Sunday, December 29, 2013

इतना न रो कि कब्र में मुर्दे भी हंस पड़ें


नरेंद्र मोदी कैसे इंसान हैं? इंसान के रूप में भगवान हैं या आदमी के रूप में शैतान हैं? क्या वह अत्यंत क्रूर और शातिर हैं जैसा कि उनके विरोधी बताते हैं या नरमदिल और मृदुभाषी हैं जैसा कि उनके प्रशंसकों का कहना है?

मोदी जैसों को समझना बहुत ही मुश्किल है। खास कर हम जैसों के लिए जो उनके करीब नहीं हैं। वह पब्लिक में बहुत कम बोलते हैं। अगर बोलते हैं तो एक एजंडा के तहत जहां उनका मकसद होता है अपनी और अपने काम का ढिंढोरा पीटना और  विरोधियों, खासकर कांग्रेस के खिलाफ ज़हर उगलना। यह गलत भी नहीं है क्योंकि कांग्रेस भी अपनी तारीफ करने और मोदी के खिलाफ ज़हर उगलने में कम नहीं है। कहने का मतलब यह कि मोदी के भाषण उनके अपने बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताते सिवाय इसके कि उनका इतिहास-भूगोल आदि का ज्ञान बहुत ही कम है लेकिन उससे किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस देश का संविधान अनपढ़ों को भी सीएम या पीएम होने की इजाजत देता है। जब राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बन सकती हैं तो नरेंद्र मोदी के पीएम बनने पर कोई कैसे आपत्ति कर सकता है!

लेकिन कभी-कभी वह कुछ बोल देते हैं। जैसे कुछ महीने पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने गुजरात दंगों में मारे गए मुसलमानों के बारे में सवाल पूछे जाने पर सीधा जवाब न देते हुए कहा था कि आप किसी गाड़ी में बैठे हों और उस गाड़ी के नीचे कोई कुत्ते का बच्चा आ जाए तो भी आपको तकलीफ होती है। शुक्रवार को फिर उन्होंने एक ब्लॉग लिखकर ( ब्लॉग पढ़ें) बताया है कि दंगों के दौरान और दंगों के बाद उन पर क्या गुज़री (खबर पढ़ें)। यदि मोदी जो लिख रहे हैं, वह सच है तो वाकई उनके साथ बहुत ही अन्याय हुआ है। लेकिन क्या वह सच बोल रहे हैं?

मेरे पिताजी कहा करते थे, 'कोई क्या कहता है, इससे किसी इंसान की पहचान नहीं होती। इंसान की पहचान  इससे होती है कि वह करता क्या है।' शायद वह किसी महापुरुष के कथन को अपनी भाषा में समझा रहे थे या अंग्रेज़ी की कहावत - Action speaks louder than words का हिंदी तर्जुमा कर रहे थे। जो हो, वह बात मैंने गांठ बांध ली और आज मोदी को उनकी बातों से नहीं, उनके कामों के आधार पर जांचने की कोशिश करूंगा।

मोदी के राज में दंगे हुए। दंगों में हिंदू और मुसलमान दोनों मारे गए। लेकिन मोदी किसी मुस्लिम राहत शिविर में नहीं गए सिवाय एक बार जब तक अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उन्हें आलम शाह कैंप जाना पड़ा। और राहत शिविरों के बारे में उनका क्या सोचना था, यह 9 सितंबर को बहुचरजी में उनके द्वारा दिए गए भाषण से ज़ाहिर होता है। उन्होंने कहा था, 'क्या हम बच्चे पैदा करने के लिए राहत शिविर चलाएं।' इसके अलावा मार्च 2002 में इंडिया टुडे को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'यह केवल सांप्रदायिक दंगे नहीं थे बल्कि एक जन आंदोलन जैसा था।' 2002 में दंगों को जन आंदोलन बतानेवाले मोदी आज उसे विवेकहीन हिंसा बताएं तो कौन भरोसा करेगा?

