Thursday, February 14, 2013

कमी योजना की है या फिर व्यवस्था की?



समझने की बात ये है ...की स्वराज मे काम होगा कैसे .....तो बता दें....की राजस्थान के जयपुर-अजमेर राजमार्ग पर दूदू से 25 किलोमीटर की दूरी पर राजस्थान के सूखाग्रस्त इलाके का एक गांव है - लापोड़िया। यह गांव ग्रामवासियों के सामूहिक प्रयास की बदौलत आशा की किरणें बिखेर रहा है। इसने अपने वर्षों से बंजर पड़े भू-भाग को तीन तालाबों (देव सागर, फूल सागर और अन्न सागर) के निर्माण से जल-संरक्षण, भूमि-संरक्षण और गौ-संरक्षण का अनूठा प्रयोग किया है। इतना ही नहीं, ग्रामवासियों ने अपनी सामूहिक बौध्दिक और शारीरिक शक्ति को पहचाना और उसका उपयोग गांव की समस्याओं का समाधान निकालने में किया।

1977 में अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान गांव का एक नवयुवक लक्ष्मण सिंह गर्मियों की छुट्टियां बिताने जयपुर शहर से जब गांव आया तो वहां अकाल पड़ा हुआ था। उसने ग्रामवासियों को पीने के पानी के लिए दूर-दूर तक भटकते व तरसते देखा। तब उसने गांव के युवाओं की एक टीम तैयार की, नाम रखा, ग्राम विकास नवयुवक मंडल, लापोड़िया। शुरूआत में जब वह अपने एक-दो मित्रें के साथ गांव के फराने तालाब की मरम्मत करने में जुटा तो बुजुर्ग लोग साथ नहीं आए। बुजुर्गों के इस असहयोग के कारण उसे गांव छोड़कर जाना पड़ा। कुछ वर्षों बाद जब वह वापस गांव लौटा तो इस बार उसने अपने पुराने अधूरे काम को फिर से शुरू करने के लिए अपनी टीम के साथ दृढ़ निश्चय किया कि अब कुछ भी करना पडे पर पीछे नहीं हटेंगे। कुछ दिनों तक उसने अकेले काम किया। उसके काम, लगन और मेहनत से प्रभावित होकर एक के बाद एक गांव के युवा, बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं उससे जुड़ते चले गए। देव सागर की मरम्मत में सफलता मिलने के बाद तो सभी गांव वालों ने देवसागर की पाल पर हाथ में रोली-मोली लेकर तालाब और गोचर की रखवाली करने की शपथ ली। इसके बाद फूल सागर और अन्न सागर की मरम्मत का काम पूरा किया गया। पहले स्त्रियों को रोजाना रात को दो बजे उठकर पानी की व्यवस्था के लिए घर से निकलना पड़ता था। उनका अधिाकांश समय इसी काम में व्यर्थ हो जाता था। किन्तु अब तालाबों में लबालब पानी भरने से पीने के पानी की समस्या से तो निजात मिली ही, क्षेत्र में गोचर, पशुपालन और खेती-बाड़ी का धन्धा भी विकसित होने लगा।

आज स्थिति यह है कि दो हजार की जनसंख्या वाला यह गांव प्रतिदिन 1600 लीटर दूध सरस डेयरी को उपलब्ध करा रहा है। लोपड़िया के लोगों ने राजस्थान के गांवों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।

लगे हाथ ये भी बता दे की सरकारी योजना नरेगा मनरेगा के तहत देश मे हज़ारों तालाब बने .......पर शायद ही कोई ऐसा हो जिसमे पानी हो ....या पानी आने की व्यवस्था हो .....ऐसा क्यो हुआ .....क्योंकि .....इस तरह की योजना के पीछे भावना .....कभी ग्रामीण विकास की थी नही .......सिर्फ़ लोगों को ....नकारा बनाने की थी ....और पैसा बाँट कर वोट जुगाड़ने की थी ....

और जब किसी काम को करने के पीछे की नियत ही ठीक ना हो ......तो अच्छे और सही परिणाम कैसे आ सकतें है .....नरेगा मनरेगा के तहत.....गाँव क्या काम जाए ....गाँव को किस चीज़ की ज़रूरत है ....किस काम को करने से गाँव के लोग ....अपने पैरों पर खड़े होंगे ......सामूहिक विकास होगा .....इस पर कभी किसी के विचार ही नही किया ......कोई बात ही नही की गयी गाँव के लोगों से ......बस पैसा कमाने ....और बाँटने के लिए ....कुछ भी .....जो सिर्फ़ दिख सके कागजों पर ......किया गया ......

 पिछले 7 सालों मे नरेगा मनरेगा के तहत .....बहाए गये....पैसे से हम क्या नही कर सकते थे? ....पर हुआ क्या ?.....सभी को पता है .....
अब आपको क्या लगता है ....कमी योजना की
 है या फिर व्यवस्था की? ........क्या आपको लगता है ...
मुझे लगता है
 बिना व्यवस्था बदले,.....कोई भी योजना ....हमारा विकास कर सकती है ........
आपको भी सोंचना पड़ेगा .....क्योंकि  आपका ही पैसा है ......जो बहाया जा रहा है ......
ये आपही हो जिसको नाकारा बनाया जा रहा है .........नागेन्द्र शुक्ल
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