बस काम चालाऊ तरीके से ये सब करने लगा . कुछ एक हत म घर तैयार हो गया और वो ठेकेदार के पास पहंचा , ” ठेकेदार साहब , मने घर तैयार कर लया है , अब तो म काम छोड़ कर जा सकता हँ ?”

ठेकेदार बोला ” हाँ , आप िबलकुल जा सकते ह लेिकन अब आपको अपने पुराने छोटे से घर म जाने क ज़रत नह है , यिक इस बार जो घर आपने बनाया है वो आपक बरस क मेहनत का इनाम है; जाइये अपने परवार के साथ उसमे खुशहाली से रिहये !”.!”.

कारपटर यह सुनकर तध रह गया , वह मन ही मन सोचने लगा , “कहाँ मने दूसर के लए एक से बढ़ कर एक घर बनाये और अपने घर को ही इतने घिटया तरीके से बना बैठा …क़ाश मने ये घर भी बाक घर क तरह ही बनाया होता .”

Friends, कब आपका कौन सा काम िकस तरह आपको affect कर सकता है ये बताना मुकल है. ये भी समझने क ज़रत है िक हमारा काम हमारी पहचान बना भी सकता है और िबगाड़ भी सकता है. इसलए हमारी कोिशश होनी चािहए िक हम हर एक काम अपनी best of abilities के साथ कर िफर चाहे वो हमारा आखरी काम ही य न हो

जय हिन्द !
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Saalo baad ek Sachcha Deshbhakt 'Arvind Kejriwal' aaya hai ..... Gazab ka "Deshbhakti ka Junoon" ..... iski har baat sachchi hai ..... aisa lagta hai hamaari "Antaratma" bol rahi hai ..... aao, is "Swarnim Avsar" ko naa gavayen ..... aao, iske "Junoon" mein apna "Junoon" milayen ..... aao, "AAP" ki Imaandari ki "Jharhoo" se Desh ke har kone se Bhrashtachar Mitaayen ..... aao, apna "Swaraj" laayen ..... aao, "Antim Aam Aadmi tak Sabko" Sukhi banayen ..... aao, "Imaandar Charitrvaan Bharat" banaayen .....

सालों बाद एक सच्चा देशभक्त "अरविन्द केजरीवाल" आया है ..... गज़ब का "देशभक्ति का जूनून" ..... इसकी हर बात 'सच्ची' है ..... ऐसा लगता है हमारी "अंतरात्मा" बोल रही है ..... आओ, इस "स्वर्णिम अवसर" को ना गंवाएं ..... आओ, इसके "जूनून" में अपना "जूनून" मिलाये ..... आओ, "आप" की ईमानदारी की "झाडू" से देश के हर कोने से भ्रष्टाचार मिटायें ..... आओ, अपना "स्वराज" लायें ..... आओ, "अंतिम आम आदमी" तक सबको सुखी बनायें ..... आओ, "इमानदार चरित्रवान भारत" बनाये ..... जय हिन्द !
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" क्या अपनी दुर्दशा के लिए जनता खुद जिम्मेवार है? "

एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं? यहाँ न तो जल है,न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा! भटकते भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बिता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे!

रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था वह जोर जोर से चिल्लाने लगा। हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है। हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही।

पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था। सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो। हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद! यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो। हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरेभाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है ! उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है!

लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्चलोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही
रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है !

फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली !

रोते- चीखते जब वह आगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया,अब क्या करोगे? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे क्या? उल्लू ने कहा, नहीं मित्र,ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, आपकी पत्नी है और आपकी पत्नी रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है! मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है। यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं!

