Wednesday, October 17, 2012

..आम आदमी...निर्जीव है, बैंक है........वोट बैंक हैं..

अरविन्द जी, कहते रहते हैं कि .........बीजेपी और कांग्रेस ....दोनों एक साथ है....एक ही थाली के चाटते बट्टे है.......और ये दोनों ही बताते रहते हैं कि...... अरविन्द जी, उनके नहीं .....बल्कि प्रतिवादी के एजेंट हैं.......
आज मुझे समझ आया ...बीजेपी और कांग्रेस के ...वक्तव्य में थोड़ी थोड़ी तो सच्चाई है .....
हलाकि अरविन्द जी, कि बात में कोई........ शक  शुबा नहीं.......परन्तु ......
हाँ इनमे भिन्नता है......वो भिन्नताएं ...साफ़ है.....
1  कांग्रेस के मंत्री....NGO बना कर ...देश को लूटते हैं........तो बीजेपी के अध्यक्ष....को-ऑपरेटिव बना कर.........हाँ अंतर तो है.........

2 इनके savings accounts ......(हाँ वोट बैंक ).......भी अलग हैं....जिनके दम पर .....ये खुलेआम लूटते है............जिसके  पास ........जितना पक्का........वोट बैंक .......वो उतना ही ज्यादा निरंकुश....और बर्बर.......सही है...

हम आम आदमी भी तो कुछ ऐसा ही करतें है....
पहली तारिख को ...जब तनख्वाह ...आती है...तो शुरु के 10 /12  दिन तो हम भी ....राजा हो जातें है........बेपरवाह हो जाते है......निरंकुश हो जाते है.......फिर
जैसे - जैसे ....saving accont ....कमजोर होता जाता है...........नैतिकता याद आती जाती है.........
कोई काम करने से पहले ....थोडा सोचना शुरू......कर देते हैं......फिर 20 ...आते - आते ...
हमारा दिमाग कितना काम करने लगता है..........जरुरी...गैर जरुरी...का विचार .....करने लगता है.....और क्या - क्या  सोंचने लगते  है......फिर 30 ......के कुछ पाहिले.......

क्रेडिट कार्ड कि याद आती है ......ठीक उसी तरह.............जैसे........
इस BJP और कांग्रेस को ...........ममता - समता और मुलायम .....कि याद आती है........और फिर ...उधार कि व्यवस्था चलती है..........

अब सोचने कि बात ये है.........कि इनमे........या यूँ कहें कि .......हममे....ये ताकत आती कहाँ से है...........जनाब.....
अब तो साफ़ है........बैंक से ..............हाँ - हाँ....वोट बैंक से.........

तो ...अब रास्ता साफ़ है...........इनको.....सबक सिखाने का.........हमला करो......इनके बैंक पर.......जी हाँ.........मेरा मतलब है ....वोट बैंक पर.......
ये वोट बैंक है कौन............अरे भाईयो.............ये सभी को पता है .............हम और आप........

वैसे अगर विचार करें......तो ये हमें...बैंक ...वोट बैंक .....समझते..क्योँ है...........ये हमारी ही गलती है........जो हम....बे वजह......बिन कारण......इनके पीछे चिल्लाते हैं.........
नेता जी ...आगे बढ़ो......और हमको लूटो.......
अबकी बारी.......................तुम्हारी बारी..........

दोस्तों मुझे....दुःख है.......कि सिर्फ....और सिर्फ .......
वोटिंग लिस्ट ......को ...दिल्ली में देख कर.....फिर ये सोच कर .....कि किस ...धर्म...और किस जाति ......का........
बल्लेबाज .....किसने उतारा....है ......उसी हिसाब से......ये अपना......गेंदबाज़....उतार देते है.........

यह तो ...हम ...आम आदमी ...हैं......जो जाति....और धर्म के बारे मैं बात करतें है ..........ये पोलिटिकल (राजनीतिक ) अंडर वर्ल्ड (गुर्गे )........तो सिर्फ वोट बैंक कि बात ही करते हैं ||
बेवकूफ बनातें है ........बेवकूफ.........

और जनता..............
तो जनता है............
जीते कोई भी.........हर बार चुनाव......
पर चुनाव ....से पाहिले ही हार जाती है........

ये ठीक उसी तरह ......प्रतीत होता है ..................
जैसे मैदान में ...........सिक्का उछाला..................और बस .....मैच खत्म.........
कौन जीतेगा...बता दिया......क्योँ और कैसे.....अरे जनाब ...अब मैच का नहीं.......मैच फिक्सिंग का जमाना है......

चुनाव राजनीती का नहीं ...........किसी मुद्दे का नहीं ...........किसी विचार धारा का नहीं.............
बस .......कहीं............. किसी जाती का ............तो...
कहीं किसी ......धर्म का है ...........

और इस .....राजनीतिक ......नाटक का........सूत्रधार.....कहानी लिखने वाला.......जी जनाब......एक व्यापारी है .....व्यापारी ही है..........

और एक सफल .................व्यापारी कभी ....एक ही जगह .....पैसा नहीं लगता.........प्रतिशत...में बाँट कर........अलग - अलग ......पैसा लगता है..............

यही कारण है ...........चुनाव कोई भी हो ...............जनता हारती है .........
बस ये ....नेता / व्यापारी ..........जीत जाता है............क्योँ जीत जाता है ...........

क्योँकि ..........हम इन्शान नहीं...........निर्जीव है, बैंक है..............वोट बैंक हैं..................
हमें..............वोट बैंक ............कहा जाता है..........
वोट बैंक ............कहा जाता है..........
अरे.......दोस्तों.........क्या अच्छा लगता है ..............आपका पता नहीं .............
पर हमें नहीं ..............भाता है ...........
जब हमें.........वोट बैंक ............कहा जाता है........

मैं आज ये नहीं कहूँगा........कि अरविन्द जी, को जिताना है......पर मुझे इतना ही कहना है........कि
अब हमें वोट बैंक नहीं रहना है......
हम भी सोच सकतें है................हम भी बोल सकतें है........और अब .................
हम मुंह खोलेंगे..............अब हम बोलेंगे.............हम कौन............आम आदमी......
...................नागेन्द्र शुक्ल


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