Tuesday, January 8, 2013

सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी है...पूजे जग सारा .....

है बहुत सारे ....पर दर्द बड़ा है सबसे .....
सरहद पर एक जवान .....
हो जाता है ..कुर्बान ....
गिनते - गिनाते ...मर्ज, हमारे - तुम्हारे ....
वक्त गुजरा कितना .....
इस रिसते जख्म को रिसते ....रिसते  .....
बस एक बार  ....इनको बता दो ....की ...
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी है...पूजे जग सारा .....
जब ..दमक रहा हो ....शौर्य तुम्हारा ....
चमक रहा हो ...लहू तुम्हारा ....नागेन्द्र शुक्ल



है लिए हथियार दुश्मन ताक़ में बैठा उधर
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी है...पूजे जग सारा .....
जब ..दमक रहा हो ....शौर्य तुम्हारा ....
चमक रहा हो ...लहू तुम्हारा ....
अब कौन चुकाएगा ...तुम बोलो ....
इन दो गर्दन का मोल ....
कलम, आज बस इनकी ही .....जय बोल
.....नागेन्द्र शुक्ल

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