क्या 65 साल कि आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण ये नहीं है? संविधान ने जनता को 'मालिक' का दर्ज़ा दिया है जिसे 'पञ्च' बन कर ऐसे सच्चे ईमानदार जन प्रतिनिधि चुनने थे जो बिना भेदभाव सब भारतीयों के लिए जनहित के कानून बनाते, साफ़ सुथरा ईमानदार सिस्टम बनाते ताकि देश तरक्की करता और अंतिम आम आदमी तक सब सुखी होंते।

परन्तु जनता ने बिना जांचे परखे ऐसे जन प्रतिनिधियों को चुना जिन्होंने उसे धरम-जाती में बांटा, पर्लोभन दिए, और फिर पांच साल अपने फायदे के लिए उसे लगातार धोखा देते रहे। इसलिए देश क़ी बदहाली और अपनी दुर्दशा के लिए जनता की लापरवाही भी जिम्मेवार हैं।

जागो भाइयो, अब तो जागो। आओ, सब मालिक, एक अच्छे पञ्च की तरह, इस बार ना बंटे और ना किसी पर्लोभन या लालच में फंसे। अब पूरी जांच परख कर, सिर्फ सच्चे, इमानदार, देशसेवा में समर्पित, अच्छे जन प्रतिनिधि चुने ताकि एक साफ़ सुथरा जवाबदेह सिस्टम बने जिससे भ्रष्टाचार का अंत हो, हर भारतीय बराबर, शिक्षित, स्वस्थ, सुरक्षित, बारोजगार और अंतिम आम आदमी तक सुखी हो।

जय हिन्द !
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" गुरु का सच्चा चेला "

अरविन्द केजरीवाल का जीवन खुली किताब है। एक होनहार विद्यार्थी, एक ईमानदार कमीशनर। जब 'आम आदमी' का दुःख नहीं सह पाया तो अच्छी भली नौकरी त्याग दी।

अन्नाजी से मिलकर देश में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ दी। संसद और प्रधानमंत्री वादा कर 'जन लोकपाल' देने से मुकर गए। अरविन्द ने देखा कि जिनसे वो मांग रहे हैं उनमे कई खुद भ्रष्ट हैं। ऐसे दल और नेता की नीयत ही ठीक नहीं। अरविन्द समझ गए कि बिना ईमानदार व्यवस्था के कोई सुधार मुमकिन नहीं।

गुरु अन्ना बोले राजनीती गन्दी है। इसलिए वो आन्दोलन की राह से ही जनता को जगाने में लग गए।

पर अरविन्द को तो लग्न लग गयी। ठान लिया कि वो गन्दी राजनीती को ही बदल देंगे। निस्वार्थी निष्काम देशभक्त सरदार पटेल और शास्त्रीजी जैसी साफ़ सुथरी ईमानदार राजनीती करेंगे। अरविन्द दृढ विश्वास से आगे बढ़े, लोग जुड़ते गए और कारवां बढता गया। "मैं हूँ आम आदमी" टोपी वाले हर जगह नज़र आने लगे। सिर्फ 6 महीने की 'आम आदमी पार्टी' ने दूसरे सालों पुराने दलों की रात की नींद उढ़ा दी।

पर देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो राजनितिक दलों के अंधभक्त हैं। वो देख ही नहीं पा रहे कि इतिहास रचा जा रहा है। यह पहली बार है कि एक कर्मठ जुनूनी देशभक्त बिलकुल साफ़ नीयत से वयवस्था में फैली गन्दगी साफ़ करने आगे आया है। जबकि कई लोग बैठे बैठे बड़ते अपराध, गिरती अर्थवयवस्था, महंगाई, आदि की सिर्फ आलोचना भर ही करते हैं। वह ना नींद से जागना चाहते हैं और ना आगे आ कर इस सच्चे देशभक्त का साथ देना चाहते हैं। उनकी अंधी निष्ठां देश की प्रगति में रोड़ा बनी हुई है।

सब कुछ आँखों के सामने हो रहा है, फिर भी वो कुछ देख नहीं पा रहे। सब देख रहे हैं कि सारे राजनितिक दल "सूचना के अधिकार" से अपने को बचाने के लिए एक हो गए हैं। क्योंकि ये सच्चाई और पारदर्शिता से बचना चाहते है। फिर भी अंधभक्त अपने दल प्रति निष्ठां की आड़ में इसे भी ठीक बता रहे हैं। उन्हें दल वक्ताओं की गलत दलीलें भी सही लगती हैं।

पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने हिम्मत कर संसद का अपराधीकरन रोकने की कोशिश की है। इसपर भी सब दलों ने एक दूसरे का हाथ थाम कर इसे भी ठुकरा दिया है। इस तरह से यह सुनेहरा अवसर भी बेकार कर दिया गया है। इस पर भी अंधभक्त अपने अपने दलों के इस क्रियाकलाप के बचाव में ही बोल रहे हैं।

