Friday, January 9, 2015

शरद शर्मा की खरी-खरी : 'बी' टीम की राजनीति

नई दिल्ली: दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की तरफ से जैसे ही संकेतभरा बयान आया कि चुनाव के बाद अगर किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो कांग्रेस आम आदमी पार्टी को समर्थन दे सकती है, दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय का बयान आया कि ''आप कांग्रेस की बी टीम है'' और दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष ने भी बोला कि ''आप बीजेपी की बी टीम है।''

अचानक मेरे मन में आया कि ये 'बी टीम' वाले बयान मैंने साल 2013 के दौरान खूब सुने जब आम आदमी पार्टी नई-नई बनी थी और प्रचार शुरू ही किया था। इस पार्टी को कवर करते हुए मैंने कोशिश की यह जानने की कि क्या वाकई ये पार्टी कांग्रेस या बीजेपी की बी टीम है

पार्टी के बारे में अपनी राय बताने से पहले मैं बताना चाहूंगा कि मैं जब साल 2011 में जंतर-मंतर और रामलीला मैदान का टीम अन्ना का आंदोलन कवर कर रहा था तब मुझे इस बात का शक होता था कि इस आंदोलन के पीछे संघ या बीजेपी सपोर्ट हो सकता है। इसके कुछ कारण थे, जैसे कि आंदोलन पूरी तरह से कांग्रेस के विरुद्ध था और दूसरा बीजेपी नेताओं का टीम अन्ना के लिए समर्थन और आदर। या फिर टीम अन्ना के कुछ सदस्यों की बीजेपी नेताओं से करीबियां। हालांकि ये कारण बहुत स्वाभाविक थे और काफी नहीं थे ये साबित करने या मान लेने के लिए कि यह सब बीजेपी या संघ के समर्थन पर हो रहा है, हालांकि इस बात में कोई शक नहीं कि टीम अन्ना का आंदोलन कामयाब बनाने में संघ से जुड़े लोगों की भी भूमिका थी, लेकिन शायद एक नागरिक के तौर पर या फिर इसलिए क्योंकि सब कांग्रेस विरोधी था इसलिए।

लेकिन समय के साथ जैसे ही आंदोलन पार्टी में बदला लगने लगा कि ये बीजेपी नहीं, बल्कि कांग्रेस को फायदा पहुंचाता दिखा, क्योंकि माना ये गया कि जैसे दिल्ली में चुनाव होने की स्थिति में कांग्रेस सरकार के खिलाफ पड़ने वाला वोट बंट जाएगा और बीजेपी फिर सत्ता से बाहर और कांग्रेस फिर जैसे तैसे सरकार बना लेगी

लेकिन फिर वो हुआ, जो किसी ने सोचा ना था.....अरविंद केजरीवाल खुद दिल्ली की 15 साल पुरानी कद्दावर सीएम शीला दीक्षित से लड़ने नई दिल्ली में घुस गए। मैंने उस समय कहा था कि नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित को हराने का मतलब है शेर के जबड़े से शिकार निकाल लाना। मेरे मन में सवाल आया कि अगर केजरीवाल कांग्रेस की मदद करने के लिए पार्टी बनाते तो कम से कम खुद को शीला दीक्षित की सीट से उम्मीदवार घोषित ना करते, क्योंकि कोई किसी पार्टी की मदद करने में खुद को कुर्बान क्यों करेगा?

मेरे मन में वैसे यह सवाल समय-समय पर उठते रहे कि अगर 'आप' को वोट देने पर वोट बंटे और कांग्रेस फिर सरकार में आ गई तो लोग आम आदमी पार्टी को कांग्रेस की बी टीम मान ही लेंगे जबकि मुझे ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जो A B C D टीम होने के सबूत दे।

8 दिसंबर 2013 को वह साबित हुआ, जो मेरा अनुभव आम आदमी पार्टी के बारे में था। कांग्रेस को निपटाने वाली पार्टी आम आदमी पार्टी बनी, अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को करारी शिकस्त दी और कांग्रेस के सभी बड़े मंत्री और नाम 'आप' के उम्मीदवारों से या 'आप' की वजह से चुनाव हार गए। जिस पार्टी की बी टीम होने का आरोप लगा, आम आदमी पार्टी ने उस पार्टी को निपटा दिया।

