Saturday, May 25, 2013

ओ पागल, इस से बढ़िया मौका कबआयेगा? फिर भी इस पिस्टल को इस्तेमाल करने का तुझे मौका नजर नहींआया?

एक बार एक सेठ शहर से अपने गांव पैदल ही आ रहा था कि रास्ते में डाकू आ गए| डाकू ने सेठ को लट्ठ जमा दिए। सेठ ने अपनी जेब में जो धन था वह डाकू को दे दिया, फिर भी डाकुओं ने सेठ की कमीज उतरवा ली| तभी डाकुओं ने देखा की बनियान में भी एक जेब हे सो सेठ की बनियान भी उतरवा ली|

सेठ ने कुछ धन अपनी धोती की अंटी में भी रखा था सो डाकू सरदार ने सेठ की धोती भी खुलवा ली| अब सेठ जी सिर्फ कच्छे में थे|

डाकू सरदार ने सेठ का कच्छा गौर से देखा तो उसे लगा कि सेठ ने कच्छे में भी कुछ छुपा रखा है| सो डाकू सरदार ने सेठ से पुछा- “कच्छे में भी धन छुपा रखा है क्या?"

सेठ : जी धन नहीं है! इसमें मैंने एक पिस्टल छुपा रखी है|
डाकू सरदार : पिस्टल किस लिए? तू क्या करेगा पिस्टल का? तेरे किस काम की पिस्टल?

सेठ : जी! समय आने पर मौके पर काम लूँगा!

डाकू सरदार : ओ पागल, इस से बढ़िया मौका कबआयेगा? तेरी धोती, तेरा कुर्ता, तेरी बनयान तक लुट गया| तू कच्छे में नंगा खड़ा है, तेरा सारा धन लुट गया! फिर भी इस पिस्टल को इस्तेमाल करने का तुझे मौका नजर नहींआया? लगता है तू भी भारत के मतदाता की तरह ही पागल है|

सेठ को कुछ समझ नहीं आया, तो उसने डाकू से निवेदन किया –
"हे डाकू महाराज! कम से कम मुझे ये तो बता दीजिये कि मुझमें व भारतीय मतदाता में आपको ऐसी कौन सी समानता नजर आई जो आपने मुझे भारतीय मतदाता के समान पागल कह दिया|"

डाकू कहने लगा : देख सेठ तू पिस्टल पास होते हुए भी पूरा लुट गया| धन के साथ तेरे कपड़े तक हमने उतार लिये| फिर भी तूने अपना धन और कपड़े बचाने को पिस्टल का उपयोग नहीं किया. यह ठीक उसी तरह है जैसे भारतीय मतदाता पुरे पांच साल तक नेताओं से लुटता हुआ डायलोग मारता रहता है कि अगले चुनाव आने दीजिये, अपने वोट से इन नेताओं को सबक सिखाऊंगा|
अब देख भारतीय जनता को नेताओं ने इतना लुटा कि अब उसके पास कुछ नहीं बचा है जबकि उसके पास "मत" (वोट) रूपी ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल से वह नेताओं द्वारा लुटे जाने से आसानी से बच सकता है| पर वह भी तेरी तरह ही सोचता रहता है कि इस चुनाव में नहीं, अगले चुनावों में इस नेता को देखूंगा! और इसी तरह देखने का इंतजार करते करते भारतीय मतदाता नेताओं के हाथों लुटता रहता है, ठीक वैसे ही जैसे तुम पिस्तौल होने के बावजूद हमसे लुट गए|

अब देखो, इतने घोटालों के बाद भी सब मस्त हैं और बेचारा आम आदमी कोने में खडा रो रहा हे। कारण, धरम-जाति, बाहु-बल, पर्लोभनो, पैसे से सत्ता, सत्ता से पैसा की राजनीति। बंटा हुआ आम आदमी अपने पिस्टल (मत ) का सही इस्तेमाल नहीं करता और फिर कभी एक या दूसरा दल इसे बुधू बना कर सत्ता में आ जाता है। और फिर शुरू हो जाता हे पांच साल का लम्बा इंतजार।


Gk Khanna : 

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