Friday, December 7, 2012

उम्र गुजर जाती है ,इक आशियाँ बनाने में,लोग बाज़ आते नहीं ,बस्तियां जलाने में

शीला जी, आपको शायद पता ना हो की घर होता क्या है ? जो तोड़ दिए ....और ऊपर से ये गुरुर भरी हंसी ...काफी खुश होंगी आज आप ....
क्यौकी सीबीआई बूते पर आपने आज ही वालमार्ट को लाने का रास्ता साफ़ किया .....
और आप इतनी कर्मठ की देखो ...ओखला में ....wallmart का नारियल फोड़ने के लिए जमीन भी खाली करवा ली ...
और अपनी पुलिस की ताकत से .....आम आदमी की आवाज़ को जील भेज दिया ....
सच में कितनी ...सफलता मिली आपको ...हाल के दिनों में ......और आगे भी सफलता मिलती रहे इसके लिए आज - तक चेनल पर एक नुक्कड़ नाटक भी करवा दिया
क्या बात है ......चहरे की चमक ...से झलक रही है आपकी सफलता ....

पर न जाने मेरी नज़र बार - बार ओखला के एक बूढ़े की चहरे की झुरियौं में ही अटक जाती है ...जिसकी जवान तो काँप रही है ...
पर आँखे चिल्ला रहीं है ...और कह रहीं है ..."उम्र गुजर जाती है ,इक आशियाँ बनाने में,लोग बाज़ आते नहीं ,बस्तियां जलाने में"
कहा रही है उसकी आँखे ..तो तीन के पतरे हटायें है ...जो टट्टर जो तिरपाल उखाड़े है ....क्योँ नहीं समझती की वो घर थे हमारे ...
कितने नादान है वो ....जो नहीं जानते
घर बनाना .....इतना आसन भी नहीं होता .....

क्या लगता है एक माल बनाने में ....बस ईंट रेता सीमेंट जोड़ कर खड़ा किया.....कंकाल नज़र आता है ...
उनको ...जिनके घर उजाड़ जाते है ....एक माल बनाने में ...
और आपके उस TV वाले नाटक में थे तो रवि भी , और मणि भी ....
पर शंकर तो एक ही था ......जो की नीलकंठ हैं, मलंग है, विषधर है ....फ़कीर है ....
था तो वो ख़ास ....पर देख के दुःख मेरा .....और गुरुर तुम्हारा ...
अब बन गया है आम .....जो तुम्हारे लिए तो है बे - दाम ...
पर कोहिनूर है हमारा ...नागेन्द्र शुक्ल

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