Sunday, September 9, 2018

कोरा कागज़ ,...

कभी कभी सोंचता हूँ - लिख के ,.... ये लिख क्या दिया??,...
फिर ,.. मिटा के सोंचता हूँ ,... लिखा ही था तो मिटाया क्यों ??
लिख के मिटा तो दिया ,.. पर ,..
पर वो कागज़ - जो कोरा था ,... अब कोरा कहाँ ??
करूँ उस कागज़ को - कोरा कैसे ??
शायद वो कागज़ - कोरा ही महान है ,... जीने का आसार है ,....
उसी में है - लिखने की सम्भावनाएं अपार!
जो लिख गया ,... वो बिकेगा एक दिन,...
पान में लिपट,... या ,...
या मिलेगा किसी दिन ,.... समोसे के नीचे !!
कागज़ - जो कोरा है ,....
एक खुला आसमान,... धरती विशाल ,..... गहरा समंदर ,... उड़ता पंक्षी ,.. गमले की तुलसी,.... जंगल का बरगद ,...
मोहल्ले का गूलर ,... बुधई की नीम ,... नीम पर गिल्लू ,... वो क्या हो सकता है ,...
वो क्या - नहीं हो सकता ??,...
पर हो कुछ भी ,.. मिटना तो उसे भी है ,....
मिलेगा वो भी कभी ,.... यहाँ या वहाँ ,...
लिखा हो - ना लिखा हो ,.... अंत सभी का एक है ,...
जो लिखा है ,.. शायद उसे सुकूँ है - किसी ने तो पढ़ा है ,... पर दुःख शायद ,..
जो लिखा है - उसे समझा कहाँ ??
समझा नहीं शायद उसने - है कोरा कागज पास जिसके !!#NagShukl

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