Sunday, August 5, 2012

मंथन - An open letter to team Anna

दो दिन पहले, Friday ३ Aug २०१२ को टीम अन्ना ने अपना आन्दोलन वापस ले लिया|!

और छोड़ा एक सवाल, की टीम अन्ना को राजनीतिक विकल्प देना चाहिए या नहीं?
मैंने तुरंत अपना उत्तर हाँ में टाइप करके SMS कर दिया|

टीवी पर देखा more than 90 % are in favour of giving a  political alternative but
TV पर  ही कुछ और aspect भी discuss हुए की आन्दोलन में सिर्फ एक मुद्दा होता है जो की था, भ्रष्टाचार. परन्तु राजनीति में और भी बहुत कुछ है|

कुछ बुद्धिजीवियों ने प्रश्न किया की टीम अन्ना को clear करना पड़ेगा कि what is their Political Agenda, foreign policy, defence policy, education policy etc...
सही है ! प्रश्न भी वाजिब है!
परन्तु यह प्रश्न टीम अन्ना से ही क्यूँ?
क्या इन के उत्तर कांग्रेस, बीजेपी, मायावती और मुलायम सिंह जी से clear हैं? पता नहीं,
शायद मुझमें इंतनी समझ नहीं.
पर हाँ ये प्रश्न पूछने ही पड़ेंगे टीम अन्ना से ! because टीम अन्ना इनके उत्तर दे सकती है.

मैं कई सारी  political parties / leaders को तो इन प्रश्नों के काबिल भी नहीं समझता.
यह सभी प्रश्न valid हैं और मुखे विश्वास है की we will get answers. 

सोचने की बात यह भी है की हमारे देश की movies में हीरो के पास अपार शक्ति होती है, to change the system .
पर हमारे असली हीरो चाहे वो टीम अन्ना हो , border पर हमारे सैनिक हों, हमारे किसान या मजदूर हों. हमारे खिलाडी या सिस्टम में फँसा  एक honest officer.
सभी बेबस और लाचार हैं.
क्यूँ? ...पता नहीं
क्या वास्तव में पता नहीं.....नहीं..
शायद उत्तर साफ़ है, भ्रष्टाचार, जो की हर तरफ इश्वर की तरह विद्यमान है.

तर्क शक्ति से लैस हमारा समाज आज दोनों  (भ्रष्टाचार  & इश्वर) को नकारने में लगा है.

अब आगे बढ़ते हैं...टीम अन्ना,
यह शब्द भी Media का उत्पाद है..और मुझे कुछ गलत लगता है..पता नहीं क्यूँ पर इसके पीछे कुछ साजिश नज़र आती है.

Media and others are trying to put this, as a group of people - which is not true.
I strongly object to this word/term to be used.
This is not a group of people, rather it is true face of बेबस , लाचार, आम आदमी

तो अगर यह Political alternative एक Political पार्टी है
तो अरविन्द जी, अन्ना जी, आप से अनुरोध है की इसका नाम भी यहीं से उत्पन्न  होना चाहिए.
अब मै यह साफ़ कर दूं की, मै किसी भी नाम के , किसी भी शक्ल के, political alternative के साथ हूँ , 
पूरी तरह साथ हूँ| Without thinking whether will change the system or not. It is because, this is an effort, and only & only efforts can lead to result/success.
  वैसे भी गीता में कहा गया है कि कर्म करो और फल की चिंता मत करो
बस इतनी ही गीता मुझे आती है, और मै मानता हूँ| 
और ऐसा लगता है की इसके बाद जानने की ज़रुरत भी नहीं, ये अपने आप में complete है|


 अरविन्द केजरीवाल ने हमसे कई और राय भी मांगी हैं
और हमें उन पर विचार करना चाहिए| और उनका उत्तर ढूँढना चाहिए|
ऐसा मौका कभी नहीं मिला, बस नेता, नेता के बाद उसका बेटा, हम पर थोप दिया गया|
और हम हर 5 साल में कई गलत चीज़ों में से एक को चुनने लगते हैं|
हारे हुए को  पता होता है की ये 5 साल उनकी  छुट्टी के दिन हैं, इसके बाद फिर मौका मिलेगा|
ये कौन सी Democracy है?
क्या यही Democracy है?

