Monday, June 17, 2013

नरेगा - मनरेगा ...दुनिया की सबसे बड़ी योजनायें

नरेगा - मनरेगा ...दुनिया की सबसे बड़ी योजनायें ...जो अगर सही ढंग से implement की जाती तो देश की तस्वीर अब तक बदल गयी होती,......
पर हकीकत में ....इस योजना ने हमारे ...कामगारों को नाकारा बनाया ....छोटे मोटे गृह उधोयोगों को बर्बाद किया ...
मनरेगा के अंतर्गत ...नेता - नेता के चमचे - और चमचो के चम्मचो ...पर अनाप - सनाप धन बृष्टि हुई ....पर जमीन में कुछ नहीं हुआ ....बजाय फायदे के सिर्फ नुक्सान और ऐसे नुकसान जिनकी भरपाई होना बहुत मुश्किल होगा ...

वैसे होंगे तो बहुत सारे ...पर हाल के जो दो,.. खुद देखे वो ये है ...अभी गाँव में ...बारिस से पहले मुझे अपने ....कच्चे (मिटटी) के घर की ...मरम्मत करवानी थी ...जो की किसी भी कच्चे घर के लिए ...बारिस से पहले की एक जरुरी प्रक्रिया है ....जिसके अंतर्गत ...छतो में मिटटी डालना ....पानी निकलने के रास्ते साफ़ करना ...
कच्ची दीवारों पर ....तालाब की नयी मिटटी लगवाना ...मुंडेरों पर मिटटी लगा कर ....घास - फूस की छापरिया - छप्पर ..बनवाना और डलवाना ....

पिछले 2/3 साल से ...हर वर्ष बारिस के पहले ...लाख कोशिश करने के बाद भी ....मैं ये सब काम नहीं करवा पा रहा हूँ ...क्यों ?...
क्योंकि ये नरेगा है ....जिसके चलते ...पैसे देने ...और वास्तव में ज्यादा पैसे देने के बाद भी कोई ...मजदूर इस काम को करना ही नहीं चाहता ....

वैसे इन सारे ....काम को ..बस सिर्फ एक मजदूर कर भी नहीं सकता ...उसके लिए एक ख़ास अनुभव की जरुरत होती है ...
आज अगर ...पूरे गाँव में ढूँढूं तो भी कोई छप्पर छाने वाला मिलता ही नहीं ....क्योंकि किसी को अब छाना ही नहीं आता ....
ख़तम हो चुकी है ...वो कला ....

जब मैं छोटा था ...तब हमारे गाँव में एक हुआ करते थे ...मोती ..एक दम माहिर छप्पर छाने वाले ....चाहे जितनी बारिस हो मजाल है की एक बूँद भी पानी नीचे आ जाए ....
पर अब कोई नहीं जो छा सके ...
इतनी अच्छी कला ....जिसे निखारने की जरुरत थी ...पर मर गयी ...

दूसरी, गाँव में एक छोटी पार्टी थी ....सोंचा मिटटी के बर्तनों में ही खाना खिलाएंगे ....पर ये क्या ..कुम्हार का चाक तो अब घूमता ही नहीं .....और अलाव की जगह ...एक छोटी सी दूकान में ...मिल रहे है प्लास्टिक के बर्तन .....कितनी भी मिन्नतें करने के बाद ...ये भी बोलने के बाद की ज्यादा पैसे दे देंगे ...वो तैयार नहीं ..मिटटी के बर्तन बनाने को ....और कुम्हार का बच्चा ..उसे तो अब बस दूकान में ....प्लास्टिक के बर्तन बेचने आते है ...मिटटी के बर्तन को तो सम्हाल कर रखना भी भूल चूका है ...

और ये कुम्हार भी ...अब बस नरेगा ...मनरेगा में ...फावड़े और कुदाल रख कर ...बैठना ही पसंद करता है ...कुछ और नहीं ...

एक और ...अरहर की लकड़ी या बांस की फर्ची से डलिया बनाने वाला भी कोई नहीं ....बचा ..बस खरीद लो ..चीन से बनी प्लास्टिक की डलिया ...और यूँ ही ख़त्म करते रहो ...देश के कामगार ...देश की कला ...

वैसे ..इस नरेगा,...ने पूरे देश में ..बनाया क्या क्या है ...मुझे तो बस हर जगह ....आदर्श तालाब ही दिखे ....
और इतने आदर्श की ....आज थोड़ी बारिस के बाद जब ....हर सड़क ..हर मार्किट एक तालाब सी दिख रही है ....
बस ये आदर्श तालाब ही हैं जो सूखे होंगे ....कम से कम जलमग्न तो नहीं ....

तालाब बने ....पर कहाँ ?...गाँव से दूर इतने दूर की किसी काम के नहीं ...और अजीब है ..की तालाब में पानी आने का रास्ता तो है ही नहीं .....

कितना मुश्किल है ...किसी काम को ढंग से करवाना ....बस जागना ही तो है ....जगाना ही तो है ...करने वाले और करवाने वाले से ...सवाल ही तो करना है और क्या करना है ......

वैसे गाँव में ...बचे सिर्फ एक दो कच्चे घरो में ....पता नहीं ...मेरा घर ..अगली बारिस देख पायेगा या नहीं ....
वैसे होते बड़े काम के है ..ये कच्चे घर ...कितनी भी गर्मी हो ...AC की जरुरत नहीं पड़ती .....इसलिए तो पूरे मोहल्ले के लोग .....दोपहर ...अपनी खाट ले ...दालान में ही आराम करते है ....अपने पक्के घरों में नहीं ...
देखो ...इन आराम करने वालों की किस्मत कब तक साथ देती है .....अब अगर गिरा एक शताब्दी पुराना घर ...तो बनेगा तो पक्का ही ...अगर बना तो ....नहीं तो बच्चे क्रिकेट तो खेल ही लेंगे ....नागेन्द्र शुक्ल







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