यही नहीं, दंगों में मोदी सरकार की भूमिका के खिलाफ जिस किसी अधिकारी ने ज़बान खोली, मोदी सरकार उसके पीछे पड़ गई। ऐसे बीसियों उदाहरण हैं। अभी हाल के टेप में तो उनके सिपहसालार अमित शाह साफ बोलते पाए गए हैं कि फलां अधिकारी को इतने सालों के लिए अंदर करवा दो। क्या यही तरीका अपनाते हैं हमारे नरमदिल मोदी अपने विरोधियों को सबक सिखाने का? हमें तो यह माफिया का तरीका लगता है।

मोदी के मन में इस्लाम और मुसलमानों को लेकर कितना द्वेष है, इसका सार्वजनिक नज़ारा तब देखने को मिला जब एक जनसभा में उन्हें मुस्लिम टोपी पहनाने की कोशिश की गई और उन्होंने इनकार कर दिया। क्यों भई? यदि आप साफा बांध सकते हो, टीका लगा सकते हो तो मुस्लिम टोपी पहनने से क्या आपका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा?

मोदी कम बोलते हैं और बहुत सतर्क होकर बोलते हैं लेिकन जितना बोलते हैं, उससे उनके अल्पसंख्यक विरोधी मन-मस्तिष्क का संकेत मिल जाता है। मुझे याद है जब दंगों के बाद हुए चुनावों में लिंग्दोह के कारण उनको परेशानी हो रही थी तो वह रैलियों में उनका पूरा नाम बोलते थे - जेम्स माइकल लिंग्दोह। सोनिया गांधी के बारे में भी जब बोलते थे तो उनका पूरा नाम बोलते थे। क्यों? ताकि श्रोताओं को पता चल जाए कि ये ईसाई हैं और इसीलिए िहंदूवादी मोदी को परेशान कर रहे हैं। अभी पिछले साल चुनाव रैली में मोदी ने कहा, 'यदि कांग्रेस को वोट दिया तो अहमद मियां पटेल आपका मुख्यमंत्री बन जाएगा।' मोदी अपने भाषणों में हिंदू, मुसलमान नहीं बोलते, लेकिन अहमद पटेल का पूरा नाम लेकर वोटरों को सावधान कर दिया कि कांग्रेस आई तो मुसलमान बन जाएगा सीएम। वोटरों ने उनका संदेश ग्रहण कर लिया और मोदी का काम बन गया।

मोदी की रणनीति स्पष्ट है। हिंदुत्व और विकास - ये उनके दो शस्त्र हैं। जहां जो काम आ जाए, वहां वे उसका इस्तेमाल करते हैं। गुजरात में पहले विकास वाला चेहरा दिखाते हैं। जब मामला मुश्किल लगता है तो सांप्रदायिकता वाला चेहरा आगे कर देते हैं। जहां तक बाकी देश का सवाल है तो उनको पता है कि वहां अभी सांप्रदायिकता की फसल के लिए मिट्टी सही नहीं है। उनको यह भी पता है कि बीजेपी अभी उतनी ताकतवर नहीं है कि अपने बल पर 270 सीटें ले आए और उसे बाकी पार्टियों के सहयोग की ज़रूरत होगी और ये वे पार्टियां हैं जो या सो स्वभावत: धर्मनिरपेक्ष हैं या मुस्लिम वोटों की खातिर धर्मनिरपेक्ष बनी हुई हैं। इसीलिए आजकल विकास वाला चेहरा सामने किए घूम रहे हैं। लेकिन विश्वास मानिए, जिस दिन इस देश में कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा हुआ, मोदी अपना 'हल' लेकर सामने आ जाएंगे।

लेकिन तब तक तो बीजेपी को एक नरमदिल विकासवादी मोदी को बेचना है। इसीलिए आज का ब्लॉग आया है। लेकिन जैसा कि मैंने ऊपर लिखा, आदमी अपनी करनी से पहचाना जाता है न कि अपनी कथनी से। यदि कथनी के आधार पर ही इंसान के सही-गलत का फैसला करना होता तो आज आसाराम बापू अपने आश्रम में प्रवचन कर रहे होते और तरुण तेजपाल अपनी मैगज़ीन निकाल रहे होते, वे रेप के आरोप में जेल में बंद न होते।

Source => http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/ekla-chalo/entry/narendra-modi-s-crocodile-tears-on-gujarat-riots

No comments:

Post a Comment