Thursday, November 22, 2012

सुकून इस बात का, की प्रयास होने लगा ।।

संसार में जीना एक विद्द्या है।
अपने सुख के लिए जीने वाले, को ये कला आती ही नहीं
कुछ देने की, कुछ करने की इच्छा,.....ही सामाजिक आधार है
कुछ चाहने से हम पराधीन हो जाते है और
अपेक्षा ही उपेक्षा की जननी है
जो किसी से कुछ न चाहे, बस वही स्वाधीन है ।।
ये इच्छायें ही है जो किसी को, राजा से  भिखारी ....
और भिखारी से राजा बना देतीं हैं ।।
संसार में रह कर,....स्वतंत्र जीना ही तो जीना है
प्रतिकूल परिस्थिति में भी अडिग रहने से,...
निश्चय ही विजय होती है ।।
घोर अँधेरी रात में ...एक चिंगारी भी नज़र आती है
और रात के बाद ही ....भोर सुखद होती है ।।
रहत मिली है मन, चलो कुछ ख़ास होने लगा ।
आम आदमी भी अब, राजनीती में आम होने लगा ।।
ग्रहण लगा सूरज, निकलने को बेताब है ।
सुकून इस बात का, की प्रयास होने लगा ।।
....हम कौन .....हम और आप .....आम आदमी
..........नागेन्द्र शुक्ल

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