Thursday, March 14, 2013

खुद को बदलो .........शुरुवात तो करो ....प्रयास तो करो


वैसे तो हमारे देश की परम्परा "वसुधैव कुटुम्बकम" की रही है ....पर देश में कुछ धूर्त - चालाक और स्वार्थी लोग ...इसके उलट हमारे देश की सारी सम्पदा चाहे वो ....जंगल - जमीन - नदी - कोयला - सड़क - खेत - सारे रुपये पैसे  ...कुछ भी हो ...उसको सिर्फ अपने कब्जे में करने की चाहत रखते है ....

और ताज्जुब के साथ साथ दुःख की हमारी व्यवस्था ...कुछ ऐसी बना दी गयी है .....जिससे ये सब करवाने में आसानी नहीं बहुत आसानी हो ....
मुझे याद है ...की पहली नौकरी की पहली तनख्वाह चेक से मिली थी .....और बैंक अकाउंट खुलवाने में में ...इतने document मांगे गए थे ...ये लाओ वो लाओ ....अपना लोकल निवास प्रमाण पत्र लाओ ....रेंट एग्रीमेंट मान्य नहीं ....और बस घूमता रहा चेक को जेब में डाले ....पूरा महीना ....

आखिर में थक हार कर ....अपने शहर में ही जा करखाता खुलवाया ...और पैसे मिल पाए पाए ....तब इतना कुछ तो पता नहीं था की ...क्या क्या होता है इस दुनिया में ...ये काल धन क्या होता है .....ये इनकम टैक्स क्या है ....वगैरह - वगैरह,....पर बहुत परेशानी के बाद ...ख़ुशी हुई की हमारे देश में ....सरकारी कर्मचारी ...नियम कानून का कितना  करते है ....करना भी चाहिए ....

आज भी जहां ......देखता हूँ की सुरक्षा के लिए कड़ी जांच हो रही है ....तो तकलीफ नहीं ...बल्कि ख़ुशी होती है ....की वाह कोई तो है जो लगा है ....अपने काम में ढंग से .....

पर सारी ख़ुशी ....काफूर हो जाती है ....जब ये पता चलता है .....की ये सारे नियम कायदे ....मेरे लिए है ....आम आदमी के लिए है ....जो लोग इस व्यवस्था को ....ढंग से समझते है ....उनका काम तो ....चुटकी में हो जाता है .....फिर धीरे धीरे पता चला की .....राज क्या है ....चुटकी में काम करवाने का ....
मुझे याद है ......की ड्राइविंग लाइसेंस ...बनवाने की कोशिश खुद की थी ...तो इतने सवाल ....चश्मे का नंबर कितना है ...बिना चश्मे के पढो ....वगैरह - वगैरह,....के बाद लगा शायद मेरा ड्राइविंग लाइसेंस बन ही नहीं पायेगा .....
फिर बाहर निकलते ही ....भेंट हुई ...एक व्यवस्था के जानकार से .....बस फिर क्या था ....बन गया लाइसेंस ...और अपने आप home delivery भी हो गयी ....

अजीब है ....हर जगह ....कानून का पालन करने वाले से ज्यादा .....उस व्यवस्था के जुगाडू ...ज्यादा एक्टिव दिखे .....
और बस पद गयी ....आदत ...किसी भी सरकारी ऑफिस जाने के बजाय ....किसी जुगाडू को दूंदने की .....फिर समय गुजरता गया .....धीरे से ऐसा लगने लगा ....की शायद कोई सरकारी काम करवाने का ....सही रास्ता ही यही है .....चाहे वो राशन कार्ड हो ....या पासपोर्ट .....सब काम फटा फट .....

पर अन्ना जी के आन्दोलन से ये पता चला की .....नहीं ये हमारे देश की व्यवस्था नहीं .....ये तो 
सिर्फ हमारी कमजोरी है ....जिससे ऐसी व्यवस्था तैयार हो गयी है ....थोडा धिक्कारा ....खुद को और समाज को ....
और तब जा कर जुड़ा ......आम आदमी पार्टी के साथ ...मिला कुछ सक्रीय कार्यकर्ताओं से ......तो पता चला ...की काम तो वैसे भी हो सकता है ...बड़ी आसानी से .......सिर्फ जागरूक होने की ....और हिम्मत जुटाने की जरुरत है ....

आज सोंची है ....अपने एक काम को ....खुद भाग दौड़ करके करवाने की .....वो भी बिन घूस के .....अब देखते है ....कितने पापड़ बेलने पड़ते है ....पर इस बार ....मैं टूटुगा नहीं .....लडूंगा ...पूरी ताकत से ...और अगर फिर भी नहीं हुआ काम ....ईमानदारी से ..तो है न .....आम आदमी पार्टी के सक्रीय कार्यकर्ता ....मेरे साथ ....मेरे सहयोग ....और मार्गदर्शन के लिए ......

दोस्तों, ....आप पहले अपनी मदद खुद करने की कोशिश करो ...लड़ो बिगड़ी व्यवस्था से ....और जब लगे की ....मुश्किल बढ़ रही है ....सहयोग और मार्गदर्शन की जरुरत है .....तो मिलो अपने आस पास आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता से .....वो आपका काम खुद तो नहीं करेंगे .......पर आपके साथ ...कंधे से कन्धा ....मिला कर खड़े जरुर होंगे .....भ्रष्टाचार के खिलाफ .....

चुनाव जब होगा ...तब होगा ....जीत हार ....सब बकवास .....आम आदमी पार्टी ....को तो बस हिम्मत बधानि है .....और ये बताना है ...की जो सही है ....तुम उसके लिए ...लड़ और जीत सकते हो ....कोई सरकार ...कोई व्यवस्था ....सिर्फ मुश्किल कड़ी कर सकती है .....पर आपको जीतने से रोक नहीं सकती .....
व्यवस्था बदलने से पहले ....खुद को बदलो .........शुरुवात तो करो ....प्रयास तो करो ......नागेन्द्र शुक्ल 

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