Saturday, March 23, 2013

माँ,... मैं फिर आया हूँ, पर इंसान नहीं जज्बा बन,......... दिलों में छाया हूँ


माँ मैं फिर आया हूँ, पर इंसान नहीं जज्बा बन,..... दिलों में छाया हूँ,…

नेताओं के भेष में, माँ जो तुझको है सता रहे ,...
मद में डूबे, स्वार्थ की खातिर ....माँ तुझको जो लजा रहे,...
जाती धर्म की बात, बता कर भाई - भाई को बाँट रहे,
सत्ता मद में है फूले, हैं कुपुत्र जो माँ को भूले ,...
बस कुछ दिन, सुख-निद्रा ले लें,
उनको सबको, सबक सिखाऊंगा !
माँ अब मैं, इंसान नहीं जज्बा, बन कर आया हूँ .....

कौन है, जो दोषी है,.....की हैं, जिन्दा अब भी दुश्मन ....अपने ही परिवेश में,..
क्यों ? आज लहू नहीं उबलता .....भगत सिंह के देश में ....

सवा अरब है बेटे तेरे ....करते परिश्रम दिन रात है ....
फिर भी, माँ लाखो बच्चे तेरे, पानी पी सो जाते है ....
है गड़बड़ कहाँ किधर .....अब सबको मैं बतलाऊंगा ....
जो लूट रहे सुख चैन तुम्हारा .....उनको सबक सिखाऊंगा ।।

कुछ चुने हुए जो संसद जाते ....बेंच के घर तेरा ...मोटा माल बनाते है .
काले धन का अम्बार लगा .....कुछ नेता भी कहलाते है ....
अपने - अपने स्वार्थ की खातिर ....बाँट रहें है मुझको तुझको ....
कहाँ है दुश्मन बाहर के ....जो उनको अब मारू मैं ....

माँ बस थोडा सब्र करो ....अच्छे दिन फिर लाऊंगा ।
जो कर्ज दूध का है मुझ पर, उसको उतारकर जाऊँगा ।।
अब है, सवा अरब मेरे बहन - भाई ।
क्या मजाल जो दुष्ट कोई .....छु ले तेरी परछाई ।।

माँ,... मैं फिर आया हूँ, पर इंसान नहीं जज्बा बन,......... दिलों में छाया हूँ ,........नागेन्द्र शुक्ल
अमर शहीद भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस पर शहीदों को शत शत नमन !
 

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