Friday, June 7, 2013

डर के आगे जीत है ....पर डरना भी जरुरी है ...

भय ...जी हाँ डर ...एक अजीब से चीज़ है ...जो दवा भी है ...और मर्ज भी,..

घर में जब कोई छोटा बच्चा होता है ..तो हम उसे डराने के लिए क्या - क्या नहीं करते, बेटा सो जाओ नहीं तो,.. ये आ जायेगा ..वो आ जाएगा ...
बेटा इसको मत छुओ नहीं तो करंट लगेगा ...हाथ कटेगा ...और भी बहुत कुछ ...हम डराते रहते है बच्चे को .....क्यों?
ताकि इस डर की वजह से वो ..सो जाए ...या बदमासी कम करे ...

पर यही बच्चा ...जब बड़ा हो जाता है ..और कहे की मैं उस कमरे में नहीं जाऊँगा ..वहाँ भूत है ...तो बस हम लग जाते है बताने की ....बेटा डरते नहीं ...भूत ऊत कुछ नहीं होता ...जाकर देखो ..कुछ नहीं होगा ..

तो हमने ही ना ..कभी इस डर को ...दवा बनाया था ...और बाद में वही डर ..मर्ज बनकर उभरा ...

भय जीवन की एक सहज प्रवत्ति है ....अनुशासन, व्यवस्था, नियमादी के पालन के लिए ...भय उपयोगी है ...जीवन की सुरक्षा, बचाव और सावधानी के लिए भी भय उपयोगी है ....

परन्तु भय की उपयोगिता ...सिर्फ एक सीमा तक है ...जब तक वो डर सहनीय है ..उपयोगी है ...पर उस सीमा के पार का भय ....
सीमा के पार का भय ...बहुत ही घातक है ....इस सीमा के पार भय की वजह से ही ...कुछ नया नहीं हो पाता ...खोज नहीं हो पाती ..

तो डरो ..जरुर डरो ..पर उसकी सीमा का निर्धारण भी करो ...जब डर इस सीमा को पार कर जाता है ...मर्ज बन जाता है

लगातार डरे, सहमे ....भयभीत रहने से ...मूढ़ता, जड़ता, अज्ञान जन्म लेता है ...
हमेशा किसी आतंक से,.. घिरे रहने से ....आपका मनोबल टूटता है ...और इस कारण अधीरता, व्याकुलता और अस्थिर ...मनोदशा ...जन्म लेती है ...

ऐसी मनोदशा ..ऐसा भय ..दवा नहीं ...मर्ज बन जाता है ...

भयभीत स्थिति में ...आप रस्सी को सांप ...और झांडी को भूत ...समझ लेते है ..

वास्तव में ...जितना घातक आपके लिए ...आपका दुश्मन नहीं है ...उससे ज्यादा घातक ..उस दुश्मन का भय होता है ...यही भय आपको उठने नहीं देता ...आपको लड़ने नहीं देता ...अपने दुश्मन से ...

और दुश्मन की ..जीत तब तक सुनिश्चित है ..जब तक आप भयभीत है ...इसलिए अगर किसी से लड़ना है ...जीतना है ...तो पहले उसके भय को जरुर त्यागो ..

ऐसा मैं इसलिए बता रहा हूँ ...की मैं दिल्ली के इलाके में ..एक परिचित से मिला ...उनसे बात करके पता चला ..की उनके पड़ोस में ही ...निगम पार्षद रहते है ...तो उनका कहना था ...की वो वोट तो आपको (AAP) को ही देंगे ...अरविन्द जी से पूरी तरह सहमत है ....पर टोपी नहीं पहन सकते ..और मुझे भी मना किया ..टोपी पहन कर घर से निकलने के लिए ....अजीब है ऐसा डर ...कैसे लड़ेंगे ...दुश्मन से ...इस डर के साथ ...त्यागना पड़ेगा इस भय को ...जल्द से जल्द ....

और देखो जैसा कहा था ...की दुश्मन की जीत ..सिर्फ अपना भय बना कर रखने में है ....देखो ये सारे राजनीतिक दल ...सारे चाहे कोई भी हो ....सिर्फ डराता है ...सिर्फ डराता है आम आदमी को ....कभी अपने गुंडे बदमासो से ...कभी अपनी पहुँच से ....कभी अपने कमीनेपन से ....कभी अपने पैसे से ...तरह तरह से ....बस डराता ही रहता है ...

यहाँ तक तो ठीक ...पर अब इनका भय ...उस सीमा को पार कर चुका है ...जिसमे इनसे डरा जाये ....

हद हो चुकी है ...इनके प्रायोजित भय की ....अब तो ये आम आदमी ...को किसी भूत गुंडे से नहीं ......आम आदमी से ही डराने लगे है ....तुमको बताते है ...की तुमको डर ...उस जाति,...उस धर्म ..उस भाषा,...उस विचार ...उस व्यवस्था ..पता नहीं किस किस चीज़ से है

और बस आप डरे की नहीं ....इनका काम बना ....तो अब समझ आता है ..
की कोई क्यों डरा रहा है की ...आपको किससे खतरा है ...
वास्तव में ..तो जो डरा रहा ...आपको सिर्फ उससे ही खतरा है ...

आपको सबसे बड़ा खतरा ...सिर्फ आपके डर से है ...भय से है ..किसी और से नहीं ....

डराते तो आपको ..हम भी ..इस भ्रष्ट व्यवस्था से ..इस भ्रष्टाचार से ...पर मेरी समझ से ये ....वाही डर है ...जिससे अनुशासन आता है ....नियमादी का पालन होता है ..ये वही डर है ...जिससे बच्चा सो जाता है ...और सुरक्षित रहता है ...

वैसे भी विज्ञापन में बताते है ...की डर के आगे जीत है ....पर डरना भी जरुरी है .....
तो डरो,.. जरुर डरो ...पर किस डर से,.. डरना है ..किस डर,.. से नहीं डरना ..ये एक बार जरुर सोंचो ...और जब समझ आये तो ...त्यागो डर को ...और

निकलो बाहर मकानों से ....जंग करो बेईमानो से ......नागेन्द्र शुक्ल
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