Monday, February 18, 2013

क्योँ ?..दिग्भ्रमित है युवा ...मेरे देश का ....

क्योँ ?..दिग्भ्रमित है युवा ...मेरे देश का ....
तुम क्या दूंढ रहे हो बोलो ....तो
वो क्या है ...जिसको चाह रहे हो बोलो .....तो
क्या लक्ष्य तुम्हारा बतलाओ,.....तो
किसके इंगित पर चलते हो,....सोंचो तो ...
क्यूँ कर स्वयं,.....स्वयं को छलते हो ....
एक बार जरा सोंचो तो ?...

है अस्तित्व तुम्हारा प्यादे का,.....
क्यों करते इस पर गौर नहीं,.....
भारत हो जाए खंड-खंड,......
उत्कर्ष धूल में मिल जाये,......
गंगा की पावन धारा में,......
हालाहल तीखा घुल जाये,.....

जलती मशाल दे हाथों में,.....
वो कहते अपना घर फूंको,.....
सच बोलो ....तो भी तुमको डांट रहें है .....
तुम मांगो कुछ भी .....
बस ज़ाति धर्म और आरक्षण ही है ....
जो तुमको .....ये बाँट रहें है .....

फिर कोई युवा अब भी बोले ....
कुछ नहीं हो सकता....इस देश का ....
तो ना बोले ...तो क्या बोले .....
की दिग्भ्रमित है ...युवा मेरे देश का .....नागेन्द्र शुक्ल
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