Friday, August 30, 2013

हमारा धर्म क्या है ये जानने की फुर्सत ही नहीं हमारे पास ...

कई बार ऐसा नहीं लगता की हम इतने व्यस्त हो गए है की हमारा धर्म क्या है ये जानने की फुर्सत ही नहीं हमारे पास ....इसलिए ये काम दूसरों पर छोड़ दिया है .....जो उसने बता दिया ...बस वही धर्म ....या जिसमे कोई स्वार्थ सिद्ध हो जाए वही धर्म है ....साधारण रूप से ऐसा मान लेते है ...ऐसा नहीं की सब मेरी तरह ही नालायक है ...बहुत सारे अच्छे भी है ....जो सोंचते है ....
आज गलती से हमने भी सोंचने की कोशिश की ...तो हमें जो पता चला वो ये की ....
धर्म सामुदायिक नहीं होता है .....धर्म व्यक्तिगत होता है .....
जिसके कर्म अच्छे .....उसका धर्म अच्छा ...और कर्म बुरे ..तो धर्म बुरा .....
धर्म के बारे में मेरा मानना है की .....
वेदकाल में सिर्फ दो ही धर्म थे .....सुर और असुर ....देवता और दानव ....
अब जिनके कर्म अच्छे थे ....वो देवता ....और जिनके बुरे वो दानव ....
अब हिन्दू धर्म में तो जिंदगी से जुडी हर चीज़ के लिए एक भगवान् है ...जैसे ज्ञान के लिए सरस्वती माता ....हवा के लिए वायु देव ....पानी के लिए इंद्रा देव ....
तो मुझे लगता है की ...उस काल में कुछ लोगो के समूह होंगे ...जिनके जिम्मे ये काम रहे होंगे ....और इनके नायक जो थे ...वो उस काम के, भगवान् के नाम से जाने जाते है ....
तो मेरी समझ से धर्म कुछ व्यक्तिगत सा लगता है .....पता नहीं ...पर एक विचार तो है ????.....
और ब्रम्हा विष्णु महेश ....राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री और गृह मंत्री रहे होंगे ...
लोकतान्त्रिक भी है हिन्दू धर्म ....बस जब भगवान् थे तब भ्रष्टाचार नहीं था ....फिर सतयुग से कलयुग तक ...
और हमारे देश की व्यवस्था में नेता भी ....लालबहादुर, पटेल जी से होते हुई ....कहाँ तक पहुँच गयी ...भ्रष्टाचार बढता गया ....
जो व्यवस्था को सुधार वापस लालबहादुर और पटेल तक ले जाने की कोशिश ना करे ....वो देश का हित नहीं कर सकता ....


पुनर्जन्म और कर्मो के आधार पर फल ....ये इसी ओर इंगित करते है ...कैसे?,..बस थोडा सोंचने की जरुरत है ...

और हिन्दू धर्म का तो स्वरुप ही बदलाव रहा है ......श्री राम से लेकर ....श्री कृष्ण जी तक .....धर्म हमेशा वही रहा ...मानवता का विकास ....सत्य की रक्षा ...पर आदर्श थोड़े बदलते गए ....स्वामी विवेकानंद भी हिन्दू धर्म ही है ....और आर्यसमाज भी ....गुरुनानक देव जी भी ....और भी बहुत सारे .....और मुझे विस्वास है की ...सभी,......
उसी सनातन हिन्दू धर्म का ही हिस्सा है ......इसीलिए ये सनातन था .....सनातन है ......
और सनातन का अर्थ होता है ...जो हमेशा रहे .....और हमेशा वही रहता है ..जो बदलता रहता है ....शरीर बदल तो सकता है ...पर आत्मा वही रहती है ....और आत्मा ...आत्मा तो पमात्मा का ही हिस्सा है ....
वास्तव में ....गीता...बात ही निराली है .
गीता सिर्फ ग्रन्थ नहीं सागर है ...मथने पर सब मिलेगा ...किसे क्या लेना है ...वो ले ले .....
...हर बात का जवाब है ..बस समझना आता हो ....गीता जी ...कर्म ...धर्म ...और ज्ञान ...तीनो है ....
अंत में फिर यही बोलूँगा .....धर्म व्यक्तिगत है मेरी समझ से ....सामुदायिक नहीं ......
और त्यौहार धर्म में ..सामुदायिक तत्व देने के लिए है ...

माफ़ करना बहस मत करना ......क्योंकि धर्म तर्क से भी ऊपर होता है .....मेरा तो पक्का ...धर्म वो जो करो ....जो मानो ....
जय श्री कृष्ण .....
नन्द के आनंद भयो,....जय कन्हैया लाल की

हे ब्रज में आनंद भयो,....जय यशोदा लाल की
नन्द के आनंद भयो,...जय कन्हैया लाल की
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ......गौरवान्वित करने वाला त्यौहार है ये ......शुभ जन्माष्टमी .....नागेन्द्र शुक्ल


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