कब ये अंधभक्त अपनी निष्ठां सिर्फ अपने देश और जनतंत्र के प्रति दिखायेंगे? क्या यह लोग अपने अपने दलों से कभी प्रश्न नहीं पूछेंगे? या ये उस घडी का इंतज़ार करेंगे जब कोई दल किसी उलटे-सीधे तरीके से "अरविन्द" को अपने रास्ते से हटा देगा और फिर इन दलों का काम बेरोकटोक पहले की तरह चलता रहेगा।

केजरीवाल के पास दूरदर्शिता, नीति, ईमानदारी, सूझबूझ और हिम्मत है। वो अद्वित्य है। उधर अन्नाजी 'अरविन्द' बनाने में लगे हैं और इधर "आप" के गली गली में 'अरविन्द' खड़े हो रहे हैं। वो दिन दूर नहीं जब लाखों 'अरविन्द' देश के कोने कोने से इस राजनीती को ही बदल देंगे। आम आदमी का अपना 'स्वराज' होगा जहाँ सब बराबर, शिक्षित, स्वस्थ, कार्यरत और अंतिम 'आम आदमी' तक नैतिक और खुशहाल होगा।

गुरु के ऐसे सच्चे चेले 'अरविन्द' पर देश को नाज़ है।

जय हिन्द !
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" मानव धर्म" की पक्षधर "आम आदमी पार्टी" के उद्देश्य :

1 . देश की सुरक्षा सर्वोपरि।
2 . सब भारतीय बराबर। सब इंसान बराबर। मानव, नैतिक, भाईचारे और चरित्र निर्माण।
3 . वोट-बैंक और तुष्टिकरण की राजनीती समाप्त।
4 . साफ़ सुथरी, ईमानदार, कुशल, जवाबदेह 'स्वराज' वयवस्था की स्थापना। जन लोकपाल और सुधार लागू।
5 . भ्रष्टाचार के अंत से सभी वस्तुएं और सेवाएँ बहुत सस्ती (आधी से भी कम) होंगी।
6 . सबको अनिवार्य अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सुरक्षा, शीघ्र न्याय और रोज़गार।
7 . अंतिम आम आदमी वर्गों, महिलाओं, बच्चों, वृद्धों, अपंगो की विशेष सुरक्षा और सहायता।
8 . भाईचारे के वातावरण मे सब एक दूसरे के सुख-दुःख के साथी।
9 . अंतिम आम आदमी तक सब सुख-संपन्न और देश का चहुंमुखी विकास।

आओ, देश और बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए निष्काम निस्वार्थ देशसेवा के लिए "आप" से जुड़ जाएँ।

"आप" से जुड़ने पर मिलती है "देशभक्ति की संतुष्टि" और "मन की शान्ति"।

जय हिन्द !

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" गुरु का सच्चा चेला "

अरविन्द केजरीवाल का जीवन खुली किताब है। एक होनहार विद्यार्थी, एक ईमानदार कमीशनर। जब भ्रष्टाचार से लुटे पिटे 'आम आदमी' का दुःख नहीं सह पाया तो अच्छी भली नौकरी त्याग दी।

अन्नाजी से मिलकर देश को भ्रष्टाचारमुक्त करने के लिए सरकार से 'जन लोकपाल' की मांग की। पर संसद और प्रधानमंत्री बार बार वादा कर टाल मटोल करते रहे। फिर नेता कहने लगे की पहले जीत कर आओ और फिर खुद क़ानून बनाओ। अरविन्द समझ गए कि बिना ईमानदार व्यवस्था के कोई सुधार मुमकिन नहीं। गुरु अन्ना बोले राजनीती गन्दी है। इसलिए वो आन्दोलन की राह से ही जनता को जगाने में लग गए।