मेरा उत्तर न में है, आपका हाँ या न दोनों में से एक होना चाहिए. 
पता नहीं - यह उत्तर नहीं चलेगा, और अगर आप हाँ या फिर न में उत्तर देने में असमर्थ हैं , 
तो इसका सिर्फ और सिर्फ एक अभिप्राय है की आपको एक political alternative चाहिए|
क्या आप सहमत हैं?

अरविन्द केजरीवाल ने यह भी सवाल पूछा की political alternative` का form क्या होना चाहिए?

तो इसका उत्तर मैं अपनी बुद्धि के अनुसार देना चाहूँगा और वो यह है कि 
सीधे सीधे political party और 2014 का election मुझे सही नहीं लगता
क्यूँ की सचिन तेंदुलकर बिना सीखे football नहीं खेल सकते.
All corrupt politicians are actually waiting for us (honest people) to come  in their own game
where they can change/ influence rules of the game any time just by raising things like Hindu-Muslim, Reservation, Caste politics..a long list ..we all know

परन्तु लड़ना और जीतना ही हमारा धेय (aim) है
मै सोचता हूँ की political party aur elections  के लिए हमें हज़ारों मज़बूत हाथ चाहिए
As we all know,
"A chain is as strong as its weekest link "

और हजारों की भीड़ में weekest लिंक ढूदना काफी मुश्किल होगा
अभी आज की तारीख में हमारे पास कम से कम ५० ऐसे मजबूत और trustworthy   लोग हैं जिन पर विश्वास किया जा सकता है
मैं यह भी जानता हूँ की
" काजल की कोठारी में कितहू सयानो जाए, एक लीक काजल की लागिहै पै, लागिहै जरूर."
तो अब क्या करें?
डरने की बात नहीं क्यूँ की हमें यह भी पता है की
"चन्दन विष व्यापत नहीं , लपटे रहत भुजंग"

अर्थात, मुझे पक्का पता है की ये 50 चन्दन हैं, और विषपान को तत्पर और उपयुक्त हैं

इन्हें काजल की कोठारी में जाना ही पड़ेगा और विषपान करना ही पड़ेगा,
क्यूँ की
"नाले की सफाई उसमें उतारे बिना तो होगी नहीं "
अब्ब प्रश्न उठता है की सिर्फ 50 से क्या होगा?
सच है शायद कुछ नहीं...परन्तु इन् 50 के भरोसे हम सड़क से लेकर संसद तक अपनी लड़ाई को पहुंचा सकते हैं
और फिर हमें नीचे के स्तर से प्रारंभ करना होगा.

हम छोटे  - छोटे चुनाव जैसे की ग्राम प्रधान, जिला पंचायत, पार्षद, मेयर , से होते हुए, लोगों को कसौटी पर कसते हुए
विधायक, विधान सभा से आगे जाते हुए
संसद में चन्दन का गोदाम बना सकते हैं.

एक नया राजनीतिक मॉडल प्रस्तुत कर सकते हैं
जिसमें नेता की शुरुआत किसी घराने से नहीं, सीधे संसद से नहीं बल्कि ग्राम प्रधान से होते हुए संसद तक incremental होगी
हम किसी को हाई स्कूल में  सीधे Admission नहीं दे सकते , क्यूँ की उसके पिता ने Ph. D की है
फिर हम सीधे सांसद कैसे बना सकते हैं?

