Saturday, July 6, 2013

जिस बुढ़ापे में चार धाम की यात्रा करनी चाहिए उस उम्र में जवान लड़कियां चाहियें

शर्म मगर इनको नहीं आती..........

जिस बुढ़ापे में चार धाम की यात्रा करनी चाहिए उस उम्र में जवान लड़कियां चाहियें उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के इन नेता जी को.....कुछ तो शर्म -लिहाज रख ली होती नेता जी ? क्या अपने घर की बेटियों और पोतियों को भी दिन-रात यूँ ही हवास भरी नज़रों से देखते रहते थे ?

ये चुन कर आते हैं ना ? जन प्रतिनिधि कहलाते हैं ? पर क्या ये वाकई में जन प्रतिनिधि कहलाने योग्य हैं?

जन प्रतिनिधि तो वो होता है जो अपने इलाके के लोगों की संस्कृति, सभ्यता, आचार- विचार, व्यवहार, इच्छाओं, सपनों, तकलीफों और उम्मीदों का प्रतिनिधित्व करे.....सभी लोग संसद या विधान सभा में एक साथ बैठ कर फैसला नहीं ले सकते इसीलिए पूरे विश्व में ज्यादातर मुल्कों में चुनाव करवाए जाते हैं ताकि उस इलाके के सर्वश्रेष्ठ विद्वान्, ज्ञानवान, बुद्धिमान, चरित्रवान , समझदार, विश्वसनीय , दूरदर्शी, सर्व-समाज लोकहित चिन्तक, जुझारु समाज सेवी, इमानदार, निडर, कर्मठ उम्मीदार को अपना प्रतिनिधि बना कर भेजें ताकि वो उस इलाके, पूरे राज्य और देश में यथास्तिथि देखते हुए जनहित में कार्य करे...

ये चुने हुए प्रतिनिधि एक किस्म से आइना होते हैं उस इलाके के लोगों का....इनकी करनी और कथनी एक किस्म से उस पूरे इलाके के लोगों की सोच और भावनायों का प्रकटीकरण होती है....तो क्या ये मान लिया जाये की इस किस्म के ये नेता "जन भावनाओं " और " जन प्रतिनिधत्व" को ही परिभाषित कर रहे हैं ?

कहाँ हैं वो सब लोग जिन्होंने इन महाशय को समर्थन और वोट देकर विजय बनाया था ? जब ये नेता आपके घर वोट मांगने आया था तो आपने कभी सोचा होगा कि किन नज़रों से इन साहब ने आपकी माँ, बहन, बहु और बेटियों को देखा होगा ? क्या मुंह पर "बहन जी" और " बेटी" बोलने वाले इस दोगले इंसान के मन में आपके घर और मोहल्ले की महिलायों को लेकर कितनी कुत्सित विकृतियाँ पनप रही होंगी, क्या इस बात का अंदाजा लगाया है कभी इसे चुनने वालों को ?

किसको दोष दें ? किसका कसूर निकालें ? कोई सिर पर पिस्तौल लगा कर जबरदस्ती तो पूरे शहर के वोट नहीं डलवाए गए थे ना इनके पक्ष में ? फिर भी क्यों जीत जाता है इस किस्म का नेता ?

ये महज एक और सेक्स स्कैंडल नहीं है कि जिसके मजे कुछ दिन मीडिया वाले और आम जनता लेती रहे और फिर सब कुछ भूल जाये जैसे कुछ हुआ ही नहीं है....

ये घटना इशारा करती है कि बीमारी बहुत गहरे से पूरे जिस्म में फ़ैल चुकी है....अब सिर्फ छोटा -मोटा इलाज करने से काम नहीं होने वाला...अब जन जागरण होना ही चाहिए और चुनावी जनक्रांति को अधिक देर तक टाला नहीं जा सकता....अब वोट की अहमियत सभी को समझनी ही होगी.....

सही वक़्त आ चूका है....अब जब इस तरह के नेता आपके दरवाज़े पर आयें तो आपको पता ही कि आपको क्या करना है.....

और साथ में ये भी पता कर लेना कि इस बार चुनाव में आपका असली " जन प्रतिनिधि" कौन है ताकि कल चल कर इस किस्म की जिल्लत दोबारा ना उठानी पड़े....

शर्म मगर इनको नहीं आती..........

डॉ राजेश गर्ग.

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