Wednesday, October 17, 2012

लोकपाल को थाम .....हाथ में........है अपना कदम बढाया ||

एक दिन मैंने ..........बड़ी मुश्किल से ,,,,,,,
संसद के सामने से गुजरने कि............हिम्मत जुटाई |
तभी एक प्रहरी चिल्लाता है, .........तू किधर से आया.....
यहाँ सिर्फ चुना हुआ......प्रतिनिधि आता है ||

यह प्रतिबंधित क्षेत्र ......कहलाता है |
इसका ना कोई........आम आदमी से नाता है ||

उसने टेढ़ी नज़र दिखाई.........
बात मेरी समझ में.....आयी....
मैंने तुरंत 500 कि हरी .....पत्ती दिखाई ||

प्रहरी कुछ सकुचाया..........मैंने उसे समझाया |
जो भी यहाँ आता है ...........
खाता और खिलाता है ........
तू बेकार में सकुचाता है ||

मैं बोला ....धीरे ने नोट ....दबा ....और आगे का रास्ता बता |
फिर क्या...........मैं आगे बढ़ गया ........भाई,
तभी एक कराह दी.............. सुनाई ||

मैंने पूंछा.......
तू कौन है .....क्योँ रोता है ||
वो बोला,
मैं हूँ ...............संसद.....
राज जहां से चलता है.......
देश जहां से ......बनता और बिखरता है ||

पाहिले था, मैं लोकतंत्र का मंदिर......अब तानाशाहों .....का अड्डा हूँ |
जो मेरी एक नहीं सुनतें है ...........मैं भर - भर के रोता हूँ ||

पर तू कौन......तुझे क्योँ........ अपना दुःख बतलाऊँ ?

मैं बोला .......मैं आम आदमी.....
सुनते ही ....संसद चिल्लाया....
कब से था .........तेरा इंतज़ार....
ये बता.......क्योँ .....भेजते हो तुम अपराधी...गुंडे और भ्रस्टाचारियों  को.......
ये करतें है .....मेरी इज्ज़त .........तार तार .....एक नहीं........ बार बार ||

मैं बोला ...देर से आया हूँ .................पर दुरुस्त आया हूँ |
तेरे लिए एक अच्छी ..............................खबर लाया हूँ ||

वो बोला क्या ....अच्छी ....खबर...
मैं बोला ......हाँ
कोई है जिसने, इन तानाशाहों ...को है ललकारा......और है खूब छकाया |
लोकपाल को थाम ..........हाथ में....................है अपना कदम बढाया ||
गर जनता ने ...........उसका साथ निभाया......तो समझो कल ही आया |
और फिर बस....................................................... लोकपाल आया ||
फिर क्या.....सब मिल....
धृतराष्ट को.....................भगायेंगे............
दुर्यौधन...यहाँ फटक ना .....पाएंगे |

अरविन्द को PM .........................बनायेंगे......और
भ्रस्टाचारियों....के लिए ...प्रहरी ...बिठायेंगे ||
तेरे आँगन में..........फिर से लोकतंत्र का.........
मंदिर...................................हम  बनायेंगे ||

बनायेंगे ना ?
क्योँ दोस्तों.....कौन बनाएगा........हम बनायेंगे........
हम कौन........भूलो मत ....आम आदमी................
......नागेन्द्र शुक्ल

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