कई ऐसे चेहरे हैं जो बदलाव के लिए लालायित हैं, बस उनको हवा और ताकत की ज़रुरत है
एक नाम जो मुझे इस सन्दर्भ में याद आता है. वो  है छवि राजावत, जो की MBA है
और एक गाँव की प्रधान भी
She is doing good.
Thank You Amir Khan की आपने कई ऐसे चेहरों को अपने कार्क्रम "सत्यमेव जयते" के माध्यम से उजागर किया.  
क्या आपको नहीं लगता की सन्नो (taxi driver from Delhi) महिला कल्याण मंत्रालय में हो तो कोई फर्क  पड़ेगा
और भी कई कई नाम हैं जिनको मैं सलाम करता हूँ, और
अरविन्द जी, आप से अपील करता हूँ की ढूंढ कर  साथ ले लें, मदद होगी.
तो अब political alternative पर मेरा विचार क्या है clear है. की हमें नेताओं की पार्टी नहीं, 
दिल्ली मैं सरकार नहीं चाहिए.
हमें भ्रस्टाचार से मुक्ती चाहिए!.
आप से अनुरोध है, की आप सतत औरे सार्थक प्रयास करतें रहें!.

जब इस देश मैं कुछ गुंडों को साथ लेकर १०/१५ सांसद के साथ लोग defence minister , railway minister बन सकतें है तो फिर
क्या हम सिर्फ और सिर्फ ५० सांसदों के साथ हम इस system को chellange नहीं कर  सकते.
मुझे विस्वाश है, हाँ कर सकतें है ! और करेंगे.
तो मेरा अनुरोध है की
२०१४ के चुनाव में हमारा धेय सिर्फ ५०, अच्छे और बहुत
अच्छे चेहरें संसद में भेजने है
चाहे वो किसी पार्टी का झंडा थामें हो या नहीं.

तो मेरा प्रस्ताव ये है की २०१४ के चुनाव में हमे सारे के सारे  बड़े नेताओं को, चाहे वो कांग्रेस से हो या बीजेपी से या किसी भी पार्टी से, सभी के सामने हमें आपने मजबूत और चरित्रवान उम्मीदवार खड़े करने चाहिए और पूरी ऊर्जा के साथ इन correupt  नेताओं को संसद में जाने से रोकना चाहिए!.

छोटे नेता तो वैसे भी थाली के बैगन होते है जब पैसे खर्च करके संसद में जायेंगे और अनुमान के हिसाब से कमा  नहीं पायेंगे तो खुद ही जल्द कोई नया धंधा दूंढ़ लेंगे.
और हाँ अगर हमारा कोई उम्मीदवार हार भी गया तो क्या वो सड़क पर आन्दोलन को जिन्दा रक्खेगा.
दूसरा पहेलू ये भी है की - हमे छोटे चुनावों मे ध्यान देना चाहिय जैसे की ग्राम पंचायत, पार्षद ......ये सभी आने वाले समय में आप की दी हुयी मशाल को हाथ में ले केर दिल्ली कूच करेंगे.

अरविन्द जी ये रोग पुराना है, ये लडाई अब छोटी नहीं होगी और इसके पूरे और पक्के इलाज में समय लगेगा.
जनता आपके साथ है, हर हाल में है!
इसको ध्यान में रखते हुये, कृपया विचार करें.
मै (आम आदमी) आप से मिलकर discuss करना चाहता हूँ, पर मै आलसी हूँ, अपने घर से निकलना ही नहीं चाहता हूँ, निकल कर ऑफिस भी नहीं, और vote देने भी नहीं जाना चाहता.
पर इतना आलसी भी नहीं की आप आवाज़ दो और मैं न आऊँ!.
आप आवाज़ दो, मैं मिलूंगा हर मोड़ पर, हर सड़क पर, हर चौराहे पर.
और हो सकता है की संसद में भी.
 - नागेन्द्र शुक्ल
finally नक्कालो से सावधान, अभी मैं घर से बाहर गया तो देखा कुछ बैनर पोस्टर लगे है जो की independance day की और ईद की शुभकामनाये आपकी और अन्ना जी की फोटो के साथ ठीक उसी तर्ज़ पर दे रहे  है जैसे की I have seen  in past
ये डगर है बहुत कठिन मगर हम साथ चले तो मंजिल मेलेगी जरूर.









 

4 comments:

  1. Nicely written. Agree with most of the points you mentioned.

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  2. very well put together the real pblm...i appreciate this talent of urs....Jyoti

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  3. Dada..very nice article..keep it up..

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  4. Well written. Thanks

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