Wednesday, September 17, 2014

गुडगाँव टीम की व्यथा

दिल्ली चुनाव ख़त्म होने के बाद हम सब बहुत खुश थे की गुडगाँव को श्री योगेन्द्र यादव जैसा राष्ट्रीय स्तर का नेता मिला है चुनाव लड़ने के लिए ,....
पर जब से उन्होंने गुडगाँव का कामकाज देखना शुरू किया ,....धीरे धीरे सभी पुराने कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस करने लगे ,…
पार्टी कुछ इस तरह से चलने लगी जैसे ,…कोई कॉर्पोरेट कंपनी ,....
जिसमे लोगो से काम कराने के लिए लालच दिए जाने लगे ,.... अचानक से आयी लोगो की बाढ़ में पुराने साथी बहते चले गए ,…
किसी ने सम्हालने की कोशिश नहीं की ,....
ताकि कार्यकर्ता एक दूसरे से ज्यादा बात चीत ना कर पाये ,....उनको विधानसभा की सीमाओ में बाँध दिया गया ,…
तुम गुडगाँव टीम - तुम बादशाह पर टीम ,....
तुम गुडगाँव से बादशाह पर क्या गए ,....
वगैरह - वगैरह प्रश्न किये जाने लगे ,....

वो कार्यकर्ता जो दिल्ली चुनाव में निस्वार्थ और देशभक्ति की भावना  प्रेरित काम करते थे ,....उनको लगने लगा की ,…
उनसे निखालीज़ देशभक्ति की उम्मीद और जो पद पैसे प्रतिष्ठा परिवार पुरानी जानपहचान की वजह से जुड़े आगे बढे ,....वो राजनीति,....उसी पुरानी राजनीति में व्यस्त दिखे ,....

- कार्यकर्ताओ के बीच भ्रम और अविस्वास फैलाया गया,....यहां तक की वो एक दुसरे की रिकॉर्डिंग से डरने लगे ,....
लोगो को टिकट के लालच में , …काम करने के लिए प्रेरित किया गया , …

पार्टी के अंदर अच्चानक एक ख़ास NGO के लोगो की भरमार दिखने लगी ,....कई बार तो ऐसा लगा परोक्ष  से कांग्रेस करीब आ रही है ,....घुसी जा रही है
पार्टी एक कॉर्पोरेट कंपनी की तरह चल रही थी ,....अंग्रेजी बोलने के सामने हिंदी बोलने वाले कमजोर महसूस करने लगे ,

 वो ऑटोवाला उपेक्षित महसूस करने लगा ,…लोगो को काम दिया जाने लगा ,....काम का हिसाब लिया जाने लगा
कोई सलाह नहीं,… कोई बातचीत नहीं ,....
नए और पुराने लोगो के बीच ,....किसी ने सामंजस्य बिठाने की कोशिश ही नहीं की ,....
ऐसा लगने लगा ,....पुराने की जरुरत ही नहीं ,....
ऊपर से डायलॉग "पुराने पत्ते गिरेंगे तो नए आयेंगे",.... इत्यादि ,....

यहां तक तो सब सहनीय था ,....
पर असहनीय तब हुआ जब ,....समर्पित कार्यकर्ताओ के स्टिंग में वीडियो बनवाए जाने लगे ,....बातचीत की रिकॉर्डिंग ,....एक बात को दूसरे से कन्फर्म करना ,....
कई बार,…धन के मामले में भी पारदर्शिता की कमी दिखी ,…तत्कालीन accountant ने बिल माँगे,....inventory की details माँगी पर मिलनी मुश्किल दिखी,…उन्होंने त्यागपत्र दिए ,....हज़ारो की संख्या में पोस्टर छापने के बिल ,....पर हकीकत में दीखते नहीं थे ,....