पर अरविन्द को तो लग्न लग गयी। ठान लिया कि वो ईमानदार वयवस्था लायेंगे। देशभक्त सरदार पटेल और शास्त्रीजी जैसी ईमानदार राजनीती करेंगे। अरविन्द दृढ विश्वास से आगे बढ़े, लोग जुड़ते गए और कारवां बढता गया। सिर्फ 8 महीने की सच्ची पारदर्शी 'आम आदमी पार्टी' के "मैं हूँ आम आदमी" टोपी वाले जगह 2 नज़र आने लगे हैं।

देश में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो देख ही नहीं पा रहे कि इतिहास रचा जा रहा है। यह पहली बार है कि कोई सच्चा देशभक्त साफ़ नीयत से वयवस्था में फैली गन्दगी साफ़ करने आगे आया है। जबकि कई लोग घर बैठे बड़ते अपराध, घोटाले, महंगाई आदि को अपनी नियति मान सिर्फ आलोचना भर करते रहते हैं। वह ना तो नींद से जागना चाहते हैं और ना ही आगे बढ़ कर इस सच्चे देशभक्त का साथ देना चाहते हैं।

सब कुछ लोगों की आँखों के सामने हो रहा है, फिर भी वो कुछ देख ही नहीं पा रहे। सारे दल "सूचना के अधिकार" से अपने को बचाने के लिए एक हो गए हैं। वो सच्चाई और पारदर्शिता से बचना चाहते है। पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने संसद में अपराधी प्रवृति के सांसद रोकने की कोशिश की है। इस के विरोध में फिर सब दलों ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया है। इस पर भी इनके भक्त इनके बचाव में ही बोल रहे हैं। उन्हें इनकी थोथी दलीलें भी सही लगती हैं। अब चुनाव पास आने से, इन दलों को गरीबों की भूख, धर्म-जाती आदि के मसले फिर याद आने लगे हैं।

क्या कभी ऐसे भक्त अपनी निष्ठां देश और जनतंत्र के प्रति दिखायेंगे? क्या कभी ये लोग इन दलों से ये प्रश्न पूछेंगे कि 66 साल में उन्होंने जनता को उसके बुनियादी 'नापसन्दी', 'वापिस बुलाने', 'जन लोकपाल' अधिकार और 'चुनाव, पुलिस, न्याय प्रणाली सुधार' आदि क्यों नहीं दिए? क्यों अशिक्षा, अपराध, महंगाई, गरीबी, जनसँख्या, बेरोज़गारी आदि इतनी ज्यादा बढ़ गयी है? या ये उस घडी का इंतज़ार करेंगे जब कोई किसी उलटे-सीधे तरीके से सच्चे देशभक्त "अरविन्द" को अपने रास्ते से हटा देगा और फिर जैसा था वैसे बेरोक टोक पहले की तरह सब चलता रहेगा।

केजरीवाल के पास दूरदर्शिता, नीति, ईमानदारी, सूझबूझ और हिम्मत है। वो अद्वित्य है। उधर अन्नाजी जनता को जगाने में लगे हैं और इधर गली गली में "आप" लोगों को जगा रही है।

आओ, सच्चे ईमानदार जन प्रतिनिधि चुने, वयवस्था बदलें, आम आदमी का अपना 'स्वराज' लायें जिससे सब बराबर, शिक्षित, स्वस्थ, कार्यरत और अंतिम 'आम आदमी' तक नैतिक और खुशहाल हो।

गुरु के ऐसे सच्चे चेले 'अरविन्द' पर देश को नाज़ है।

जय हिन्द !

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अरविन्द बनो, अरविन्द बनाओ, देश की हर गली में अरविन्द ही अरविन्द हों, तभी मिटेगा भ्रष्टाचार, तभी बनेगा भारत एक चरित्रवान और ईमानदार देश। "आम आदमी पार्टी लाओ, देश बचाओ।"

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भारतीय वोटरों की 7 कमजोरियां जिनका फायदा राजनातिक वर्ग उठाता है
1 हम एक दूसरे से घृणा करना पसंद करते हैं.
2भारत की जनता की याददाश्त देश के मामलों में बहुत कमजोर है. जिसका फायदा नेता उठाते हैं.
3समय के साथ हम कुछ भी बर्दाश्त करना सीख जाते हैं. जिसका फायदा नेता उठाते हैं.
4वोट देते समय हम जाती धरम के ऊपर कुछ नहीं देखते. जिसका फायदा नेता उठाते हैं.
5हम व्यक्ति पूजा और वंश वाद में विश्वास करते हैं . जिसका फायदा नेता उठाते हैं.
6हममें राजनैतिक समझ की कमी है , खास कर पढ़े लिखों में . जिसका फायदा नेता उठाते हैं.
7हम चुनाव के समय छोटे मोटे लालच में आ जाते हैं .जिसका फायदा नेता उठाते हैं.

