Tuesday, November 13, 2012

इन मुंडेरों पे कोई दीप ना धरने आया .

"आखँ की छत पे टहलते रहे काले साए,
कोई पलकों में उजाले नहीं भरने आया,
कितनी दीवाली गयीं ,कितने दशहरे बीते,
इन मुंडेरों पे कोई दीप ना धरने आया ..!"(Dr. Kumar Vishwas)
इन घरों में कभी जला चूल्हा, कभी जलने नहीं पाया
हाथ थाम कोई, शुभ दीपावली ना बोला
बस इनके बच्चो को सुबह, करकट में
जिन्दा पटाखे बीनते हुए पाया ।।
......नागेन्द्र शुक्ल ....

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