Saturday, June 15, 2013

दोनों खतों के लिए .... तहे दिल से ...शुक्रिया .

जिंदगी में मुझको, बस दो ही ख़त मिले ....
एक जिनमे था,...असीम प्यार भरा ...
दूसरे जिनमे थे,.... बस शिकवा गिला ...
इस सोंच में,... गुजरते रहे दिन ...
कौन सा ख़त भला ....
कौन सा ख़त बुरा ....
कभी फूल (खुश) के ....
कभी भूल के .....
बस यूँ ही जीवन चलता रहा ....

बस सोंचता था ...क्यों कर ..किसलिए ...
प्रकृति ने हमको गढ़ा ....
हर मोड़ पे ...हर जोड़ पे ...
बस ढाल पर ...बढ़ता रहा ...

था समझ से परे ....आखिर ये पैगाम, हमको क्यों मिला ..
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो!
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।

एक नूर (अन्ना) की,....एक बूँद को ,...बस स्वाद के लिए पिया ..
मुश्किल था समझना ....अब तक आखिर,...क्यों जिया ...

उस टिमटिमाते ...दिये को जिसने ....
अरविन्द (सूरज) सा चमका दिया
तब समझ आया की ....आखिर ....
ये पैगाम ..किसी को क्यों मिला ....

कुछ तो उपयुक्त करो तन को,...
नर हो न निराश करो मन को,....
सँभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला!

कुछ यूँ ...तुम्हारे पयाम आते रहे,...
जिन्दगी की दिशा ...बताते रहे ...
दोनों खतों के लिए ....
तहे दिल
से ...शुक्रिया .....धन्यवाद
........नागेन्द्र शुक्ल

आपने हमको भी आखिर ....कागज़ रंगना सिखा ही दिया ..
.शुक्रिया ....शुक्रिया ....शुक्रिया ...

No comments:

Post a Comment