Saturday, March 16, 2013

कांटो पर चला ,पर रुका नही.....

कांटो पर चला ,पर रुका नही.....
लाख थका,पर झुका नही....
कितनो से यूँ,बैर था बांधा.....
आग थी आगे,पर मुड़ा नही....

अपनों ने जब खिल्ली उड़ाई....
तने सामने,करी लड़ाई...
लक्ष्य मेरा था अडिग मगर...
कांटो पर थी नयी डगर....

कितनी राते,जाग कर काटी....
कितनी खुशियाँ,वक़्त से बांटी....
ज़ख़्मी सीना,लहू बहाया.....
ज़ख्म कुरेदे,नासूर बनाया.....

जब ये कदम दुखे कहीं,...
दुगुनी ताक़त,जुटी वहीँ,...
अब पूरा,जंहा साथ है....
नही अकेला,लाख हाथ हैं....

कल होगा आगाज़ युद्ध का....
बजना है बिगुल युद्ध का....
कांपेगी अब दुश्मन की टोली....
गूंजेगा अब शंख युद्ध का....

जल्दी से वो आगे आये,...
देनी है क़ुरबानी जिसको....
जो पड़ा रहा मुर्दा बनकर,..
नही मिलेगी माफ़ी उसको....

कुछ पल अब रहे हैं बाकी...
ये आगाज़,है मंजिल बाकी....
ये तो है शुरुवात दोस्तों,...
अभी है पूरी पिक्चर बाकी..........................(चंचल शर्म

No comments:

Post a Comment