Tuesday, August 20, 2013

क्या आपको पता है ?

क्या आपको पता है ?
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* दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "मसाले" भारत में होते है!

* दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह का "फल" भारत में मिलते है!

* दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह की "सब्जिया" भारत में उगती है!

* दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "अनाज" भारत में पैदा होते है!

* दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "खनिज पदार्थ" भारत में पाया जाते है !

* दुनिया में सबसे अधिक एवं सभी तरह के "कपड़े" सिर्फ भारत में बनते है !

---भारत को आज सुपर पावर होना चाहिए था लेकिन विकसित भी नहीं विकाससिल देश है

क्योँकि दुर्भाग्य से :-
* सबसे अधिक और सभी तरह के देस द्रोही, गद्दार तथा भ्रष्ट लोग भी भारत मेँ ही पाए जाते हैँ !

अरविन्द जी ने राजनीती पार्टी बनाई ...

मेरा एक सीधा सा सवाल है उनसे जिन्हें कुछ ज्यादा ही बुरा लगा जब आन्दोलन दो हिस्सों में टूटा और अरविन्द जी ने राजनीती पार्टी बनाई ...
क्या वो उस समय अन्ना जी के आन्दोलन के लिए कुछ काम करते थे ?...
आन्ना जी उद्देश्य क्या था? जनलोकपाल सही है ...
तो अन्ना जी और अरविन्द,... तो आज भी भ्रष्टाचार मुक्ति और जनलोकपाल के लिए अपने अपने तरीके से प्रयास रत है ...
पर वो जिन्हें दुःख हुआ ..जिन्हें उम्मीद थी उस आन्दोलन से ...
वो सिर्फ बुराई क्यों कर रहे है ...वो क्यों नहीं जुड़ते अन्ना जी के आन्दोलन के साथ ?...क्यों नहीं बनते अन्ना के अरविन्द ...
सिर्फ बैठ कर अरविन्द की बुराई क्यों?....
जो अन्ना जी के लिए चिंतित है ...वो उनका समर्थन कैसे कर सकते है ...
जो RTI तक में आने को राजी नहीं ?...
जो राजनीती में अपराधियों को आने से सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक को बदलना चाहते है ..कैसे ...
मैं नहीं मानता की,.. इनमे से किसी ने भी कभी अन्ना जी का समर्थन किया होगा .....
हाँ अपना या अपनों का स्वार्थ सिद्ध करवाने के लिए शायाद जुड़े होंगे ...पर अन्ना जी के उद्देश्य के समर्थक तो ये कभी नहीं रहे होंगे ....और आज स्वार्थ सिद्ध ना होने की स्थिति में ...उनके चिन्तक बने है ...
अरे दोस्त, अन्ना जी के चिन्तक मत बनो ...अगर बन सकते हो ...तो अन्ना के,...अरविन्द बनो .....नागेन्द्र


How does it matter..if Objective is same....i never worked for any Anna Or Arvind.....I worked and working for what they dreamed....to me it doesn't matter what happens..but i am always ready for any way which can bring Swaraaj..which can remove corruption..which can establish democracy....wheter its Anna Or Arvind.....

