Tuesday, May 28, 2013

आदिवासियों की समस्या का समाधान कोई,....चाहता ही नहीं

नक्सली समस्या आजकल की नहीं,.... काफी पुरानी है,.... फिर इसका हल क्यों नहीं निकला?
क्या सरकार इसे ..सिर्फ हथियार से हल करना चाहती है .....अगर नहीं तो ...
जिस तरह ..अर्धसैनिक वहाँ तंबू लगा ....बैठे है लड़ रहे है ....
उसी तरह ..नेता ....जी हाँ सभी पक्ष के ..क्यों नहीं ...जा सकते बात करने ..नक्सलियों ने अभी तक ...ऐसे धोखे तो देने शुरू नहीं किये है ...की आप इतना डरो ...बात भी ना कर पाओ .....अरे एक नेताओं का प्रतिनिधि मंडल बनाओ ....मीडिया ...पुलिस सब ले जाओ ....और करो खुली बात ....जनता और सारे अधिवासियों के बीच ....

सच्चाई तो ये है की, आदिवासियों की समस्या का समाधान कोई,....चाहता ही नहीं,
क्योंकि आदिवासियों की समस्या का समाधान होगा तो,............ पूंजीपतियों के लिए समस्या पैदा हो जाएगी।

छत्तीसगढ़ में पिछले तीन दशकों से क्या हो रहा है?,... क्या हम सब उससे वाक़िफ़ हैं? अगर हाँ,
तो फिर शनिवार की घटना को आप,.... अप्रत्याशित कैसे मान सकते हैं!
किसका विकास हुआ है,... छत्तीसगढ़ में?
छत्तीसगढ़ किनके नाम पर,.... अलग राज्य बना?

अजीत जोगी की सरकार रही हो या,... रमन सिंह की, सभी ने आँखें मूँदकर,... उद्योगपतियों की चरण पूजा की है।
आदिवासियों की ज़मीनें छीनी गईं, मुआवज़े की लूट हुई,... रोटी-मकान और रोज़गार माँगने पर गोलियों का शिकार बनाया गया।

अहिंसक तरीके से,... पुलिस के अत्याचारों के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वालों को देशद्रोही बताकर जेल में ठूंसा गया।
हत्यारे और बलात्कारी अधिकारियों-पुलिसकर्मियों और नेताओं के ओहदे बढ़े, पुरस्कार मिला।
तो फिर ऐसी स्थिति में निरीह आदिवासी अपनी अस्तित्व रक्षा के लिए क्या करें? वैसे जो किया ,.... वो भी ठीक नहीं किया ....पर थी तो उनकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया

अगर देश लोकतांत्रिक है,... तो सभी को,.... जीवन का अधिकार है।
अगर देश जनतांत्रिक है,... तो सत्ता का वास्तविक दायित्व,.... जनहित होना चाहिए।
अगर जनतंत्र में जनता का हित,... चंद पूंजीपतियों की तिजोरी भरने की शर्त पर,.... सत्ता द्वारा अपहृत कर लिया जाए, तो,...
समस्या पैदा होती है,.... पैदा होता है नक्सलवाद,..

नक्सली ग़लत कर रहे हैं,.... उन्हें सज़ा मिले।
लेकिन सत्ता-पोषित आतंकवाद, लूटतंत्र और भ्रष्ट-व्यवस्था के ख़िलाफ़,.... कौन अभियान चलाएगा?

सत्ता को निर्देशित करने वाले हमेशा सात पर्दों,.... की आड़ लिए रहते हैं।
देश और संसाधनों से ज्यादा इनके सुरक्षा-प्रबंधों पर ध्यान दिया जाता है।
किसी ख़ास कम्पनी को फ़ायदा पहुंचाने के लिए नीतियाँ बदल दी जाती हैं।
ऐसी निर्लज्ज स्थिति में आम-आदमी क्या करे?,.....कुछ गिने चुने रास्ते ही दिखते है 

1. क्या सभी को अन्ना की तरह टोपी लगाकर, किसी चौराहे पर बैठ जाना चाहिए?
2. या अरविन्द केजरीवाल की तरह पार्टी बना लेनी चाहिए?
3. या नक्सलियों ने जो किया उन्हें वही करना चाहिए था ?
4. या कि सभी को सामूहिक रूप से ख़ुदकुशी कर लेनी चाहिए?

जब अन्ना की टोपी लगा ...अनसन पर बैठो ...तब यही सरकार के ज्ञानी कहते है ...हम नहीं सुनते ..
जब अरविन्द की टोपी लगा ....चुनाव की तैयारी करो ...तो इनके पालतू गुंडे ....सडक पर लड़ते - झगड़ते रहते है ...और यही ज्ञानी पुलिस का दुरुप्योंग करते  है ....
चुनाव के मामले में ...ये नेता थोडा निश्चिन्त से दिखते है ....वो इसलिए नहीं की ....ये जीत जायेंगे ....वो इसलिए की ..इनको पता है की ...जनता को कैसे बेवकूफ बनाना है ....यही तो करने की महारत हाशिल है इन्हें ...और इसी महारत का परिणाम है ...जो हुआ अभी हाल में ....

ऊपर के रास्तों में से #1 को हम पूरी तरह से ...अजमा कर देख चुके है ...और #2 को अजमा रहे है,...इस रास्ते में ...अच्छी बात ये है ...की ताकत जनता के पास है ....और जनता चाहे तो #2 पास ..या फेल ...
#3 ...ठीक नहीं दिखता ...और समुचित समाधान भी नहीं देता ...इससे लड़ा तो जा सकता है ...पर जीता नहीं ...
#4 आपकी .....चाहत कभी नहीं हो सकती ...और उससे भी होगा क्या ....सिर्फ वही जीतेंगे ....जिस सोंच को हम हराना चाहते है

अभी इस घटना के बाद एक बार फिर,.... नये सिरे से आदिवासियों का सरकारी क़त्लेआम होगा। जबकि हत्यारे (नक्सली!),....या ये कहें प्रायोजित नक्सली,...
अपने सुरक्षित ठिकानों में आराम फ़रमा रहे होंगे।
संदिग्धों की सूची बनेगी, पकडे जायेंगे और फिर थर्ड डिग्री टॉर्चर,..... कर उनका जीवन नरक बनाया जायेगा,.....
लेकिन हकीक़त तो यह है,... कि आज राजनीति, राजनीतिक दल, उसके नेता, उनके द्वारा निर्मित सत्ता-व्यवस्था और उनकी नैतिकता… सब संदिग्ध हैं।.....

सच्चाई तो ये है की, आदिवासियों की समस्या का समाधान कोई,....चाहता ही नहीं,......नागेन्द्र शुक्ल


No comments:

Post a Comment