Friday, June 7, 2013

“आप” के कुछ कार्यकर्ता कुछ ऐसा कर जाते हैं कि उसे देखकर, सुनकर, सोचकर यकीन ही नही होता

दोस्तों,

दिल्ली में आने वाले महीनों में होने वाले चुनावी महाभारत की बिसात बिछनी शुरू हो चुकी है...हर एक पार्टी अपने-अपने तरीके से जनता-जनार्दन तक अपनी बात पहुँचाने के लिए जमीन-आसमान एक करने को बेताब है..इस बार “आम आदमी पार्टी” (आप) के चुनावी दंगल में दम ठोंकने की वजह से मुकाबला बड़ा ही रोचक हो गया है...”आप” के आने से सारे राजनितिक पंडितों के पारम्परिक कयास और समीकरण उथल-पुथल हो गए हैं..

“आप” का मकसद सिर्फ चुनाव लड़ना और जितना नही बल्कि इस पूरे तंत्र और व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करना है चाहे वो वंशवाद की विषैली बैल को ख़त्म करना हो या लाल बत्ती के नशे को उतारना हो या छोटे से छोटे चंदे को पारदर्शी तरीके से वेबसाइट पर डालना या अपराधियों को टिकट न देने का फैसला हो !! आम लोगों से पूछकर ही उम्मीदवार का चयन हो या लोगों से पूछकर ही उनकी विधानसभा क्षेत्र का अलग से चुनावी घोषणा-पत्र हो, "आप" की हर चीज़ बाकि पार्टियों से बिलकुल अलग और अदभुत है...

और इसी बदलाव के क्रम में “आप” के कुछ कार्यकर्ता कुछ ऐसा कर जाते हैं कि उसे देखकर, सुनकर, सोचकर यकीन ही नही होता कि कोई अच्छा खासा, खाते पीते घर का व्यक्ति ऐसा क्यों करेगा ? दीवाना न कहूँ तो क्या कहूँ इन्हें....?????? क्योंकि दीवाने ही ये सब कर सकते हैं कोई और नहीं.......

ये क्या जादू कर दिया है अरविन्द, मनीष, संजय, कुमार, गोपाल राय और “आप” की सम्पूर्ण परिवर्तन की मुहीम ने इन पर कि ये दीवाने कार्यकर्ता बिने किसी के कहे, बस अपनी ही धून में दिल्ली के मोहल्लों में घर-घर जाकर लोगों से रद्दी और कबाड़ का सामान मांग रहें हैं ताकि इस कबाड़ को बेचकर जो पैसे इकठ्ठा हों वो पैसे “आम आदमी पार्टी” को दान कर सकें !! और उससे भी एक कदम आगे जाकर उस दान की रसीद कटवाकर उस मोहल्ले/ सोसाइटी के स्थानीय अध्यक्ष / सभासद को भेंट करते हैं ये कहकर कि आपके मोहल्ले के लोगों के दान के लिए शुक्रिया !! वाह भाई वाह ....क्या बात है ......

इन लोगों को देखकर लगता है कि जैसे एक जूनून है जो इनके सिर पर सवार है....पता नहीं वो कौन सी ताक़त या शाक्तियाँ हैं कि ये लोग दीवानों की तरह दर- दर भटक रहे हैं.....इससे बड़ा सबूत और क्या होगा जूनून और समर्पण का कि किसी मकसद को हासिल करने के लिए कोई घर-घर जाकर रद्दी इकठ्ठा करे ??

दिल्ली के लोग हैरान-परेशान हैं कि ऐसा तो आजतक नहीं हुआ...अब तक तो लोगों ने बाकि पार्टियों के कार्यकर्तायों को बड़ी-बड़ी ए.सी. गाड़ियों में शोर मचाते हुए प्रचार करते देखा था पर इस बार ये कौन लोग हैं जो चुपचाप, बिना किसी आडम्बर और शोर-शराबे के अपनी पार्टी की लिए दरवाजे-दर-दरवाज़े घूम रहे हैं ??????

दोस्तों, आप सोच रहे होंगे कि ऐसा करने से क्या फायदा होगा ? महज कुछ चंद रूपए इकठ्ठा हो जायेंगे बस? जी नहीं....सिर्फ ये मकसद तो नहीं हो सकता इन दीवानों का...इनका असल मकसद तो आम लोगों तक “आप” का सन्देश पहुँचाना है...जब “आप” की टोपी लगाये ये दीवाने घर-घर कबाड़ लेने जाते हैं तो सामने वाला शख्श एकदम से हैरान हो जाता है....वो सोचता है कि ये कैसे लोग हैं जो इस तरह से पार्टी के लिए काम करते हैं ? आज जब हर जगह अहंकार, दंभ, घमण्ड, गरूर और अभिमान का काला धुआं समाज के लगभग हर इंसान को अपने आगोश में ले चूका है और लोग अपने को ऊँचा दिखाने और अपनी हैसियत को बढ़ा-चढ़ा कर बताने में झूठ, फरेब और मक्कारी का सहारा लेने तक से बाज नहीं आते, तब ये कौन सी दुनिया के लोग हैं जो अपने लिए नहीं बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए घर-घर रद्दी इकट्ठी करते घूम रहे है ???????????????

इस मुहीम से ये दीवाने कार्यकर्ता इन लोगों से उनकी सबसे कीमती चीज़ पाने में कामयाब हो जाते हैं और वो सबसे कीमती चीज़ हैं उनका “वक़्त” !! जी हाँ दोस्तों, कबाड़ देते और लेते हुए कुछ वक़्त तो लगता है ना ????? बस, इसी वक़्त में ये दीवाने “आप” का सन्देश कहे-बिनकहे सामने वाले घर के सदस्यों को अपने सिर पर लगी जग-प्रसिद्ध “आप” की “टोपी” के जरिये दे देते हैं.....अगर घर के लोगों के “आप” से सम्बंधित कुछ संशय भरे सवाल भी हैं तो फिर लगे हाथ ये कार्यकर्ता जवाब देकर उनके भ्रम/ संशय को भी दूर कर देते हैं...

कुछ जगह तो लोगों ने इनसे कहा भी कि अरविन्द केजरीवाल को तो हमने कभी प्रत्यक्ष देखा नहीं पर आप लोगों के जूनून, हौसले, बेबाकी, निष्ठा और कर्तव्यपरायणता को देखकर ये लगता है कि जिस व्यक्ति के समर्थक इतने जुझारू और समर्पित हों उनका नेता कितना बड़ा, अच्छा, ईमानदार और सच्चा इंसान होगा !!!!

और अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि ऐसे सैनिक अगर किसी सेनापति को मिल जायें तो फिर आधी जंग तो उसने लड़ाई लड़ने से पहले ही जीत ली समझो......बाकि फिर ऊपर वाली की मर्ज़ी.....

ये वो दीवाने है जो जिन्दगी में ज्यादा जोड़-तोड़ नहीं जानते और वतन के लिए अपना योगदान बिना हिसाब-किताब लगाये दे डालते हैं...शायद इन्ही जैसे वतन और समाज के सिरफिरों के लिए ही किसी महान फनकार की कलम से निकला होगा कि-

“ना कर शुमार कि हर शय गिनी नहीं जाती,
ये जिन्दगी है, हिसाबों से जी नहीं जाती”

देश आपका !! वोट आपका !! फैसला आपका !!

डॉ राजेश गर्ग.
garg50@rediffmail.com

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