Thursday, November 8, 2012

कैसी दिवाली ....कौन सा बाल दिवस ....हमारे लिए ...तो सब एक जैसा है .....65 साल गुजर गए .....और स्थिति ...बद से बदत्तर ....कैसा लोकतंत्र

त्यौहार का उल्लास आज इस पॉश इलाके में नज़र आ रहा है, इसके पीछे की बस्ती में एक छोटा बच्चा यह सोच रहा है - कि
क्या बंगलो की सजावट का मतलब ही दिवाली होता है ?
अपने पिता से पूछता है कि हमारे घर में बिजली की झालरे क्यों नहीं लग सकती?
 - पिता क्या समझाए लेकिन कोशिश करता है कहता है
"बेटा यह दिल्ली है यहाँ बिजली चोर नेता या उनके चमचे ....या रिश्तेदार ...या फिर टैक्स चोर व्यापारी या घूसखोर अफसर ही
बिजली की झालर लगा सकते है - आम आदमी केवल देखने के लिए है ।
फिर लड़का एक सवाल और दाग देता है - पापा यह आम आदमी क्या होता है ?
 पिता झल्ला के जवाब देता है की आम आदमी
" वो व्यक्ति या आदमी जिसके ऊपर सारे सरकारी नियम लागू होते है,......जो सिर्फ आरोप लगने तक से घबराता है ...जो बिना जांच के दोषी करार दिया जाता है ....जो वोट देने जाता ...जो खता कम ...खाने के बारे मैं सोंचता ज्यादा है ....जो देश को बनता है ....दिन रात काम करता है ....फिर भी कुछ नहीं पता है "
बच्चे को समझ में नहीं आता .....और गुस्साते हुए बोलता है ...समझ गया ...जो त्यौहार के नाम से दर जाता है ...और चिल्लाता है ...वही  आम आदमी होता है,.....

शायद वो हमारे कुटिल लोकतंत्र पर हँस रहा था,......अपने पिता या आम आदमी पर नहीं  - बच्चे सब जानते है, बचपन से ही समझ जाते हैं ....की सरकार क्या करती है ....
अभी आ रहा 14 November ....होगा चाचा जी का Happy Birth Day .....छापेगा अखबार पर ....बच्चों से बहुत ...प्यार करते थे .....
बस सुना ही है ...क्या पता ....कितना सच ...कितना झूठ ....
क्या आपको को पता है .....
हमें तो नहीं .....
हम .....हम कौन .....हम और आप .....आम आदमी ......
...नागेन्द्र शुक्ल ......आम आदमी के विचारों पर आधारित ....Thanks

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