Thursday, November 15, 2012

है अगर कुछ शर्म बची ...तो करो कुर्सी खाली,...की जनता आती है ...करो कुर्सी खाली,......

लूट के घर जिसका, बैठे हो महल सजा, अपना
समझते हो की हम,.... ..भूल जायेंगे,.....
तुम्हारी बातों में फिर,... फंस जायेगे,.....
तुम लूटते रहोगे ......हम लुटते रहेंगे,.....
ये बता दे तुम्हे की .....अब ये न होगा,......

हम समझते थे तेरी चालें ...हमेशा से,....
माफ़ करते रहे,.......तुम्हें वर्षों से ......
इस उम्मीद में की ...सुधारोगे कभी,.....
पर तुमने तो सारी हदें तोड़ीं,.........

जो देती थी ...अंडा सोने का,....
उसी मुर्गी (आम आदमी) पे बुरी नज़र डाली,.....
हम बैठे थे भरोषे तेरे ......
पर धोखे की अति कर डाली,.....
अब आँख खोल के देखा, तो पाया ...
कि तुमने (नेताओं) तो कर दी ....
पूरी दाल ही काली ।।

है अगर कुछ शर्म बची ...तो करो कुर्सी खाली,...
इतनी गंध भरी तुममे (भ्रष्ट नेताओं),......की,
जिस गली से गुजरो ...........वो लगे नाली,.......
हम साफ़ करेंगे,....हर गली .......हर नाली,....
की जनता आती है ...करो कुर्सी खाली,......
....नागेन्द्र शुक्ल

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