Monday, August 26, 2013

" खाद्य सुरक्षा बिल : आम आदमी को सस्ता अनाज "

" खाद्य सुरक्षा बिल : आम आदमी को सस्ता अनाज "

एक बार की बात है एक राजा ने अपने बहुत बड़े राज्य में भ्रमण की योजना बनाई और घूमने निकल पड़ा। जब वह यात्रा से लौट कर अपने महल आया। उसने अपने मंत्रियों से पैरों में दर्द होने की शिकायत की। राजा का कहना था कि मार्ग में जो कंकड़ पत्थर थे वे उसके पैरों में चुभ गए थे और इसके लिए कुछ इंतजाम करना चाहिए।

कुछ देर विचार करने के बाद उसने अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि राज्य की सारी सड़कें चमड़े की बना दी जाएं। सब सकते में आ गए। लेकिन किसी ने भी मना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह तो निश्चित ही था कि इस के लिए बहुत अधिक धन की जरूरत थी। ना इतने सड़क बनाने वाले, ना इतनी बड़ी मात्रा में रबड़, ना ढुलाई और ना अन्य कोई जरूरी वयवस्था थी। फिर भी अगर आदेश का पालन करते हैं तो बहुत कम सड़कें बनने पर सारा खजाना खाली हो जाएगा जिससे राज्य में घोर विपत्ति आने का भय मुहं बाएं खड़ा था। सब मंत्री ये जानते थे, पर डर के मारे बोल नहीं पा रहे थे। फिर एक बुद्घिमान मंत्री ने एक युक्ति निकाली। उसने राजा के पास जाकर डरते हुए कहा कि मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ।

यदि आप सारे खजाने को अनावश्यक रूप से बर्बाद न करना चाहें तो एक अच्छी और निहायत सस्ती तरकीब मेरे पास है। जिससे आपका काम भी हो जाएगा और अनावश्यक धन की बर्बादी भी बच जाएगी। राजा हैरान था क्योंकि पहली बार किसी ने उसकी आज्ञा न मानने की जुर्रत की थी। उसने कहा बताओ क्या सुझाव है। मंत्री ने कहा कि पूरे देश की चमड़े की सड़कें बनाने के बजाय आप चमड़े के एक छोटे टुकड़े का उपयोग कर अपने पैरों को ही क्यों नहीं ढंक लेते। राजा ने अचरज भरी दृष्टि से मंत्री को देखा और उसके सुझाव को मानते हुए अपने लिए एक अच्छा जूता बनवाने का आदेश दे दिया। इससे समस्या का हल भी निकल गया और राज्य भी घोर विपत्ति से बच गया।

खाद्य सुरक्षा बिल :

अब अस्सी करोड़ जनता के लिए खाद्य सुरक्षा बिल को ही देखो, इससे अर्थवयवस्था जो पहले ही चरमराई हुई है, उस पर सवा लाख करोड़ रुपये का और ज्यादा भार पड़ेगा। भंडारण, ढुलाई, वितरण आदि की वयवस्था करने में और बहुत धन और साधन की जरुरत होगी। ऐसे तो ना केवल अर्थवयवस्था ही डूब जाएगी, अपितु व्याप्त भ्रष्टाचार से 'आम आदमी' जिसके लिए ये योजना प्रस्तावित है, उसे भी कोई वास्तविक लाभ नहीं होगा।

इससे अच्छा तो सार्वजनिक रसोई हर गाँव, हर शहर में बना देते जिससे गरीब को सस्ता और अति गरीब को मुफ्त भोजन मिलता। कई लोगों को रोज़गार भी मिलता। ऐसे गरीब और अति गरीब जनता की गिनती बहुत कम होती। और जैसे जैसे अति गरीब और गरीब को रोज़गार मिलता जाता, इनकी संख्या समय के साथ और कम होती जाती। ऐसी रसोइयाँ तमिलनाड सरकार चुस्त दुरुस्त शासन से सफलतापूर्वक चला रही है। इससे ना केवल गरीबों को संतुलित पोष्टिक भोजन मिलता अपितु अर्थवयवस्था डूबने से बच जाती।

हमें हमेशा ऐसे हल के बारे में सोचना चाहिए जो ज्यादा उपयोगी हो। जल्दबाजी में अप्रायोगिक हल सोचना बुद्धिमानी नहीं है। दूसरों के साथ सच्चाई और इमानदारी से बातचीत कर और भी अच्छे वय्वाहरिक हल सोचे और निकाले जा सकते हैं।

जय हिन्द !

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