Saturday, August 3, 2013

बादशाह का हुक्म है

बादशाह का हुक्म है
सावधान हो जाओ सब

अपने आप को बचाओ
उस पागलपन के कीड़े से
जो फैल रहा है देश मे
दूसरी आज़ादी के नाम पर ।
एक बूढ़ा सठिया गया है
कहता है आग लगा दूँगा
तख़्त को जला दूँगा
ताज को मिटा दूँगा
उसके झाँसे मे मत आओ
तुम्हें बरगला रहा है वो
बहकावे मे मत आओ
तुम्हें तो रोटी चाहिये न
वो बादशाह देंगे
एकदम मुफ्त मे
कभी रोटी मे ज़हर मिल जाये
तो शांति से मर जाना
हल्ला मत करना
बादशाह ख़ुद आयेंगे तुम्हारी
लाश को पैरों से ढ़केलकर दफ़नाने के लिये ।
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वो बूढ़ा पागल हो चुका है
बोलता है देश को बचा लो
अरे, बादशाह देश के मालिक है
क्या गुनाह किया अगर
ख़जाने को हथिया लिया
तुम्हारे बादशाह बड़े नेक दिल है
दो चार सिक्के तुम को भी फेंक देंगे
अदब से सर को झुकाना
जब उनकी सवारी गुज़रेगी
तुम्हारे शहर से
हाँ बिटिया को भी ज़रूर लाना
बादशाह को लड़कियाँ बहुत पसंद है
परेशान मत होना
बादशाह रहमदिल है
बिटिया को ज़्यादा नही तड़पायेंगे
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वो बूढ़ा पगला गया है
बोलता है बादशाह नौकर है
और रिया़या मालिक
तुम उसकी बातों पर ध्यान मत दो
तुमको तो अच्छी तरह पढ़ाया गया है न
मुल्क की क़िस्मत तय करने का हक
बादशाह को ही है
रिया़या तो सिर्फ ताली बजाने के लिये है ।
उस बूढ़े ने बादशाह की ताक़त
को नही देखा है
हुकूमत के सिपाही
बादशाह के बहुत ही वफ़ादार है
रियासत की सलामती के लिये
तुम्हारी बेजान हड्डियों को चटनी की
तरह मसल देना बहुत छोटा सा काम है ।
लेकिन बादशाह तुम से बहुत प्यार करते है
तुम भी हुकूमत से वफ़ादारी दिखाओ
तुम उस बूढ़े का साथ मत दो
फिर देख लेना
हमारे रहमदिल बादशाह
किस तरह उस पागल को
ज़िंदा दफ़ना देंगे
तुम उस जश्न को ज़रूर देखना
और जम कर ताली बजाना ।
बादशाह बहुत ख़ुश होंगे
और बख्शीश भी देंगे ।
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-----------डाॅ शैलेन्द्र मिश्रा की क़लम से

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