Saturday, January 26, 2013

दुगना लगान .....चुका रहे है हम

दुगना लगान .....चुका रहे है हम एक प्रत्यक्ष कर (TAX) जो सरकार को दे रहे है ...और दूसरा परोक्ष,........... टैक्स तो हम, साल में एक बार सरकार को दे देतें है ....और दूसरा वो,....जो वसूला जाता है हमसे और आप से रोज रोज़ किस्तों में।
अब आज की बात है  सड़क के किनारे टोकरी में उबले चने बेंचने वाले से ....एक पत्ते का दाम पूंछा,...  बोला 25 रुपये .....थोडा डर गया की अभी तक तो बड़े -बड़े माल ...की दुकानों से खाने में डर लगता था ...सड़क किनारे बाल्टी में भी ये भाव ....पूंछा भाई इतना महँगा क्योँ भाई ....तुम्हारी तो कोई दूकान भी नहीं ...बिजली का खर्च न टीवी/ पंखे का ...फिर भी इतना क्यों .....गुरु तुमने तो बहुत कमा लिया होगा .....
वो बोला साहब ...बस किसी तरह नमक रोटी का जुगाड़ होता है .....मैंने कहा भाई ..margin तो काफी है अगर दिन में 50 पत्ते भी बेंच लिए तो बहुत हो गया .....
बोला साहब ..बेचता तो हूँ ....पर दिन भर में ....जो फ्री वाले पत्ते जाते है ...उनसे लगत बढ़ जाती है ......और मुनाफा कम .....नगद गया सो अलग ....
इतना बोलते - बोलते ....दूसरी तरफ इशारा किया ....देखा तो हमारे सुरक्षा कर्मी खड़े थे ....हम्म ....

वो बोला साहब और भी हैं ...दूसरी तरफ ....पार्किंग वाले लडके खड़े थे ....अब चौका ..इनको भी ...बोला ये सब एक नेता जी के आदमीं है ....इनका मूड अगर खराब कर दें तो ......नगर पालिका ...की गाडी आ जाती है ....रेहड़ी उठाने .....
ये दूसरा लगान हम रोज़ चुका रहें है ...पर क्यों ?.....सिर्फ इसलिए क्यूंकि हम सोंच लेतें है ..की कुछ नहीं हो सकता इस देश का .......इस आदत को बदलना पड़ेगा .......कुछ प्रयास तो करना पड़ेगा ......

सही गलत आप जानो, पर ऐसा लगता है की कुछ सरकारी पदों के (भ्रष्ट ) कर्मियों को ...अगर सरकार तनख्वाह ...देना भी बंद करते ....और नौकरी बनी रहे .....तो भी ये इसकी बजाय कोई दूसरा काम करना पसंद नहीं करेंगे ......
अब ये क्या करें मजबूरी तो इनकी भी है ....महंगाई इनके लिए भी ........नेताओं के साथ साथ ..इन भ्रष्ट अफसरों और नौकरों भी का पेट पालना .....आम आदमी का ही दाइत्व तो है .........अब इसके दो ही समाधान है .....या तो चुकाते रहो दुगना लगान .....या फिर जागो .....और पूछो ....थोडा लड़ो ....क्या पता आपके प्रयास से ...सूरत बदल जाये ......नागेन्द्र शुक्ल

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