Friday, August 30, 2013

चोर ki शिकायत करने जाओ,.. तो डकैत मिलते है ...

अजीब हालात है ....चोर शिकायत करने जाओ,.. तो डकैत मिलते है ...
दिल्ली कि एक प्राइवेट बस में मैं और मेरा दोस्त चढ़ते है ...थोड़ी ही दूर जा कर पता चलता है की जेब से मोबाईल चुरा लिया गया ...चुरा क्या छीन लिया गया ...इधर हमने शोर किया आवाज ऊँची की ...उधर चोर ने इशारा,....और तेज़ी से चलती बस थोड़ी देर के लिए धीमी होती है ....वो चोर चलती बस से कूद जाता है ...और बस वापस रफ़्तार पकड़ लेती है ...
और हम बस के दरवाजे पर लटके कूदने की हिम्मत जुटाते और चिल्लाते है ...पर बस धीमे होने की जगह और तेज़ होती है ...फिर करीब 3/4 सौ मीटर के बाद रोक दी जाती है ....
बस के धीमे होते ही ...कूदे ...पीछे दौड़े ...और बस अपने रास्ते चल आँखों से ओझल .....
इतनी देर में ना ही चोर ....ना ही चोर का आता पता ...कहाँ गया ....
साफ़ समझ आता है ...की बस का स्टाफ और चोर की मिलीभगत है ...गुस्सा आता है ...और सोंचते है की पुलिस में शिकायत करते है ...100 पर फोन किया ...फिर 1 घंटे से ज्यादा रात के समय ..सुनसान सड़क पर इंतज़ार ....पर देश की व्यवस्था देख ख़ुशी होती है ...और आखिर पुलिस आती है ...
अब शुरू होता है ...शिकायत दर्ज करने का नाटक ...
अजीब अजीब सवाल ....तुम पहचानते हो उस चोर को ...जवाब हाँ अच्छी तरह से ...
पुलिस ...सोंच लो ..नौकरी पेशे वाले आदमी हो ...रोज़ रोज़ थाने आना पड़ेगा ...
जवाब अरे सर वो बस का स्टाफ भी मिला है .....पुलिस ...बकवास करते हो कैसे कह सकते हो ..बस का नंबर क्या था ...नंबर भी बता दिया ...
पुलिस तो शिकायत में बस के लोगो का भी नाम लिखवाना चाहते हो ...जवाब हाँ ....पुलिस सोंच लो रोज़ आना जाना है इस सडक पर ...FIR करवाओगे तो ....नौकरी छोड़ रोज़ थाने फिर कोर्ट कचहरी के चक्कर ....कर पायेगा इतना ...
सर कोई नहीं ...पर आप चोर को तो पकड़ो ...
पुलिस एक बार फिर सोंच लो ...एक बार लिख गयी तो परेशान हो जाओगे ....
सर आप रिपोर्ट लिखो ...पुलिस अरे कितने का मोबाईल था ..उससे ज्यादा तो आने जाने में लग जायेंगे ...
अरे सर बस अभी ...३/4 स्टॉप आगे ही होगी ...अभी क्यों नहीं चलते ...बस वालो से पूंछो उनको सब पता है सर ....पुलिस पागल है क्या ...उधर तो नॉएडा है ...उत्तर प्रदेश ...हम दिल्ली पुलिस है ...
अरे सर अजीब बात है ....बस नॉएडा से दिल्ली आ जा सकती है ..पर पुलिस नहीं ...
पुलिस .....चुप ...अब एकदम चुप ...हमें कानून बताता है ...
सर चलो आप रिपोर्ट तो लिखो .....नहीं लिखते ....मोबाईल चोरी हो गया ....
सर चोरी नहीं हुआ ..उसने भरी बस में छीना है ..चाकू भी दिखाई जब हाँथ पकड़ा था ...
पुलिस ...अभी तू कह रहा था की चोरी हुआ है ...अब कह रहा है की छीना है ...बंद कर बकवास ...
अरे सर आप रिपोर्ट तो लिख लो ......
और ये क्या गाडी स्टार्ट ...और चल दी ....
अरे सर रिपोर्ट ....सुबह थाने में जा कर लिखवा देना .....
फिर सड़क सुनसान रात का अँधेरा ....चल दिए पैदल घर की ओर ....
सुबह फिर हिम्मत जुटाई ...थाने पहुँचे ...सर रिपोर्ट लिखवानी है ....
इंतज़ार ..इंतज़ार घंटो का ..फिर सवाल ...कहाँ हुआ ये सब ...साहब मयूर विहार वाली रोड ...अच्छा ...
फिर इधर क्यों आया है ...मयूर विहार थाने जा ....
अरे सर वो कल 100 नंबर पर फोन किया था ...पुलिस आयी थी ...पर रिपोर्ट नहीं लिखी ...
अच्छा तो अब ...पुलिस की गलती है ...अबे तू चोरी की रिपोर्ट लिखाने आया है या पुलिस की ..भाग ...
अब क्या करता ....ऑफिस से मेनेजर का फोन ...आज छुट्टी क्यों मार ली ...
नहीं सर छुट्टी नहीं ...थोड़ी देर होगी ....
फिर वही धाक के तीन पात ....
समझा दिया सारे दोस्तों ने ....पैसे जोड़ कर मोटर साइकिल ले लो ...बस में तो ये रोज़ रोज़ का चक्कर है ...कहाँ लिखवाओगे मोबाईल चोरी की रिपोर्ट ....बुरे फँसोगे ...परेशान हो जाओगे ....
दो दिन बाद ...वो फिर दिखा बस में ....
पकड़ा ..चिल्लाया ...बस से उतर ...बस के सटाफ के साथ मिल ...काफी पिटाई भी हो गयी ....
100 पर फोन ...फिर वही कहानी ...2 घंटे का इंतज़ार ...फिर मैनेजर का फोन ..ये रोज़ रोज़ लेट आने का चक्कर नहीं चलेगा ...लम्बी चौड़ी डांट ....
दोस्तों ने फिर समझाया ....यार मोटर साइकिल खरीद ले ...बस में तो ऐसा ही रहेगा ....
बस ...बस समझ आ गया ....की जिंदगी चलाने के लिए ..नौकरी जरुरी है ...और उसके समय पर ऑफिस जाना ....
कहाँ ...लिखवा पायेंगे रिपोर्ट ...भूल जाओ की मोबाईल था ..भूल जाओ की मार भी पड़ी थी ....
पैसे जोड़ो ....मोटर साइकिल खरीद लो ...सारी परेशानी हल हो जायेगी ....