यही नहीं मेरा मानना है कि चुनाव के बिना भी देश में कांग्रेस के खिलाफ़ माहौल असल में अरविंद केजरीवाल ने तैयार किया, जिसका फायदा बीजेपी को मिला। अन्ना के आंदोलन ने देश में कांग्रेस के खिलाफ़ वह माहौल बना दिया, जो बीजेपी नहीं बना पाई थी। 2004 से अन्ना के आंदोलन का चेहरा केवल अन्ना हज़ारे थे, लेकिन सारा दिमाग और रणनीति अरविंद केजरीवाल की।

लोकसभा चुनाव में दिल्ली में सभी सीटों पर बीजेपी पहले और 'आप' दूसरे नंबर पर रही और आज दिल्ली में जब आम आदमी पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है तब भी उसका सीधा मुकाबला बीजेपी से है। दोनों पार्टियों में रिश्ते इतने खराब हैं कि शायद कांग्रेस और बीजेपी के बीच भी कभी ऐसे रिश्ते नहीं रहे होंगे जबकि दोनो परंपरागत विरोधी हैं।

लोकसभा चुनाव के दौरान मार्च 2014 में बीजेपी मुख्यालय के बाहर हुई ज़ोर-आज़माइश हो या हाल ही में दिल्ली के तुगलकाबाद में एक टीवी डिबेट के दौरान हुई हिंसा, जिसमें मारपीट के बाद आप उम्मीदवार की गाड़ी स्वाहा हो गई.....ये सारी घटनाएं बताती हैं कि दोनों पार्टियों में आपस में कितनी कटुता है

अब सोचकर देखिए कि कांग्रेस को निपटाकर बीजेपी की दुश्मन नंबर वन बनी पार्टी क्या इनमें से किसी की बी टीम हो सकती है?
या फिर ये पहले से स्थापित पार्टियों का रेगुलर या रट्टू बयान मात्र है?

या फिर यह एक व्यवस्था की समस्या है, जिसमें किसी भी नए खिलाड़ी या नए विचार या बदलाव का विरोध केवल विरोध करने के लिए होता है, जिससे जैसा निज़ाम चल रहा है, चलता रहे क्योंकि विरोध करने वाले लोग पहले से मौजूद व्यवस्था के लाभार्थी हैं?

अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी बनाई है और अपनी राजनीति कर रहे हैं। अपनी राजनीति के चलते वह पहली ही बार में दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, अपनी राजनीति के चलते ही इस्तीफ़ा देने पर वो लोकसभा चुनावों में उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाए...अपनी राजनीति के चलते ही वो आज भी दिल्ली की जनता को अपने इस्तीफे के वजह समझाकर कह रहे हैं कि अबकी बार मौका दो तो 5 साल तक इस्तीफ़ा नहीं दूंगा.....अब ये तो जनता तय करेगी ना कि मौका देने लायक वो हैं या नहीं।

विरोधी पार्टियां केजरीवाल की पार्टी, उम्मीदवार, काम करने के तरीके पर ज़रूर सवाल उठाएं इसमें कोई हर्ज़ नहीं क्योंकि केजरीवाल भी यहीं करते है और राजनीति में यही तो होता है, लेकिन ये बी टीम वाला टेप इतना घिस चुका है कि आगे चल नहीं पाएगा। कुछ नया सोचिए जनाब कब तक पब्लिक और मीडिया एक ही लाइन सुनेंगे, लेकिन हां, मैं इतना ज़रूर कहता कि अगर कहीं कभी कोई ऐसा लिंक मुझे मिलेगा....तो इस पर सबसे पहले स्टोरी करूंगा।
http://khabar.ndtv.com/news/blogs/sharad-sharma-on-b-team-politices-724715

No comments:

Post a Comment