मुझे भी कांग्रेस से ज्यादा डर लगता है ..पर जब से पता चला की ये दोनों ..एक ही मालिक की दूकान है ..तब से कोई फर्क नहीं पड़ता की उस मालिक का कौन सा नौकर डंडे चला रहा है ...
आप खुद पता कर लो ..सभी धनपति ...दोनों को ..
दोनों को क्या इन सभी को चन्दा देते है ....उनकी उनकी सीट की हिसाब से ...तो कहाँ फर्क पड़ता है ...की सरकार किसकी है ...
सरकार किसी की भी हो ...व्यवस्था तो वाही होगी ...जो उनके फायदे के लिए हो


बीजेपी, करना कुछ नहीं चाहती ...सिर्फ इस बात पर जीवित है की लोग कांग्रेस से ऊबे और उनको चुना जाए ...अजीब है दिल्ली में बिजली के दाम कैसे बढ़ाये गए ...किस किस की मिलीभगत से बढे ...बीजेपी को पता था ...पर बताया नहीं ....
इनको ये बताने के लिए भी सत्ता चाहिए ...
हर बात के लिए सिर्फ एक जवाब ...सत्ता दो ....तब करेंगे ....
अरे विपक्ष का भी कुछ काम होता है ....पर नहीं तब तो मिलीभगत कर मोटे माल में हिस्सा चाहिए ...
और सरकार बना ...हिस्सा लेने की बजाय देने की इच्छा ...यही है बीजेपी का नया चरित्र ....
अगर बीजेपी इतनी ही सही थी तो ..हिमाचल में क्यों हारी ...कर्णाटक में क्यों हारी ...कर्णाटक के लिए तो चलो बहाना है येदुरप्पा ..पर हिमाचल क्यों ?.....
कहाँ है बीजेपी बेहतर कांग्रेस से ....हाँ बस फर्क इतना की कांग्रेस में दूसरे लुटते है ..और बीजेपी में दूसरे ..जनता तो लुट ही रही है चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी ...देश को विकल्प नहीं ....कायाकल्प चाहिए


If its has been hijacked by someone...then how does it effects to you.....or Me....I was supporting it earlier..and supporting now too....but Why not people who raises this question are not working for Anna Now...what happen....
Its not that...AK is the not the only honest person...Its true....
But it doesn't implies that AK is dishonest.

Regarding Support....Consider Arvind Is defaulter...Now What do you think about Kiran Ji....Why she is not supporting Anna.....Why she is not working for him?...may be arvind is power hungry but she has not started her party...then Why she is not supporting Now...

Its because Since binging there was two categories of people who were supporting Anna Ji. 1. Who were trying to gain advantage of Anna Andolan to gather Anti congress Vote...2. Those who were supporting Anna Ji and janlokpaal.

Now after this split...category 1 has started abusing AK and they don't support Anna Even. and
Category 2. Who was supporting Anna Ji and Janlokpal are still supporting....Anna Ji and Arvind Ji.

Whatever Link you have given..that true...anna has said he will not support AAP...that's true....
But you are not updated.....He has always said....I trust on AK..and i support AK....
Recently in Sundar nagari Anna has said Whenever Arvind would need help he will help...they will help each other.

On ground...i want to tell you It was My team...who arranged the Anna rallies in Haryana....And want to update you...on ground...these is a common set of Anna and Arvind Workers....

Gopal, Its Bad that you oppose it just for the sake...you want to oppose....
Just because you support Modi....Or BJP...
Be updated....and always share what is correct and relavent...Please don't act as Paid Modi Worker....Gopal Bajpeyee


Gopal Bajpeyee In response to your evergreen Link....Please watch this video..just 1 min. http://www.youtube.com/watch?v=gUkWe4mOwqo

Rajeev Jain अन्ना जी तो किसी भी पार्टी को सप्पोर्ट नहीं करते न मोदी को न राहुल को, फिर इतने खुश होने की बात क्या है इसमें??? अब जब राजनीति में कूद गए है तो पुरानी बात क्यों करते हो, इसी भाजपा और कांग्रेस ने चुनोती दी थी, राजनीति में आ के दिकाहो, चुनाव लड़के दिखाओ, लो दिखा रहे है चुनाव लड़के, और भाजपा तो वेसे भी हार रही है दिल्ली में तीन बार से और केंद्र में दो बार से, भाजपा की तो ओकात ही नही है, कांग्रेस को हारने की, उसका तो "कांग्रेसीकरण" कब का हो चूका है, rti के मुद्दे पर कैसे कांग्रेस के पल्लू में ज्जाकर बेथ गयी...सही बात तो ये है की भाजपा/कांग्रेस अब तक जनता को मूर्ख बना रहे थे....अब इनकी दुकाने हो रही है बंद....तो इनको हो रही है तकलीफ....