पर क्या इस तरह ..मोटर साइकिल खरीद परेशानी हल हो जायेगी ?.....क्या हो सकती है हल परेशानी कुछ भी खरीद ?.....
बस ऐसे ही भागते रहे ..परेशानियों से ....पर भागे कहाँ ...एक परेशानी छोड़ ...दूसरी में फँसते रहे ...
आम आदमी ....आम आदमी की तरह बस भागते रहे ...कभी लड़ने की सोंची पर .....किस से लड़ते ..या यूँ कहे की किस किस से लड़ते ....हाल ये की जब आप बस के गुंडों से पिट रहे तो ....बस में बैठी बांकी सवारी को ....कितना भी बताओ की ये चोर है ...छीना था मोबाईल इन्होने ....पर नहीं ...
मजाल है की बस पर बैठा कोई एक आदमी भी हो ...जिसे ऑफिस जाने की देरी ना हो रही हो ....सबको जल्दी है ...की जल्दी से मारो - पीटो ..कुछ भी करो ..पर बस ..बस जल्दी मेरे स्टॉप तक पहुँचाओ ...देर हो रही है .....
कुछ ऐसे ...हूँ ऐसे क्या ..ये तो कुछ नहीं ...हालत इससे भी बत्तर है ....
चोरी की रिपोर्ट करवाने जाओ तो डकैत मिलते है ......जो रोज़ लुटते है ..उन्हें देर होती है ...जब कोई दूसरा लुटता है ....
बस चल रहा है देश ...चल रही है व्यवस्था ...चल रही जिंदगी यूँ ही लुटते - पिटते - घसीटते ....

ये बात 2006 की है ...तब अरविन्द का तो नाम भी नहीं सुना था ....पर 2013 आते - आते ...और अरविन्द जी का नाम सुनते और समझते ...कुछ तो हिम्मत बंधी है ....ये समझ आया है की ...मोटर साइकिल खरीदने से ..बचोगे नहीं ...हाँ उसमे पर पर किसी दूसरी परेशानी में फंसोगे ...जरुर फँसोगे ....क्यों?....क्योंकि व्यवस्था ही ऐसी है की .....आम आदमी ...आम आदमी एक चूहा है ...जो रोज़ इधर उधर धूमता है शेर बन ...पर बिल्ली ..बिल्लियाँ बैठी है ..घात लगाये ...और इन बिल्ली से बचाने के लिए जो कुत्ते पाले गाये है ....वो बिल्ली से मिल बाँट खा रहे है ..चूहों को ....
पर चूहे ..तो चूहे है ...डरते रहेगे ....कहते रहेंगे की कुछ नहीं हो सकता इस देश का ....
पर नहीं कुछ चूहों ने सोंची है ...बिल्ली से नहीं ..कुत्तो और भेडियों से टकराने की ....इस व्यवस्था को बदलने की ...
रास्ते दो ही है ..या तो निकालो बाहर मकानों से,...जुडो ...और जंग करो बैमानो से ....
या यूँ ही डर - डर कर मोटर साइकिल खरीदते रहो ...
वो मोबाईल था ..कुछ दिन बाद नया आ गया ....

पर वो बहन दामिनी ....जो चली गयी ...वो कैसे वापस आएगी ....क्या है कोई जो कहे नहीं ...अब दामिनी नहीं होने देंगे ...हम लड़ेंगे ....

है एक है जो कह रहा है ...कह नहीं रहा ...लड़ रहा दामिनी, गुडिया और मेरे और तेरे लिए ...पर शायद आपको हमको अभी भी ...मैनेजर का फोन आ रहा ...ऑफिस जल्दी जाना है ...क्योंकि परेशानी से बचने के लिए ...मोटर साइकिल खरीदनी है ...पर मोटर साइकिल खरीद ...कब तक बचोगे मेरे दोस्त .....नागेन्द्र शुक्ल


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