Monday, October 8, 2012

ये नेता है......तानाशाह है

ये नेता है......तानाशाह है
कुछ मेरी मजबूरी...... कुछ मेरे ही गुनाह है|
जो .......आज...ये .... तानाशाह है ||

ये......सुनते नहीं....सुनातें है |
अब सुनाने की .........इन्तहा हो गयी ||
कब तक सियासत के ताज सहते रहेंगे,
गर हम उब गए...... तो बस समझ लेना
यह ताज पैरो में पड़े होंगे||

हम तो पिंजरे के परिंदे बन गए है |
हम लोकतंत्र के शांत...........कबूतर बन गए है ||

हम शांत है, मगर.....कमजोर नहीं |
और साहस ....आपसे कहीं ज्यादा......खुली सड़क पर....दौड़ा करतें है
और एक आप है......जो घर पर भी ....संगीनों के साये में रहतें है ||

हम समझते है .....आपकी मजबूरी,
जब कर्म हो ख़राब...............तो डर लगता है ...जनाब||

हम अब व्यवस्था..बदलेंगे.......
और आप को...खुली सड़क पर भी सुरक्षा देंगे.....

हम जनता है.....पर भूल गए एक कहानी हैं||
की ....कबूतर... ले उडे थे....शिकारी का जाल...
बस भरी थी हुंकार.....और ....किया था .....
एक साथ....प्रयास ||

आओ मिल जाएँ......भरें हुंकार......
करैं प्रयास ....भगाएं.....भ्रस्टाचार |||
इस महायज्ञ में ......देनी है...आहुति....
और करना है .....सतत प्रयास ||

जागते रहो.......जागते रहो |
कदम कदम....बढ़ाते रहो ||
..........अरविन्द जी हम साथ है ||
--नागेन्द्र शुक्ल 

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