और सबसे बड़ी तीन घटनाये ,....
1 ख्यालिया को भारी विरोध के बाद टिकट दिया गया,....सबूत सामने रखने पर,.... कहा गया मामला प्रशांत भूषन के पास भेज दिया गया है ,....फिर कहा गया प्रशांत ने कहा है कुछ गलत नहीं ,…जबकि इस बात के साक्ष्य है की प्रशांत ने टिकट कैंसिल करने के लिए कहा था
2 गुडगाँव टीम ने सर्वसम्मति से जिस कार्यकर्ता को टीम से बाहर किया था उसे वापस से ला प्रवक्ता बनाया गया और पूंछने पर बताया गया मैं उसे जानता ही नहीं ,....जबकि इस बात के साक्ष्य है की उसके रात डिनर किया था ,.... इस प्रवक्ता की हाल ये थे की इन्होने कई मौको पर टीवी में अरविन्द तक की बुराई की ,....
3 मेवात के वरिष्ठ कार्यकर्ता को राहुल गाँधी से मिलवाया गया ,....पूँछने पर कहा गया वो बात बहुत बहुत पुरानी है जबकि ऐसा नहीं था (हलाकि इसका कोई documented सबूत नहीं)
4. मैं भी आम आदमी के अंतर्गत संख्या को कई कई गुना बढ़ा चढ़ा के प्रस्तुत किया गया ,....गुडगाँव में 1 लाख बताये गए ,… जबकि पूरा डेटा सिर्फ बीस हज़ार से भी काम था ,… उसमे से वास्तविक कार्यकर्ताओ की संख्या शायद 5 प्रतिशत भी नहीं
5. कमिटी के सदस्यों को ही अखबार के माध्यम से पता चला की ,…कमिटी भंग कर दी गयी ,....
चाटुकारिता चरम पर और फोटो खिचवाने वाले आगे ,....लालच ही एक तरीका दिखा काम करवाने का ,… पार्टी के मूल तौर तरीके ताक पर रख दिए गए
6. चुनाव के दौरान गुडगाँव में एक बलात्कार की घटना हुई थी जिसमे वो पुलिस वाला जिसने विशेल ब्लोअर का काम किया था उसी को ससपेंड किया गया था गुडगाँव के आंदोलनकारी कार्यकर्ताओ ने जब इस मुद्दे को उठाने का प्रयास किया तो योगेन्द्र यादव ने कार्यकर्ताओ में बोला की ये मामला गलत है इसे छोड़ चुनाव के काम में लगो ,....आंदोलनकारी साथी समझ रहे थे की इस मामले का फायदा चुनाव में भी मिलेगा और सबसे बड़ी बात हम सही का साथ देने की बजाय उसे दबाने छोड़ने का काम कैसे  कर सकते थे 
7. ऐसा लग रहा था ,....
अरविन्द को और उनके करीबियों को ,.... या उस आंदोलन कर्ता सोंच वाले लोगो को हटाना ही उद्देश्य बचा है ,....
जो पोस्टर छपवाए (कुछ) गए उनमे अरविन्द गायब थे ,…खुद को एक मात्र नेता की तरह प्रस्तुत किया गया ,....
अपने रिस्तेदारो को पार्टी के पदो पर स्थापित कराया ,....
नए साथियो में पुराने के प्रति दुर्भावना भरी गयी ,....
8. चीज़ो के ज्यादा दाम चुकाए गए ,.... जबकि बेहतर  सस्ते में हो सकता था 

उपरोक्त स्थानीय कारणों के अलावा ,…राष्ट्रीय कारण भी काफी हावी थे ,.... जैसे की
जरुरत से ज्यादा सीटो पर चुनाव लड़ना
पैसे से टिकट बेंचना
लोगो को बिना मर्जी के ,…क्षणयंत्र से गलत सीटो पर खड़ा करवाना ,....


और नतीजा ,....
सारे के सारे ,…पुराने और आंदोलन के साथी किनारे होते गए ,....

अंत में सिर्फ इतना कहना चाहूँगा की ,....
ऐसा दिख रहा था ,....AAP को जानबूझ कर ख़त्म करने की साजिश की जा रही है ,....
ऐसा लग रहा था कोई इसे पुराने ढर्रे की पार्टी बनाना चाहता है ,....कुछ लालू यादव जैसे फॉर्मूले मुस्लिम - यादव वगैरह ,....

मुझे याद आता है वो ऑटो वाला जो एक दिन ,…ऑटो चलाता था और एक दिन दिल्ली में प्रचार ,
दिल्ली चुनाव के बाद वो और उसका जूनून खो गया ,....

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