Thursday, September 27, 2012

ईश्वर है तो, झगड़े - फसाद क्यों?

ईश्वर है तो, झगड़े - फसाद क्यों?
आज किसी ने, किसी विशेष पूजा, के बारे में पूंछा कि वो कैसे होती है ?
मेरा जवाब, हमेशा की तरह वही था, हर पूजा सिर्फ एक ही तरीके से होती है - और वो तरीका है|
मन से||
बात आगे बढ़ी प्रश्न हुआ - ईश्वर कहाँ है, उत्तर सीधा है मंदिर में |
पर मंदिर क्या है ?
मंदिर वो है, जो मन के अंदर है | और मन इन्सान में, तो मंदिर भी इन्सान में ही हुआ ना|
बात आगे बढ़ी, प्रश्न हुआ - आस्था क्या है उत्तर
समर्पण ही आस्था है||
अंततः इन्सान ही, ईश्वर है, और इन्सान ही मंदिर|
इन्सान का, इन्सान पर - समर्पण ही पूजा ||
तो अगर हम ईश्वर में आस्था रखतें है तो, हम इन्शान को छोटा - बड़ा जिसे संज्ञा कैसे दे सकते है
और जब सभी सामान है तो झगडा क्योँ ? अर्थात ईश्वर है तो, झगड़े - फसाद क्यों? कैसे ?

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