Wednesday, July 24, 2013

"65 साल बाद भी हमें क्या नहीं मिला है ? ".......... जरा सोचिये

गूंगे बहरों की है बस्ती , ढोल पीटो
धमधमाहट से जगा डालो सभी को

अब गुहारों से न कोई काम होगा
तल्ख़ नारों से हिला डालो ज़मीं को

लूट का इतिहास वो कायम हुआ है
शर्म आ जायेगी शायद ग़ज़नबी को

आसमां से गिर के वो आया ज़मीन पर
जिसने न समझा किसी की बेबसी को

धार कुछ पैदा करो जोहर दिखाओ
ज़ुल्म की पीड़ा सहन करना न सीखो

आर या उस पार किस है ये लड़ाई
अब न रोको इन्क़लाबी आदमी को.....

"65 साल बाद भी हमें क्या नहीं मिला है ? ".......... जरा सोचिये

किसी भी मुल्क के इतिहास में एसा समय बहुत कम आता है, जब बड़ी संख्या में लोग मुल्क की खुशहाली के लिए खुद राजनीति को बदलने निकल पड़े हौं. हिंदुस्तान आज शायद इसे ही एतेहासिक दौर से गुजर रहा है.

65 साल के गणतंत्र में बहुत कुछ एसा भी हुआ है, जिसे सामने से दिखाकर जशन मनाया जा सकता है. लेकिन जो नहीं मिला, उसे अगर एक लाइन में कहा जाये तो "देश को 65 साल बाद भी एसी राजनीती नहीं मिल सकी, जो आम आदमी में विशवास करती हो, उसकी ईमानदारी में विश्वास करती हो.

हमारी राजनीति ने जिस सिस्टम को बनाया है, वह आम आदमी द्वारा चुने गए नेता पर भरोसा करता है, लेकिन अपने मूल आधार यानि आम आदमी पर ही भरोसा नहीं करता. विशवास की इसी कमी ने बार-बार उसके सपने तोड़े हैं.

इस राजनीति का ही नतीजा है की हिंदुस्तान का जन-मानस अपने नेताओ के प्रति गुस्से और अविश्वास से ऊपर तक भरा पड़ा है. सब कुछ सहने और चुप बने रहने की छवि को तोड़कर आज देश का युवा जनमानस उबल रहा है........ "अगर यह ठीक नहीं हो सकता तो इसे बदल डालो " की आवाज़ आपसी बातचीत की जगह "नारों " में बदल गयी है.

सरकारी दफ्तरों से मिली पीड़ा और उपेक्षा से त्रस्त जनता अब चुपचाप घर लौटने में नहीं, बल्कि सडकों पर उतर कर विरोध करने में यकीन करने लगी है.

पैंतीस साल पहले इसी समाज के लिए एक शायर ने लिखा था : -

इस शहर में कोई बारात हो या वारदात, अब किसी भी बात पर "खुलती नहीं हैं खिड़कियाँ "

तीन साल पहले "कैश फॉर वोट " घोटाले के विरोध में युवाओं को लामबंद करने गए हमारे एक साथी से आई आई टी के छात्र ने पूछा था, "मैं आपके कहने पर इंडिया गेट आ भी जाऊ , तो क्या गारंटी है कि देश में सुधार आ जायेगा." पर अब बहुत बहुत कुछ बदल गया है. "अब कोई एसी गारंटी नहीं मांगता "

जेन नेक्स्ट के नाम से अपनी पहचान बना चूका युवा साइबर सक्रिता से निकलकर सड़कों पर उतर आया है....

जी हां ! अब सच में खुलने लगी हैं खिड़कियाँ .........
 

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