Thursday, September 25, 2014

मोदी के लिए केजरीवाल ज़रूरी है .........

मोदी के लिए केजरीवाल ज़रूरी है ................................................................................
नये भारत का आन्दोलन मोदी ने नही शुरू किया. नये भारत के आन्दोलन को केजरीवाल और अन्ना ने मिलकर अपने जिगर से फूंका था. अन्ना का आमरण अनशन 1947 के बाद देश के इतिहास का सबसे प्रभावशाली अनशन था. ऐसा अनशन जिसकी लाइव कवरेज ने करोड़ों घरों को पहली बार एक बड़ी लड़ाई के लिए एक जुट कर दिया था. ये वही मोड़ था जहाँ बीजेपी और कांग्रेस दोनों डर कर संसद के दडबे में छुप गयी थी...और मोदी कहीं सीन में नही थे.
इसी मोड़ पर केजरीवाल अपने साथ अन्ना और किरण बेदी को लेकर अगर आगे बढ़ जाते तो शायद 2014 में समूचा हिंदुस्तान उन्हें लाल किले से सुन रहा होता. अगस्त क्रांति के आन्दोलन के वक़्त केजरीवाल और अन्ना की दीवानगी का आलम ये था कि उनकी एक ललकार पर हिंदुस्तान बिछा जा रहा था. उनके मुह से बोल नही मंत्र निकल रहे थे. उनके इशारे पर घटनाक्रम बदल रहा था . उनकी उँगलियों पर राजपथ नाच रहा था .
ये सारा शो केजरीवाल का था. ये सारा आन्दोलन केजरीवाल के ब्लू-प्रिंट से निकला था . अन्ना आन्दोलन का चेहरा बने थे और किरण बेदी उसकी साख. लेकिन महत्वाकांक्षआओं का ज्वार देश के सबसे ऐतिहासिक जन आन्दोलन को निगल गया. किसी का अहंकार तो किसी कि जिद आन्दोलन के लिए आत्मघाती बन गयी. रातों रात मिली शोहरत में किरण बेदी और केजरीवाल दोनों डगमगा गये और अन्ना को उमड़ती भीड़ बहा ले गयी . शायद ये सभी हैसियत से ऊँची छलांग लगा चुके थे और हवा में बैलेंस खो बैठे.
मित्रों इस आन्दोलन की राख से एक व्यक्ति का पुनर्जन्म हुआ... वो व्यक्ति नरेन्द्र दामोदर दास मोदी था जिसने दिल्ली में बिखरी सरकार, बिखरे विपक्ष और बिखरे हुए एक आन्दोलन के शून्य को भरने में देर नही की. जैसे कोई शेर घात लगाकर मौके का इंतज़ार कर रहा हो..वैसी ही मोदी ने मौका पाते ही ज़िन्दगी का सबसे बड़ा दांव खेला. केजरीवाल अपने मूल साथियों से जुदा होकर एक जीती बाज़ी हार चुके थे ..और मोदी उन्ही के आन्दोलन की राख में बुझी चिंगारियों को जलाकर आगे निकल गये.
मित्रों सफलता के बीच खुद को संभालना ही सबसे बड़ी चुनौती है. सत्ता में बच्चे की तरह चाँद मांगने की जिद नही की जाती .. चाँद और मंगल जीतने की बात होती है . सत्ता में बच्चे की तरह कुर्सी को ठोकर नही मारी जाती ..कुर्सी का इक़बाल कायम किया जाता है.
मित्रों , 2002 में एक पश्चाताप मोदी ने किया था .अब 2014 में एक पश्चाताप केजरीवाल को करना होगा. मोदी के लिए मुलायम, मायावती या पवार जैसे दागदार चुनौती नही है. मोदी के लिए असली चुनौती केजरीवाल ही है. सच यही है कि देश को चलाने के लिए मोदी ज़रूरी है. मोदी को चेक करने के लिए केजरीवाल.
......................Deepak Sharma (AAJ TAK)
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