Friday, August 30, 2013

राजनीती अच्छे लोगों के लिए है ही नहीं....अ

दोस्तों,

कुछ लोगों का कहना है कि राजनीती अच्छे लोगों के लिए है ही नहीं....अच्छे लोगों का राजनीती में क्या काम ? और इसी तर्क को सामने रखकर वो अरविन्द केजरीवाल और साथियों द्वारा "आम आदमी पार्टी " बना कर राजनीती में आने के फैसले के खिलाफ भी रहे....

इनमे से बहुत से लोग ऐसे जो यहाँ तक कहते हैं कि एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्हें अरविन्द और उनकी नीतियाँ बहुत पसंद है पर एक राजनेता के तौर पर वो उन्हें नापसंद करते हैं क्योंकि राजनीती अच्छी चीज़ नहीं है और उनके लिए अरविन्द भी राजनीती में आते ही "बुरे" बन गए हैं .......

इन लोगों से हम एक ही बात पूछना चाहते हैं कि क्या राजीनीति सिर्फ बुरे का पर्याय है ?

क्या राजनीति का मतलब सिर्फ लूट, भ्रष्टाचार, दमन और अत्याचार है ?
क्या राजनीति का मतलब सिर्फ सत्ता की मलाई चाटना भर रह गया है ?
क्या राजनीती का मतलब सिर्फ पैसे और ताक़त के बलबूते पर जनमानस को दबाना है ?
क्या राजनीती का मतलब सिर्फ संसद में वोटों की खरीद-फरोख्त कर कुर्सी बचाना है ?
क्या राजनीती का मतलब कुछ परिवारों की वंशवाद की जहरीली बेल का पोषण है ?
क्या राजनीती का मतलब अवैध तरीके से धन, जमीं और सम्पति की अनुचित लूट है ?

नहीं..कदापि नहीं- हमारा ये मानना है कि राजनीति का अर्थ होता है- बिना किसी भी लालच के पूरे जनमानस के भले को सोचते हुए सर्वसम्मति से काल-खंड के व्यवहार के अनुसार, कानून-सम्मत, नीति-परक, न्यायपूर्ण और लोकहितकारी निर्णय लेते रहना...

राजनीती- यह एक सतत प्रक्रिया है....इसमें लगातार बदलाव होते रहते हैं....असल में इस परिभाषा को आज की गन्दी राजनीति ने इतना बदनाम कर दिया है कि अब अच्छी राजनीति के बारे में हम सोचते तक नहीं हैं......

तो फिर क्यों नहीं अच्छे लोग राजनीती में आते ? क्या एक छोटे से जख्म को नासूर बन जाने दिया जाये? क्या इस मुल्क के प्रति हमारी कोई जिम्मेदारी नही बनती? क्या जिस सरजमीं को हम "माँ" कहते और मानते है तो ये हमारा फ़र्ज़ नहीं बन जाता कि हम उसकी अस्मिता, गौरव, वैभव और शान को नुक्सान पहुँचाने वाले किसी भी नापाक हाथ तो रोक लें ? क्या अच्छाई पर बुराई को राज करने दिया जाये ?

क्या करोड़ों लोगों को अब भी भूखा ही सोने दें ? क्या लाचार बच्चियों और महिलायों को यूँ ही हवास का शिकार होने दें ? क्या यूँ ही करोड़ों लोगों को खुले आसमान के नीचे ठण्ड और गर्म लू से तड़प तड़प कर मरने दें? क्या यूँ ही अपने सैनिकों के सिर काटने दें ? क्या यूँ ही बिना हस्पताल के इलाज़ के लाखों लोगों को मौत के मुंह में जाने दें ? क्या यूँ ही बिना अच्छी सड़क, बिजली, पानी , स्कूल के करोड़ों लागों को बस जानवरों की तरह जीने दें ?

आखिर कब तक सिर्फ साल में एक बार दशहरा के दिन इस मुल्क के अच्छे लोग " बुरे पर अच्छाई की", असत्य पर सत्य की", अधर्म पर धर्म की" जीत के इतिहास को याद कर खुश होते रहेंगे या कभी ऐसा भी होगा कि वो लोग खुद भी एक नया इतिहास बनायेंगे ?

क्यों नहीं इस आम जनता में से ही कोई नया भगवान राम या कृष्ण सा अवतार पैदा होकर अन्याय, अधर्म, असत्य, असमानता, अत्याचार का नाश करता ? क्यों नहीं अब देश में अच्छे लोग आगे बढ़कर हनुमान जी और सुग्रीव की तरह इस नए अवतार का साथ देते ताकि पाप की लंका को नेस्तनाबूद किया जा सके ?

इन्ही किस्म की भावनाओं के साथ "आम आदमी पार्टी" के मंच का निर्माण किया गया ताकि राजनीती से नफरत करने वाले अच्छे लोग भी राजनीती में आकर इसे पुनर्भाषित कर सकें.....तो फिर इसका विरोध क्यों ?

क्या समय के हिसाब से लोकहितकारी निर्णय लेना कोई जुर्म है ?
क्या विचारों की सीढियाँ चढ़ते हुए अपने दृष्टि के आयाम को नयी ऊंचाई देना गलत है ?
क्या किसी कल्याणकारी विचार को नई दशा और दिशा देना अपराध है ?

क्या इलाज करते हुए डॉक्टर अपना निर्णय बदल कर कई बार सिर्फ दवाइयों की जगह एकदम से आप्रेशन का निर्णय नहीं लेते ? क्या भगवान कृष्ण को अपने निर्णय बदलने की कूटनीति के कारण " रणछोड" नहीं कहा जाता ? क्या कौटिल्य ( चाणक्य) ने नहीं कहा था कि अगर मेरे देश के हित के बीच में आता है तो फिर मैं "साम-दाम-दंड भेद " से उस बाधा को पार करूँगा ?

अब सिर्फ राजनीती की आलोचना करने के कुछ नहीं होगा...अब आँखें बंद करके बैठने से कुछ नहीं होने वाला....या तो अच्छे लोग राजनीती में आकर इसमें आमूल-चूल परिवर्तन करने के लिए हाथ बढाएं या फिर देश और समाज के हालातों पर शिकायत करना छोड़ दें और चुप-चाप अपनी चाय पीते रहे....अब आप या तो सत्य के साथ हैं या उसके खिलाफ- अब बीच का कोई रास्ता नहीं बचा है....


अगर हम एक बेहतर कल चाहते हैं तो इस मुल्क के हर अच्छे इंसान को इस समाज की गंदगी दूर करने में अपना योगदान देना ही होगा....

और अपना योगदान देते हुए अपने जेहन में किसी महान शायर की ये दो पंक्तियाँ हमेशा याद रखियेगा-----

"सूरज तो नहीं हूँ, महज एक अदना सा दिया हूँ मैं,
जितनी मेरी बिसात है, उतनी रौशनी कर रहा हूँ मैं ".....

जय हिंद !! वंदे मातरम !! भारत माता की जय !!

डॉ राजेश गर्ग.

http://www.facebook.com/photo.php?fbid=620077788015356&set=a.454846544538482.96610.454826997873770&type=1&theater

No comments:

Post a Comment